परलोक वाहन की ठोकर और बिजली बरसात मे भटकता कुंज
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-13
- पंकज अवधिया
बारह जून, 2009
परलोक वाहन की ठोकर और बिजली बरसात मे भटकता कुंज
सामने घना जंगल था। काले बादल आसमान पर थे। बिजली चमक रही थी। राहगीर गाँवो मे रुक गये थे। तेज अन्धड चल रहा था। ऐसे मे बीच जंगल मे हमारी गाडी चली जा रही थी। कुछ देर मे शाखाए गिरने लगी। हमारी गति कम हो गयी। जंगल मे चलते-चलते हम कुल्लु का वृक्ष भी ढूँढते जा रहे थे। अचानक जंगल मे एक व्यक्ति की छाया दिखायी दी। ब्रेक लगाया और ची इ इ ई की आवाज के साथ गाडी रुक गयी। क्या तुमने भी वही देखा जो मैने देखा? मैने ड्रायवर से पूछा। वह बोला कि हाँ, पीछे जंगल मे एक आदमी तो दिखा है। गाडी पीछे ली तो वह साफ-साफ दिखने लगा। अचानक बिजली कडकी और माहौल डरावना लगने लगा। गाडी को देखकर वह आदमी पास आ गया। उसने सोचा कि हम रास्ता न भटक गये हो। खिडकी खोली तो उसने गाडी के अन्दर झाँका। “अरे, डाक्टर साहब, नमस्कार।“ मै चौक पडा। मैने पूछा, “कौन? मै पहचान नही पाया।“ “मै कुंज, विश्वनाथ जी का पोता।“ उसने कहा।
विश्वनाथ जी से तो मिलने मै जा रहा था। वे पारम्परिक चिकित्सक है और जंगल का चप्पा-चप्पा जानते है। मै उनके साथ काफी समय तक रहा भी पर मैने कभी कुंज को वहाँ नही देखा। दरअसल विश्वनाथ जी के रोगियो से तंग आकर उनके बेटे ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अपने परिवार से दूर वे लोगो का इलाज करते और फक्कडी का जीवन जीते।
“साहब, दादा आपके बारे मे बहुत बताते थे। आपकी खीची तस्वीरो का सेट उनके पास था। वे जाते-जाते मुझे दे गये है।“कुंज की इन बातो से मेरी तन्द्रा टूटी। कुंज ने बताया कि वह पिताजी से विद्रोह करके दादा के पास आ गया और बहुत सा ज्ञान प्राप्त कर लिया। अब दादा के रोगी उसी के पास आते है। श्री विश्वनाथ अब उडीसा के घने जंगलो मे किसी आश्रम मे रहते है। वे अब शायद ही लौटे। कुंज की बात सुनकर अब मुझे उसका खराब मौसम मे बाहर निकलना आश्चर्यजनक नही लग रहा था। मैने अपने लेखो मे पहले लिखा है कि आसमानी बिजली से झुलसे वृक्ष पारम्परिक चिकित्सा मे बहुत उपयोगी माने जाते है। बिजली गिरने के बाद जितनी जल्दी प्रभावित वृक्ष के पास पहुँचे उतनी ही कारगर औषधि मिलती है। कुंज के दादा इस तरह के अनोखे प्रयोगो मे दक्ष है। उनके जाने के बाद अब यह कुंज की जिम्मेदारी थी। बिजली से प्रभावित वृक्ष तक पहुँचने के लिये पारम्परिक चिकित्सक बहुत जोखिम उठाते है। इस जोखिम के बदले उन्हे ऐसी औषधि मिलती है जो साल भर मे अनगिनत लोगो को राहत पहुँचा पाती है।
“कुंज, गाज से डर नही लगता?” मैने पूछा। “उसने वृक्षो की ओर इशारा करते हुये कहा कि बजरंगबली साथ मे है तो किस बात का डर? मैने उसकी अंगुली की दिशा मे देखा तो बहुत से बन्दर दिखायी दिये। आम लोगो की यह धारणा है कि आसमानी बिजली से बन्दर बचे रहते है। वे वृक्ष बदलते रहते है। कुंज भी उनका अनुसरण कर रहा था। “और साहब, हम लोगो को मान्यता कब मिलेगी? दादा कहते थे कि डाक्टर साहब से सम्पर्क मे रहना तो वे एक दिन जरुर पारम्परिक चिकित्सा को मान्यता दिलायेंगे।“ कुंज ने मेरे पुराने जख्म को कुरेद दिया। जब से मैने पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण शुरु किया है उससे पहले से ही मै पारम्परिक चिकित्सको को कानूनी मान्यता दिलाने की शपथ लिये हुये हूँ। कानूनी मान्यता की आस मे न जाने कितने साथी बिछुड गये पर अभी भी मान्यता दूर की कौडी नजर आती है। हमारे देशवासी इस पारम्परिक ज्ञान का मूल्य नही जानते है। वे विश्वास को अन्ध-विश्वास कहते है। विदेशी इस ज्ञान के पीछे दीवाने है पर पारम्परिक चिकित्सक के पक्ष मे कोई भी खडा नही होना चाहता है।
