कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है। पर कौन-सा कोदो?
कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है। पर कौन-सा कोदो?
- पंकज अवधिया
“कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है।“ बस, आपने यह एक पंक्ति पढी और भागे बाजार की ओर। बाजार मे दस दुकानो मे पूछा और फिर कोदो लाकर झटपट खीर बनायी। खाने से पहले अपने ढेरो मित्रो को बताया कि वे भी खाये बहुत लाभदायक है। फिर खीर खानी शुरु की। चार दिन तो मन के कहे पर यकीन करते रहे पर जब कुछ असर न दिखा तो परेशान हो गये। अबकी बार मित्रो को फोन नही किया। धीरे-धीरे आपने इसे खाना बन्द कर दिया। हो सकता है तब तक आपको कोई दूसरे खाद्य पदार्थ के बारे मे जानकारी मिल जाये और आप फिर बाजार की ओर दौड पडे।
“कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है।“अपने छात्र जीवन के दौरान जब मैने यह पंक्ति पढी तो मै बाजार की ओर नही जा पाया। उस समय मै जंगलो की ओर ज्यादा जाया करता था। इस एक साधारण सी पंक्ति के साथ मै पारम्परिक चिकित्सको से मिला तो वे पूछ बैठे कौन-सा कोदो? और कैसी खीर? कैसा दूध? किसको मधुमेह है? क्या और भी समस्या है? क्या साल भर खाओगे? उनके प्रश्नो की सीमा नही थी। मै इन प्रश्नो को सुनता रहा और इनके जवाब भी उनसे ही जानता रहा। आज दो दशको के बाद भी मै खीर बनाकर खा नही पाया हूँ क्योकि इससे सम्बन्धित जानकारियो का अम्बार खत्म होने का नाम नही ले रहा है। मै 6000 से अधिक पारम्परिक चिकित्सको से मिला और कोदो की खीर के बारे मे उनके विचारो को लिखता गया।
पहला प्रश्न सबसे चौकाने वाला था। कौन सा कोदो? अरे कोदो यानि कोदो। वही लघु धान्य जो आदिवासी अंचलो मे उगता है और अब मधुमेह की दवा के नाम पर महानगरो मे बिकता है। और कौन-सा कोदो? दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिक एक ही कोदो को जानते है? “लास्ट क्राप्स आफ आफ्रीका” नामक शोध-ग्रंथ को अमेरिका के कृषि विभाग ने प्रकाशित किया। उसमे भी लिखा गया है कि कोदो एक ही प्रकार का होता है और वह अब आफ्रीका से गायब हो रहा है। फिर कौन-सा कोदो? यह प्रश्न कहाँ से आ गया? पारम्परिक चिकित्सको से मिलने के प्रारम्भिक कुछ वर्षो मे ही मुझे एक नही, दो नही चालीस प्रकार के कोदो के बारे मे जानकारी मिल चुकी थी। धीरे-धीरे इसने 100 का आँकडा पार कर लिया। कल ही जंगल से तीन और प्रकार के कोदो के बारे मे जानकारी लेकर लौटा हूँ। ये सभी कोदो आकार-प्रकार मे अधिक भिन्न न हो पर औषधीय गुणो मे इनमे जमीन आसमान का अंतर है। दिल्ली के एक बडे बाजार मे मैने इतने तरह के कोदो मे पूछ क्या लिया, व्यापारी ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सिरफिरा समझ के आगे का रास्ता दिखा दिया। कुछ दूर जाने के बाद ऊँची आवाज मे कहा कि भैये, कोदो एक ही किस्म का होता है।
आमतौर पर कोदो की खेती आसान होती है। इसमे ज्यादा कीडे नही लगते और इसे बिना खाद-पानी के उगाया जाता है। पर बालियो से बीज निकालना टेढी खीर है। इन बीजो को संग्रहित करना भी एक चुनौती है। अक्सर इसमे एक तरह का फंगस लग जाता है जिससे बीज विषाक्त हो जाते है। बाजार से लाये गये नमूनो मे अक्सर फंगस का प्रभाव दिख जाता है पर पीढीयो से खेती कर रहे किसान कभी भी फंगस लगा कोदो किसी शहरी को नही देंगे। कोदो को चावल की तरह पका कर खाया जाता है पर इसे खा पाना और पचा पाना सबके बस की बात नही है। इसमे व्यापारी कई तरह की घास के बीज मिला देते है। इन बीजो को मिलाकर कर वे एक तरह से अच्छा ही करते है। आमतौर जिन घासो के बीजो का प्रयोग किया जाता है उनमे कोदो के हानिकारक गुणो को नष्ट करने की क्षमता होती है। व्यापारी इस बात को नही जानते है।
