ह्रदय रोगी, औषधीय धान और दुर्लभ ज्ञान
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-18
- पंकज अवधिया
दस जून, 2009
ह्रदय रोगी, औषधीय धान और दुर्लभ ज्ञान
जंगल मे कुछ दूर चलने पर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने मजाक मे कहा कि क्या आपको अस्सी साल के जवान से मिलना है? मैने हामी भरी तो उन्होने एक गाँव का रुख किया। दोपहर का समय था। गाँव सुनसान था। हम आधा गाँव घूम आये पर कोई नही दिखा। उन बुजुर्ग के घर मे पूछताछ की गयी तो पता चला कि जंगल गये है। हम उसी दिशा मे निकल पडे। जल्दी ही हमे वो मिल गये। परिचय हुआ। बातचीत का दौर चल पडा। उम्र के इस पडाव मे भी उनके बाल काले थे। दाँत सलामत थे। लकडी का बोझा उठाकर चल लेते थे। उस बोझे को मैने उठाने की कोशिश की तो वह टस से मस नही हुआ। बडी मुश्किल से दो लोग उठा पाये। यह जडी-बूटी का असर दिखता था। पर उन्होने दो टूक कह दिया कि मै भात और साग खाता है। जडी-बूटी के बारे मे जानता हूँ पर स्वयम कम ही सेवन करता हूँ। उन्हे तेलिया कंद की तलाश थी इसलिये हमसे विदा लेकर वे कुछ देर के लिये पास की पहाडी पर चले गये।
उनके जाने के बाद पारम्परिक चिकित्सक खुसुर-फुसुर करने लगे। फिर मेरे पास आकर एक स्वर मे बोले कि इनके पास एक विशेष धान है जिसमे औषधीय गुण है। वे इसे किसी को न देते है और न ही ज्यादा कुछ बताते है। यही धान उनकी अच्छी सेहत के लिये भी जिम्मेदार है। आप बात करे हो सकता है कि आपको कुछ जानकारी मिल जाये।
जब वे बुजुर्ग पहाड से लौटे तो उन्होने अपने घर चलकर लाल चाय पीने का निमंत्रण दिया। मैने ड्रायवर को भेजकर गाडी मे रखा तेन्दुफूल नामक औषधीय धान मंगवा लिया। अब खाली हाथ किसी के घर चाय पर जाना ठीक नही है। मैने यह धान उन्हे दिया तो उनकी आँखो मे चमक आ गयी। उन्होने इसके बारे मे सुना तो बहुत था और साथ ही इसे पाने की कोशिश भी की थी पर सफलता नही मिली थी। अब तेन्दुफल खुद गाडी मे सवार होकर उनके घर तक पहुँचा था। इन बीजो को बढाकर वे आगे कुछ सालो ने इतना धान पैदा कर लेंगे कि वे खुद खा सके और दूसरो को भी उपहार स्वरुप दे सके। मैने उन्हे बताया कि मै औषधीय धान से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ। फिर उन्हे विस्तार से मधुमेह की चिकित्सा मे प्रयोग होने वाले औषधीय धानो के विषय मे बताया। ये जानकारियाँ साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको के लिये भी नयी थी। वे ध्यान से सुन रहे थे। बुजुर्ग ने पूरी बात सुनी तो उन्हे अपने गोपनीय धान के विषय मे बताने का मन हुआ। वे अन्दर गये और कोठार से धान लेकर लौटे। उन्होने कहना शुरु किया,” ये मेरे सियानो की अमानत है। मै अभी तक इन बीजो को सम्भाल कर रखा हूँ। जिस खेत मे इसकी खेती करता हूँ वहाँ दूसरी फसल नही लगाता। परम्परागत खुर्रा बोनी करता हूँ। भगवान भरोसे खेती करता हूँ। चाहे कीडे आये या रोग, सरकारी दवा नही डालता हूँ। जितना उत्पादन होता है उसे साल भर पूरे परिवार के लिये उपयोग लाता हूँ। मेरे सियान इसके बारे मे बहुत से प्रयोग बता कर गये है पर ज्यादातर प्रयोग अब प्रचलन मे नही है। बडे लडके को कुछ बताया है पर उसकी रुचि इसमे नही है। यह जल्दी पकने वाला धान है। इसका स्वाद और रंग-रुप अच्छा नही है पर फिर भी चूँकि ये औषधि है इसलिये मै इसकी खेती मन लगाकर कर रहा हूँ। मै इसके साथ खेतो मे खरपतवार की तरह उग रही भाजियो को खाता हूँ और साल भर मजे से रहता हूँ।“ मैने पूछा कि इस औषधीय धान का नाम क्या है? उन्होने कहा कि नाम तो मुझे भी पता नही है। इस पर मैने उनका नाम पूछा।“अनंतराम” उनका जवाब आया। मैने उन्हे बताया कि मै जब इस औषधीय धान के विषय मे अपने डेटाबेस मे लिखूंगा तो इसका नाम “अनंतराम औषधीय धान” रखूंगा।
