रायपुर ब्लॉगर मीट : कुछ रोचक अनुभव -३

" सबने ब्लाग बनाने को कहा तो हमने भी ब्लॉग बना लिया| पर आज तक यह समझ नहीं पाया कि ब्लाग में अलग क्या है?" ब्लॉगर त्रयम्बक शर्मा ने अपने उद्बोधन में यह प्रश्न उठाया| वे कुछ बिफरे से लग रहे थे| मै प्रतीक्षा करता रहा कि शायद उन्हें कार्यक्रम की समाप्ति तक उत्तर मिल जाए पर अंत तक यह प्रश्न अनुत्तरित रहा|

बहुत से ब्लागरो ने कहा कि अखबारों ने उनसे जो आजादी छीन ली थी वह ब्लॉग के माध्यम से वापस मिल गयी है| उन्होंने बताया कि कैसे ज्वेलरी वाले के विज्ञापन के लिए उनके सम्पादक ने महत्वपूर्ण समाचारों को हाशिये में डाल दिया| विभाष जी ने तो आकड़ो की मदद से यह बता दिया कि कैसे सरकार की ओर से करोडो रुपये अखबारों को केवल विज्ञापन के लिए दिए गए| ऐसे में अखबारों से निष्पक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? उनका प्रश्न हमें सोचने के लिए विवश करता है|

ब्लागरो ने यह भी कहा कि ब्लागिंग में आप ही सम्पादक है और आप ही लेखक| पूरी आजादी है|

पर वे भूल जाते है कि अखबार के मालिक की तरह यहां भी मालिक है| और वह मालिक भी व्यापार करने बैठा है| उसने आपको ब्लागिंग की जगह समाज सेवा के लिए नहीं दी है| वह व्यापार कर रहा है| यदि उसके हितो को चोट पहुंचेगी तो वह आपको बाहर का रास्ता दिखा देगा| अखबार की दुनिया में भी यही होता है| ब्लागिंग को आजादी मानने वाले शायद आने वाले वर्षो में इस आजादी का सही मोल जान सके जब ब्लाग और उससे होने वाली कमाई पर ब्लॉगर और कंपनी का समान अधिकार होगा| अभी तो आप विदेशी कंपनी के लिए लिख रहे है जो विदेशी क़ानून के दायरे में है| शर्ते उसकी है और आपने बिना पढ़े ही उन शर्तो को मान लिया है| जिस दिन भारतीय अपनी शर्तो पर लेखन करेंगे इस देश की तस्वीर ही बदल जायेगी|

छत्तीसगढ़ पर एक कम्युनिटी ब्लॉग बनाने पर विचार किया गया| ब्लागरो ने अपनी सहमति दी| इसमे भी ब्लॉगर अपने खर्च पर लिखेंगे| छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है| आप धान के देश में ब्लाग देखे या फिर संजीव जी की लेखनी का कमाल| अनिल जी के लेखन की कसावट हो या ललित जी की कविता, आप अंकुर का तकनीकी आलेख पढ़े या फिर संजीत का यायावरी अंदाज देखे| राजकुमार जी के साथ कांकेर की सैर करे और खल्लारी की भी| विविधता और उत्कृष्टता की कोई मिसाल नहीं है| ऐसे में क्या हमारे ब्लॉगर घर से पैसे फूंक कर ब्लॉग पर ब्लॉग बनाते जाए?

मेरा सुझाव यही होगा कि इस कम्युनिटी ब्लाग से जो भी आलेखों को प्रकाशित करना चाहे चाहे वह आन-लाइन हो या आफ-लाइन, उसे निश्चित शुल्क देना होगा| इसका तीन चौथाई ब्लॉगर को मिलेगा और शेष से ब्लाग की देखभाल की जायेगी| अभी जो ढर्रा चल पडा है कि अखबार वाले ब्लॉग को प्रकाशित कर रहे है और पैसे कमा रहे है| सीधा-सादा ब्लॉगर बस इसी में खुश है कि उसकी रचना छप गयी|