जैसा कि आप जानते है कि मै मधुमेह पर वैज्ञानिक रपट लिख रहा हूँ सालो से। कोदो पर लिखने के लिये मैने आखिर के अध्यायो को चुना क्योकि जिन दसो प्रकार के कोदो के बारे मे मैने पारम्परिक चिकित्सको से सुन रखा था उसके बारे मे मै पूरी तरह से संतुष्ट हो जाना चाहता था। अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मैने न केवल नाना प्रकार के कोदो देखे बल्कि उनके बीज एकत्र किये, उनकी तस्वीरे ली, उन्हे पारम्परिक विधियो से उगाना सीखा, रोगियो और स्वयम पर इनका असर देखा, उन्हे अपने स्तर पर विज्ञान की कसौटी पर कसा फिर इसके बारे मे रपट मे लिखना आरम्भ किया। इतने वर्षो की मेहनत से 170 जीबी से अधिक की सामग्री अब तक रपट मे जा चुकी है। यह जानकारी मधुमेह की चिकित्सा मे औषधीय धान और दूसरी औषधीय वनस्पतियो के साथ कोदो के सरल और जटिल प्रयोग से सम्बन्धित है। लगातार महिनो तक इस पर लिखने के कारण रात को सपने भी कोदो के ही आते है। जानकारी के विस्तार को देखते हुये मैने चालीस प्रकार के कोदो को ही रपट मे शामिल करने का मन बनाया है। शेष पर बाद मे कभी लिखूँगा।
मधुमेह शब्द जितना सरल दिखता है, वास्तव मे है नही। यदि मधुमेह की ही बीमारी है तो एक बार कोदो के साधारण प्रयोग से कुछ लाभ पाया जा सकता है पर यदि मधुमेह के साथ ह्र्दय रोग है, मधुमेह के साथ श्वाँस रोग है, मधुमेह के साथ मोटापा रोग है, मधुमेह के साथ किडनी की समस्याए है, मधुमेह के साथ आँखो की समस्याए है, मधुमेह के साथ श्वेत कुष्ठ है, आदि-आदि तो प्रत्येक जोडी के लिये अलग-अलग प्रकार के कोदो और अन्य वनस्पतियो के मिश्रण का सुझाव पारम्परिक चिकित्सक देते है। लाखो पन्नो मे समाहित यह ज्ञान विशेषज्ञो के लिये जटिल लग सकता है पर आज कम्प्यूटर के इस युग मे आम रोगियो के लिये चिंता की कोई बात नही है। एक बार रपट के तैयार हो जाने के बाद उसे इस तरह से प्रोग्राम किया जा सकता है कि कौन से कोदो की खीर रोगी के लिये उपयुक्त है वह एक पल मे पता लगा सकता है? जब कभी यह परिकल्प्ना मूर्त रुप प्रदान करेगी तो मै इससे किसानो को भी जोडना चाहूंगा। वे सभी प्रकार के कोदो की पारम्परिक खेती करेंगे और जब रोगी अपने लिये उपयुक्त कोदो की खीर खोजेगा तो साथ मे यह भी जानकारी आयेगी कि अभी वह कोदो किस किसान के पास कितनी कीमत पर उपलब्ध है।
सीजीबीडी नामक डेटाबेस के माध्यम से मधुमेह पर सैकडो जीबी के इस रपट को आन-लाइन करने पर विचार चल रहा है। प्रस्ताव तैयार किये जा रहे है। उम्मीद है कि कोदो की खीर जैसी साधारण सी लगने वाली सलाह के बारे मे असाधारण जानकारी मधुमेह से प्रभावित असंख्य भारतीय जल्दी ही घर बैठे प्राप्त कर पायेंगे।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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- पंकज अवधिया
“कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है।“ बस, आपने यह एक पंक्ति पढी और भागे बाजार की ओर। बाजार मे दस दुकानो मे पूछा और फिर कोदो लाकर झटपट खीर बनायी। खाने से पहले अपने ढेरो मित्रो को बताया कि वे भी खाये बहुत लाभदायक है। फिर खीर खानी शुरु की। चार दिन तो मन के कहे पर यकीन करते रहे पर जब कुछ असर न दिखा तो परेशान हो गये। अबकी बार मित्रो को फोन नही किया। धीरे-धीरे आपने इसे खाना बन्द कर दिया। हो सकता है तब तक आपको कोई दूसरे खाद्य पदार्थ के बारे मे जानकारी मिल जाये और आप फिर बाजार की ओर दौड पडे।
