“गोल्डन राड माफिया” के कारण खत्म होते जंगली अमलतास
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-9
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
“गोल्डन राड माफिया” के कारण खत्म होते जंगली अमलतास
आमतौर पर जंगलो मे दो तरह के अमलतास देखने को मिलते है। एक छोटे वृक्ष के रुप मे तो दूसरा बडे वृक्ष के रुप मे। दोनो के अपने-अपने पारम्परिक चिकित्सकीय उपयोग है। यह भी मजेदार बात है कि इनके प्रकारो को लेकर पारम्परिक चिकित्सक खेमो मे बँटे हुये है।शहरो मे जिस अमलतास को सजावटी पौधो के रुप मे लगाया जाता है उसे पारम्परिक चिकित्सक सन्देह से देखते है। इसलिये दवा के रुप मे उनका उपयोग नही करते है। अमलतास के बडे वृक्ष शहर मे नही मिलते है। यदि पहले किसी ने लगाये भी हो तो विकास के नाम पर उन्हे काट दिया गया है।
जंगल मे गर्मियो मे अमलतास अपनी विशेष छटा बिखेरते है। इस समय पलाश अपना प्रदर्शन खत्म कर चुके होते है। आम लोगो का ध्यान अमलतास के सुनहरे फूल ही खीचते है। साल भर इस ओर ध्यान ही नही जाता है। छत्तीसगढ मे अमलतास को धनबोहार या बेन्द्रा लाठी कहा जाता है। इसे जंगल झरना भी कहा जाता है। औषधि के रुप मे इसकी माँग होने के कारण इसके सभी पौध भागो का एकत्रण व्यापारी करवाते है। जिन वृक्षो के बीजो का एकत्रण होता है उनके जंगल मे फैलने की सम्भावना कम होती जाती है। पुराने वृक्ष रह जाते है। अब नये वृक्ष तो कोई लगाता नही। इससे धीरे-धीरे उनकी संख्या कम होती जाती है। अमलतास के साथ भी यही हो रहा है। उन भागो मे जहाँ जंगल के अन्दर खाद-पानी देकर इमारती लकडियो के लिये वन विभाग खेती कर रहा है वहाँ शहरो से बीज लाकर अमलतास की शहरी किस्मे लगायी जा रही है। पर तेजी से घट रही जंगली जातियो की ओर किसी का ध्यान नही है।
इस जंगल यात्रा के दौरान मुझे बताया गया कि बन्दर की लाठी की तरह दिखने वाले अमलतास की फल्लियो की माँग अचानक हाल के वर्षो मे बढी है। इस माँग के अचानक बढने को आमतौर पर नया पेटेंट और किसी बडी दवा कम्पनी द्वारा नये उत्पाद बनाने की तैयारी से जोड कर देखा जाता है। मैने अपने सम्पर्को से इस बारे मे जानने की कोशिश की तो पता चला कि ऐसा कोई नया पेटेंट या उत्पाद नही आया है। दिल्ली से कोलकाता तक के व्यापारियो ने दो टूक कह दिया कि हम तो उतना ही अमलतास खरीद रहे है जितना हम सालो से ले रहे है (इस बात की सम्भावना कम ही है कि वे सच बोल रहे हो।)। फिर अमलतास की बढती माँग का क्या कारण हो सकता है? इसका जवाब मुझे मुम्बई के एक सात सितारा होटल के मालिक के ई-मेल से मिला।
होटल मालिक को किसी जाने-माने (?) वास्तुशास्त्री ने कहा था कि होटल के हर कमरे मे गोल्डन राड रखने से मन्दी के कारण जो होटल व्यवसाय ठप्प हो रहा है वह सही राह पर आ जायेगा। होटल मालिक ने इंटरनेट पर मेरे आलेख देखे और मुझे सन्देश भेज दिया। साथ मे कूरियर से वास्तुशास्त्री द्वारा दिये गये गोल्डन राड का नमूना भेज दिया। कूरियर से जो बक्सा आया उसमे लाल कपडे मे लिपटी हुयी काले रंग की अमलतास की फली थी। कुछ चावल