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Showing posts from 2009

तंग पिंजरो मे अघोषित आजीवन कारावास भुगतते वन्य प्राणी और उनसे जुडी बाते

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-65 - पंकज अवधिया तंग पिंजरो मे अघोषित आजीवन कारावास भुगतते वन्य प्राणी और उनसे जुडी बाते कल्पना करिये कि आप रोजमर्रा के कामकाज मे लगे है। अचानक ही दूसरे ग्रह के लोग आये और आपको उठा ले। तंग कमरे मे आपको रखे और फिर अगले दिन आपके शहर से सैकडो किलोमीटर दूर ऐसी जगह पर छोड दे जहाँ आप कभी गये ही नही है। फिर आपको उस जगह पर रहने के लिये मजबूर करे। आपको सब कुछ शुरु से शुरु करना होगा। पता नही ऐसे माहौल मे आप अपने अस्तित्व को कायम रख पायेंगे भी कि नही। आप इसे सीधे-सीधे अन्याय कहेंगे। खैर, आप निश्चिंत रहे क्योकि आप इंसान है और यह आपके साथ शायद ही हो पर ऐसा व्यव्हार वन्य प्राणियो के साथ अक्सर होता है। उन्हे दूसरे ग्रहो के लोग इधर से उधर नही करते बल्कि हम-आप जैसे लोग ही करते है। हाल ही मे मै एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ से यह चर्चा कर रहा था। ऊपर से जंगल भले ही शांत लगे पर भीतर भारी संघर्ष चलता रहता है। यह संघर्ष अस्तित्व के लिये होता है। जंगल मे असंख्य खतरे होते है और कडा संघर्ष ही अधिक समय तक जीने देता है। जिस स्थान पर वन्य प्राणी जन्मते है उसके आस-पास से वे परिचित

अहिराज, चिंगराज व भृंगराज से परिचय और साँपो से जुडी कुछ अनोखी बाते

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-64 - पंकज अवधिया अहिराज, चिंगराज व भृंगराज से परिचय और साँपो से जुडी कुछ अनोखी बाते कुछ लोगो को एक स्थान पर खडा देखकर मैने गाडी रोकी। पास जाने पर पता चला कि किसी के घर मे एक साँप घुस गया था। अभी ही उसे मारा गया था। सामने साँप पडा था। उसका सिर कुचला हुआ था पर उसमे जान थी। उसका शरीर हरकते कर रहा था। इसे चूहा खाने वाला साँप बताया जा रहा था। यह नुकसानदायक नही है-ऐसा भी लोग कह रहे थे पर उसे देखने से मन मे भय उत्पन्न हो जाता था। बडा ही लम्बा साँप था। मुझे सर्प-विज्ञान का वह नियम याद आ गया कि जितना बडा साँप उतना कम जहर। पर यह सभी मामलो मे सही नही है। आधुनिक सन्दर्भ ग्रंथ बताते है कि लम्बे साँप भी जहरीले हो सकते है। जिन्होने इस साँप को मारा था वे महुए के नशे मे धुत थे। मेरा कैमरा देखकर जोश से भर गये। उन्होने साँप को अपने गले मे डालना चाहा पर उसमे जान थी। वह जमीन मे गिर गया। गाँव के बुजुर्ग उसे जलाने की तैयारी कर रहे थे। भीड मे से किसी ने कहा कि पहले इसे पूरा मार तो दो। क्यो आधा मारकर तडपने देते हो? यह आवाज भीड मे ही खो गयी। साँप तडपता रहा। उसके सिर पर जोर का वार

पानी मे डूबे गाँवो का अनकहा दर्द, स्त्री रोगो के लिये उपयोगी वनस्पतियाँ और सलिहा

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-63 - पंकज अवधिया पानी मे डूबे गाँवो का अनकहा दर्द, स्त्री रोगो के लिये उपयोगी वनस्पतियाँ और सलिहा दूर-दूर तक पानी ही पानी था। मै अपलक इस मनोहारी दृश्य को निहार रहा था। दूर पानी के बीच पहाडो के शीर्ष दिख रहे थे जो सघन वनस्पतियो से ढके हुये थे। तभी पास खडे व्यक्ति ने कहा कि साहब, आप जो सामने पानी देख रहे है उसमे 52 गाँव डूबे हुये है। मै चौक पडा। दिख तो कुछ भी नही रहा था पर उस व्यक्ति की बाते सुनकर परिकल्प्ना से बने दृश्य सामने आ गये। मै छत्तीसगढ के गंगरेल बाँध के पीछे वाले हिस्से के जंगलो मे खडा था। यह बाँध कई दशक पहले महानदी पर बनाया गया था। आज यह बाँध जाने कितने लोगो की प्यास बुझा रहे है और कितने ही खेतो को पानी दे रहा है। बाँध की इस उपलब्धि के सामने 52 डूबे हुये गाँबो का दुख कम दिखता है पर घर से बिछडने का दुख वही जानता है जिस पर यह गुजरती है। कुछ समय पहले मै घने जंगल मे औषधीय बेलो के चित्र ले रहा था। पास ही उफनती पैरी नदी थी। मै वर्षो से यहाँ आ रहा हूँ। हर बार मुझे कुछ नया मिल ही जाता है। मुझे इस क्षेत्र से मोह हो गया है पर मै चाहकर भी प्रेम नही करना

