अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -2

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -2
-पंकज अवधिया
अपने अभियानो मे सबसे अधिक आकर्षण हरेली अमावस्या की रात होने वाले अभियान का होता है जब एक काफिले के रुप हम लोग उन स्थानो का भ्रमण करते है जहाँ इस विशेष रात को आम लोग जाने से डरते है। भ्रमण का मुख्य उद्देश्य यह जताना होता है कि बुरी आत्मा जैसी कोई चीज नही होती। छत्तीसगढ मे यह मान्यता है कि इस रात टोनही अपनी साधना के लिये बाहर निकलती है। इसलिये रात को आम लोग घरो के अन्दर ही रहते है। टोनही का अर्थ सामान्य शब्दो मे ऐसी महिला से है जो जादू-टोना करती है। आपने छत्तीसगढ मे टोनही प्रताडना के मामले सुने और पढे होंगे। प्रतिवर्ष बहुत से ऐसे मामले प्रकाश मे आते है जिनमे किसी महिला को टोनही का नाम देकर उसे प्रताडित किया जाता है। प्रताडना की पराकाष्ठा यहाँ तक होती है कि महिलाओ को निर्वस्त्र तक कर दिया जाता है और फिर गाँव मे घुमाया जाता है। आजादी के इतने साल बाद भी यह सब जारी है। दूरस्थ अंचलो मे ही नही बल्कि आधुनिक महानगरो के आस-पास भी। आम तौर पर इस मान्यता की गहरी जडे है समाज मे और यही कारण है कि इसके विरुद्ध संघर्ष उतना अधिक रंग नही ला पाता। मोटे तौर पर दो तरह की विचारधारा के लोग है। एक तो वे जो इस मान्यता पर विश्वास करते है और लगातार इस पर बाते कर नयी पीढी को इसके खतरे से आगाह करते है। दूसरी ओर पढा-लिखा वर्ग है जो इसे अन्ध-विश्वास मानता है और टोनही के नाम पर नारी प्रताडना के विरुद्ध है। दोनो ही तरह के लोगो के अपने-अपने तर्क है और दोनो ही अपने तर्को पर अडे है।
अपने अभियानो के दौरान हम सीधे ही आम लोगो से कहते है कि यह प्रताडना अब बन्द होनी चाहिये। लम्बे व्याख्यान देते है और अपनी आरामदायक गाडियो मे बैठकर शहर आ जाते है। फिर अखबारो मे इसे छपवा देते है। कही टोनही प्रकरण हुआ तो हमारे संस्था प्रमुख अपने नाम से इसकी आलोचना प्रकाशित करवा कर अपने कर्तव्यो की इतिश्री मान लेते है। बहुत बार हम लोग प्रभावित महिला से मिलने गये है। हमने उनसे बात की है और उन्हे ढाढस बन्धाया है। अपने रिकार्ड के लिये उनके साथ तस्वीरे उतारी है। उन्हे पुलिस तक पहुँचाया है और पुलिस से भारतीय कानून क हवाला देकर मदद की गुहार की है पर इन सब से प्रभावित महिला को बहुत कम राहत मिलती है। हम तो वापस चले आते है और पुलिस अपने काम मे लग जाती है। प्रभावितो को लौटकर उन्ही लोगो के बीच जाना होता है जिन्होने उन्हे प्रताडित किया है। वे लोग भले ही पुलिस के डर से फिर वैसा कुकर्म न करे पर तानो के माध्यम से एक जीवित महिला की जिन्दगी नरक बना देते है। महिला का परिवार जिल्लत भरी जिन्दगी जीता है। अक्सर उनके बच्चो से भेदभाव किया जाता है। स्कूल मे अलग से बिठाया जाता है। एक बार टोनही का लेबल लगने से पीढीयो तक इस अभिशाप से मुक्त होना सम्भव नही हो पाता है। इस तरह की सामाजिक समस्याए पत्रकारो और शोधकर्ताओ के लिये रोचक विषय होती है। यही कारण है कि छत्तीसगढ मे इस पर ढेरो फिल्मे बनी, लेख लिखे गये और यहाँ तक कि एक विदेशी महिला ने इस पर शोध ग्रंथ भी तैयार कर लिया। टोनही प्रताडना के नाम पर कितने ही संगठनो को ग्रांट मिल गया और कितनो ने ही राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त कर लिया है पर आज भी समस्या जस की तस है। छत्तीसगढ सरकार ने इस पर विशेष अधिनियम बना दिया और लागू भे करवा दिया पर आज भी स्थानीय अखबारो मे इस रुप मे नारी प्रताडना के मामले आये दिन प्रकाश मे आते है। ऐसे मे व्याख्यान के नाम पर जागरुकता फैलाने वालो मे खुद को पाकर मै दुखी हो जाता हूँ।
