बीस हजार किस्मो की हर्बल टी वाला देश और जहरीली आम चाय पीते देशवासी

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-51
- पंकज अवधिया

बीस हजार किस्मो की हर्बल टी वाला देश और जहरीली आम चाय पीते देशवासी


पहाडी पर पारम्परिक चिकित्सक बहुत आगे निकल गये। मै तेजी से चढ नही पा रहा था। पीछे घने जंगल मे मुझे कुछ डर सा महसूस हो रहा था पर इतनी हिम्मत नही थी कि तेज कदमो से चलकर आगे जा रहे पारम्परिक चिकित्सको के साथ हो लूँ। एक वृक्ष की शाखा का सहारा लेना चाहा तो बहुत से ब्लिस्टर बीटल्स दिखायी दिये। ब्लिस्टर माने फफोले। जरा सा भी खतरा महसूस होने पर ये कीडे बिना देरी अपने शरीर से पिचकारी की तरह तरल छोडते है। जैसे ही यह तरल त्वचा के सम्पर्क मे आता है फफोले पड जाते है। बेहद दर्द होता है। ये कीडे दिखते सुन्दर है। मैने अपनी प्रयोगशाला मे इन्हे रखकर सालो तक शोध किया था पर प्रयोगशाला तो प्रयोगशाला होती है, प्रकृति मे उनकी शक्ति अलग ही होती है। इससे पहले कि वे मेरी ओर बढते मैने आगे बढने मे ही भलाई समझी। सीधी चढाई मे बडी तकलीफ होती है। विशेषकर जब जंगल मे बहुत नमी हो। अचानक आँखो के सामने अन्धेरा छाया और मै गिरने लगा। गिरते-गिरते मुझे लगा कि सामने दो लोग खडे है। मै कुछ समझता इससे पहले होश खो बैठा।

जब होश आया तो पारम्परिक चिकित्सक मुझे घेरे हुये बैठे थे। सचमुच दो नये लोग खडे थे। उन्होने ने ही मुझे गिरता देखकर पारम्परिक चिकित्सको को पुकारा था। ये नये लोग स्थानीय विश्वविद्यालय मे शोध कर रहे थे और वनस्पतियो की तलाश मे आये थे। वे पूरी तैयारी से थे। उनके पास सुरक्षा के सभी उपकरण थे, दवाईयाँ थी और साथ ही गरम पानी भी था। मुझे अपनी लापरवाही का ख्याल आया। मै अपने साथ कुछ भी लेकर नही चलता। कुछ दवाईयाँ रहती है तो वे गाडी मे छूट जाती है। कभी-कभी पीने का पानी रख लेता हूँ। सालो से जंगल जाने के कारण पारम्परिक चिकित्सको पर इतना अधिक विश्वास हो गया है कि लगता है, वे सब सम्भाल लेंगे।

शोधार्थियो ने मुझे दवाए देनी चाही तो पारम्परिक चिकित्सको ने मना कर दिया। उन्होने गरम पानी माँगा। फिर उसमे पास के कुछ वृक्षो की ताजी जडे डाल दी। कुछ समय बाद यह पानी मुझे पीने को दिया गया। मुझे कुछ राहत मिली। थोडे आराम के बाद हम आगे बढने के लिये तैयार हो गये।

छात्र जीवन ही से मुझे हर्बल टी के बारे मे जानने की बडी ही उत्सुकता रही है। उस समय लेमन ग्रास की पत्तियो से बनी चाय को ही एकमात्र हर्बल टी के रुप मे मै जानता था पर जब मैने पारम्परिक चिकित्सको के साथ अधिक समय व्यतीत करना आरम्भ किया तो इतनी सारी हर्बल टी के विषय मे जानकारी एकत्र हो गयी कि अब उन्हे याद रख पाना मुश्किल है। हर रोग के लिये पारम्परिक चाय उपलब्ध है। हम भले ही इसे हर्बल टी कहे पर पारम्परिक चिकित्सको के लिये यह काढा है। काढा का नाम सुनते ही कडवाहट की याद आ जाती है। पर सभी काढे कडवे नही होते है। यदि होते भी है तो पारम्परिक चिकित्सक जानते है कि कैसे उन्हे स्वादयुक्त बनाया जा सकता है।