जहरीली पिचकारी चलाते कीडे, पौरुष शक्ति बढाने वाले अनोखे कन्द और बरसाती नाले

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-62 - पंकज अवधिया जहरीली पिचकारी चलाते कीडे, पौरुष शक्ति बढाने वाले अनोखे कन्द और बरसाती नाले “अरे, पुल से पानी थोडा ही तो ऊपर है। गाडी आराम से निकल जायेगी। और फिर हम भी साथ है। पानी मे बही तो तुरंत सम्भाल लेंगे। देखिये न पीछे कितनी लम्बी कतार लग गयी है। अब आगे बढिए भी। हमारे दो सौ हमे दे दीजिये।“ सामने बरसाती नाला था जो लबालब भरा था। पुल दिख नही रहा था और फिर भी स्थानीय लोग हमारी गाडी को पार कराने अमादा थे। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको और सहायको ने हौसला दिया और मैने गाडी आगे बढा दी। आधा पुल तो पार हो गया पर उसके बाद गढ्ढे ही गढ्ढे थे। शायद पानी की तेज धार ने पुल को काट दिया था। ऐसे फँसे कि गाडी पूरा जोर लगाने के बाद भी टस से मस नही हुयी। फिर पानी का एक रेला आया और उसने गाडी को अपने साथ ले जाने की कोशिश की। सबने आखिरी जोर लगाने की कोशिश की और फिर ले देकर गाडी ने पुल पार कर लिया। हमारी जान मे जान आयी। मैने कान पकडे कि अब दोबारा ऐसा जोखिम नही उठायेंगे। इस जोखिम से एक लाभ हुआ। सामने हरा-भरा जंगल था जो हमारा ही इंतजार कर रहा था। साथी जंगल मे बिखर गये और मै तस

दस्तावेजीकरण की राह तकता भारतीय कृषि से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-61 - पंकज अवधिया दस्तावेजीकरण की राह तकता भारतीय कृषि से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान रात गहरा रही थी। एक स्थान पर आग जलाकर हम लोग खुले मे बैठे थे। आस-पास कुछ दूरी तक खेत थे और फिर उसके बाद जंगल शुरु होते थे। रात उन बुजुर्ग किसानो के साथ गुजारनी थी जो जंगली सुअरो से अपनी फसल की रक्षा के लिये खेतो पर पहरा दे रहे थे। हमारी गाडी पास ही खडी थी। गाडी मे सोने की बजाय मैने मचान पर बैठना उचित समझा। फिर जब नीचे आग जल गयी तो हम सब नीचे आकर बैठ गये। बुजुर्ग किसानो से पारम्परिक कृषि की बात होने लगी। उन दिनो की बात जब कृषि जंगलो पर निर्भर थी। बुजुर्ग किसान तब पारम्परिक धान की खेती करते थे। इनमे से बहुत से औषधीय धान भी थे। औषधीय धान पास के नगर मे रहने वाले राज परिवार के लिये उगाया जाता था। राजा के पारम्परिक चिकित्सक यानि राजवैद्य अपनी निगरानी मे इन्हे उगवाते और फिर शाही गाडियो मे लदवाकर नगर ले जाते। उस समय औषधीय धान की खेती किसान और पारम्परिक चिकित्सक मिलकर करते थे। कृषि की शुरुआत से लेकर फसल की कटाई तक जंगल से एकत्र की गयी वनस्पतियाँ अहम भूमिका निभाती थी। पारम्परिक चिकित्स