उनसे मुझे इस धान के दुर्लभ उपयोग के विषय मे जानकारी मिली। ह्रदय रोगियो के लिये उन्होने इस धान को उपयोगी बताया। उन्होने ऐसे रोगियो के लिये तीन सौ दिनो तक इस धान को खाने की विधि बतायी। पहले दिन रोगी गरम भात के रुप मे इसे अकेले खाये। दूसरे दिन इसे बनाते समय इसमे चार की छाल का सत्व डाले फिर सत्व युक्त गर्म भात रोगी को दिया जाये। तीसरे दिन कौहुआ की छाल का सत्व, फिर चौथे दिन महुआ की छाल, पाँचवे दिन रोहिना की छाल, छठवे दिन हर्रा की छाल, सातवे दिन गिन्धोल की छाल, ऐसे तीन सौ से अधिक वनस्पतियो के बारे मे विस्तार से जानकारी दी। जैसा कि आप जानते है मै कापी-पेन लेकर जंगल नही जाता। जो कुछ सुनता और देखता हूँ वह दिमाग मे रह जाता है। उस दिन जंगल से लौटने के बाद मै रात भर उनकी बतायी बातो को डेटाबेस मे डालता रहा। कुल सत्रह घंटो मे यह कार्य पूरा हुआ। अब मुझे उनसे एक बार फिर मिलकर यह सुनिश्चित करना है कि कही कोई गल्ती तो नही है। उन्होने बताया कि तीन सौ दिनो तक इस धान का प्रयोग सामान्य स्वास्थ्य के लिये भी वरदान है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। उन्होने दूसरे रोगो मे भी इसके प्रयोग के विषय मे बताया। उनके ज्ञान से अभिभूत होकर मैने उन्हे औषधीय धान पर तैयार की जा रही 250 जीबी से अधिक आकार की एक रपट को सरल भाषा मे समझाने का मन बना लिया। जब मैने यह प्रस्ताव उनके सामने रखा तो वे मुस्कुराकर बोले कि इतना सब जानकर मै क्या करुंगा? मै पारम्परिक चिकित्सक तो हूँ नही। आप ही इसे अगली पीढी के लिये सम्भाल कर रखे।
उन्होने मुझे उस औषधीय धान के कुछ बीज देने चाहे। मैने इंकार कर दिया। मैने अपने परिचित किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास औषधीय धानो के बीज रख छोडे है पर सभी पूरी सावधानी से उसे नही बढा रहे है। ऐसे मे मै एक और नया बीज लेकर क्या करुंगा? अनंतराम जिस ढंग से बरसो से इसे सम्भाल कर रखे हुये है, उसे देखकर तो लगता है कि बीज सही हाथो मे है। यह बीज बहुराष्ट्रीय कम्पनियो से बचा रहना चाहिये। क्लाइमेट चेंज का नारा बुलन्द करने वाले आजकल ऐसे परम्परागत बीजो की तलाश मे है जो विपरीत वातावरणीय परिस्थितियो मे भी उग सके (Climate resistant crops)। वे सीधे अनंतराम जैसे किसानो के कोठार पर धावा नही बोलेंगे। पहले वे पास के सरकारी शोध संस्थान के किसी वैज्ञानिक को एक प्रोजेक्ट देंगे। यह प्रोजेक्ट उस क्षेत्र के पारम्परिक किस्मो और उनसे जुडी जानकारियो के एकत्रण से सम्बन्धित होगा। अनंतराम से बलात ही बीज ले लिया जायेगा। फिर वह बीज रायपुर के शोध संस्थान मे पहुँचेगा। वहाँ से कटक के रास्ते फिलीपींस और फिर सीधे कलामेट चेंज वालो के पास। तब उस्का नाम “अनंतराम औषधीय धान” नही रह जायेगा। छत्तीसगढ से हजारो किस्मे इसी रास्ते से बाहर गयी है। आज भी ये जारी है।
मैने उन्हे धन्यवाद दिया और जल्दी ही वापस आने का वायदा कर आगे की राह पकडी। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक प्रसन्न थे। वे अनंतराम को दशको से जानते थे पर उन्होने कभी इस बारे मे किसी पारम्परिक चिकित्सक को नही बताया। आज जब वे खुले तो पूरे ज्ञान सागर को उडेल दिया और हम सब धन्य हो गये। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