के दाने, सिन्दूर और हल्दी थी। इसमे गोल्डन अर्थात सुनहरा कुछ नही था। वैसे भी वनस्पति विज्ञान मे गोल्डन राड अमलतास को नही कहा जाता है। सालिडेगो सिम्प्लेक्स नामक सजावटी पौधा वास्तविक गोल्डन राड है। अब वास्तुशास्त्री ने सोचा होगा कि मै अमलतास कहूँगा तो ज्यादा पैसे कैसे वसूल पाऊँगा इसलिये उसने गोल्डन राड कह दिया होगा। होटल मालिक को साफ हिदायत थी कि लाल कपडे मे बन्द सामग्री को खोलकर न देखे। वैसे होटल मालिक इसे खोल भी लेता तो अमलतास को शायद ही पहचान पाता। वास्तुशास्त्री ने सभी कमरो मे इसे रखवाने के लिये कुछ लाख रुपये लेने का प्रस्ताव रखा था। यह भी कहा गया था कि हर छै महिने मे इसे बदला जाना जरुरी है।
इस आधार पर मैने अपने शहर और दूसरे बडे शहरो मे वास्तुशास्त्रियो से सम्पर्क किया तो पता चला कि “गोल्डन राड माफिया” का जाल चारो ओर फैला हुआ है। देश भर से अमलतास की फल्लियाँ खरीदी जा रही है। इसी का दबाव हमारे जंगल भी झेल रहे है। अमलतास की बढती माँग एक ओर वनोपज संग्रह करने वालो को लाभांवित कर रही है दूसरी ओर अमलतास का प्रयोग रोजमर्रा के जीवन मे कर रहे पारम्परिक चिकित्सको को चिंतित कर रही है। चिंता तो मुझे भी बहुत हो रही है क्योकि यदि यह दौर जारी रहा तो अन्य वनस्पतियो की तरह अमलतास के वृक्ष भी जंगलो से गायब हो जायेंगे।
इसे रोकने के लिये क्या किया जा सकता है? मैने पारम्परिक चिकित्सको से लेकर पर्यावरणविदो और मित्रो से पूछा। सभी ने यह सलाह दी कि इस बारे मे जनता को सरल भाषा मे समझाया जाये और अनुरोध किया जाये कि वे वास्तुशास्त्री के चक्कर मे न पडे। यह उपाय मुझे अधिक कारगर नही लगता है क्योकि इस तरह के लेखो को कम पढा जाता है और फिर अन्ध-विश्वास की काली परत इतनी मोटी है कि वह एक लेख की धुलाई से शायद ही हटे। जब तक जनमत तैयार होगा तब तक देर हो चुकी होगी। मुझे लगता है कि अन्ध-विश्वास के विरुद्ध अलख जगा रही संस्थाए अब भारतीय कानून का सहारा लेकर इन वास्तुशास्त्रियो के आगे मोर्चा खोले। इन्हे खुलेआम चुनौती दी जाये ताकि इनके हौसले पस्त हो। वे इसका अनुमोदन बन्द करेंगे तो अपने आप अमलतास पर दबाव कम हो जायेगा। इसका सीधा असर होगा।
नया राज्य बनने के बाद छतीसगढ मे हवाई यातायात बहुत बढ गया है। तेज शोर के कारण आसमान की ओर तकने को मजबूर पारम्परिक चिकित्सक एक बढिया सुझाव देते है। वे कहते है कि ऐसे जंगली वृक्ष जो बीजो से बढते है और तेजी से खत्म होते जा रहे है उन्हे ये हवाई यातायात फैलने मे मदद कर सकता है। नाना-प्रकार के बीजो को एकत्र कर इन हवाई साधनो विशेषकर हेलीकाप्टर मे भर दिया जाये। जब ये जंगल के ऊपर से गुजरे तो बीजो को बिखरा दिया जाये। ऐसा करते रहने से कालांतर मे कुछ तो जंगल बचे रहेंगे। पारम्परिक चिकित्सक का सोचना सही है पर अफसोस, हमारे देश मे योजना बनाने का कार्य इनके हाथो मे नही है। (क्रमश:)
जंगली अमलतास
अमलतास के झालर
इसलिये ये “जंगल झरना” कहलाते है
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
“गोल्डन राड माफिया” के कारण खत्म होते जंगली अमलतास