रोगो को हरने वाली राखियाँ बन्धवाये इस रक्षाबन्धन मे

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-60 - पंकज अवधिया रोगो को हरने वाली राखियाँ बन्धवाये इस रक्षाबन्धन मे पारम्परिक चिकित्सको के साथ इस जंगल यात्रा के दौरान जब एक गाँव मे एक और जानकार को साथ लेने के लिये रुके तो पता चला कि वे बीमार है। तेज ज्वर से तडप रहे है। दवाए उन्हे दी जा रही थी पर फिर भी ज्वर कम नही हो रहा था। वे लगभग बेसुध थे और ज्वर बढने पर प्रलाप भी करते थे। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने खेतो का रुख किया। क्लिंग नामक एक खरप्तवार को चुना और फिर उसकी जडे खोदने लगे। ताजी जड को नीले धागे मे पिरोया और फिर उसे रोगी की कलाई मे बाँध दिया। मुझे बताया गया कि अब ज्वर कम होने लगेगा। रोगी के परिजनो को हिदायत दी गयी कि जैसे जी ज्वर कम हो नीले धागे की सहायता से बन्धी जड कलाई से निकाल ले और फिर नीले की जगह लाल धागा बाँध दे। जब ज्वर पूरी तरह से चला जाय तो काले धागे का प्रयोग करे। ज्वर उतरने के चौबीस घंटो के बाद इस जड को या तो पास की नदी मे प्रवाहित कर दे या पुराने पीपल के नीचे गाड दे। इन तमाम निर्देशो के बाद हमने आगे की राह पकडी। शाम को जब लौटे तो रोगी की हालत काफी सुधरी हुयी थी। गाँव के बहुत से

बीज यात्रा, पारम्परिक चिकित्सक और रक्षा के साथ बीजबन्धन का प्रस्ताव

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-59 - पंकज अवधिया बीज यात्रा, पारम्परिक चिकित्सक और रक्षा के साथ बीजबन्धन का प्रस्ताव सुबह देर से उठा तो थकान हावी थी। अपने कमरे तक पहुँचा तो एक पैकेट पडा हुआ था। मैने उसके बारे मे पूछताछ की तो बताया गया कि अम्बिकापुर से आये किसी व्यक्ति ने यह पैकेट दिया है। मैने पैकेट खोला तो उसमे एक अंकुरित हो रहा बीज था। यह बीज था अंकोल का। सारी थकान पल मे दूर हो गयी और इस नन्हे बीज से सारा अतीत याद आ गया। लगभग एक दशक पहले जब मै सरगुजा क्षेत्र मे वानस्पतिक सर्वेक्षण कर रहा था तब वहाँ के पारम्परिक चिकित्सको से एक अघोषित समझौता हुआ था। यह समझौता था बीजो के आदान-प्रदान का। हम जिस भी वनस्पति पर चर्चा करते उसके बीज आपस मे बाँट लेते और उपयुक्त स्थान पर उसे रोप देते। उस बीज से नये पौधे निकलते और जब कालांतर मे उसमे फल लगते तो पहले बीज को वापस उसी पारम्परिक चिकित्सक को दे देते जिससे मूल बीज को प्राप्त किया था। बीज को पारम्परिक चिकित्सक फिर किसी को दे देते थे। इस तरह यह क्रम चलता रहता था। मैने बस्तर से एकत्र किया गया अंकोल का बीज सरगुजा के एक युवा पारम्परिक चिकित्सक को दिया तो

अच्छे स्वास्थ्य के लिये मच्छरो का प्रयोग, रेडियो साक्षात्कार और अंतरराष्ट्रीय दबाव

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-58 - पंकज अवधिया अच्छे स्वास्थ्य के लिये मच्छरो का प्रयोग, रेडियो साक्षात्कार और अंतरराष्ट्रीय दबाव “हाँ तो बताइये कैसे बनता है मच्छरो का काढा? क्या किलो भर मच्छरो की जरुरत होती है या टन भर? कैसे पीते है इस काढे को?” कनाडा के सीबीसी रेडियो के सम्पादक मार्क विंकलर ने तो जैसे प्रश्नो की बौछार ही कर दी। पिछले सप्ताह वे अपने किसी रेडियो कार्यक्रम के लिये मेरा साक्षात्कार ले रहे थे। दरअसल उन्होने मेरा एक शोध आलेख पढ लिया था जो मच्छरो के सम्भावित उपयोग के बारे मे था। यह शोध पत्र है तो दिलचस्प पर वर्ष 2003 मे प्रकाशित होने के बाद विज्ञान जगत ने इसमे अधिक रुचि नही दिखायी। इस पर आगे काम नही हुये और न ही मुझसे मार्क की तरह किसी ने विस्तार से पूछा। बाटेनिकल डाट काम ने यह अवश्य बताया कि यह आलेख उन आलेखो मे से है जिन्हे सबसे ज्यादा यानि हजारो मे हिट्स मिलती रही है। ये तो कनाडा के मार्क थे जिन्हे मन हुआ कि इस शोध के बारे मे वे मुझसे विस्तार से पूछे। एक घंटे के साक्षात्कार से पहले उन्होने बता दिया था कि कुछ भी लाइव नही है इसलिये आराम से बात की जाये। शुरु मे वे ऐसे ही