मुझे याद आता है कि जब मै सरगुजा मे वानस्पतिक सर्वेक्षण कर रहा था तब गर्मी के दिनो मे एक बार गश खाकर गिर पडा था। पारम्परिक चिकित्सको ने पास ही उग रही मीठी पत्ती नामक वनस्पति को तोडा और पास की झोपडी मे मुझे ले गये। मीठी पत्ती को पानी मे उबाला और बोले, लीजिये, यह चाय पीजिये। इससे लू का असर चला जायेगा। सचमुच वह चाय कमाल की थी। इससे पहले स्कोपेरिया नामक उस वनस्पति को हम किसानो का दुश्मन समझते थे। हमे पढाया गया था कि इससे देखते ही उखाड कर नष्ट कर देना चाहिये। पर इसी बेकार समझी जाने वाली वनस्पति का यह गुण देखकर मै दंग रह गया।

आजकल मलेरिया पर शोध कर रहे दुनिया भर के वैज्ञानिक ऐसा घोल बना रहे है जिसे मलेरिया प्रभावित क्षेत्रो मे लोगो को पीना होगा। इस घोल को पीने वाले लोगो को जैसे ही मच्छर काटेगा, वह तुरंत मर जायेगा। इसे नयी खोज बताया जा रहा है और इस अकादमिक उपलब्धि पर विदेशी मुहर लगा दी गयी है। मुझे याद आता है, बस्तर के जंगलो मे किये जा रहे वानस्पतिक सर्वेक्षणो का समय जब मलेरिया से बचाव जरुरी था विशेषकर बरसात के दिनो मे। हमे शरीर को ढककर रखने की सलाह दी जाती थी। जंगल मे जाते वक्त खुले भाग मे मच्छर रोधी क्रीम लगाने की सख्त हिदायत थी। रात को रेस्ट हाउस मे मच्छरदानी लगानी पडती थी पर पारम्परिक चिकित्सक इन सब से बेपरवाह मजे से नंगे बदन जंगल मे आगे-आगे चलते रहते थे। यह उनकी हर्बल टी का असर था जिसे वे पीने को सभी को देते थे पर इसे बनाने की विधि किसी को नही बताते थे। स्वाद से यह स्पष्ट था कि इस चाय मे भुईनीम के पौध भाग होते थे पर शेष बीस अवयवो के बारे मे जानकारी नही मिल पाती थी। यह चाय पीने मे मिलजुले स्वाद वाली होती थी पर इसे पीने के बाद खूब पसीना आता था और शरीर मे नयी स्फूर्ति का संचार होता था। पारम्परिक चिकित्सक जंगल मे चलते समय एक विशेष प्रकार के मकोडो को पकडकर अपने पास रखने की बात कहते थे। एक जंगल यात्रा के दौरान दस मकौडे पकडने पर ही वे हर्बल टी का राज बताने को तैयार थे। यह शर्त बडी टेढी थी पर मुझे तो इसे पूरा करना ही था। मुझे यह जानकर बडा आश्चर्य हुआ कि मीठी पत्ती नामक उसी वनस्पति के कारण ही चाय स्वादिष्ट होती थी। शेष सभी अवयव बेहद कडवे थे। जब हमे मच्छर काटते थे तो अपने आप गिर कर तडपने लगते थे। कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती थी। इस चाय का एक भी ऐसा अवयव नही था जो शरीर के लिये नुकसानदायक था। सभी के अपने फायदे थे।

पिछले सप्ताह ही जब मै अपने डेटाबेस मे हर्बल टी के गिनती लगा रहा था तो कुल संख्या बीस हजार से अधिक निकली। हर रोग के लिये हर्बल टी पारम्परिक चिकित्सको के पास उपलब्ध है। सभी को पीने का निश्चित समय है। दसो विधियाँ है। किस हर्बल टी के साथ क्या खाना है और क्या नही, यह भी ज्ञान उपलब्ध है। आप जानते ही है कि मै मधुमेह के पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर एक रपट तैयार कर रहा हूँ। मधुमेह के रोगियो को आधुनिक चिकित्सक नंगे पाँव चलने से मना कर देते है पर पारम्परिक चिकित्सक उन्हे नगे पाँव चलाते है दिन के अलग-अलग समय पर। उन्हे जंगल मे विशेष वनस्पतियो के ऊपर चलना होता है। यदि वनस्पतियाँ उपलब्ध नही होती है तो सूखे भागो का प्रयोग किया जाता है। ऐसे हर प्रयोग के बाद रोगी को विशेष हर्बल चाय दी जाती है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि चलने के बाद चाय पीने से होने वाला लाभ दोगुना हो जाता है। मधुमेह की चिकित्सा से सम्बन्धित अद्भुत पारम्परिक ज्ञान हमारे देश मे है पर यह विडम्बना ही है इसे आम लोगो के लिये प्रयोग नही किया जा रहा है।

