लाखो की नाग मणियाँ, गोरोचन वाली गायो की हत्या और वशीकरण के दीवाने

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-48
- पंकज अवधिया

लाखो की नाग मणियाँ, गोरोचन वाली गायो की हत्या और वशीकरण के दीवाने


“मेरे पास दो नाग मणियाँ है। मैने इन्हे बीस लाख रुपये मे खरीदा है। क्या आप इसे एक करोड रुपयो मे बिकवा देंगे?” ये पंक्तियाँ है उन पत्रो मे से एक की जो मुझे अक्सर मिलते रहते है। ऐसे ई-मेल सन्देश भी मिलते रहते है। मै अक्सर इन्हे अनदेखा कर देता हूँ। पर इस बार हद हो गयी। एक व्यक्ति घर आ पहुँचा इन तथाकथित मणियो के साथ। पहले से मिलने का समय तय नही था इसलिये मैने इंकार कर दिया। वह सुबह से शाम तक घर के सामने बैठा रहा। शाम को मै क्लब जाने के लिये निकला तो उसे साथ मे बैठा लिया। गाडी चल पडी। मैने साफ शब्दो मे कह दिया कि मै इन पर विश्वास नही करता हूँ। आप मुझसे कोई उम्मीद नही रखे। उस व्यक्ति ने कहा कि आप एक बार मणियो को देख ले। बीस लाख की मणियो को देखने का लोभ मै भी नही छोड पाया। गाडी वापस मोडी और घर आ गया। उसने मणियाँ मेरे सामने रख दी और कहा कि आस-पास के सारे प्रवेश द्वार बन्द कर दो ताकि कोई सर्प न आ सके। व्यक्ति की बाते असाधारण थी पर मणि एकदम साधारण थी। मैने इसे पिताजी को दिखाने का मन बनाया। पिताजी भू-वैज्ञानिक है। मैने उन्हे बुलाया।

मणियो को देखकर पिताजी के चेहरे के भाव बदल गये। वे मणि को कम और उस व्यक्ति को ज्यादा देखने लगे। उनकी आँखो मे क्रोध के भाव थे। उस व्यक्ति ने पूरी कहानी सुनायी। बताया कि कैसे जान जोखिम मे डालकर उसने यह मणि प्राप्त की। उसने जब इसकी कीमत बीस लाख बतायी तो पिताजी से नही रहा गया। वे अपने कमरे मे गये और मुठ्ठी बाँधे वापस आये। जब उन्होने मुठ्ठी खोली तो उसमे ढेरो वैसी ही मणियाँ थी। यदि उस व्यक्ति वाली की कीमत लगाये तो करोडो की मणियाँ सामने बिखरी पडी थी। पिताजी ने कहा कि इन सब को बेच डालो, मै सब पाँच सौ रुपयो मे देने को तैयार हूँ। तुम एक-एक के बीस लाख ले लेना। उस व्यक्ति को काटो तो खून नही। उसने मणियाँ समेटी और जाने के लिये खडा हो गया। मेरी ओर मुखातिब होकर पिताजी ने कहा कि अपनी कालेज की पढाई के दौरान उन्होने उडीसा से ये नमूने एकत्र किये थे। ये उडीसा की पहाडियो मे यूँ ही पडे रहते है, रत्नो की खदानो के आस-पास। हम लोग के समय इसे अंगूठी मे लगाया जाता था। इस ठग ने इसे नाग मणि बना डाला। अभी पुलिस मे शिकायत करो ताकि यह दूसरो को न ठग पाये। बात आयी-गयी हो गयी। उस व्यक्ति को सबक मिल गया था। मुझे नयी जानकारी। हाँ, शाम का मेरा टेबल टेनिस खेलना चूक गया था।

तंत्र से जुडी बहुत सी ऐसी वस्तुओ का जबरदस्त बाजार है। इंटरनेट ने इस बाजार मे चार चाँद लगा दिये है। आप लेखो और दूसरे माध्यमो से जितना भी लोगो को जगाने की कोशिश करे सारे प्रयास इनकी मार्केटिंग के सामने असफल सिद्ध होते है। तंत्र के लिये गोरोचन का प्रयोग किया जाता है। मैने अपने लेखो मे लिखा है कि गोरोचन वाली गाय मुश्किल से मिलती है। गाँव वाले ऐसी गायो को विशेष महत्व देते है। देश के कई भागो मे इनकी पूजा भी की जाती है। इनका धार्मिक महत्व है। पर तंत्र से जुडे लोग गोरोचन से वशीकरण और मोहनी कार्यो को अंजाम देने का दावा करते है। इसके लिये गोरोचन की मुँहमाँगी कीमत दी जाती है। ग्रामीण इस बात को जानते है। बहुत से लालची ग्रामीण ऐसी गायो को जहर देकर मारने मे देर नही करते है। पैसे के आगे सब अन्धे हो जाते है। मैने अपने सर्वेक्षणो के माध्यम से अस्सी से अधिक ऐसी गायो की पहचान की थी। ये गाये अलग-अलग गाँवो मे थी।

