अहिराज, चिंगराज व भृंगराज से परिचय और साँपो से जुडी कुछ अनोखी बाते

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-64
- पंकज अवधिया

अहिराज, चिंगराज व भृंगराज से परिचय और साँपो से जुडी कुछ अनोखी बाते


कुछ लोगो को एक स्थान पर खडा देखकर मैने गाडी रोकी। पास जाने पर पता चला कि किसी के घर मे एक साँप घुस गया था। अभी ही उसे मारा गया था। सामने साँप पडा था। उसका सिर कुचला हुआ था पर उसमे जान थी। उसका शरीर हरकते कर रहा था। इसे चूहा खाने वाला साँप बताया जा रहा था। यह नुकसानदायक नही है-ऐसा भी लोग कह रहे थे पर उसे देखने से मन मे भय उत्पन्न हो जाता था। बडा ही लम्बा साँप था। मुझे सर्प-विज्ञान का वह नियम याद आ गया कि जितना बडा साँप उतना कम जहर। पर यह सभी मामलो मे सही नही है। आधुनिक सन्दर्भ ग्रंथ बताते है कि लम्बे साँप भी जहरीले हो सकते है।

जिन्होने इस साँप को मारा था वे महुए के नशे मे धुत थे। मेरा कैमरा देखकर जोश से भर गये। उन्होने साँप को अपने गले मे डालना चाहा पर उसमे जान थी। वह जमीन मे गिर गया। गाँव के बुजुर्ग उसे जलाने की तैयारी कर रहे थे। भीड मे से किसी ने कहा कि पहले इसे पूरा मार तो दो। क्यो आधा मारकर तडपने देते हो? यह आवाज भीड मे ही खो गयी। साँप तडपता रहा। उसके सिर पर जोर का वार हुआ था। सिर पिचका हुआ था। मेरे साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि इसे पानी मे छोड दिया जाये तो यह बच सकता है। भीड मे कोई उसे बचाने को तैयार नही था। लोगो ने कहा कि हम जमीन पर सोते है और साँप का सम्मान करते है पर इतने बडे साँप को हम बार-बार खदेड नही सकते है। लोगो का यह भी कहना था कि यदि आप ले जाना चाहे तो इसे गाँव से दूर ले जा सकते है। घायल साँप को देखकर उसे गाडी मे ले जाने की हमारी हिम्मत नही हो रही थी। उसे इस अवस्था मे दुश्मन और दोस्त मे अंतर करना शायद ही मालूम हो। मोबाइल करके पास के ग्रामीण सर्प विशेषज्ञ को बुलाया गया। उसने साँप की जाँच की और कहा कि बहुत देर हो चुकी है।

इस जंगल यात्रा मे ध्यान तो बरसात मे उगने वाली जडी-बूटियो पर था पर साँप के विषय मे भी अनूठी जानकारियाँ मिलती रही। एक स्थान पर हमे बताया गया कि पास के एक नाले मे बाढ के पानी के साथ अजगर बहकर आया है। गाडी से उस ओर गये पर सफलता हाथ नही लगी। फिर सूचना मिली कि घर मे बनायी गयी एक डबरी मे अजगर ने सियार को निगल लिया है। वह घर पास मे ही था पर एक उफनते नाले के कारण वहाँ नही जा सके।

साँपो पर चर्चा के दौरान मुझे अहिराज के अलावा चिंगराज और भृंगराज साँपो के बारे मे जानने मिला। इन दोनो साँपो का विस्तार से वर्णन ग्रामीणो ने किया। बताया कि दोनो विकट जहर से युक्त है। भृंगराज नाम की वनस्पति मै जानता हूँ पर इस नाम का साँप आश्चर्य का विषय रहा। जंगल की खाक छानने पर ये साँप दिखते है। ग्रामीण साथ चलने को तैयार दिखे पर मैने पूरी योजना के साथ सुबह से जाने की योजना बनायी। फिर इस कार्यक्रम को दशहरे तक टाल दिया। जंगल मे साँपो को खोजने के लिये थोडा सूखा मौसम चाहिये-ऐसा ग्रामीणो ने कहा।

बातो ही बातो मे कुछ ऐसे साँपो की बात पता चली जो कि जंगल मे लोगो का पीछा करते है। यह डराने वाली बात थी। वे गलत नही कह रहे थे। राज्य के अखबार ऐसे साँपो के जंगलो मे होने की खबरे विशेषज्ञो के हवाले से प्रकाशित करते रहते है। मुझे हरजंगतिया नामक साँप के विषय मे भी बताया गया कि जो एक पेड से दूसरे पेड तक छलाँग (?) लगाते हुये चलते है। चिंगराज, भृंगराज, हरजंगतिया जैसे स्थानीय नाम वैज्ञानिक साहित्यो मे नही मिलते है। जब तक इन्हे मै देख न लूँ ग्रामीणो की बातो के आधार पर हवा मे तीर मारना बेकार है।