इसमे दो राय नही कि जागरुकता फैलाने की जरुरत है पर जैसा कि मैने पहले लिखा कि यह आसान काम नही है। सबसे जरुरी यह है कि कार्यकर्ता गाँवो मे जाये और वहाँ रहकर प्रभावित महिलाओ की हौसला आफजायी करे। यह भी एक सशक्त कदम हो सकता है गाँवो मे सतायी गयी महिलाए अपना एक संगठन बनाये और फिर स्वावलम्बी होकर अन्ध-विश्वास मे जकडे समाज के मुँह पर तमाचा मारकर उन्हे जगाये। वे गाँव न छोडे बल्कि वही रहकर अपने संगठन के बल पर दूसरी महिलाओ को प्रताडित होने से बचाये। प्रभावित महिलाओ को एक मंच पर लाने और उन्हे संगठित कर उनके मन से डर हटाने के एक भी उपाय अभी तक नही किये गये है। टोनही प्रताडना के दसो मामलो मे मै सम्बन्धित संस्था के साथ गाँवो मे गया। खानापूर्ति की और वापस आ गया। अब सालो बाद फिर उस गाँव से गुजरना होता है तो प्रभावितो को उसी हाल मे देखकर कोफ्त होती है।
संस्था के कई सदस्यो ने नेताओ से मिलकर शहरो मे कुछ प्रभावित महिलाओ को घर दिलवा दिया और वाह-वाही लूटने का प्रयास किया पर मुझे लगता है कि प्रभावितो को उनके गाँव मे ही मदद कर संगठन के माध्यम से मजबूत बनाने की जरुरत है। शहरो तक उनके बारे मे बाते पहुँचने मे समय ही कितना लगता है। फिर एकाएक नयी परिस्थितियो मे अपने आप को पाकर वे असहज महसूस करती है। मददकर्ताओ के लिये भी मामला पुराना हो जाता है और वे नये मामले की ओर रुख कर लेते है।
जागरुकता अभियानो के दौरान आम लोगो को समझाने के दो रास्ते है। या तो अपने आप को विज्ञान का महारथी बताकर बिना तर्क-वितर्क के इस मान्यता को गलत ठहरा दिया जाये या फिर आम लोगो से इसके विषय मे विस्तार से जाना जाये और फिर परत दर परत समस्या को सुलझाया जाये। मै दूसरे रास्ते पर ज्यादा यकीन करता हूँ। इससे मुझे बहुत मदद भी मिली। मै टोनही नामक पात्र को अच्छे से जान पाया। यह पात्र आम लोगो के मन-मष्तिष्क मे गहरे बसा हुआ है। जितने मुँह उतनी बाते। आमतौर पर यह कहा जाता है कि हरेली की रात को आप को दूर कही आग का गोला दिखे फिर अचानक गायब हो जाये और फिर कुछ दूरी पर प्रकट हो जाये तब आप समझिय्रे कि आपने टोनही को देखा है। यदि यह आपके पास आ जाये तो आप इसके शरीर पर कपडे नही पायेंगे और जीभ से लाल रंग की प्रकाश उत्सर्जित करती लार को देख पायेंगे। जब यह सामने आ ही जाये तो फिर आप या तो मंत्र पढे या फिर मौत की प्रतीक्षा करे। क्योकि जो करना है उसे ही करना है। आग के गोले के रुप मे जलने को स्थानीय भाषा मे टोनही बारना कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि टोनही के पास चमत्कारी शक्तियाँ होती है जिससे वह गाँवो मे बिगाड करती है और लोगो का जीना दूभर कर देती है। आमतौर पर इन्हे गाँव के बैगा ही सम्भालते है जो कि झाड-फूँक मे माहिर होते है। समस्त प्रताडना मे मुख्य विलेन की भूमिका उसी की होती है। गाँव वालो के लिये यह पूजनीय होता है क्योकि यह समस्या से बचाता है और गाँवो की रक्षा करता है। वो जो कहता है सभी उस पर आँखे बन्दकर यकीन करते है। यदि टोनही नामक पात्र की मदद के लिये कोई आगे आता है तो उसे कडा दंड मिलता है और उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है।
कुछ वर्षो पहले रायपुर के पास एक गाँव मे हरेली के दिन हम व्याख्यान देने गये। ग्रामीणो ने बडे ध्यान से हमे सुना और माना कि टोनही नही होती है। फिर किसी ने सुझाव दिया कि गाँव के श्मशान मे जाया जाये। रात के बारह बज रहे थे। हल्की बारीश हो रही थी। हम एक कतार मे श्मशान तक पहुँचे। काफी संख्या मे युवा ग्रामीण भी साथ थे। आमतौर पर इन युवाओ से ही उम्मीद की जाती है कि वे जन-जागरण की अलख जगायेंगे। श्मशान से वापस लौटते हुये हमे एक सूखा हुआ डूमर का पेड मिला। मैने साथ चल रहे युवा से पूछा कि क्या बात है इस पेड को क्या बीमारी लग गयी? उसने कुछ नही कहा फिर बहुत पूछने पर कोने मे ले जाकर कहा कि इसे टोनही का तीर (बाण) लग गया है। हमारी सारी मेहनत धरी की धरी रह गयी। सब गुड-गोबर हो गया। जागरुकता अभियान का नतीजा सिफर लगने लगा। डूमर जैसी बहुत सी वनस्पतिया टोनही नामक पात्र की पसन्दीदा मानी जाती है। लोग डूमर के फलो को तो चाँव से खाते है और इससे औषधियाँ भी बनाते है पर पेड को सन्देह भरी नजरो से भी देखते है।