“कोदो की खीर खाने से मधुमेह मे लाभ होता है।“अपने छात्र जीवन के दौरान जब मैने यह पंक्ति पढी तो मै बाजार की ओर नही जा पाया। उस समय मै जंगलो की ओर ज्यादा जाया करता था। इस एक साधारण सी पंक्ति के साथ मै पारम्परिक चिकित्सको से मिला तो वे पूछ बैठे कौन-सा कोदो? और कैसी खीर? कैसा दूध? किसको मधुमेह है? क्या और भी समस्या है? क्या साल भर खाओगे? उनके प्रश्नो की सीमा नही थी। मै इन प्रश्नो को सुनता रहा और इनके जवाब भी उनसे ही जानता रहा। आज दो दशको के बाद भी मै खीर बनाकर खा नही पाया हूँ क्योकि इससे सम्बन्धित जानकारियो का अम्बार खत्म होने का नाम नही ले रहा है। मै 6000 से अधिक पारम्परिक चिकित्सको से मिला और कोदो की खीर के बारे मे उनके विचारो को लिखता गया।
पहला प्रश्न सबसे चौकाने वाला था। कौन सा कोदो? अरे कोदो यानि कोदो। वही लघु धान्य जो आदिवासी अंचलो मे उगता है और अब मधुमेह की दवा के नाम पर महानगरो मे बिकता है। और कौन-सा कोदो? दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिक एक ही कोदो को जानते है? “लास्ट क्राप्स आफ आफ्रीका” नामक शोध-ग्रंथ को अमेरिका के कृषि विभाग ने प्रकाशित किया। उसमे भी लिखा गया है कि कोदो एक ही प्रकार का होता है और वह अब आफ्रीका से गायब हो रहा है। फिर कौन-सा कोदो? यह प्रश्न कहाँ से आ गया? पारम्परिक चिकित्सको से मिलने के प्रारम्भिक कुछ वर्षो मे ही मुझे एक नही, दो नही चालीस प्रकार के कोदो के बारे मे जानकारी मिल चुकी थी। धीरे-धीरे इसने 100 का आँकडा पार कर लिया। कल ही जंगल से तीन और प्रकार के कोदो के बारे मे जानकारी लेकर लौटा हूँ। ये सभी कोदो आकार-प्रकार मे अधिक भिन्न न हो पर औषधीय गुणो मे इनमे जमीन आसमान का अंतर है। दिल्ली के एक बडे बाजार मे मैने इतने तरह के कोदो मे पूछ क्या लिया, व्यापारी ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सिरफिरा समझ के आगे का रास्ता दिखा दिया। कुछ दूर जाने के बाद ऊँची आवाज मे कहा कि भैये, कोदो एक ही किस्म का होता है।
आमतौर पर कोदो की खेती आसान होती है। इसमे ज्यादा कीडे नही लगते और इसे बिना खाद-पानी के उगाया जाता है। पर बालियो से बीज निकालना टेढी खीर है। इन बीजो को संग्रहित करना भी एक चुनौती है। अक्सर इसमे एक तरह का फंगस लग जाता है जिससे बीज विषाक्त हो जाते है। बाजार से लाये गये नमूनो मे अक्सर फंगस का प्रभाव दिख जाता है पर पीढीयो से खेती कर रहे किसान कभी भी फंगस लगा कोदो किसी शहरी को नही देंगे। कोदो को चावल की तरह पका कर खाया जाता है पर इसे खा पाना और पचा पाना सबके बस की बात नही है। इसमे व्यापारी कई तरह की घास के बीज मिला देते है। इन बीजो को मिलाकर कर वे एक तरह से अच्छा ही करते है। आमतौर जिन घासो के बीजो का प्रयोग किया जाता है उनमे कोदो के हानिकारक गुणो को नष्ट करने की क्षमता होती है। व्यापारी इस बात को नही जानते है।
