जहरीली पिचकारी चलाते कीडे, पौरुष शक्ति बढाने वाले अनोखे कन्द और बरसाती नाले

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-62
- पंकज अवधिया

जहरीली पिचकारी चलाते कीडे, पौरुष शक्ति बढाने वाले अनोखे कन्द और बरसाती नाले


“अरे, पुल से पानी थोडा ही तो ऊपर है। गाडी आराम से निकल जायेगी। और फिर हम भी साथ है। पानी मे बही तो तुरंत सम्भाल लेंगे। देखिये न पीछे कितनी लम्बी कतार लग गयी है। अब आगे बढिए भी। हमारे दो सौ हमे दे दीजिये।“ सामने बरसाती नाला था जो लबालब भरा था। पुल दिख नही रहा था और फिर भी स्थानीय लोग हमारी गाडी को पार कराने अमादा थे। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको और सहायको ने हौसला दिया और मैने गाडी आगे बढा दी। आधा पुल तो पार हो गया पर उसके बाद गढ्ढे ही गढ्ढे थे। शायद पानी की तेज धार ने पुल को काट दिया था। ऐसे फँसे कि गाडी पूरा जोर लगाने के बाद भी टस से मस नही हुयी। फिर पानी का एक रेला आया और उसने गाडी को अपने साथ ले जाने की कोशिश की। सबने आखिरी जोर लगाने की कोशिश की और फिर ले देकर गाडी ने पुल पार कर लिया। हमारी जान मे जान आयी। मैने कान पकडे कि अब दोबारा ऐसा जोखिम नही उठायेंगे। इस जोखिम से एक लाभ हुआ। सामने हरा-भरा जंगल था जो हमारा ही इंतजार कर रहा था।

साथी जंगल मे बिखर गये और मै तस्वीरे लेने लगा। पारम्परिक चिकित्सक लौटे तो उनके हाथो मे चार प्रकार की जंगली हल्दी थी। जंगली हल्दी आजकल मुश्किल से मिलती है और फिर एक साथ चार प्रकारो का मिलना हमारे लिये शुभ संकेत था। हल्दी छोडकर पारम्परिक चिकित्सक फिर जंगल मे ओझल हो गये। मै अकेले ही निकल पडा। मुझे बहुत से कीट ऐसे दिखायी दिये जिन्हे मै पहली बार देख रहा था। मै उन्हे मित्र के रुप मे देख रहा था पर वे मुझे मित्र मानने को तैयार नही थे। उनमे से एक ने पिचकारी मारी और मै तेज धार से मुश्किल से बचा। यह पिचकारी जहरीले रसायन की थी। यह रसायन मेरी त्वचा को बुरी तरह से जला देता। पर मै बच गया। जब उसका जहर भरा पिटारा चुक गया तो मैने आराम से उसकी ढेरो तस्वीरे ली।

पिछले कुछ दिन बहुत तेजी से बीते। आपने इस लेखमाला मे पहले पढा है कि मै कृषि से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान पर शोध दस्तावेज तैयार कर रहा हूँ। मैने अगस्त मे प्रतिदिन 14 से 16 घंटे इसमे लगाने का मन बनाया था। जुलाई के अंत से ही यह काम शुरु हो गया था। अगस्त के प्रथम सप्ताह से ऐसी व्यस्तता बढी कि सारे काम किनारे हो गये। जंगल का भ्रमण रुक गया। जीवन-व्यापन के लिये सलाहकार का काम भी अटक गया। बस केवल दस्तावेजीकरण ही दस्तावेजीकरण। लम्बे समय तक कम्प्यूटर मे बैठना इस बार कुछ ज्यादा ही भारी लगा। जब पूरी तरह से थक गया तो जंगल की सुध ली। जंगल से लौटकर फिर काम मे लग गया। नियमित सलाह लेने वाले मेरे लगातार इंकार से कुछ चिंतित थे। मेरा सचिव उन्हे दिसम्बर के बाद का समय दे रहा था। धान मे कीट प्रबन्धन के पारम्परिक कृषि ज्ञान के आठ हजार दस्तावेज पूरे ही हुये थे कि मुम्बई से एक सज्जन का सन्देश आ गया।

