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टिप्पणी कूट : टिप्पणी करने का अनोखा (?) औजार

टिप्पणी कूट : टिप्पणी करने का अनोखा (?) औजार मुझे याद आता है पहले तार (टेलीग्राम) करते समय तारघर मे सन्देशो की सूची लगी होती थी। आपको केवल कोड या कूट लिखना होता था और पूरा सन्देश चला जाता था। हिन्दी चिठ्ठाकारो की संख्या जिस तेजी से बढ रही है उससे थोडे समय बाद ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी करना दुष्कर हो जायेगा। नये चिठ्ठाकारो को भी बडी तकलीफ होती है टिप्पणियो को लिखने मे। इसलिये मैने प्रयोगात्मक तौर पर कुछ कूट बनाये है। आप जाकर केवल ये कूट लिखे, लेखक डिकोडिग कर लेगा। या हो सकता है बाद मे गूगल यह सुविधा दे दे । 1-वाह क्या बात है। 2- अच्छा है। ऐसे ही लिखते रहे। 3- वाह, लगता ही नही कि आपने लिखा है। 4- बहुत खूब। आभार, शुक्रिया, साधुवाद। 5- आपने तो मन को छू लिया। 6- आँखे नम हो गई। 7- मै इस पर लिखने की सोच रहा था पर आपने पहले ही लिख दिया। 8- हम आये थे। नोट कर लीजिये। 9- मेरे ब्लाग पर आपकी टिप्पणी नही आ रही है। जरा देखे। 10- बाहर हूँ पर पढ रहा हूँ। लिखते रहे। 11- मेरे ब्लाग का पता यह है, पधारे। 12- आपके व्यंग्य से डर लग रहा है। हमारी कुर्सी खतरे मे है। 13- ये फ़ोटो

विशु

उपन्यास : प्रथम किश्त विशु - पंकज अवधिया ‘ अरे ये फिर अन्दर घुस गई ’ – विशु के पिता जोर से चीखे। उसकी माँ याने विशु की दादी के लिये पिता ने चीखा था। दादी सीढीयो से नीचे टंकी तक उतर गई पानी लेने। सत्तर की उमर मे अच्छी खासी कद काठी वाली उस महिला को घुटनो के दर्द ने जकड रखा था। बचपन से ठाठ से पली-बढी थी। उसके पति गाँव के मालगुजार थे। सैकडो एकड जमीन और दसो नौकर-चाकरो का सुख भोगा था। पर पति के गुजरने के बाद तो जैसे उसके करम ही फूट गये। तभी तो इस उम्र मे जब ऊपर नल पर उसके बेटे ने पानी भरने की रोक लगा दी तो उसे मजबूरीवश नीचे उतरना पडा। कुछ कदम नीचे गये ही थे कि यह चीख सुनायी पडी। बेटे ने गुस्से मे कुछ बुदबुदाया फिर नीचे जाने के रास्ते मे लगा लोहे का दरवाजा बन्द कर दिया। अब दादी करे तो क्या। विशु का बडा भाई जो नहाने मे मग्न था वह भी शोर सुन कर आ गया। और उसकी माँ अपने गुरू से गायन सीख रही थी। मधुर सुर लहरियो के बीच कुछ तेज आवाजे सुनकर वो भी आ गई। फिर वो हंगामा हुआ जिसके बारे मे किसी ने सोचा नही था। दादी को दरवाजे से बाहर निकाला गया। और साफ शब्दो मे घर छोड कर जाने कह