मुझे एक बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सक ने बताया कि ऐसी गायो का मूत्र विशेष औषधीय गुणो से परिपूर्ण होता है। बतौर औषधि इस मूत्र का प्रयोग किया जाता है। सफेद दाग मे भी इस मूत्र का प्रयोग होता है। उन बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सको ने कहा था कि जहाँ भी ऐसी गाये मिले उनके लिये मै मूत्र लेता आऊँ। मैने बहुत बार ऐसा किया है और आज भी करता हूँ। जटिल रोगो से जूझ रहे रोगियो को ऐसी गायो की सेवा करने की सलाह दी जाती है। उनसे गायो को दिन मे कई बार स्पर्श करने की सलाह दी जाती है। पता नही इसका विज्ञान क्या है पर मैने रोगियो को लाभ होते देखा है।

जब से छत्तीसगढ अलग राज्य बना है तब से अचानक ही तांत्रिक गतिविधियो के लिये गोरोचन की माँग अचानक से बढी है। कनाडा और जर्मनी जैसे देशो से लोग पर्यटको के रुप मे आकर गोरोचन की माँग कर रहे है। परिणामस्वरुप गोरोचन वाली गायो की संख्या कम होती जा रही है। मैने ही बीस से ज्यादा गाये खोयी है।

आप गोरोचन की टीका लगाये बहुत से लोगो को महानगरो मे देखेंगे। पता नही इससे वे किसी को मोह पाते है या नही पर एक निरीह जीव को मारकर ऐसा काम करने वाले शायद ही अच्छा जीवन जी पाते हो। तंत्र के बढते मायाजाल का विरोध बहुत बडे पैमाने पर करना होगा तभी हम कुछ हद तक सफल हो सकते है।

कल ही क्लब मे एक स्थान पर भीड को देखकर मैने पूछा कि क्या माजरा है? मुझे देखते ही एक सज्जन बोले कि इनको दिखाओ, ये बता पायेंगे कि ये असली है या नही? एक धनाढ्य़ व्यक्ति नीले कपडो मे कुछ रखे हुये थे। मुझे देखकर बोले कि आप कुछ समय निकालकर मेरे घर पधारे तब मै इनका राज बताऊँगा। पास ही उनका घर था सो उनके साथ चल पडा। जब उन्होने नीले कपडे को खोला तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी। वे बोले कि ये नाग मणियाँ है। अब मेरी सारी इच्छाए पूर्ण हो जायेगी। पैसा ही पैसा होगा। कुबेर का खजाना भी कम पड जायेगा। मैने इन मणियो को पहचान लिया। सेठ जी ने कुछ लाख रुपयो मे इन्हे खरीदी थी। वह ठग अपना काम कर गया था। मुझे पिताजी की बात याद आ गयी कि जब तक इस दुनिया मे बेवकूफ है, ठग कभी भूखे नही मरेंगे। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

आदरणीय पंकज जी नमस्कार
पिताजी की बात बहुत अच्छी लगी "जब तक इस दुनिया मे बेवकूफ है, ठग कभी भूखे नही मरेंगे।"
मुझे आपकी जंगल की डायरी पढना बहुत अच्छा लगता है और आप जो लोगों को जगाने का कार्य कर रहे हैं उसके हम सब आभारी रहेंगें।
धनलाभ के लिये जो हम वन्यप्राणि्यों और वन्य सम्पंदा का खात्मा करने पर तुले हैं, यह पूरी पृथ्वी को ही सर्वनाश की ओर ले जायेगा।
आज की पोस्ट में गोरोचन का मतलब नही समझ पाया हूं।
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Gyan Darpan said…
पिताजी की बात बहुत अच्छी लगी "जब तक इस दुनिया मे बेवकूफ है, ठग कभी भूखे नही मरेंगे "|
Unknown said…
गोरोचन पर और ज्यादा जानने की इच्छा थी।
पर आप मणी पर अटके रहे।
विस्तार से मनी एवम गोरचन के बारे में बताइये।

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