दस जून, 2009
ह्रदय रोगी, औषधीय धान और दुर्लभ ज्ञान
जंगल मे कुछ दूर चलने पर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने मजाक मे कहा कि क्या आपको अस्सी साल के जवान से मिलना है? मैने हामी भरी तो उन्होने एक गाँव का रुख किया। दोपहर का समय था। गाँव सुनसान था। हम आधा गाँव घूम आये पर कोई नही दिखा। उन बुजुर्ग के घर मे पूछताछ की गयी तो पता चला कि जंगल गये है। हम उसी दिशा मे निकल पडे। जल्दी ही हमे वो मिल गये। परिचय हुआ। बातचीत का दौर चल पडा। उम्र के इस पडाव मे भी उनके बाल काले थे। दाँत सलामत थे। लकडी का बोझा उठाकर चल लेते थे। उस बोझे को मैने उठाने की कोशिश की तो वह टस से मस नही हुआ। बडी मुश्किल से दो लोग उठा पाये। यह जडी-बूटी का असर दिखता था। पर उन्होने दो टूक कह दिया कि मै भात और साग खाता है। जडी-बूटी के बारे मे जानता हूँ पर स्वयम कम ही सेवन करता हूँ। उन्हे तेलिया कंद की तलाश थी इसलिये हमसे विदा लेकर वे कुछ देर के लिये पास की पहाडी पर चले गये।
उनके जाने के बाद पारम्परिक चिकित्सक खुसुर-फुसुर करने लगे। फिर मेरे पास आकर एक स्वर मे बोले कि इनके पास एक विशेष धान है जिसमे औषधीय गुण है। वे इसे किसी को न देते है और न ही ज्यादा कुछ बताते है। यही धान उनकी अच्छी सेहत के लिये भी जिम्मेदार है। आप बात करे हो सकता है कि आपको कुछ जानकारी मिल जाये।
जब वे बुजुर्ग पहाड से लौटे तो उन्होने अपने घर चलकर लाल चाय पीने का निमंत्रण दिया। मैने ड्रायवर को भेजकर गाडी मे रखा तेन्दुफूल नामक औषधीय धान मंगवा लिया। अब खाली हाथ किसी के घर चाय पर जाना ठीक नही है। मैने यह धान उन्हे दिया तो उनकी आँखो मे चमक आ गयी। उन्होने इसके बारे मे सुना तो बहुत था और साथ ही इसे पाने की कोशिश भी की थी पर सफलता नही मिली थी। अब तेन्दुफल खुद गाडी मे सवार होकर उनके घर तक पहुँचा था। इन बीजो को बढाकर वे आगे कुछ सालो ने इतना धान पैदा कर लेंगे कि वे खुद खा सके और दूसरो को भी उपहार स्वरुप दे सके। मैने उन्हे बताया कि मै औषधीय धान से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ। फिर उन्हे विस्तार से मधुमेह की चिकित्सा मे प्रयोग होने वाले औषधीय धानो के विषय मे बताया। ये जानकारियाँ साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको के लिये भी नयी थी। वे ध्यान से सुन रहे थे। बुजुर्ग ने पूरी बात सुनी तो उन्हे अपने गोपनीय धान के विषय मे बताने का मन हुआ। वे अन्दर गये और कोठार से धान लेकर लौटे। उन्होने कहना शुरु किया,” ये मेरे सियानो की अमानत है। मै अभी तक इन बीजो को सम्भाल कर रखा हूँ। जिस खेत मे इसकी खेती करता हूँ वहाँ दूसरी फसल नही लगाता। परम्परागत खुर्रा बोनी करता हूँ। भगवान भरोसे खेती करता हूँ। चाहे कीडे आये या रोग, सरकारी दवा नही डालता हूँ। जितना उत्पादन होता है उसे साल भर पूरे परिवार के लिये उपयोग लाता हूँ। मेरे सियान इसके बारे मे बहुत से प्रयोग बता कर गये है पर ज्यादातर प्रयोग अब प्रचलन मे नही है। बडे लडके को कुछ बताया है पर उसकी रुचि इसमे नही है। यह जल्दी पकने वाला धान है। इसका स्वाद और रंग-रुप अच्छा नही है पर फिर भी चूँकि ये औषधि है इसलिये मै इसकी खेती मन लगाकर कर रहा हूँ। मै इसके साथ खेतो मे खरपतवार की तरह उग रही भाजियो को खाता हूँ और साल भर मजे से रहता हूँ।“ मैने पूछा कि इस औषधीय धान का नाम क्या है? उन्होने कहा कि नाम तो मुझे भी पता नही है। इस पर मैने उनका नाम पूछा।“अनंतराम” उनका जवाब आया। मैने उन्हे बताया कि मै जब इस औषधीय धान के विषय मे अपने डेटाबेस मे लिखूंगा तो इसका नाम “अनंतराम औषधीय धान” रखूंगा।
