जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-56
- पंकज अवधिया

जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक


हम सपाट मैदानी क्षेत्र मे लगातार चले जा रहे थे। चारो धान के खेत थे। जंगल का नामोनिशान नही था। धान के खेत मे किसान बडी संख्या मे अपने कार्यो मे लगे हुये थे। अचानक हमे एक स्थान पर घने वृक्षो का समूह दिखायी दिया। साथ चल रहे लोगो ने कयास लगाया कि शायद कोई बडा तालाब होगा। पर जब उस स्थान तक पहुँचे तो पता चला कि वह पास के गाँव के पवित्र स्थल है जहाँ ग्राम देवता विराजते है। उस स्थान मे वृक्ष इतने अधिक घने थे कि हमे दिन मे अन्दर जाने के लिये टार्च का सहारा लेना पडा। इस बीच हमारी ग़ाडी देख पास के खेतो से कुछ किसान आ गये और उस स्थान की महिमा बताने लगे।

उह्नोने बताया कि यह स्थान पहले घने जंगल मे हुआ करता था। साल मे एक बार गाँव के बैगा के साथ लोग बडा जोखिम उठाकर यहाँ आया करते थे। आज तो जंगल पूरी तरह से साफ हो चुके है। केवल यही स्थान बचा है। इस स्थान से वृक्ष की कटाई प्रतिबन्धित है। पर जैसा कि आप जानते है कि प्रतिबन्ध इसे तोडने वालो को अक्सर उकसाता है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ पर वृक्षो को काटने वाले शीघ्र ही अनजान रोगो से मारे गये। यह बात जंगल मे आग की तरह फैल गयी। उसके बाद से यहाँ के वृक्ष जस के तस है। उनके बीज यहाँ गिरते रहते है और नये पौधे तैयार होते रहते है। अब गाँव वाले साल मे कई बार यहाँ पूजा के लिये आते है। वैज्ञानिक भाषा मे ऐसे स्थानो को “सेकरेड ग्रुव” कहा जाता है। ऐसे स्थान वनस्पतियो के संरक्षण और संवर्धन की दिशा मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

कुछ समय मे ही हमने इस स्थान मे पचपन से अधिक प्रकार के बडे वृक्षो की गिनती कर ली। इनमे अंकोल के वृक्षो की संख्या सबसे अधिक थी। अंकोल के नये और पुराने सभी प्रकार के वृक्ष थे। इनके फल जमीन मे गिरे हुये थे और वर्षा के बाद अंकुरित हो रहे थे। किसानो ने बताया कि कुछ समय पहले इन फलो को चूसने के लिये यहाँ स्कूली बच्चो का जमावडा लगा रहता था। अंकोल औषधीय महत्व का वृक्ष है। इसके सभी पौध भागो का उपयोग औषधि के रुप मे होता है। आप इसकी महत्ता के बारे मे मेरे पिछले लेखो मे पढ चुके है। मैने इस वृक्ष के पारम्परिक चिकित्सकीय उपयोगो के विषय मे विस्तार से लिखा है। कही अंकोल हो और उसके उपयोग मे दक्ष पारम्परिक चिकित्सक आस-पास न हो ऐसी कैसे हो सकता है? अंकोल नाना प्रकार के कैंसर की जटिल अवस्था मे प्रयोग किया जाता है। “देसी कीमोथेरेपी” मे जिन वनस्पतियो का प्रयोग होता है उनमे अंकोल का नाम सम्मान से लिया जाता है। देसी कीमोथेरेपी से शरीर को बहुत कम नुकसान होता है और इसका प्रभाव स्थायी होता है। मैने “देसी कीमोथेरेपी” शब्द का प्रयोग सबसे पहले इस लेख मे किया है। इसके विषय़ लिखा बहुत है पहले।

किसानो ने बताया कि साढे पाँच सौ से अधिक पारम्परिक चिकित्सक इस स्थान पर आकर पूजा-अर्चना करते है और यहाँ से वनस्पतियाँ एकत्र करते है। इन पारम्परिक चिकित्सको की सूची गाँव के शिक्षक के पास थी। बाद मे जब मैने अपने डेटाबेस मे इन नामो को खोजा तो कुछ नाम ही मिले। इसका अर्थ यह था कि अब जल्दी हे मुझे इन पारम्परिक चिकित्सको से मिलना होगा। पर इसके लिये मुझे तैयारी करनी होगी। मैने कैसर के पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर तैयार की गयी रपट मे व्यवसायिक दुरुपयोग से बचाने के लिये कूट शब्दो का प्रयोग किया है। अब मै पारम्परिक चिकित्सको की सुविधा के लिये इसे हिन्दी मे तैयार कर रहा हूँ। साथ ही छतीसगढी भाषा मे एक आडियो सीडी तैयार कर रहा हूँ। इससे मेरे पास उपलब्ध ज्ञान उन तक पहुँच जायेगा और यदि वे चाहेंगे तो अपना ज्ञान डेटाबेस के लिये दे पायेंगे।

एक दिन मे तो इतने सारे पारम्परिक चिकित्सको से मिलना सम्भव नही था इसलिये कुछेक से मैने मुलाकात की। शिक्षक महोदय ने बताया कि उन्होने मोटे तौर पर जो अन्दाज लगाया है उसके अनुसार इस स्थान की जडी-बूटियो से पारम्परिक चिकित्सक बारह हजार से अधिक नुस्खे बनाते है। इनमे से ज्यादातर जटिल रोगो से सम्बन्धित है। शिक्षक महोदय के प्रयासो की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है।

यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि पारम्परिक चिकित्सक अपने अनुभव के आधार पर इस स्थान को जडी-बूटियो के सत्वो से सींचित करते रहते है। वे इन जडी-बूटियो के लिये दूर-दूर की यात्रा करते है। सत्वो का सींचन वृक्षो को औषधीय ग़ुणो से परिपूर्ण रखता है। मेरे साथ आये पारम्परिक चिकित्सको को झगडहीन, डाफर कान्दा जैसी अनमोल वनस्पतियाँ दिख गयी। वे इन्हे एकत्र करने के लोभ का संवरण नही कर पाये। किसानो ने उन्हे रोका और कहा कि कम से कम दो घंटे इस स्थान मे अपना श्रमदान दो फिर जडी-बूटियाँ ले जाना। पारम्परिक चिकित्सक सहर्ष तैयार हो गये। वे धान के उन खेतो मे गये जहाँ पारम्परिक खेती हो रही थी। वहाँ से उन्होने बडी मात्रा मे मोथा और कौआ-कैनी जैसे खरपतवारो का एकत्रण किया और फिर उन्हे निश्चित अनुपात मे मिलाकर उनका रस निकाला। इस रस को उन्होने सेमल के पुराने वृक्ष की जड मे डाला। उन्होने कहा कि इससे सेमल की जडो का अच्छा विकास होगा और जडे औषधीय गुणो से परिपूर्ण होंगी। अगली बार जब यहाँ के पारम्परिक चिकित्सक सेमल मूसली का एकत्रण करेंगे तो इसके प्रभाव से प्रसन्न हो जायेगे।

मुझे याद आता है अपने विश्वविद्यालीन शोध के दौरान मैने इन खरप्तवारो के सत्वो का प्रभाव धान, गेहूँ, चना और अलसी जैसी फसलो मे देखा था। वह शोध प्रयोगशाला स्तर का था पर बाद मे जब इसे किसानो के खेतो मे दोहरा गया तो सकारात्मक परिणाम मिले। इन सत्वो से इन फसलो की उपज पर प्रभाव पडता है। जैविक कृषि के क्षेत्र मे काम रहे शोधकर्ताओ और किसानो के लिये यह महत्वपूर्ण जानकारी है।

यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसे स्थान पर आने का मौका मिला। अब मुझे बार-बार यहाँ आना होगा। मै किसानो को जानकारियो के लिये धन्यवाद दे ही रहा कि मुझे फुफकारे सुनायी दी। किसानो ने कहा कि इस स्थान पर बहुत से अजगर है पर वे किसी को नुकसान नही पहुँचाते है। उन्होने ऐसे साँप की उपस्थिति की भी बात की तो नाग की तरह है पर दूसरो सर्पो को खा जाता है| वे किंग कोबरा की बात कर रहे थे। वह कभी-कभार ही दिखता है। यह मेरे लिये महत्वपूर्ण जानकारी थी।

इस स्थान पर आने से मुझे अचानक ही नियमगिरि के देव स्थलो की याद आ गयी। वे देवस्थल भी जैव –विविधता से परिपूर्ण थे। स्थानीय लोग सरल शब्दो मे बताते थे कि यदि कोई वन्य पशु हमला कर दे तो उस देवस्थल पर चले जाइये। हमलावर बाहर से ही वापस हो जायेगा। बाक्साइट के खनन के लिये नियमगिरि मे आँखे गडाये बैठी कम्पनी के नुमाइंदे इन देवस्थलो को उजाडते हुये कंवेयर बेल्ट को ले जाना चाहते थे। उन्हे इनके महत्व और आम लोगो की आस्था के विषय़ पता नही था। ऐसा ही हाल मैने बस्तर मे देखा। मैने असंख्य देवस्थलो की यात्रा की और उनकी तस्वीरे खीची पर आज लोहे के कारखाने के लिये उन्हे उजाड दिया गया है या उजाडने की तैयारी है। मेरी तो दोबारा वहाँ जाने की हिम्मत नही होती है। मन अवसादग्रस्त हो जाता है। आज जहाँ भारतीय वैज्ञानिक ऐसे देवस्थलो की महत्ता बताते दुनिया भर मे शोध-पत्र पढ रहे है वही हमारे देश मे इन्हे बचाने की सुध किसी को नही है। इनकी रक्षा के लिये आगे आने वालो को विकास-विरोधी कह दिया जाता है पर वास्तव ये विनाश-विरोधी होते है। पता नही कब समाज अपने सच्चे सेवको की कीमत समझेगा? (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित




Updated Information and Links on March 03, 2012

New Links



Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com




Uvaria narum as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Morhal Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Uvaria zeylanica as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Morpankhi Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vaccaria pyramidata as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Morsikha Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vaccinium leschenaultii as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Motapati Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Valeriana hardwickii as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Moth Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vallaris solanacea as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Motha Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vanda spathulata as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Moyena Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vanda tessellata as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Mradupatra Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),
Vanda testacea as important Allelopathic ingredient (Based on Traditional Allelopathic Knowledge) to enrich medicinal plants of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Muchkand Toxicity (Research Documents on Safety of Ayurvedic Medicines used for Cancer Complications),

Comments

Popular posts from this blog

अच्छे-बुरे भालू, लिंग से बना कामोत्तेजक तेल और निराधार दावे

World Literature on Medicinal Plants from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database -719

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”