राज्य मे तो हमारे अभियानो को ज्यादातर लोग जानते है। कुछ समय पूर्व सफेद मूसली खरीदने एक किसान के साथ मै जलगाँव जा रहा था। किसान ने अपने एक प्रोफेसर मित्र को भी साथ रख लिया था। हम लोग टाटा इंडिका मे थे। अभी कुछ दूर ही चले थे कि टोनही नामक पात्र पर चर्चा शुरु हो गयी। बडे ही तीखे स्वर मे प्रोफेसर महोदय ने मुझे कोसा कि क्या आप राज्य की परम्पराओ और विश्वासो के खिलाफ काम करते है? वे कहने लगे कि उन्होने टोनही को देखा है। अपनी पूरी शक्ति मे। फिर घंटो तक इससे जुडी बाते बताते रहे। मुझे तब तक ऐसा लगता था कि यह पात्र केवल गाँवो तक है पर अब स्पष्ट हुआ कि पढे-लिखे समझे जाने वाले आधुनिक समाज मे भी इसकी जडे है।
इसी तरह एक वयोवृद्ध किसान जिनके जीवन का लम्बा समय अमेरिका मे बीता था, ने मुझे बताया कि किसी महिला ने उन्हे खटिया से न उतरने की सलाह दी और फिर टोनही नामक पात्र का रुप धर के दिखाया। वे घंटो तक मुझे विश्वास मे लेने का असफल प्रयास करते रहे।
मैने अभियानो के दौरान जितनी भी प्रभावित महिलाओ से मुलाकात की सभी को साधारण महिला पाया। इतना तो मै पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि उनमे यदि कोई चमत्कारिक शक्ति होती तो वे सबसे पहले उन लोगो को दंड देती जिन्होने सरे राह उन्हे अपमानित किया। जिस महिला पर यह आरोप लगाया जाता है कि उसने गाँव का बुरा कर दिया, भला वो कैसे इतनी असहाय हो सकती है? प्रताडना की सभी हदो को पार कर लोग आखिर कैसा सुख पाते है यह तो वे ही जाने पर कभी-कभी मुझे लगता है कि काश इन सतायी महिलाओ के पास इतनी ताकत होती कि वे इन लोगो से अपने दम पर निपट सकती।
अन्धेरे से मेरा पुराना वास्ता रहा है। रात मे कीडो की तलाश मे मैने कई राते घने जंगलो मे बितायी है। ऐसे घने जंगल जिनकी कल्पना से ही सिहरन होने लगती है। फसलो पर जंगली सुअरो का आक्रमण कैसे होता है? यह जानने के लिये भी खेतो मे रात गुजारी है। नियमगिरि मे हाथियो की प्रतीक्षा मे भी राते आँखो मे काटी है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से हरेली के दिन हर उस जगह पर गया जहाँ टोनही नामक पात्र के होने की सूचना मिली पर आज तक कभी आग के गोले को या ऐसे किसी पात्र को नही देखा। नयी पीढी के लोगो ने भी नही देखा पर फिर भी सुनी-सुनायी बातो पर यकीन कर इस विश्वास को अपने अंन्दर पसरने देते है।
टोनही नामक पात्र की चमकीली लार का राज जानने मैने बैगाओ से मुलाकात की, उनके कडे नियमो का पालन किया, जो कहा वो किया पर कभी इसे देखने का मौका नही मिला। मैदानी भाग के एक बैगा ने कहा कि यह पात्र अंडी की जड को चबाता है जिससे उसकी लार चमकीली होती है। अंडी या कैस्टर तो बडा ही जाना पहचाना पौधा है। तिलहन की फसल के रुप मे बडे पैमाने पर इसकी खेती होती है। इसकी जडो पर दुनिया भर मे शोध हो रहे है। मैने सन्दर्भ ग्रंथो को खंगाला पर जड के प्रयोग से चमकीली लार बनने की जानकारी कही नही मिली। मैने उस बैगा से कहा कि मै इस जड को चबाऊँगा, जिस भी रुप मे कहोगे उस रुप मे। पहले उसने मना किया और चेताया कि ऐसा करने से मानसिक संतुलन बिगड सकता है पर डटे रहने पर उसने अपने सामने विधि-विधान से यह करवाया पर नतीजा सिफर ही रहा। इतना सब करने से एक लाभ यह हुआ कि अब इसका प्रदर्शन कर हम उन लोगो की बोलती उसी समय बन्द कर देते है जो चमकीली लार का दावा करते है।
