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Showing posts from August, 2008

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21 - पंकज अवधिया अपना बागीचा दिखाते हुये मेरी एक परीचित महिला शान से विदेशो से ऊँचे दामो पर मंगाये पौधो को दिखा रही थी। तभी मेरी नजर एक ऐसे पौधे पर पडी जिसे उस घर मे बिल्कुल नही होना चाहिये जहाँ बच्चे और पालतू जानवर हो। महिला ने उस पौधे की ओर इशारा करते हुये बताया कि यह जैट्रोफा पाडएग्रिका है। यह बायोडीजल के लिये लगाये जा रहे जैट्रोफा का सुन्दर रिश्तेदार है। मैने उनसे कहा कि इसे आपके घर मे नही होना चाहिये विशेषकर लान के पास जहाँ सभी बैठते है। मेरी बात सुनकर वे बोली कि क्या आप वास्तु वाले है? वास्तु वालो ने भी हमे कई बार कहा कि इसे यहाँ से हटा दे। मैने खुलासा किया कि बहुत से विदेशी पौधे बच्चो और पालतू जानवरो के लिये नुकसानदायक होते है। इस पौधे से जो लेटेक्स निकलता है किसी भाग को तोडने से, वह यदि त्वचा मे लग जाये या आँख मे चला जाये तो समस्या हो सकती है। बडे बच्चो को तो समझाया जा सकता है पर छोटे बच्चो मे उत्सुकता कुछ ज्यादा ही होती है। वे पत्तियो को खा भी सकते है। उन्होने याद कर कहा कि एक बार मेरे छोटे ब

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20 - पंकज अवधिया जंगलो से गुजरते हुये मै साथ बैठे ग्रामीणो से बातचीत कर रहा था। मुझे बताया गया कि इस बार माता का प्रकोप बहुत होगा पूरे क्षेत्र मे। माता मतलब चिकन पाक्स। कैसे पता? मैने पूछा। गाँव के एक बुजुर्ग का कहना है। बिना विलम्ब मैने ड्रायवर से गाडी उस दिशा मे मोडने को कहा जहाँ इस बुजुर्ग का गाँव था। उबड-खाबड सडक पार कर हम गाँव पहुँचे। बुजुर्ग का घर गाँव के आखिर मे था। उन्होने मेरी बात सुनी और कहा कि उन्हे वनस्पतियो के आकार और रंग मे आये परिवर्तन से यह पता चल जाता है कि किस तरह की बीमारी क्षेत्र मे इस बार फैलने वाली है। ऐसी बात सुनकर आप अपने किताबी ज्ञान के आधार पर बिना किसी देरी के हँस पडेंगे और माखौल उडाने लगेंगे। पर लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण करते हुये मैने अपने अनुभव से यह सीखा है कि इस कार्य के लिये असीम धैर्य की जरुरत है। आपको सभी तरह की बाते सुननी पडती है। चाहे वह विज्ञान सम्मत हो या न हो। विज्ञान मतलब आज का विज्ञान या कहे अभी तक का विज्ञान। विज्ञान मे तो नित नयी बातो का

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19 - पंकज अवधिया कुछ वर्षो पहले हमारे घर पर झाडू-पोछा का काम करने वाली महिला ने बताया कि उसके पास एक चमत्कारिक रोटी आयी है। ऐसी रोटी जिसे रखने से मनचाही मुराद पूरी हो सकती है। रोटी को सहेज कर रखना है और कुछ नियमो का पालन करना है। यदि सच्चे मन से सेवा की गयी तो रोटी डबल हो जायेगी। उसे यह भी कहा गया कि दूसरी रोटी को किसी और श्रद्धालु को दे देना जिससे तुम्हे लगाव हो। परिवार के सदस्यो से होते हुये यह बात मुझ तक पहुँची। मैने विस्तार से जानकारी माँगी। मुझे बताया गया कि रोटी रखने वाले को सात दिन तक उपवास करना होगा। सन्यम बरतना होगा। रोटी के ऊपर चाय पत्ती और शक्कर चढानी होगी नियमित तौर से। मैने अन्ध-विश्वास दूर करने वाली संस्था से सम्पर्क किया और उनके साथ ऐसी रोटी देखने चल पडा। रास्ते मे इसके विषय मे और भी बहुत सी चमत्कारिक बाते सुनने को मिली। जब हमने रोटी को देखा तो उसमे रोटी जैसे कोई गुण नही दिखे, आकार को छोड कर। यह तो चिपचिपी द्रव मे डूबी रोटी जैसी कोई चीज थी जिससे खट्टी गन्ध आ रही थी। हम तो सिकी हुयी रोटी की कल

