हुंर्रा यदि लकडबघ्घा है, भेडिया नही तो रेवडा क्या है?

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-38
- पंकज अवधिया

हुंर्रा यदि लकडबघ्घा है, भेडिया नही तो रेवडा क्या है?


बरसात के दिनो मे जब रात मे हमारी गाडी किसी गाँव से गुजरती है तो कुत्ते भौकने लगते है और दूर तक दौडाते है पर इस बार कुछ गाँवो मे ऐसा नही हुआ। मैने इस बात पर गौर किया और जानबूझकर गाडी रुकवायी ताकि कुत्तो ने अगर हमे न देखा हो तो देख ले। पर सारे कुत्ते गायब थे। ऐसा बहुत से गाँवो मे हुआ तब हमने रुककर गाँव वालो से इस बारे मे पूछना चाहा। हमे इस बात का आभास था कि यह अटपटा प्रश्न होगा और गाँव वाले भला क्या सोचेंगे इस बारे मे पर प्रश्न पूछते ही वे बोल पडे कि आजकल इस इलाके मे रेवडा (या लेवडा) घूम रहा है। बाँध के पार उसे कुछ लोगो ने पानी पीते देखा था। उन लोगो ने उसे भगाने की भी कोशिश की थी पर वह अपने स्थान से टस से मस नही हुआ। उसकी हिम्मत देखकर उन लोगो की हिम्मत टूट गयी और वे वापस आ गये। अभी तक किसी मनुष्य़ या मवेशी पर रेवडे के आक्रमण की सूचना नही दर्ज की गयी है पर गाँव के कुत्ते एकाएक गायब हो रहे है। सारा शक रेवडे पर ही है और यह शक गलत भी नही है। गाँव वालो ने एक ही रेवडा देखा है पर हो सकता है कि दूसरे और भी इस प्रजाति के जीव गाँव के आस-पास हो। जिन गाँवो की बात मै कर रहा हूँ वो छत्तीसगढ की राजधानी से मात्र कुछ किमी की दूरी पर है।

घटारानी क्षेत्र मे मैने हुंर्रा के तांडव के बारे मे पहले लिखा है। वही हुंर्रा जिसे वन विभाग ने लकडबघ्घा घोषित किया था और जिसने दस से अधिक ग्रामीणो पर प्राणघातक हमला किया था। अंत मे उसने जमाही गाँव के अवधराम यादव पर आक्रमण किया था जिन्होने उस हुंर्रा को मार डाला था। घायलो से जब मैने बातचीत की तो उन्होने इसे हुंर्रा बताया था। जब मैने अपने डेटाबेस से उन्हे तस्वीरे दिखायी तो उन्होने लकडबघ्घा पर हाथ रखा। अंग्रेजी मे इसे हाइना (Hyaena hyaena) कहा जाता है। आपने डिस्कवरी जैसे चैनलो पर हाइना को देखा होगा और उसकी हँसी सुनी होगी। उसके जबडे बहुत मजबूत होते है। लकडबघ्घा हिन्दी शब्द है और हुंर्रा छत्तीसगढी। हाल ही मे मै दुर्ग जिले के गाँवो मे गया तो मुझे हुंर्रा शब्द भेडिये के लिये सुनने को मिला। हुंर्रा या होंर्रा की पहचान उन्होने सियार से आकार मे बडे जंगली जानवर के रुप मे की। जब मैने भेडिये की तस्वीरे उन्हे दिखायी तो उन्होने झट से इसकी पुष्टि कर दी। मैने बचपन से अपने पिताजी से होंर्रा शब्द भेडिये के लिये सुना था। एक बार जब वे साइकिल से गाँव से लौट रहे थे तो उनका सामना इस जानवर से हुआ था। वह रास्ते मे खडा था। उसने पिताजी के लिये रास्ता नही छोडा। उसकी ढिठाई देखकर पिताजी उस समय भय मिश्रित आश्चर्य मे पड गये थे।

अब सियार जिन्हे कोलिहा कहा जाता है, ही दिखायी देते है। भेडिये पूरी तरह से इस क्षेत्र से गायब हो चुके है। इससे चरवाहो को सबसे ज्यादा राहत मिली है। भेडियो की नजर मवेशियो विशेषकर बकरियो पर रहती है। पलक झपकते ही वे बकरी और भेडो को उठा ले जाते है। मुझे बचपन मे बताया जाता था कि चरवाहो की मुलाकात इनसे अक्सर होती थी। जिन गाँव वालो ने हुंर्रा को भेडिये के रुप मे पहचाना उन्होने लकडबघ्घा की पहचान रेवडे या लेवडे के रुप मे की। ये स्थानीय नामो मे बडी गडबड है।