“रेगिस्तानी जहाज” के कहर से सफाचट होती औषधीय वनस्पतियाँ और वन्य जीव

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-57 - पंकज अवधिया “रेगिस्तानी जहाज” के कहर से सफाचट होती औषधीय वनस्पतियाँ और वन्य जीव “न जाने जंगल को किसकी नजर लग गयी है, छोटी वनस्पतियाँ खोजे नही मिलती है। हम जंगल मे काफी भीतर तक चले जाते है फिर भी उपयोगी वनस्पतियो का नामोनिशान नही मिलता है। साहब, क्या कोई कीडा देखा है आपने जो जंगल के जंगल साफ कर दे?” पिछली बहुत सी जंगल यात्राओ के दौरान पारमरिक चिकित्सको की ऐसी बाते मुझे सुनने को मिल रही थी। मै उनके साथ जंगल मे अन्दर तक गया भी पर कारण का पता नही लगा। इस बार की जंगल यात्रा के दौरान मेरा सारा ध्यान औषधीय कुकुरमुत्तो पर था। हमने गाडी से एक घाटी पर चढाई की और जल्दी ही चोटी पर आ पहुँचे। अचानक ही सडक के किनारे जंगल के थोडा भीतर एक अजीब सा व्यक्ति दिखायी दिया। वह वेशभूषा और चेहरे-मोहरे से छत्तीसगढ का नही लग रहा था। मैने सुना था कि पहाडी के इस भाग मे वन्य पशु बहुलता से है। हम गाडी से उतरना पसन्द नही करते है जहाँ, वहाँ वह व्यक्ति आराम से खडा था। मैने गाडी पीछे करने का मन बनाया। गाडी को पीछे करने पर वह व्यक्ति घने जंगल मे घुसने लगा। तब तक साथ चल रहे पारम्परिक चिकि

जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-56 - पंकज अवधिया जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक हम सपाट मैदानी क्षेत्र मे लगातार चले जा रहे थे। चारो धान के खेत थे। जंगल का नामोनिशान नही था। धान के खेत मे किसान बडी संख्या मे अपने कार्यो मे लगे हुये थे। अचानक हमे एक स्थान पर घने वृक्षो का समूह दिखायी दिया। साथ चल रहे लोगो ने कयास लगाया कि शायद कोई बडा तालाब होगा। पर जब उस स्थान तक पहुँचे तो पता चला कि वह पास के गाँव के पवित्र स्थल है जहाँ ग्राम देवता विराजते है। उस स्थान मे वृक्ष इतने अधिक घने थे कि हमे दिन मे अन्दर जाने के लिये टार्च का सहारा लेना पडा। इस बीच हमारी ग़ाडी देख पास के खेतो से कुछ किसान आ गये और उस स्थान की महिमा बताने लगे। उह्नोने बताया कि यह स्थान पहले घने जंगल मे हुआ करता था। साल मे एक बार गाँव के बैगा के साथ लोग बडा जोखिम उठाकर यहाँ आया करते थे। आज तो जंगल पूरी तरह से साफ हो चुके है। केवल यही स्थान बचा है। इस स्थान से वृक्ष की कटाई प्रतिबन्धित है। पर जैसा कि आप जानते है कि प्रतिबन्ध इसे तोडने वालो को अक्सर उकसाता है। यहाँ भी ऐसा ही ह

ग्रहण के दौरान उपयोग की जाने वाली वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-55 - पंकज अवधिया ग्रहण के दौरान उपयोग की जाने वाली वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान सूर्य ग्रहण से कुछ घंटो पहले जब मै यह लेख आरम्भ कर रहा हूँ तब मेरे पास रात भर जागने के लिये भरपूर पानी रखा हुआ है। मौसम बहुत ठंडा हो गया है क्योकि चौबीस घंटो से भी अधिक समय से घनघोर वर्षा हो रही है। मेरे पास पीने के लिये जो पानी है उसमे तुलसी की पत्तियाँ डाल दी गयी है। घर मे रखी सभी भोज्य सामग्रियो मे तुलसी मौजूद है। मै बचपन से देख रहा हूँ कि किसी भी ग्रहण के समय तुलसी का इसी तरह प्रयोग किया जाता है। ऐसा नही है कि ग्रहण के समय केवल तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है। देश के अलग-अलग भागो मे अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियो के प्रयोग के उदाहरण मिलते है। मुझे याद आता है, बस्तर मे एक पारम्परिक चिकित्सक के साथ मै ग्रहण की चर्चा कर रहा था। उन्होने बताया कि ग्रहण के समय मंजूरगोडी नामक वनस्पति का महत्व बढ जाता है। इस वनस्पति को उन बेशकीमती वनौषधीयो के साथ रख दिया जाता है जिनका उपयोग पारम्परिक चिकित्सक साल भर करते है। मंजूरगोडी अपने आप मे एक बेशकीमती वनस्पति है। बहुत से पारम्परिक चि