आमतौर पर जंगलो मे दो तरह के अमलतास देखने को मिलते है। एक छोटे वृक्ष के रुप मे तो दूसरा बडे वृक्ष के रुप मे। दोनो के अपने-अपने पारम्परिक चिकित्सकीय उपयोग है। यह भी मजेदार बात है कि इनके प्रकारो को लेकर पारम्परिक चिकित्सक खेमो मे बँटे हुये है।शहरो मे जिस अमलतास को सजावटी पौधो के रुप मे लगाया जाता है उसे पारम्परिक चिकित्सक सन्देह से देखते है। इसलिये दवा के रुप मे उनका उपयोग नही करते है। अमलतास के बडे वृक्ष शहर मे नही मिलते है। यदि पहले किसी ने लगाये भी हो तो विकास के नाम पर उन्हे काट दिया गया है।
जंगल मे गर्मियो मे अमलतास अपनी विशेष छटा बिखेरते है। इस समय पलाश अपना प्रदर्शन खत्म कर चुके होते है। आम लोगो का ध्यान अमलतास के सुनहरे फूल ही खीचते है। साल भर इस ओर ध्यान ही नही जाता है। छत्तीसगढ मे अमलतास को धनबोहार या बेन्द्रा लाठी कहा जाता है। इसे जंगल झरना भी कहा जाता है। औषधि के रुप मे इसकी माँग होने के कारण इसके सभी पौध भागो का एकत्रण व्यापारी करवाते है। जिन वृक्षो के बीजो का एकत्रण होता है उनके जंगल मे फैलने की सम्भावना कम होती जाती है। पुराने वृक्ष रह जाते है। अब नये वृक्ष तो कोई लगाता नही। इससे धीरे-धीरे उनकी संख्या कम होती जाती है। अमलतास के साथ भी यही हो रहा है। उन भागो मे जहाँ जंगल के अन्दर खाद-पानी देकर इमारती लकडियो के लिये वन विभाग खेती कर रहा है वहाँ शहरो से बीज लाकर अमलतास की शहरी किस्मे लगायी जा रही है। पर तेजी से घट रही जंगली जातियो की ओर किसी का ध्यान नही है।
इस जंगल यात्रा के दौरान मुझे बताया गया कि बन्दर की लाठी की तरह दिखने वाले अमलतास की फल्लियो की माँग अचानक हाल के वर्षो मे बढी है। इस माँग के अचानक बढने को आमतौर पर नया पेटेंट और किसी बडी दवा कम्पनी द्वारा नये उत्पाद बनाने की तैयारी से जोड कर देखा जाता है। मैने अपने सम्पर्को से इस बारे मे जानने की कोशिश की तो पता चला कि ऐसा कोई नया पेटेंट या उत्पाद नही आया है। दिल्ली से कोलकाता तक के व्यापारियो ने दो टूक कह दिया कि हम तो उतना ही अमलतास खरीद रहे है जितना हम सालो से ले रहे है (इस बात की सम्भावना कम ही है कि वे सच बोल रहे हो।)। फिर अमलतास की बढती माँग का क्या कारण हो सकता है? इसका जवाब मुझे मुम्बई के एक सात सितारा होटल के मालिक के ई-मेल से मिला।
होटल मालिक को किसी जाने-माने (?) वास्तुशास्त्री ने कहा था कि होटल के हर कमरे मे गोल्डन राड रखने से मन्दी के कारण जो होटल व्यवसाय ठप्प हो रहा है वह सही राह पर आ जायेगा। होटल मालिक ने इंटरनेट पर मेरे आलेख देखे और मुझे सन्देश भेज दिया। साथ मे कूरियर से वास्तुशास्त्री द्वारा दिये गये गोल्डन राड का नमूना भेज दिया। कूरियर से जो बक्सा आया उसमे लाल कपडे मे लिपटी हुयी काले रंग की अमलतास की फली थी। कुछ चावल के दाने, सिन्दूर और हल्दी थी। इसमे गोल्डन अर्थात सुनहरा कुछ नही था। वैसे भी वनस्पति विज्ञान मे गोल्डन राड अमलतास को नही कहा जाता है। सालिडेगो सिम्प्लेक्स नामक सजावटी पौधा वास्तविक गोल्डन राड है। अब