उनसे मुझे इस धान के दुर्लभ उपयोग के विषय मे जानकारी मिली। ह्रदय रोगियो के लिये उन्होने इस धान को उपयोगी बताया। उन्होने ऐसे रोगियो के लिये तीन सौ दिनो तक इस धान को खाने की विधि बतायी। पहले दिन रोगी गरम भात के रुप मे इसे अकेले खाये। दूसरे दिन इसे बनाते समय इसमे चार की छाल का सत्व डाले फिर सत्व युक्त गर्म भात रोगी को दिया जाये। तीसरे दिन कौहुआ की छाल का सत्व, फिर चौथे दिन महुआ की छाल, पाँचवे दिन रोहिना की छाल, छठवे दिन हर्रा की छाल, सातवे दिन गिन्धोल की छाल, ऐसे तीन सौ से अधिक वनस्पतियो के बारे मे विस्तार से जानकारी दी। जैसा कि आप जानते है मै कापी-पेन लेकर जंगल नही जाता। जो कुछ सुनता और देखता हूँ वह दिमाग मे रह जाता है। उस दिन जंगल से लौटने के बाद मै रात भर उनकी बतायी बातो को डेटाबेस मे डालता रहा। कुल सत्रह घंटो मे यह कार्य पूरा हुआ। अब मुझे उनसे एक बार फिर मिलकर यह सुनिश्चित करना है कि कही कोई गल्ती तो नही है। उन्होने बताया कि तीन सौ दिनो तक इस धान का प्रयोग सामान्य स्वास्थ्य के लिये भी वरदान है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। उन्होने दूसरे रोगो मे भी इसके प्रयोग के विषय मे बताया। उनके ज्ञान से अभिभूत होकर मैने उन्हे औषधीय धान पर तैयार की जा रही 250 जीबी से अधिक आकार की एक रपट को सरल भाषा मे समझाने का मन बना लिया। जब मैने यह प्रस्ताव उनके सामने रखा तो वे मुस्कुराकर बोले कि इतना सब जानकर मै क्या करुंगा? मै पारम्परिक चिकित्सक तो हूँ नही। आप ही इसे अगली पीढी के लिये सम्भाल कर रखे।
उन्होने मुझे उस औषधीय धान के कुछ बीज देने चाहे। मैने इंकार कर दिया। मैने अपने परिचित किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास औषधीय धानो के बीज रख छोडे है पर सभी पूरी सावधानी से उसे नही बढा रहे है। ऐसे मे मै एक और नया बीज लेकर क्या करुंगा? अनंतराम जिस ढंग से बरसो से इसे सम्भाल कर रखे हुये है, उसे देखकर तो लगता है कि बीज सही हाथो मे है। यह बीज बहुराष्ट्रीय कम्पनियो से बचा रहना चाहिये। क्लाइमेट चेंज का नारा बुलन्द करने वाले आजकल ऐसे परम्परागत बीजो की तलाश मे है जो विपरीत वातावरणीय परिस्थितियो मे भी उग सके (Climate resistant crops)। वे सीधे अनंतराम जैसे किसानो के कोठार पर धावा नही बोलेंगे। पहले वे पास के सरकारी शोध संस्थान के किसी वैज्ञानिक को एक प्रोजेक्ट देंगे। यह प्रोजेक्ट उस क्षेत्र के पारम्परिक किस्मो और उनसे जुडी जानकारियो के एकत्रण से सम्बन्धित होगा। अनंतराम से बलात ही बीज ले लिया जायेगा। फिर वह बीज रायपुर के शोध संस्थान मे पहुँचेगा। वहाँ से कटक के रास्ते फिलीपींस और फिर सीधे कलामेट चेंज वालो के पास। तब उस्का नाम “अनंतराम औषधीय धान” नही रह जायेगा। छत्तीसगढ से हजारो किस्मे इसी रास्ते से बाहर गयी है। आज भी ये जारी है।
मैने उन्हे धन्यवाद दिया और जल्दी ही वापस आने का वायदा कर आगे की राह पकडी। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक प्रसन्न थे। वे अनंतराम को दशको से जानते थे पर उन्होने कभी इस बारे मे किसी पारम्परिक चिकित्सक को नही बताया। आज जब वे खुले तो पूरे ज्ञान सागर को उडेल दिया और हम सब धन्य हो गये। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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