उन्होने अपने फार्म हाउस मे औषधीय वनस्पतियाँ लगायी थी। वे मुझे अपना फार्म दिखाकर सलाह लेना चाहते थे। शुल्क देने को तैयार थे और मेरी यात्रा का व्यय भी। सचिव ने जब व्यस्तता बतायी तो उन्होने समय बचाने के लिये हवाई यात्रा का सुझाव दिया। मुझे इस बारे मे बताया गया। उनकी जिद पर मुझसे बात करवायी गयी। उन्होने जब हवाई यात्रा का खुलासा किया तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। उनके पास निजी विमान था और वे उसे भेजकर मुझे बुलवाना चाहते थे। निजी विमान से आने का निमंत्रण नया नही था पर फार्म हाउस देखने के लिये कोई शाही सवारी भेजे तो कुछ अचरज अवश्य होता है। घर-परिवार मे प्राइवेट जेट से बुलाये जाने की खबर फैली तो सबने कहा कि शान से जाओ। पर मेरा मन दस्तावेजीकरण मे उलझा हुआ था। काफी सोच-विचार करने के बाद सितम्बर मे इस शाही सवारी से जाने की योजना बनायी है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये उनसे आरम्भिक बातचीत हो गयी है। वे इस चर्चा से संतुष्ट है। इन सब गतिविधियो ने मुझे जंगल डायरी लेखन से एकदम अलग कर दिया है। कल सुबह फिर से जंगल की ओर जाना है। इसलिये आज रात मैने इस लेखमाला को आगे बढाने का निर्णय ले लिया है। यह लेखमाला रुक-रुक कर आगे बढेगी क्योकि आने वाले महिने व्यस्तता भरे है।

चलिये अब उस जंगल की ओर लौटे जहाँ तक हम बरसाती नाले को जैसे-तैसे पार कर पहुँचे थे। इस बार जब पारम्परिक चिकित्सक लौटे तो उनके हाथो मे कन्द थे। उन्होने कन्दो को धोया और फिर हमे खाने को दिया। कन्द बिल्कुल भी स्वादिष्ट नही थे। उनमे काफी चिपचिपापन था। इन्हे पौष्टिक़ बताया गया। सो हमने चाव से खाया। उसके बाद जब हम घर से लाया गया खाना खाने बैठे तो पारम्परिक चिकित्सको ने बडे अचरज वाली बात बतायी। उन्होने कहा कि ये कन्द शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाते है। इसके अवयव शरीर मे रच बस जाते है। इतने ज्यादा कि कई दिनो तक वीर्य का स्वाद मीठा बना रहता है। यह तो बडी ही उबकाई लाने वाली बात लगी। हमारा ड्रायवर तो खाना आधा छोडकर उठ गया और पास की झाडी मे जाकर उल्टियाँ करने लगा। पारम्परिक चिकित्सको ने गलत समय पर इस खुलासे के लिये क्षमा माँगी। मुझे भी अटपटा लगा। पर उसी पल मुझे सन्दर्भ साहित्यो मे पढी गयी बाते याद आ गयी। साथ ही इंटरनेट मे विचरने वाले अनसुलझे प्रश्न याद आ गये।

चिकित्सा विज्ञान से जुडे सन्दर्भ साहित्य बताते है कि वीर्य का स्वाद मनुष्य के भोजन पर निर्भर करता है। कैफीन का अधिक सेवन करने वालो के वीर्य का स्वाद कडवा को जाता है। खाद्य सामग्रियाँ वीर्य का स्वाद चरपरा और तीखा भी बना देती है। आम लोगो को इन तथ्यो से कोई वास्ता भले न हो पर चिकित्सा विज्ञान के शोधकर्ताओ ने इस पर काफी अध्ययन किया है। मैने वीर्य को मीठा बनाने वाली वनस्पति के बारे मे विस्तार से पहली बार सुना था। मन मे यह जिज्ञासा जागी कि पारम्परिक चिकित्सको ने भला यह कैसे जाना?

आपने बाटेनिकल डाट काम पर मेरे शोध दस्तावेज पढे है तो आप जानते ही होंगे कि बहुत से पारम्परिक चिकित्सक औषधीय बीजो को बोने से पहले मानव वीर्य से उपचारित करते है। क्यो करते है? क्योकि यह उनकी परम्परा है। इसकी वैज्ञानिक व्याख्या शायद ही किसी ने की हो पर मैने प्रयोगशाला परिस्थितियो मे उनके इस परम्परागत प्रयोग को दोहरा कर उसके सकारात्मक प्रभाव का अध्ययन किया है। पारम्परिक चिकित्सको ने देखा कि जब वे विशेष कन्द मूलो को खाने के बाद वीर्य का प्रयोग बीजोपचार के लिये करते है तो उनमे चीटी जैसे बहुत से कीट टूट पडते है। इससे उन्होने इस बात की पुष्टि की कि विशेष कन्द मूलो का सेवन वीर्य को मीठा बना दे रहा है। मै अचरज भरे मन से पारम्परिक चिकित्सको की बाते सुन रहा था और उनके गहरे ज्ञान से अभिभूत हो रहा था।

