कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर?

कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर?
- पंकज अवधिया


पिछले दिनों सिरपुर मेले में जब मैंने कमर दर्द की शर्तिया दवा के रूप खुलेआम बिक रहे साल खपरी के शल्कों को देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा| साल खपरी यानि पेंगोलिन जिसे आम बोलचाल की भाषा में चीन्टीखोर भी कहा जाता है| छत्तीसगढ़ के वनों में एक ज़माने में ये बड़ी संख्या में थे पर लगातार शिकार होने से इनकी संख्या कम होती जा रही है| इससे जुडा अंध-विश्वास इसकी जान ले रहा है| प्रकृति ने इस जीव को जंगल में दीमकों की आबादी पर नियन्त्रण रखने के लिए बनाया है| इनकी कम संख्या अर्थात दीमकों का अधिक प्रकोप और अधिक दीमक माने जंगलों का सर्वनाश| वैज्ञानिक साहित्य बताते है कि एक पेंगोलिन अपने जीवन में जंगल में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में जो भूमिका निभाता है वह लाखों रूपये खर्च करके भी मनुष्य नही निभा सकता है| राज्य में शिकारी पिन्गोलिन की कीमत तीन से चार हजार रूपये लगाते हैं| शिकार के तुरंत बाद इसके मांस को खा लिया जाता है और शल्कों को बेच दिया जाता है| न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि दुनिया भर में इन शल्कों की जबर्दस्त मांग है| दावा किया जाता है कि जोड़ों के दर्द में यह उपयोगी है| इसका बाहरी और अंदरुनी प्रयोग होता है| जोड़ों के दर्द की चिकित्सा में महारत रखने वाले पारम्परिक चिकित्सक साल खपरी के इस प्रयोग से खुश नहीं है| वे कहते हैं कि आस-पास सामान्य तौर पर उगने वाली फुडहर नामक वनस्पति के साधारण प्रयोग से जोड़ों के दर्द से मुक्ति पायी जा सकती है फिर साल खपरी को मारने की क्या जरूरत है? साल खपरी के शिकार पर प्रतिबंध है पर मेलों में इसकी खुली बिक्री शिकारियों के बुलंद हौसलों की गवाही देती लगती है|



साल खपरी के शल्कों की तरह बंदर की खोपड़ी की बिक्री भी खुलेआम हो रही है| साप्ताहिक बाजारों और सालाना मेलों में लाल कपड़ों से लिपटी बन्दर की खोपड़ी आसानी से दिख जाती है| ज्यादातर एक या दो ऐसी खोपड़ियां तांत्रिको के पास दिखती है पर जब उनसे बात की जाती है तो दसों की संख्या में खोपड़ी वे उपलब्ध करा देते हैं| वे दावा करते हैं कि यह साधारण खोपड़ी नहीं है बल्कि विशेष गुणों वाले बंदर की खोपड़ी है| जब बन्दर एक शाखा से दूसरी शाखा में जाते हैं तो गलती से कई बार कोई बन्दर गिर जाता है| उस बंदर को तुरंत ही दल से अलग कर दिया जाता है| ऐसे बन्दर की खोपड़ी विशेष तांत्रिक गुणों से भरपूर मानी जाती है| ऐसी एक खोपड़ी पांच सौ से लेकर लाख रूपये तक बेची जाती है| वैज्ञानिक नजरिये से देखा जाए तो यह निरापद अंध-विशवास ही लगता है| जिस बड़ी संख्या में तांत्रिकों के पास खोपड़ियां रहती हैं उससे लगता है कि बंदरों का अवैध शिकार किया जा रहा है| भले ही जंगलों के कम होने से बंदर शहर का रुख करने लगे हैं और आम लोगों के लिए मुसीबत बन रहे हैं पर जंगलों में इनकी विशेष भूमिका है|


वन्य पशुओं के अवैध व्यापार पर नजर रखें वाली ट्रेफिक जैसी अन्तराष्ट्रीय संस्थाएं उल्लू के अंगों की बढती मांग से परेशान हैं| देश के जिन राज्यों से उल्लू क़ी आपूर्ति हो रही है उनमे छत्तीसगढ़ का भी नाम है| काले जादू के लिए साल भर उल्लू पकड़े और मारे जाते हैं| दीपावली के समय इनकी मांग बढ़ जाती है| उल्लू राज्य में खुलेआम नहीं बिकते हैं पर इनके आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढना कठिन नही है| उल्लू किसानो के मित्र है और कीट-पतंगों को खाकर फसलों की रक्षा करते हैं| राज्य में नए पर्यटन स्थलों विशेषकर सघन वनों में विकसित हो रहे स्थलों के कारण गाड़ियों की आवाजाही बढी है| वाहनों के शोर से उल्लू जैसे जीव परेशान है| तेज रफ्तार से दौड़ रही गाड़ियों से टकराकर भी उनकी आकाल मृत्यु हो रही है|

बिलासपुर मार्ग में सडक के किनारे जीवित जंगली पक्षियों की बिक्री खुलेआम देखी जा सकती है| ट्रक वाले इनके नियमित ग्राहक होते हैं| ढाबों की भूमिका भी इसमें संदिग्ध है| राज्य में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ढाबे चोरी छिपे पच्चीस से अधिक प्रकार की चिड़ियों का मांस परोसते हैं और उसकी तगड़ी कीमत वसूल करते हैं| इनमे से बहुत से पक्षी दुर्लभ पक्षियों की श्रेणी में आते हैं|

राज्य में बहुत से पर्यटन स्थलों में बड़ी गाड़ियों को अक्सर कुछ संदिग्ध से दिखने वाले लोग घेर लेते हैं और बिना किसी खौफ के वन्य जीवों के अंगों की चर्चा शुरू कर देते हैं| हाल ही में कवर्धा के पास मारे गए बाघ के कीमती अंगों को एकत्र करने में मची आपा-धापी और तेंदुए की खाल की लगातार बरामदगी की अखबारी खबरें साफ़ चेताती हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है| वन्य पशुओं के अवैध व्यापार में राज्य की राजधानी की विशेष भूमिका है| यदि इस पर अंकुश न लगाया गया तो कहीं यह वन्य पशुओं के अंगों के अवैध व्यापार की राजधानी न बन जाए|

इस अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि आम नागरिकों को जागरूक किया जाए| उन्हें प्रोत्साहित किया जाए कि वे शिकारियों की जानकारी सम्बन्धित विभाग तक पहुंचाएं| और साथ ही वन्य पशुओं से जुड़े अंध-विश्वास को भी दूर करना जरूरी है|

(लेखक कृषि वैज्ञानिक हैं और राज्य में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Rahul Singh said…
पिछले दिनों राजधानी के पास 200 बंदरों के मारे जाने का विवाद गरमाया हुआ है.

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