दुर्ग जिले मे सियार डरपोक माने जाते है। वे मनुष्यो को देखते ही किनारा कर लेते है। वे मानव बस्ती से दूर निर्जन स्थानो मे रहते है। जबकि राज्य के घटारानी और दूसरे जंगली क्षेत्रो के सियार आक्रामक हो गये है। वे झुंड मे रहते है और पैदल चल रहे ग्रामीणो को काटने के लिये बडी दूर तक दौडाते है। रात मे विशेषकर गोधूली बेला मे उनकी सक्रियता बढ जाती है। शौच के लिये निकले ग्रामीण बडा असहज महसूस करते है। गाँवो मे चलने वाली बाइक से भी ये सियार नही डरते है। बहुत बार बाइक सवारो को वापस आ जाना पडता है। संदर्भ साहित्यो मे जंगली जानवरो के व्यवहार के विषय़ मे जो बाते लिखी है अब वे बदल रही है। जंगली जानवरो का व्यव्हार क्षेत्र और वहाँ की परिस्थितियो के अनुसार तेजी से बदल रहा है। राज्य के तौरेंगा जलाश्य के पास इस बार जब वन्य प्राणी प्रेमी हिरणो की तस्वीरे लेने पहुँचे तो उन्हे बडा ही बुरा अनुभव हुआ। हिरणो ने गुस्से मे उन्हे काफी दूर तक दौडाया। जब वे अपनी जीप मे बैठ गये तब भी हिरणो ने उन्हे नही बख्शा। हिरण का यह व्यवहार संदर्भ ग्रंथो मे नही मिलता है।

भालू द्वारा महुआ या दूसरे वनोपज के एकत्रण करने गयी महिलाओ पर हमले की घटना अक्सर अखबारो मे छपती रहती है। भालू पुरुषो पर भी जबरदस्त हमला करते है पर सभी पुरुषो पर नही। यदि आप हष्ट-पुष्ट है या ऐसे दिखते है तो आपको डरने की जरुरत नही है। भालुओ ने अपने अनुभवो से सीखा है कि अच्छी कद-काठी के मनुष्य़ संघर्ष के दौरान उन्हे बहुत नुकसान पहुँचा सकते है। जबकि कमजोर और अशक्त मनुष्य़ जरा भी प्रतिरोध नही कर पाते है। भालू से सामना होने पर शक्ति का प्रदर्शन भी काम आता है। बारनवापारा अभ्यारण्य मे गर्मी के दिनो मे जंगली जानवरो के लिये बनाये गये तालाबो मे पानी भरने के लिये एक स्थानीय व्यक्ति की नियुक्ति की गयी थी। एक बार उस व्यक्ति से उसके जंगल के अनुभवो पर विस्तार से चर्चा हुयी। वह व्यक्ति बिना किसी हथियार के साइकिल मे जंगल मे भ्रमण करता है और उन स्थानो मे पानी भरने का काम करता है जहाँ सारे जानवर आते रहते है। उसने बताया कि भालू जब आते है तो वह तन कर खडा हो जाता है। यदि भालू आक्रामक़ मुद्रा मे हो और भागने की कोई गुंजाइश न हो तो वह अपनी साइकिल उठाकर जोर से जमीन मे पटक देता है। यह शक्ति प्रदर्शन काम आता है और मुठभेड टल जाती है। जंगल के ज्यादातर जीव संकट मे अपने आप को बडा करके दिखाते है और चेता देते है कि उनसे पंगा लेना महंगा पडेगा। मनुष्यो को भी ऐसा ही करना पडता है।

आज गाँव से आये हमारे खेतो मे काम करने वाले मदन ने चर्चा के दौरान खेखर्री नामक किसी जंगली जानवर का जिक्र किया जो “खे-खे” की आवाज निकालता है। उसने इसे गाँव मे सियारो के साथ देखे जाने की बात बतायी। यह सियार की तरह ही होता है पर सियार नही है। मैने उसे जंगली जानवरो की ढेरो तस्वीरे दिखायी पर वह उनमे खेखर्री को नही ढूँढ पाया। जंगली जानवरो के स्थानीय नाम इंटरनेट मे नही मिलते है। अब मुझे गाँव जाकर इस जीव की पहचान करनी होगी। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Unknown said…
achhi jaankaari bhari post !
waah waah !
Gyan Darpan said…
हमेशा की तरह आज भी अच्छी जानकारी
Anonymous said…
वाह जंगली जानवरों के बदले व्यवहार को जाना।
जंगल में अपने जैसे शहरी जानवरों का व्यवहार कैसे बदला जाये, यह भी जाना।
बढ़िया

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