वास्तुशास्त्री ने सोचा होगा कि मै अमलतास कहूँगा तो ज्यादा पैसे कैसे वसूल पाऊँगा इसलिये उसने गोल्डन राड कह दिया होगा। होटल मालिक को साफ हिदायत थी कि लाल कपडे मे बन्द सामग्री को खोलकर न देखे। वैसे होटल मालिक इसे खोल भी लेता तो अमलतास को शायद ही पहचान पाता। वास्तुशास्त्री ने सभी कमरो मे इसे रखवाने के लिये कुछ लाख रुपये लेने का प्रस्ताव रखा था। यह भी कहा गया था कि हर छै महिने मे इसे बदला जाना जरुरी है।
इस आधार पर मैने अपने शहर और दूसरे बडे शहरो मे वास्तुशास्त्रियो से सम्पर्क किया तो पता चला कि “गोल्डन राड माफिया” का जाल चारो ओर फैला हुआ है। देश भर से अमलतास की फल्लियाँ खरीदी जा रही है। इसी का दबाव हमारे जंगल भी झेल रहे है। अमलतास की बढती माँग एक ओर वनोपज संग्रह करने वालो को लाभांवित कर रही है दूसरी ओर अमलतास का प्रयोग रोजमर्रा के जीवन मे कर रहे पारम्परिक चिकित्सको को चिंतित कर रही है। चिंता तो मुझे भी बहुत हो रही है क्योकि यदि यह दौर जारी रहा तो अन्य वनस्पतियो की तरह अमलतास के वृक्ष भी जंगलो से गायब हो जायेंगे।
इसे रोकने के लिये क्या किया जा सकता है? मैने पारम्परिक चिकित्सको से लेकर पर्यावरणविदो और मित्रो से पूछा। सभी ने यह सलाह दी कि इस बारे मे जनता को सरल भाषा मे समझाया जाये और अनुरोध किया जाये कि वे वास्तुशास्त्री के चक्कर मे न पडे। यह उपाय मुझे अधिक कारगर नही लगता है क्योकि इस तरह के लेखो को कम पढा जाता है और फिर अन्ध-विश्वास की काली परत इतनी मोटी है कि वह एक लेख की धुलाई से शायद ही हटे। जब तक जनमत तैयार होगा तब तक देर हो चुकी होगी। मुझे लगता है कि अन्ध-विश्वास के विरुद्ध अलख जगा रही संस्थाए अब भारतीय कानून का सहारा लेकर इन वास्तुशास्त्रियो के आगे मोर्चा खोले। इन्हे खुलेआम चुनौती दी जाये ताकि इनके हौसले पस्त हो। वे इसका अनुमोदन बन्द करेंगे तो अपने आप अमलतास पर दबाव कम हो जायेगा। इसका सीधा असर होगा।
नया राज्य बनने के बाद छतीसगढ मे हवाई यातायात बहुत बढ गया है। तेज शोर के कारण आसमान की ओर तकने को मजबूर पारम्परिक चिकित्सक एक बढिया सुझाव देते है। वे कहते है कि ऐसे जंगली वृक्ष जो बीजो से बढते है और तेजी से खत्म होते जा रहे है उन्हे ये हवाई यातायात फैलने मे मदद कर सकता है। नाना-प्रकार के बीजो को एकत्र कर इन हवाई साधनो विशेषकर हेलीकाप्टर मे भर दिया जाये। जब ये जंगल के ऊपर से गुजरे तो बीजो को बिखरा दिया जाये। ऐसा करते रहने से कालांतर मे कुछ तो जंगल बचे रहेंगे। पारम्परिक चिकित्सक का सोचना सही है पर अफसोस, हमारे देश मे योजना बनाने का कार्य इनके हाथो मे नही है। (क्रमश:)
जंगली अमलतास
अमलतास के झालर
इसलिये ये “जंगल झरना” कहलाते है
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Comments
वास्तुशास्त्र 90% अन्धविश्वास है। 10% इसलिए नहीं कह रहा कि इसके कुछ निर्देश उत्तरी गोलार्द्ध की architectural climatology के passive comfort concept से मिलते जुलते हैं।
ढेर सारा पढ़ गया इस ब्लॉग पर । बहुत ही उच्च कोटि का है। साधुवाद