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -18

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -18 - पंकज अवधिया छत्तीसगढ मे बरसात के दिनो मे अपने आप उगने वाली वनस्पति चरोटा को सभी जानते है। इसका वैज्ञानिक नाम कैसिया टोरा है। यह बेकार जमीन, मेडो और कभी-कभी खेतो मे भी उग जाती है। इस वनस्पति की नयी पत्तियो जिसे आम बोलचाल की भाषा मे बालक पत्ती कहा जाता है, से साग बनायी जाती है और बडे चाव से खायी जाती है। इस तरह से बरसात मे अपने आप उगने वाली दसो वनस्पतियो का प्रयोग भाजी के रुप मे होता है। इनमे बाम्बी, मुस्कैनी, मछरिया, बर्रा आदि प्रमुख है। राज्य के पारम्परिक चिकित्सक बताते है कि इन वनस्पतियो का प्रयोग स्वाद तक सीमित नही है। इनके प्रयोग से साल भर लोग रोगो से बचे रहते है। विशेष रोगो की चिकित्सा मे इसकी विशेष भूमिका है। जैसे चरोटा का प्रयोग शरीर की सफाई करता है और जोडो के दर्द के लिये यह रामबाण है। मछरिया भाजी के प्रयोग से महिलाए साल भर रोगो से बची रहती है। अब धीरे-धीरे इन भाजियो का प्रयोग समाप्त होता जा रहा है। यह कहा जाता है कि फुलपैंट पहनने वाले लोग मुफ्त की भाजी नही खाते है। वे बाजार से कीमती भाजी खरीदते

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -17

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -17 - पंकज अवधिया आई.आई.टी., खडगपुर से तकनीकी सहायक का साक्षात्कार देकर लौटते हुये मै ट्रेन मे रिजर्वेशन की तलाश मे भटक रहा था। ट्रेन मे तिल रखने तक की जगह नही थी। थकहार कर मै टायलेट के पास बैठे अपने ही जैसे यात्रियो के साथ बैठ गया। एक सहयात्री समय काटने के लिये लोगो का हाथ देख रहा था और विस्तार से सब कुछ बता रहा था। पास बैठे पिता-पुत्र की बारी आयी। पुत्र का हाथ देखते ही उसके माथे पर चिंता की लकीर उभर आयी। वह कुछ नही बोला। पिता को आशंका हुयी। वह पुत्र के बारे मे जानने व्यग्र हो उठा। एक कोने मे ले जाकर उस सहयात्री ने धीरे से बताया कि आपके पुत्र के हाथ को देखकर लगता है कि इसका कुछ समय पहले किसी से झग़डा हुआ है और ऐसा भी लगता है कि यह मर्डर करके भागा है। मै ने सोचा अब तो उस ज्योतिषी की खैर नही। ऐसा पिटेगा कि दम निकल जायेगा। पर हुआ उल्टा। पिता उनके पैरो मे गिर गया और बताया कि बिहार मे दोस्तो के साथ किसी झग़डे मे इन सब से किसी की हत्या हो गयी। कैसे भी मैने अपने बेटे को निकाला है। अब इसे मुम्बई ले जा रहा हूँ

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -16

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -16 - पंकज अवधिया कौन-सा पेड आपके लिये कल्पवृक्ष है? यह प्रश्न जब मैने छत्तीसगढ के छुरा क्षेत्र के उन किसानो से पूछा जो कि पास के जंगलो मे उग रहे हर्रा के पेडो से कच्चे फल एकत्र कर रहे थे तो उन्होने हरे फलो को दिखाया और बोले हम इन फलो को घर ले जाकर कुचलेंगे और फिर इसे लेप के रुप मे अपने पैरो मे लगायेंगे। उन भागो मे जो कि धान के खेतो मे पानी मे लगातार डूबे रहने के कारण गल रहे है। यह लेप पुराने जख्मो को ठीक करेगा और साथ ही आने वाले दिनो मे पैरो को गलन से बचायेगा। हमारे लिये तो आज हर्रा का पेड ही कल्पवृक्ष है। यही हमारी संजीवनी है। अम्बिकापुर के अजीरमा गाँव मे जब मै छात्र जीवन के दौरान वानस्पतिक सर्वेक्षण कर रहा था तब मुझे रोहिणी सरकार नामक सज्जन के घर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होने अपने घर के सामने निशिन्दी का पेड लगा रखा था। इसे आपने घर के सामने क्यो लगाया है? वे बोले कि यह बुरी हवा से हमारे घर और सदस्यो की रक्षा करता है। फिर उन्होने इसके उपयोग गिनाने आरम्भ किये तो यह मुझे बुरी हवा से बचाने वाले