दशहरे के बाद की यात्रा मे मुझे कौआ अर्थात महुये के फल की खली रखने को कहा गया है। यह खली और माचिस अभियान दल के हर सदस्य के पास होगी। यदि किसी साँप ने परेशान किया तो इसे बिना देर जलाया जायेगा ताकि इसकी गन्ध से वे दूर हो जाये। एक सदस्य पर संकट आते ही दूसरे सदस्य वहाँ पहुँचेंगे और यह प्रक्रिया दोहरायेंगे। वैसे विकल्प के रुप मे मिट्टी का तेल या टायर भी जलाया जा सकता है पर सबसे अच्छा उपाय यही है आपातकालीन परिस्थितियो मे। पर क्या साँप हमारे पीछे पडेंगे? यदि हाँ, तो जोखिम क्यो उठाया जाय? क्यो व्यर्थ ही उन्हे छेडा जाय? इस पर काफी देर तक हम चर्चा करते रहे।

राज्य मे पैरी नदी पर सिकासार बाँध है। अवकाश के दिन काफी लोग यहाँ पहुँचते है। क्षेत्रीय फिल्मो की शूटिंग भी होती है। मै अक्सर इस बाँध को पारकर उस पार के जंगल मे चला जाता हूँ जहाँ विविधता अब भी चरम पर है। हाल की जंगल यात्रा के दौरान श्री गणेश नामक एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ मेरे साथ थे। मैने अपने लेखो मे उनके बारे मे विस्तार से लिखा है। उन्होने हजारो जाने बचायी है। उनके सैकडो चेले है। इस जंगल यात्रा के दौरान मैने उन्हे साथ ले लिया। वे बता रहे थे कि पिछले सप्ताह एक सत्रह-अठ्ठारह साल के युवक को पैरावट मे एक जहरीले सर्प ने काट लिया था। शहर ले जाते-जाते देर हो गयी। सरकारी अस्पताल ने हाथ खडे कर दिये। वापस गाँव मे श्री गणेश के पास उसे लाया गया। घंटो की अथक मेहनत से उन्होने उस युवक को बचा लिया। पर उनकी अपनी हालत बिगड गयी। मुँह मे छाले हो गये जो अभी तक उन्हे तकलीफ पहुँचा रहे थे। उनका खाना-पीना बन्द हो गया था। उन्हे इस बात का अहसास हो रहा था कि साँप बहुत जहरीला था।

मैने अपने ज्ञान के आधार पर उन्हे कुछ वनस्पतियाँ बतायी और फिर जंगल मे गाडी रोककर उन्हे चबाने के लिये कुछ जडे दी। कुछ घंटो मे छालो पर असर दिखने लगा। वे बडे प्रसन्न हुये। मै उन्हे गुरु मानता हूँ पर उल्टे वे मुझे अपना गुरु मानते है। वे चाहे जो कहे पर मै जानता हूँ कि मुझे उनके जैसा बनने के लिये कई जन्म लेने होंगे।

चलिये सिकासार बाँध पर लौटते है। जिन स्थानो मे फिल्मो की शूटिंग होती है वहाँ इस बार खाली-खाली सा लगा। मैने वहाँ के एक कर्मचारी से इस बारे मे पूछा तो उसने कहा कि पिछले कुछ दिनो से वहाँ साँप दिख रहे है। इसलिये लोग डर से नही जा रहे है। कुछ देर बाद मैने यही बात श्री गणेश को बतायी तो उन्होने सिर पकड लिया और कहा कि मुझसे बडी गल्ती हो गयी। उन्होने खुलासा किया कि पंचमी के दिन उनके चेलो ने उन्हे जो साँप भेंट मे दिये थे उन्हे सिकासार के इसी इलाके मे छोडा गया था। “मेरे सगे-सम्बन्धी (यानि वे साँप) ऐसा कर रहे है तो उसके लिये मै जिम्मेदार हूँ।“ ऐसा कहकर वे उस ओर चल पडे। उन्होने उसी स्थान पर बैठकर मंत्र पढे इस उम्मीद मे कि शायद कोई साँप आ जाये। उनकी योजना उन्हे फिर से पकडकर पर्यटको से दूर छोडने की थी। पर घंटो मे इंतजार के बाद भी यह सम्भव नही हो पाया।

हर साल वनोपज के संग्रह के लिये वनवासी जंगल मे आग लगाते है। योजनाकार यह कहकर किनारा कर लेते है कि यह दशको से चला आ रहा है और इससे जंगल को नुकसान नही होता है। बल्कि कुछ मामलो मे फायदा ही होता है। पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इस आग से बहुत से जीवो पर संकट खडा हो जाता है। साँप उनमे से एक है। ग्रामीण सर्प विशेषज्ञ बताते है कि इस आग ने जंगलो से बहुत से दुर्लभ साँपो को खत्म कर दिया है। हर साल आग का दायरा बढता जा रहा है और साँपो पर खतरा भी। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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