मै दसो पत्रिकाओं में लगातार लिखता हूँ हिन्दी में भी और अंगरेजी में भी| एक लेख के साठ रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक मिलते है| देश में जाने कितनी फीचर एजेंसी है| क्यों न हमारा कम्युनिटी ब्लॉग भी इसी दिशा में बढे| यदि सरकार चाहती है कि ब्लॉगर राज्य और उसकी योजनाओं के हित में लिखे तो वह मेहनताना दे ब्लॉगर लिखेंगे|

जब हम ब्लागिंग से पैसे कमा पायेंगे जो कि हमारा हक है तब देश के हजारो ब्लागरो को न्याय मिलेगा और वे "निठल्लो की जमात" कहलाने से बच पायेंगे| (क्रमश:)

Comments

सुझाव तो आप का अच्छा है. जब सरकार अखबारों को अपने हक में करने के लिए उन्हें करोड़ों बांटती है। तो राज्य के हित में ब्लाग लिखने वालों को क्यों नहीं? पर इस से ब्लाग सरकारी न हो जाएगा?
Pankaj Oudhia said…
ऐसे में तो देश के ज्यादातर अखबारों को सरकारी कहलाना चाहिए| पर ऐसा होता नहीं है| जब सरकारी पैसे लेकर अखबार सरकारी नहीं हुए तो ब्लॉग कैसे होंगे?

आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार|
Unknown said…
बिल्कुल सही विचार है आपका, ब्लोगर को उसके श्रम और समय की कीमत मिलनी ही चाहिये।
Anonymous said…
इसी परिकल्पना पर कार्य हो भी रहा है
बहुत जल्द सामने होगा
"क्यों न हमारा कम्युनिटी ब्लॉग भी इसी दिशा में बढे| यदि सरकार चाहती है कि ब्लॉगर राज्य और उसकी योजनाओं के हित में लिखे तो वह मेहनताना दे ब्लॉगर लिखेंगे|"

एकदम सहमत, पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन!
यानि की चीन की तरह भारत जैसे ब्लॉगर की कलम भी बिक जाएगी? जो नहीं बेचेंगे उनके साथ ज्यादतियों के खिलाफ कोई नहीं खड़ा होगा, क्योंकि सभी पैसा लेने वाले ब्लॉगर व्यवस्था के पक्ष और समर्थन में लिख रहे होंगे. पता नहीं क्या क्या बिकेगा? व्यवस्था और शोषण के खिलाफ आम आदमी की हाथ एकमात्र अच्छे औज़ार भी पैसों पर न्योछावर? पर आश्चर्य यह है की आज पंकज अवधिया के ब्लॉग पर यह बात पढने मिली जिनके ब्लॉग पढ़ पढ़ कर मुझे बाज़ार और व्यवस्था का नंगापन और खोखलापन समझ आया.

जब ब्लोग्गर कलम बेच देंगे तो उन्हें वही सब लिखना पड़ेगा जो लिखवाने वाला चाहता है, धोखाधड़ी से भारतीयों को खिलाई जा रही जीन संवर्धित फसलों पर सब्जियों के पक्ष में लिखेंगे, सरकार जंगल और नदी बेच दे उसके पक्ष में लिखेंगे, मोनसेंटो-कारगिल के पक्ष में लिखेंगे, जो जो सच कह रहे होंगे उनके विरोध में भी लिखा जायेगा. हम पैसे से आगे क्यों नहीं सोच पाते?

सरकार, योजनाकार, विश्वविद्यालय, नेता, नौकरशाह, वैज्ञानिक वगैरह तो बिके ही हुए हैं, बाज़ार बहुत थोडा देकर बहुत कुछ खरीद लेगा.
पर जब ब्लॉगर सरकार और व्यवस्था से अख़बारों की तरह पैसा लेगा तो क्या वह कोंत्रेक्ट में बंधकर कभी इनके खिलाफ बोल सकेगा?

