अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -31

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -31 - पंकज अवधिया

एक पहलवान के लिये डाइट चार्ट बनाने से पहले मैने उससे कहा कि आप दिन भर जो खाते हो और जो भी बाहरी चीजो का इस्तमाल करते हो उसके बारे मे विस्तार से लिखकर मुझे दे दो। मै उसी आधार पर एक उपयोगी पर सरल डाइट चार्ट बना दूंगा। वह सहर्ष तैयार हो गया। उसने खूब मेहनत की और कुछ दिनो बाद मेरी मेज पर सारे विस्तार उपलब्ध थे। मैने गौर से सब कुछ पढा पर एक प्रयोग ने बरबस ही मेरा ध्यान खीच लिया और वह था एक विशेष प्रकार के तेल से शरीर की मालिश। रोज व्यायाम से पहले इसकी मालिश की जाती थी और कुश्ती के मुकाबले से पहले तो इसे किसी भी हालत मे लगाना ही होता था। आमतौर पर पहलवान तेलो से मालिश तो करवाते ही है। इसमे कोई नयी बात नही थी। पर विशेष तेल के जिक्र ने मुझे उससे इस बारे मे पूछने के लिये प्रेरित किया। पहलवान ने बिना किसी हिचकिचाहट के बता दिया कि यह जादुई तेल है। इसे लगाने से हारती हुती बाजी भी मै जीत जाता हूँ। किसने दिया यह तेल? मैने पूछा। एक तांत्रिक ने। उसने कहा और कहता ही गया। दरअसल यह काले कौव्वे की चरबी है जो बडी मुश्किल से मिलती है। तांत्रिक ने इसे बडी मुश्किल से प्राप्त किया है और फिर मुझे इसकी बडी कीमत चुकानी पडी। मैने पूछा कि क्या इससे शरीर की ताकत बढती महसूस होती है? उसने कहा, ताकत तो नही बढती पर तांत्रिक का कहना है कि इसका प्रभाव मात्र ही प्रतिद्वन्दी को चारो खाने चित कर देता है। तुमको कैसे पता कि यह कौव्वे की ही चर्बी है? क्या मुझे उस तांत्रिक ने मिलवाओगे? वह तैयार हो गया।

पास के ही गाँव मे तांत्रिक का घर था। हम उसके घर पहुँचे तो वह मोबाइल पर किसी को सलाह दे रहा था। घर को अन्दर से देखने पर लगता ही नही था कि हम किसी गाँव मे है। सुख-सुविधा की सारी चीजे उपलब्ध थी। तांत्रिक से परिचय हुआ और मेरे आने का कारण पूछा गया। चरबी पर बात शुरु हुयी तो मेरी रुचि देखकर उसका कौव्वा-पुराण शुरु हो गया। उसके घर मे मरे हुये कौव्वो के विभिन्न भागो का अम्बार था। उसने एक लाकेट खोला और मुझे नाखूननुमा चीज दिखाते हुये बोला कि यह मै आपको मुफ्त मे दूंगा। इस नाखून को सदा जेब मे रखियेगा। आपकी जेब सदा भरी रहेगी। भला ऐसे कैसे सम्भव है-मैने सोचा। यह बेसिर-पैर वाली बात हो गयी। वैसे मेरे मन मे कौव्वे के भागो को देखकर क्रोध भर रहा था। उसने घर के पिछवाडे मे चर्बी एकत्र कर रहे एक व्यक्ति से भी मिलवाया। तांत्रिक ने भी इस बात को दोहराया कि चर्बी का असर केवल चमत्कारिक है। यदि आप खुद बनायेंगे तो यह इसका असर नही होगा।

मैने उससे पूछा कि साल भर मे कितने कौव्वे मार लेते हो? क्या तुम्हे पता है कि कौव्वो का शिकार प्रतिबन्धित है? इतना सुनना था कि उसने अपना फोटो एलबम निकाल लिया जिसमे बडे-बडे राजनेताओ के साथ उसकी तस्वीरे थी। कुछ प्रमाणपत्र थे। एक पुलिस के उच्च अधिकारी का भी पत्र था जिसमे कहा गया था कि मुझे स्वामी के बताये उपायो से फायदा हुआ। इतना सब दिखाने के बाद वह तन कर बैठ गया और मुझे समझाने की कोशिश की। कौव्वा शैतान का रुप है। इसको मारकर मै तो समाज सेवा कर रहा हूँ-उसने कहा। मुझे तो तांत्रिक ही जीता-जागता शैतान लग रहा था। कौव्वे तो माँ प्रकृति के सफाई कर्मचारी है। वे हमारे गन्दे शहरो से बिना शुल्क लिये और बिना हडताल पर जाये नियमित तौर से कचरे को उठाते है। आस-पास कौव्वो की उपस्थिति जीवित वातावरण की सूचक है यह तो वैज्ञानिक अनुसन्धानो से भी अब पता चल चुका है। फिर कौव्वो को क्यो दुष्टता का प्रतीक माना जाता है? क्यो नही इतने उपयोगी पक्षी के उपयोगी गुणो के विषय मे विज्ञान सम्मत बाते सभी को बतायी जाती है? क्यो कौव्वे के चिल्लाने को नाहक ही बिना किसी वैज्ञानिक आधार के अशुभ माना जाता है?