कुंज से मुलाकात ने मुझे तरोताजा कर दिया। सुबह जब मै अपनी गाडी से शहर के अन्दर ही था तब एक बडा हादसा होते-होते बचा। मै गाडी चला रहा था। ड्रायवर बगल की सीट मे बैठा था। शहर के अन्दर भीडभाड वाले इलाके मे जैसे ही मैने एक आटो को ओवरटेक करना चाहा भडाक से आवाज आयी है और मेरी खिडकी से सटकर एक दस चक्के का ट्रक निकला। इतना सट के कि शीशे के परखच्चे उड गये। मैने गाडी अन्दर की ओर कर ली और ट्रक की चपेट मे आने से बच गया। सब कुछ पलक झपकते ही हो गया। हमारे देखते ही देखते डगमगाता हुआ ट्रक नजरो से ओझल हो गया। हम बच तो गये पर गाडी का दरवाजा अटक गया। खरोच के निशान आ गये। ड्रायवर बाहर निकला पर ट्रक का नम्बर नोट नही कर पाया। मैने गाडी किनारे की। गाडी की बाडी पर असर था। गाडी सलामत थी। मैने बिना घर मे फोन किये सफर जारी रखने का मन बनाया। बार-बार मन मे लोगो की चेतावनी ध्यान मे आ रही थी। “आप वैज्ञानिक हो, दस तरह की बाते मन मे चलती रहती है, आप तो ड्रायविंग नही किया करो।“ और जाने क्या-क्या। ड्रायवर ने गाडी चलाने का अनुरोध किया तो मैने मना कर दिया। हम आगे बढे।
कुछ दूर चलने पर देखा कि एक जगह पर भीड लगी है। उस ट्रक ने एक जीप को ठोकर मारी थी। कुछ दूर पर दो और गाडियो से टकराने के बाद वह गायब हो गया था। जीप वाले को अस्पताल ले जाया जा रहा था। हम सौभाग्यशाली रहे। रात को जब लौटे तो वही ट्रक एक पुलिस थाने मे खडा दिखा। वह पकडा गया था। लोगो ने उसकी पिटाई की थी और उस पर मामला दर्ज किया जा चुका था। उसे अपने किये की सजा मिल गयी थी। रेत की ट्रको पर खेप पूरी करने का दबाव रहता है। जितनी अधिक खेप, उतने अधिक पैसे। इसी लालच मे वे शहरी लोगो की जान के दुश्मन बन जाते है।
कुंज के प्रश्न का जवाब मेरे पास नही था। मैने वही घिसा पिटा जवाब देकर उसे संतुष्ट करने का प्रयास किया। उससे विदा लेकर हम आगे बढे। हमे एक और पारम्परिक चिकित्सक से मिलना था। मै उनसे दस-बारह साल बाद मिलने जा रहा था। एक वनग्राम मे पहुँचने के बाद हमे वहाँ की फिजा बदली-बदली लगी। पारम्परिक चिकित्सक के घर के आस-पास नये घर बन गये थे। गाँव का नक्शा बदल गया था। बरामदे मे घुसते ही उनकी हार लगी तस्वीर देखकर मन बैठ गया। उनका लडका पूजा कर रहा था। मै बरामदे मे बैठकर उसकी प्रतीक्षा करने लगा फिर पैदल ही गाँव की गलियो मे निकल गया। लोगो से चर्चा हुयी। उन्होने बताया कि पारम्परिक चिकित्सक के गुजरने के बाद से अब रोगी कम आते है। लडके ने पिताजी से ज्यादा कुछ सीखा नही।