इस पात्र को देखने का दावा करने वाले प्रोफेसर साहब से मैने कहा कि मै जिन्दगी भर आपकी गुलामी करुंगा यदि आप मुझे भी इसके दर्शन करवा दे। वे इस बात को टाल गये। आप ही बताइये जब यह मान्यता है कि विशेष रात को विशेष पेड के नीचे जाने से या विशेष स्थान पर जाने से इस पात्र से नही बचा जा सकता तब फिर क्यो हम लोगो पर इसका असर क्यो नही होता? कही यह कपोल-कल्पित बाते तो नही है?
डूमर के जिस पेड को टोनही नामक पात्र के तीर से मरने का भ्रम युवाओ ने पाल रखा था, उसे दूसरे ही दिन कृषि विशेषज्ञो को दिखाया गया। उन्होने जडो से एक कवक का पता लगाया जिसके प्रकोप से सडन हुयी और यह पेड मर गया। उन युवाओ ने पूरी प्रक्रिया देखी। माइक्रोस्कोप मे कवक को भी देखा। वे सहमत लगे पर मैने उनकी आँखो मे अन्दर तक देखा तो मुझे लगने लगा कि सिर्फ इतने से इनका विश्वास नही मिटने वाला। आँखो के ढेरो प्रश्न थे पर संकोचवश कह नही पा रहे थे।
हमारे सदस्यो मे कुछ विशेष सदस्य है। एक का नाम है श्री राजेन्द्र सोनी। वे जब भूत आने का अभिनय करते है तो बडे-बडे बैगाओ के होश फाख्ता हो जाते है। दूसरे सदस्य है डाँ.अशोक सोनी। उनके सामने बडे-बडे भूत को वश मे करने का अभिनय करते बैग़ा पानी माँगते दिखते है। बैगाओ का सारा अभिनय धरा का धरा रह जाता है। अभियानो मे ये हमारे लिये तुरुप के पत्ते होते है। इन दोनो ही के कारण ज्यादातर अभियानो मे हमने आम लोगो का विश्वास जीता है। जब भूत का अभिनय कर रहे लोगो के पाँव उखडते है तो आम लोगो का हमारी बातो पर विश्वास बढता जाता है। मैने उस वयोवृद्ध किसान से इन सदस्यो को मिलवा दिया। वे चेत गये और मान गये कि उस महिला ने मात्र अभिनय किया था।
टोनही नामक पात्र की चर्चा करते समय अक्सर ग्रामीण कहते है आप पगडंडी मे चले। यदि थोडा भी बाहर हुये तो यह पात्र आपको पकड लेगा। इस सलाह का वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर हम पाते है कि पगडन्डी पर चलने की सलाह ठीक ही है। आये-बाये होने पर विषैले जीवो विशेषकर साँप-बिच्छुओ का डर रहता है। तो क्या आम लोग राह पर चले इसलिये इससे इस पात्र के डर को जोडा गया है? यदि इसका उत्तर सकारात्मक भी है तो भी यह सही नही कहा जा सकता क्योकि यह किसी न किसी तरह से इस पात्र के अस्तित्व को सही ठहराता है और अंत मे आम महिलाए ही इसका शिकार होती है।
एक ज्वलन्त प्रश्न यह भी है कि टोनही प्रताडना के सभी मामलो मे जुल्म उन महिलाओ पर होता है जो अकेली होती है। बहुत से मामलो मे पति और घर के दूसरे सदस्य काम के लिये दूर शहरो मे गये होते है। उसकी रक्षा करने वाला कोई नही होता। इन मामलो की विवेचना से पता चलता है कि बहुत से मामलो मे इन अलग-थलग पडी महिलाओ पर गाँव के प्रभावी लोगो की नजर होती है। मामला बनता न देखकर इस तरह से आरोप जड दिये जाते है और इंकार की सजा उन्हे सहनी पडती है।
हमारी बहुत-सी सभाओ मे बैगानुमा लोग पहुँच जाते है और दावा करने लगते है कि उन्हे अच्छे-बुरे लोगो को देखकर पहचानने की दैवीय शक्ति है। उनसे उलझे बिना ही हमारे सदस्य उनसे देश सेवा की गुजारिश करते है। हमारा इंटीलिजेंस तो आस्तीन के साँपो को पहचान नही पा रहा है। चलिये अब ये बैगानुमा लोग ही यह कसर पूरी कर दे। अहमदाबाद और बंगलुरु के विस्फोटो के बाद तो उनकी जरुरत और बढ सकती है, बशर्ते उनके सही मे ऐसी कोई शक्ति हो। क्यो वे अकेली महिला पर इस शक्ति का प्रयोग करते है? हमारे इस तर्क से ही वे शक्तिहीन हो जाते है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Updated Information and Links on March 15, 2012