भोजन के बाद हमने आगे की राह पकडी। कुछ दूर गये ही थे कि एक और बरसाती नाला सामने था। उसे पार करवाने वाला कोई नही था। बडी गाडियाँ अपने जोखिम पर निकल रही थी। हमने वापसी की राह पकडी। वापस गये तो पहले वाले नाले मे पानी का स्तर बढ चुका था। शायद ऊपरी भाग मे वर्षा हुयी थी जिसके कारण यह जल स्तर बढा था। हम फँस गये। शाम होने लगी। मोबाइल महाश्य टावर खोज-खोज कर थक चुके थे। देर रात तक वहाँ रुकना था। शाम तक जंगल मे घूमते रहे और फिर रात होते ही गाडी के पास आ गये। आग जलायी और फिर पानी के उतरने का इंतजार करने लगे। खाना हमारे पास नही था। वे ही कन्द थे जिन्हे हमे खाना था।

बाते चलती रही। मै बीच-बीच मे अपनी जंगल टार्च से आस-पास देख लेता था कि कही कोई जंगली जानवार भी जडी-बूटियो की बात सुनने न आ गया हो। कुछ आँखे चमकती थी पर पारम्परिक चिकित्सक बिना विलम्ब उन्हे छोटे जानवर की आँखे कह देते थे। करीब दस बजे मैने पानी का स्तर देखने के लिये रोशनी उस ओर फेंकी तो सडक पर पडे लम्बे साँप ने ध्यान खीचा। कोबरा जैसा ही था पर उससे बहुत अधिक लम्बा। वह अपनी मस्ती मे चला जा रहा था। मै नही डरा पर पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि डरो क्योकि यह अहिराज है यानि किंग कोबरा। यह हमे नुकसान नही पहुँचायेगा पर चूँकि यह साँपो का राजा है इसलिये हमे इसका सम्मान करना चाहिये। इससे डरना चाहिये। किंग कोबरा को देखकर मै धन्य हुआ। ऐसा मंत्रमुग्ध हुआ कि तस्वीर लेना ही भूल गया।

रात दो के आस-पास कुछ ट्रके उस ओर दिखायी दी। एक वैन भी थी। जल स्तर कम होने लगा था। ट्रक निकली और फिर वैन। उसके बाद हमने भी हिम्मत दिखायी और पुल पार कर लिया। बरसाती दिनो मे इतनी देर रात जंगल से गुजरना बडा ही रोमांचक अनुभव रहा। इस बीच मोबाइल ने टावर खोज लिया। घर पर बात हुयी और सारी चिंताए दूर हुयी। रात को लगातार चलने की बजाय हमने सुबह पाँच बजे एक गाँव मे रुकने की योजना बनायी। चाय की तलब लग रही थी। एक टपरेनुमा होटल के मालिक को जगाया और उससे आलू-पोहा और लाल चाय बनाने को कहा। वह भला आदमी था। उसने तैयारी शुरु कर दी।

बाते चलती रही। गाँव जागने लगा। तभी हमने बाहर डोंगी उठाये कुछ लोगो को जाते देखा। मछुआरे होंगे, मैने कयास लगाया। होटल वाले ने कहा कि नही किसान है। फसल देखने जा रहे है। मैने सोचा कि शायद मैने गलत सुन लिया है। जब उसने वही बात दोहरायी तो विश्वास करना ही पडा। बाद मे खुलासा हुआ कि यहाँ जलधान की खेती होती है। डूबान क्षेत्र मे किसान सूखे खेतो मे धान छिडक देते है। पानी गिरता है तो उनके खेत डूबने लगते है। जैसे-जैसे जल का स्तर बढता है, धान के पौधे भी बढते जाते है और फिर फसल पकने पर नाव मे बैठकर कटाई होती है। यह सब सुनकर हमने नाश्ता करके आराम करने की बजाय किसानो के साथ इस अनोखे धान को देखने की योजना बनायी। कुछ ही देर मे हम भी डोंगी उठाने मे किसानो की मदद कर रहे थे। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

दिलचस्प और ज्ञानवर्धक रिपोर्ट है।
L.Goswami said…
किंग कोबरा को देखकर मै धन्य हुआ। ऐसा मंत्रमुग्ध हुआ कि तस्वीर लेना ही भूल गया।
...ले लेते तब भुजंग में प्रकाशित करने के काम आता :-)
Gyan Darpan said…
आज कई दिनों बाद आपका लेख पढने को मिला ! खैर आज भी बहुत बढ़िया जानकारी मिली | अगली कड़ी के इंतजार में |

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