जैसा कि आप जानते है कि मै मधुमेह पर वैज्ञानिक रपट लिख रहा हूँ सालो से। कोदो पर लिखने के लिये मैने आखिर के अध्यायो को चुना क्योकि जिन दसो प्रकार के कोदो के बारे मे मैने पारम्परिक चिकित्सको से सुन रखा था उसके बारे मे मै पूरी तरह से संतुष्ट हो जाना चाहता था। अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मैने न केवल नाना प्रकार के कोदो देखे बल्कि उनके बीज एकत्र किये, उनकी तस्वीरे ली, उन्हे पारम्परिक विधियो से उगाना सीखा, रोगियो और स्वयम पर इनका असर देखा, उन्हे अपने स्तर पर विज्ञान की कसौटी पर कसा फिर इसके बारे मे रपट मे लिखना आरम्भ किया। इतने वर्षो की मेहनत से 170 जीबी से अधिक की सामग्री अब तक रपट मे जा चुकी है। यह जानकारी मधुमेह की चिकित्सा मे औषधीय धान और दूसरी औषधीय वनस्पतियो के साथ कोदो के सरल और जटिल प्रयोग से सम्बन्धित है। लगातार महिनो तक इस पर लिखने के कारण रात को सपने भी कोदो के ही आते है। जानकारी के विस्तार को देखते हुये मैने चालीस प्रकार के कोदो को ही रपट मे शामिल करने का मन बनाया है। शेष पर बाद मे कभी लिखूँगा।
मधुमेह शब्द जितना सरल दिखता है, वास्तव मे है नही। यदि मधुमेह की ही बीमारी है तो एक बार कोदो के साधारण प्रयोग से कुछ लाभ पाया जा सकता है पर यदि मधुमेह के साथ ह्र्दय रोग है, मधुमेह के साथ श्वाँस रोग है, मधुमेह के साथ मोटापा रोग है, मधुमेह के साथ किडनी की समस्याए है, मधुमेह के साथ आँखो की समस्याए है, मधुमेह के साथ श्वेत कुष्ठ है, आदि-आदि तो प्रत्येक जोडी के लिये अलग-अलग प्रकार के कोदो और अन्य वनस्पतियो के मिश्रण का सुझाव पारम्परिक चिकित्सक देते है। लाखो पन्नो मे समाहित यह ज्ञान विशेषज्ञो के लिये जटिल लग सकता है पर आज कम्प्यूटर के इस युग मे आम रोगियो के लिये चिंता की कोई बात नही है। एक बार रपट के तैयार हो जाने के बाद उसे इस तरह से प्रोग्राम किया जा सकता है कि कौन से कोदो की खीर रोगी के लिये उपयुक्त है वह एक पल मे पता लगा सकता है? जब कभी यह परिकल्प्ना मूर्त रुप प्रदान करेगी तो मै इससे किसानो को भी जोडना चाहूंगा। वे सभी प्रकार के कोदो की पारम्परिक खेती करेंगे और जब रोगी अपने लिये उपयुक्त कोदो की खीर खोजेगा तो साथ मे यह भी जानकारी आयेगी कि अभी वह कोदो किस किसान के पास कितनी कीमत पर उपलब्ध है।
सीजीबीडी नामक डेटाबेस के माध्यम से मधुमेह पर सैकडो जीबी के इस रपट को आन-लाइन करने पर विचार चल रहा है। प्रस्ताव तैयार किये जा रहे है। उम्मीद है कि कोदो की खीर जैसी साधारण सी लगने वाली सलाह के बारे मे असाधारण जानकारी मधुमेह से प्रभावित असंख्य भारतीय जल्दी ही घर बैठे प्राप्त कर पायेंगे।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Celtis philippensis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Jhil Toxicity,
Celtis tetrandra as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Jhino-biyono Toxicity,
Celtis timorensis as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Jirio Toxicity,
Cenchrus biflorus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Jufa Toxicity,
Cenchrus ciliaris as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kachri Toxicity,
Centaurea cyanus as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Kachro Toxicity,
Centella asiatica as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kadam Toxicity,
Centipeda minima as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kadvi-mirchi bel Toxicity,
Centratherum anthelminticum as Allelopathic ingredient to
enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous
Traditional Medicines) used for Kadvi-nai Toxicity,
Centrosema pubescens as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kagio Toxicity,
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