New Links



Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com



Phyllanthus rheedii WT.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (28 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Phyllanthus urinaria L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Indigenous Mango Trees are preferred for collection of leaves, Disease and insect free leaves are used; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Phyllanthus virgatus G.FORSTER  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (11 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Mango trees growing under stress are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Phyllocephalum indicum (LESS.) KIRKMAN  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (18 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Physalis angulata L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (22 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Mango and Genda are treated with Herbal Solutions 15 days before collection of leaves; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Physalis minima L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (23 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-7; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Physalis peruviana L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (24 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Pilea microphylla (L.) LIEBM.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (26 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Piliostigma malabaricum (ROXB.) BENTH.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (32 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Pimpinella heyneana (WALL. EX DC.) KURZ  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (20 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Pimpinella pulneyensis GAMBLE  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (27 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Mango trees growing under stress are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Pinanga dicksonii (ROXB.) BL.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (30 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Piper argyrophyllum MIQ.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (47 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Mango trees growing under stress are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Piper barberi GAMBLE.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (5 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Assam; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Indigenous Mango Trees are preferred for collection of leaves, Disease and insect free leaves are used; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Piper betle L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (6 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Assam; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),
Piper longum L.  in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids):  Khooni Bawasir ke liye Genda (Tagetes) and Aam (Mangifera) ki Pattiyon ka Prayog (30 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए गेंदे और आम की पत्तियों का प्रयोग),


Comments

जंग तो गजब की है।
36solutions said…
इस नये प्रयोग एवं आपके अनुभवों का स्‍वागत बडे भाई ।

Popular posts from this blog

अच्छे-बुरे भालू, लिंग से बना कामोत्तेजक तेल और निराधार दावे

World Literature on Medicinal Plants from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database -719

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”