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Showing posts from November, 2008

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -54

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -54 - पंकज अवधिया हथियारो से लैस डकैतो ने पास के एक शहर मे किसी बडे आदमी के घर के सभी सदस्यो को बन्धक बना लिया था। आस-पास राजा की फौज मौजूद थी पर वह थोडा भी आगे बढती तो डकैत आक्रामक हो जाते। हमारे दादाजी को बुलाया गया। वे राजवैद्य थे। अब ऐसी विकट स्थिति मे राजवैद्य की भला क्या जरुरत। सैन्य अधिकारियो ने विचार-विमर्श किया। उन्हे रात होने का इंतजार करने के लिये कहा गया। ठंड के दिन थे। आम लोग लकडी जलाकर ठंड से बचने की कोशिश करते थे। शाम को माहौल मे धुए की गन्ध बिखरी रहती थी। इसी समय राजवैद्य ने हवा की दिशा जाँची और फिर कंडे मे कुछ जडी-बूटियाँ डाली। जडी-बूटियाँ जलने लगी और धुआँ उस घर के अन्दर जाने लगा जहाँ डकैत और बन्धक थे। थोडी ही देर मे राजवैद्य ने सैनिको को घोडो को चाबुक मारने को कहा। घोडे हिनहिनाये। बाहर थोडी सी अफरातफरी मची पर अन्दर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी। सैनिक राजवैद्य का इशारा पाते ही घर के अन्दर घुस पडे। अन्दर देखा तो सभी बेहोशी जैसी स्थिति मे थे। घुँए ने कमाल दिखाया था।

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -53

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -53 - पंकज अवधिया पिछले कुछ महिनो से आफ्रीकी देश तंजानिया से आ रही खबरे मन को विचलित किये हुये है। वहाँ एल्बीनिज्म रोग से प्रभावित लोगो को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। मारने का ढंग बडा ही घिनौना है। रात को सोते हुये अचानक ही इन पर अज्ञात लोग आक्रमण करते है और फिर शरीर का कोई हिस्सा काट कर ले जाते है। प्रभावित लोग तक जब तक मदद पहुँचे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आपको यह जानकर आश्चर्य और दुख होगा कि शरीर के काटे गये हिस्सो को अमीर लोग बडी कीमत देकर खरीद लेते है। अमीर इसे लेकर ओझाओ के पास जाते है जहाँ उन्हे ताजे खून को पिलाया जाता है। आपके मन मे चीनी बाजार की बात आ रही होगी जहाँ बाघ के लिंग का सूप केवल इसलिये पीया जाता है ऊँचे दाम देकर कि इससे मर्दाना शक्ति बढती है। इस गलतफहमी ने न जाने कितने बाघो को मौत के घाट उतार दिया है। पर यहाँ हम मनुष्यो के खून की बात कर रहे है। ओझाओ ने यह बात फैला रखी है कि इस खून को पीने से अमीरी बढती है, धन की प्राप्ति होती है। कल मैने रात को बीबीसी पर इसके विषय मे एक और समाचार सुना तो मुझे

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -52

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -52 - पंकज अवधिया मुम्बई के एक सज्जन को कही से खबर लगी कि मै मधुमेह पर पिछले चौदह सालो से एक रपट लिख रहा हूँ तो वे अपने बीमार पिता को लेकर बिना किसी सूचना के घर पर आ धमके। उनके पिता को मधुमेह था और उन्हे देखकर लगता था कि रोग बढी हुयी अवस्था मे था। उन्होने मुझसे चिकित्सा करने को कहा। मैने उन्हे बताया कि मै चिकित्सक नही हूँ, महज पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करता हूँ। इस पर वे किसी अनुभवी पारम्परिक चिकित्सक के पास ले चलने की जिद करने लगे। उनकी हालत देखकर मना करते नही बना। उनके लडके ने बताया कि हालत बहुत बुरी है। आनन-फानन मे गाडी की व्यवस्था की गयी और फिर सैकडो किलोमीटर का लम्बा सफर आरम्भ हुआ। पारम्परिक चिकित्सक के पास मोबाइल नही होता है इसलिये इस बात की चिंता थी कि कही हमारा जाना व्यर्थ न हो जाये। पर हमारी मेहनत बेकार नही गयी और जब हम पहुँचे तो पारम्परिक चिकित्सक ने बाहर आकर हमारा स्वागत किया। रोगी की जाँच करने के बाद उन्होने चिकित्सा करने की हामी भर दी। पर यह शर्त रखी कि उन्हे रुकना होगा। कब तक? जब तक