चलिये, अब वापस उसी पहाडी पर पहुँचते है जहाँ मै हर्बल टी पीकर आगे बढने की तैयारी कर रहा था। शोधार्थियो से विदा लेकर हम कुछ आगे बढे तो पारम्परिक चिकित्सको ने चौकाने वाली बात बतायी। उनका कहना था कि शरीर को आराम की जरुरत थी और आपने आराम नही किया इसलिये गश खाकर गिर गये। यदि आपने आराम किया होता तो ऐसा नही होता। गिरने के बाद शरीर को जब आराम मिल जाता तो वह फिर से सक्रिय हो जाता। हमने आपको काढा पिलाकर गल्ती की। शरीर ऐसे किसी भी सहारे का जल्दी से आदी हो जाता है। इसलिये जब तक जरुरी न हो तब तक जडी-बूटी का सहारा नही लेना चाहिये। शरीर को भगवान ने जबरदस्त शक्ति दी है। वह कैसी भी परिस्थिति मे अच्छे से कार्य कर सकता है पर किसी भी तरह का सहारा देने पर उसे कमजोर बनने मे देर नही लगती है। अब आगे आपको चढने मे जल्दी से थकान होगी। इसलिये सब कुछ जानते हुये भी वे कभी ही इस काढे का प्रयोग करते है।

घर वापसी के बाद मैने इस पर गहन चिंतन शुरु किया तो मुझे अपनी बहुत सी गल्तियो का अहसास हुआ। मेरी रोज की दिनचर्या मे ढेरो ऐसी चीजे थी जिनके बिना दिन अधूरा लगता था। सबसे बडी जरुरत तो चाय की थी। दिन मे दो बार चाय पीना जैसे मजबूरी हो गयी थी। फिर बुद्धिजीवी होने के लिये काफी का सेवन भी अक्सर हो जाता था। पारम्परिक चिकित्सक मुझे दसो बार समझाते रहे कि मै चाय को अलविदा कह दूँ तो मेरा स्वस्थ्य सुधर जायेगा पर मै अनसुना करता रहा। इस बार मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ। मैने एक झटके मे चाय छोडने का मन नही बनाया। मुझे पारम्परिक चिकित्सको की हिदायत फिर याद आयी कि शरीर जिसका आदी हो गया हो उसे धीरे-धीरे छोडना चाहिये ताकि उसे तकलीफ न हो। मैने चाय इसी तरह धीरे-धीरे छोड दी। यदि मै आम इंसान होता तो शायद झट से हर्बल टी पीना शुरु कर देता पर मुझे पारम्परिक चिकित्सको की यह बात जमती है कि शरीर को रोजाना किसी भी प्रकार के काढे की जरुरत नही है। जहाँ तक हो सके इन काढो से दूर रहा जाय। जब कोई रोग जकड ले तब ही विशेषज्ञो की राय के आधार पर हर्बल टी का प्रयोग करे। इससे उसका जबरदस्त प्रभाव होगा।

चाय पर शोध पर अपना जीवन कुर्बान करने वाले मेरे एक अमेरिकी वैज्ञानिक मित्र को जब मेरे चाय छोडने के विषय़ मे पता चला तो वे बोले कि देखियेगा, अब आप को दुबले होने से कोई रोक नही सकेगा। आम चाय से शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड जाता है जो यह असंतुलन मोटापे को बढाता है। मैने उन्हे धन्यवाद दिया और पूछा कि आप अपने इस शोध के बारे मे दुनिया को क्यो नही बताते? इस पर वे बोले कि यदि मै यह कह दूँ तो दुनिया से आम चाय का जहरीला कारोबार समाप्त हो जायेगा और हमारी जान पर बन आयेगी। इसलिये हम सब कुछ जानते हुये भी चाय के बारे मे अच्छी लगने वाली बाते घुमा फिरा कर दुनिया को बताने मजबूर है। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Gyan Darpan said…
अलग अलग रोगों के लिए काढा बनाने की विधि पहले आम ग्रामीणों को होती थी लेकिन धीरे धीरे ये ज्ञान कुछ लोगो तक सिमित रह गया जब एलोपेथी की टेबलेट हर जगह मिलने लगी है तब से ही लोग काढे से दूर होते गए अब तो इन काढो की जानकारी कुछ वृद्ध लोगों तक ही सिमित रह गई | वरना ये काढे पहले दादी नानी के नुस्खों में शामिल थे |
Unknown said…
आपके सभी आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक होते है कभी कभी हैरत होती है कि आप इतना ज्ञान कैसे याद रख पाते है। सच मे आप आयुर्वेद और पारम्परिक ज्ञान का जिस तरह दस्ताबेजीकर्ण कर रहें है। एक महान उपकार ही है

Popular posts from this blog

अच्छे-बुरे भालू, लिंग से बना कामोत्तेजक तेल और निराधार दावे

World Literature on Medicinal Plants from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database -719

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”