तांत्रिक वाली घटना के बाद मै पारम्परिक चिकित्सको से मिला और इस बारे मे चर्चा की। वे भी इससे दुखी लगे। उन्होने कहा कि वैसे ही खेतो मे कीटनाशको के बढते प्रयोग से कौव्वे अकाल मौत मर रहे है। मैने जंगल विभाग मे काम कर रहे एक मित्र से चर्चा की। उसने इस बात की पुष्टि की कि इस तरह कौव्वे को मारने पर प्रतिबन्ध है पर यह भी कहा कि कौव्वे के लिये कौन सामने आयेगा? मोर या कोई दुर्लभ प्रजाति की चिडिया की बात होती तो बहुत से स्वयमसेवी संगठन सामने आ जाते और अभियान चलाने की जिद करने लगते। उसने अंत मे कह ही दिया कि क्यो बेचारे तांत्रिक की रोजी-रोटी छीनते हो? कोई मंत्र ले लो उससे या फिर खर्चा-पानी ले लो वह खुशी-खुशी दे देगा। नही तो मै साथ चलूंगा।
मैने कलम को हथियार बनाया और उस तांत्रिक के विषय मे लिखना आरम्भ किया। कौव्वो पर भी एक लेखामाला लिखी। इसका प्रभाव पडा या नही, यह तो पता नही पर वह गाँव छोडकर चला गया। उसने यह काम नही छोडा। आज भी मै जब देहाती मेलो मे जाता हूँ तो कौव्वे के विभिन्न भागो से बनी वस्तुओ के विषय मे पूछता हूँ। लोग बेहिचक जानकारी देते है और इससे कौव्वे से जुडे अन्ध-विश्वास के विषय मे जानकारी मिलती है। बडा दुख होता है कि मै इस अवैध व्यापार को किसी भी तरह से रोक नही पाता हूँ।

कौव्वे से सम्बन्धित सबसे प्रचलित अन्ध-विश्वासो के बारे मे आप सुनते ही समझ जायेंगे कि यह सचमुच का अन्ध-विश्वास है। बहुत से देहाती मेलो मे तांत्रिक कौव्वे का ताजा खून लेकर बैठे होते है। ग्रामीण बेरोजगार युवक उनके पास जमे रहते है। तांत्रिक दावा करते है कि यदि नौकरी का आवेदन पत्र कौव्वे के खून से लिखा जाये तो नौकरी मिलने से कोई नही रोक सकता। वे मोटी रकम वसूलते है। इसी तरह प्रेम मे असफल प्रेमी से शनिवार को कौव्वे को मारने और फिर उसके ह्र्दय को प्रेमिका के घर के सामने गडा देने से प्रेमिका का पैर उस पर पडते ही वह वापस प्रेमी के पास आ जाती है-ऐसा दावा किया जाता है। आज के वैज्ञानिक युग मे ऐसी मान्यताए इस तरह प्रचलन मे है-यह जानकर दुख होता है।

भारत मे गरीबी है, लोग बेरोजगार है और प्रेम मे असफलता एक सामान्य सी बात है, ये सब बढते ही जा रहे है पर इनसे मुक्ति पाने के नाम पर अनगिनत बेकसूर कौव्वो की हत्या की जा रही है। हमारे पास कानून है और कानून के रक्षक भी पर फिर भी हम इस अन्ध-विश्वास से नही लड पा रहे है। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Udan Tashtari said…
जारी रहिये..पढ़ रहे हैं.
Sanjeev said…
आपका लेख हमारे समाज की अवस्था को बयान कर रहा है। लोग बिना किसी मेहनत के सब-कुछ पा लेने का दिवास्वप्न पाले होते हैं। इसी उम्मीद में वे न जाने कितने मूक पशु-पक्षियों पर अत्याचार कर बैठते हैं। यह संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जाना चाहिये कि हम प्रकृति के नाजुक संतुलन के साथ खिलवाड़ न करें।

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