अख़बार सरकारी ही हैं, ये कभी सिस्टम के खिलाफ सच नहीं छापते. क्या किसी अख़बार ने शरद पवार के चीनी उद्योग से जुड़े हितों पर रिपोर्ट दी? क्या किसी ने विदर्भ और बुंदेलखंड के सालों से चल रहे अकाल पर रिपोर्ट दी? क्या रतनजोत के ज़हरीले असर पर कोई रिपोर्ट पढने में आती है? सारे अख़बार पैसों के कारण नेता नौकरशाह और बाज़ार के आगे लोट लगाते हैं.
Pankaj Oudhia said…
मै नहीं समझता कि आपको जब आपके योगदान का पारिश्रमिक मिलता है तो कोई आपको खरीद लेता है| यदि ऐसा है तो दुनिया का एक बड़ा भाग बिका हुआ है| यह सही नहीं है| यह अतिवादी एक तरफा सोच है-ऐसा मै मानता हूँ| ब्लॉगर मुफ्त में अपने जेब से लिखता रहे और कभी अपना पारिश्रमिक भी नहीं मांगे, यह कैसी बात हुयी भला|

आपने लिखा है कि मैंने बाजारवाद की पोल खोली है अपने लेखो में| मुफ्त में भारतीयों से लेखन करवाने के बाजारवाद के खिलाफ ही मैंने यह लेख लिखा है|

आपकी टिप्पणी के लिए आभार|
Pankaj Oudhia said…
दूसरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया:

आप किस दुनिया में है जनाब| कुछ ब्लॉगर अभी भी पैसे लेकर लिख रहे है| यह उनके लेखो से साफ़ झलकता है| इससे क्या जमीनी बात करने वालो ने लिखना बंद कर दिया?

आपने लिखा है कि "अखबार सरकारी ही है|" मै इससे सहमत नहीं हूँ| सभी को एक ही चश्मे से देखना ठीक नहीं है| छत्तीसगढ़ में रतनजोत का ही उदाहरण लें| दैनिक नवभारत से लेकर छत्तीसगढ़ ने इस मुद्दे पर मेरे लेखो को प्रकाशित किया बिना कैंची चलाये | यकीन न आये तो इस ब्लॉग पर जाकर कतरने देख लें|

http://pankajinprintmedia.blogspot.com/

पैसा इस दुनिया में आदि काल से है पर इसमे अभी तक इतनी कूबत नहीं है कि वह उसे भी खरीद सके जो बिकना नहीं चाहता है| एक बार फिर कह दूं पारिश्रमिक लेना बिकना नहीं है|
Anil Pusadkar said…
हां अब लगता है कि मुझे भी कुछ कहना ही पड़ेगा।
चीन में ये काम शुरु हो गया है और सरकार ने 500 ब्लॉगरों को लेकर एक टीम का गठन किया है जो कि सरकार के पक्ष में लिखेंगे और उन्हें सरकार की ओर से पोस्ट के हिसाब से पैसे मिलेंगे।..
अवधिया जी
एक तरफ तो आप ब्लॉगर मीट को प्रायोजित होने के संभावना पर आपत्ति प्रकट करते हैं वहीं दूसरी ओर लेखन के प्रायोजित होने का समर्थन ?
कन्फ़्युशन ही कन्फ़्युशन
Pankaj Oudhia said…
एक ओर एक आयोजक गण ऊपर दी गयी टिप्पणी में कहते है कि इसी परिकल्पना पर काम हो रहा है और दूसरे आयोजक गण यानी कि आप कन्फ्यूजन की बात करते है| ज़रा देंखे असली कन्फ्यूजन किधर है?

आपकी टिप्पणी के लिए आभार|
Anonymous said…
पंकज अवधिया जी,

किसने कह दिया कि इस पर कार्य 'हम' कर रहे हैं?
आप शायद मेरी बात समझ नहीं पाये

एक ओर ब्लॉगर मीट के तथकथित प्रायोजन(पैसा) पर आप प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं
दूसरी ओर कम्यूनिटी ब्लॉग पर लिखने के लिए पैसा माँग रहे हैं ?
एक जगह पैसे पर ऐतराज और दूसरी जगह माँग!
Pankaj Oudhia said…
आप अगली कड़ीयो की प्रतीक्षा करे| सभी पहलुओ पर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ|
pratiksharat hu sabhi pahlauo ko padhne k liye

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