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -51

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -51 - पंकज अवधिया यूँ तो लगातार ऐसे दावे सामने आते रहते है कि संजीवनी बूटी खोज ली गयी है पर वास्तव मे क्या रामायण काल मे प्रयोग की गयी संजीवनी बूटी अब भी धरती पर है? क्या यह एक वनस्पति है या वनस्पतियो का मिश्रण? आम लोगो मे इस विषय पर चर्चा होती रहती है। विद्वान भी इसमे सिर खपाते रहते है। हरेक दावे को परखे बिना ही विद्वान उसका विरोध शुरु कर देते है। यदि वे विरोध न करे तो किस काम के विद्वान। वनस्पतियो मे रुचि होने के कारण मै भी इस वनस्पति को तलाशता रहा। विद्वानो ने कह दिया कि आप छत्तीसगढ मे इसे न खोजे क्योकि रामायण काल मे दूसरी जगह से इसे लाने की बात लिखी है। आपको यह मध्य भारत मे नही मिलेगी। और यदि गल्ती से मिल भी गयी तो विद्वान इसे मान्यता नही देंगे। इन सब बातो की परवाह किये बगैर मैने खोज जारी रखी। विद्वान की मान्यता की चिंता नही थी। बस यही तमन्ना थी कि ऐसी वनस्पति को प्राप्त कर मै इससे लोगो का जीवन बचा सकूँ। कुछ वर्षो पहले एक पारम्परिक चिकित्सक के सामने एक बेबस खडे विदेशी पुरुष को देखा। उसे कैसर था और आधुनिक चिकित

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -50

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -50 - पंकज अवधिया यदि मै आपसे सवाल करुँ कि आप कौन-सा चावल खाते है तो आपमे से ज्यादातर लोग कहेंगे बासमती, यदि आप शहरी इलाको से होंगे तो। यदि आप ग्रामीण इलाको से होंगे तो आप अधिक उपज देने वाली नयी किस्मो के नाम गिनाने शुरु कर देंगे। आपमे से बहुत कम पारम्परिक किस्मो की बात कहेंगे। धान की पारम्परिक किस्मे तेजी से खत्म होती जा रही है। हमारी नयी पीढी इनके नाम पुस्तको मे ही पढ पायेगी- ऐसा प्रतीत होता है। मै अपने सर्वेक्षणो के दौरान युवाओ से जब इनके विषय मे पूछता हूँ तो वे बगले झाँकने लगते है। ज्यादातर बुजुर्ग भी बहुत कम जानकारी दे पाते है औषधीय धान के विषय मे। बीज मिल पाना तो दूर की बात है। यह मेरा सौभाग्य है कि मै पिछले डेढ दशक से इसमे अपनी रुचि बनाये हुये हूँ। इसका परिणाम यह हुआ कि मुझे दसो किस्म के औषधीय धान के विषय मे न केवल जानने को मिला बल्कि उनके औषधीय उपयोगो को परखने का भी अवसर मिला। औषधीय धान से सम्बन्धित जानकारियो को मैने अपने तक सीमित नही रखा। सैकडो लेखो के माध्यम से मैने इसके विषय मे दुनिया को बताया, इस उम्मी

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -49

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -49 - पंकज अवधिया पिछले सोमवार को पारम्परिक चिकित्सको के साथ घने वनो मे घूमता रहा। दिन मे जंगली जानवर से मुलाकात होने की सम्भावना कम ही रहती है। साथ चल रहे लोग बताते रहे कि यहाँ भालू बहुत है, यह तेन्दुए का रास्ता है आदि-आदि। पर इनसे मुलाकात नही हुयी। मैने पहले भी लिखा है कि मै इनसे मिलना पसन्द नही करता। मेरा ध्यान वनस्पतियो पर रहता है। शाम तक घने जंगल को पैदल पार करते हुये हम दूसरे छोर तक पहुँच गये। वहाँ गाडी बुलवा ली थी। रात को जब फिर उसी रास्ते से गाडी मे बैठकर निकले तो आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। पहले लोमडियो, फिर वनबिलाव, भालुओ को देखा और दो बार तेंदुआ दिखायी पडा। जंगली सुअर भी दिखायी पडे। हमारे साथ सफर कर रहे एक नये व्यक्ति ने हमे कुछ और ही समझ लिया था। हर जानवर को देखकर वह कहता रहा, साहब, इसका सींग मिल जायेगा मर्दाना शक्ति बढाने के लिये, इसकी पूँछ के बाल मिल जायेंगे भूत भगाने के लिये, इसके सिर की हड्डी मिल जायेगी वशीकरण के लिये, इसके दाँत दिलवा दूँ क्या, आपको नजर नही लगेगी आदि-आदि। मैने उसे शांत करते हुये कहा