इस बीच खबर आयी कि लडके की पूजा समाप्त हो गयी है। मै घर आ गया। लडके ने पहचान लिया और फिर मेरे मुंडाये हुये सिर को देखकर बोला कि ये कैसे? कैंसर हो गया है क्या? मैने मुस्कुराकर कहा कि नही भाई, बालो को विशेष उपचार के लिये साफ किया है। उससे बात चल निकली। मुझे यह जानकर बडा ही दुख हुआ कि लडके ने जंगल जाना छोड दिया है। अब वह दुकान से दवाए खरीदकर रोगियो को देता है। क्रोसीन और एनासीन से उसकी आलमारी भरी पडी थी। मैने जंगल से लायी साधारण जडी-बूटी उसे दिखायी तो उसने हाथ जोड लिये। वह नही पहचान पाया। वह अपने को पारम्परिक चिकित्सक कहता है पर उसकी चिकित्सा मे परम्परा का नामोनिशान नही है। उसके पिता शायद उसे करीब से जानते थे। यही कारण है कि वे पारम्परिक चिकित्सा के सारे राज अपने साथ ले गये। उन्होने रक्त सम्बन्धी रोगो का गूढ ज्ञान मुझे दिया था जो अब दस्तावेज के रुप मे मेरे पास उपलब्ध है। मैने लडके को ये दस्तावेज देने चाहे तो उसने लेने से इंकार कर दिया। यह सब कुछ बडा ही दुखदायी था।
वापस लौटते समय ड्रायवर गाडी चलाता रहा और मै जंगल मे पारम्परिक चिकित्सको के साथ बिताये दिनो की याद मे खोया रहा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
बारह जून, 2009
परलोक वाहन की ठोकर और बिजली बरसात मे भटकता कुंज
सामने घना जंगल था। काले बादल आसमान पर थे। बिजली चमक रही थी। राहगीर गाँवो मे रुक गये थे। तेज अन्धड चल रहा था। ऐसे मे बीच जंगल मे हमारी गाडी चली जा रही थी। कुछ देर मे शाखाए गिरने लगी। हमारी गति कम हो गयी। जंगल मे चलते-चलते हम कुल्लु का वृक्ष भी ढूँढते जा रहे थे। अचानक जंगल मे एक व्यक्ति की छाया दिखायी दी। ब्रेक लगाया और ची इ इ ई की आवाज के साथ गाडी रुक गयी। क्या तुमने भी वही देखा जो मैने देखा? मैने ड्रायवर से पूछा। वह बोला कि हाँ, पीछे जंगल मे एक आदमी तो दिखा है। गाडी पीछे ली तो वह साफ-साफ दिखने लगा। अचानक बिजली कडकी और माहौल डरावना लगने लगा। गाडी को देखकर वह आदमी पास आ गया। उसने सोचा कि हम रास्ता न भटक गये हो। खिडकी खोली तो उसने गाडी के अन्दर झाँका। “अरे, डाक्टर साहब, नमस्कार।“ मै चौक पडा। मैने पूछा, “कौन? मै पहचान नही पाया।“ “मै कुंज, विश्वनाथ जी का पोता।“ उसने कहा।
विश्वनाथ जी से तो मिलने मै जा रहा था। वे पारम्परिक चिकित्सक है और जंगल का चप्पा-चप्पा जानते है। मै उनके साथ काफी समय तक रहा भी पर मैने कभी कुंज को वहाँ नही देखा। दरअसल विश्वनाथ जी के रोगियो से तंग आकर उनके बेटे ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अपने परिवार से दूर वे लोगो का इलाज करते और फक्कडी का जीवन जीते।
“साहब, दादा आपके बारे मे बहुत बताते थे। आपकी खीची तस्वीरो का सेट उनके पास था। वे जाते-जाते मुझे दे गये है।“कुंज की इन बातो से मेरी तन्द्रा टूटी। कुंज ने बताया कि वह पिताजी से विद्रोह करके दादा के पास आ गया और बहुत सा ज्ञान प्राप्त कर लिया। अब दादा के रोगी उसी के पास आते है। श्री विश्वनाथ अब उडीसा के घने जंगलो मे किसी आश्रम मे रहते है। वे अब शायद ही लौटे। कुंज की बात सुनकर अब मुझे उसका खराब मौसम मे बाहर निकलना आश्चर्यजनक नही लग रहा था। मैने अपने लेखो मे पहले लिखा है कि आसमानी बिजली से झुलसे वृक्ष पारम्परिक चिकित्सा मे बहुत उपयोगी माने जाते है। बिजली गिरने के बाद जितनी जल्दी प्रभावित वृक्ष के पास पहुँचे उतनी ही कारगर औषधि मिलती है। कुंज के दादा इस तरह के अनोखे प्रयोगो मे दक्ष है। उनके जाने के बाद अब यह कुंज की जिम्मेदारी थी। बिजली से प्रभावित वृक्ष तक पहुँचने के लिये पारम्परिक चिकित्सक बहुत जोखिम उठाते है। इस जोखिम के बदले उन्हे ऐसी औषधि मिलती है जो साल भर मे अनगिनत लोगो को राहत पहुँचा पाती है।
“कुंज, गाज से डर नही लगता?” मैने पूछा। “उसने वृक्षो की ओर इशारा करते हुये कहा कि बजरंगबली साथ मे है तो किस बात का डर? मैने उसकी अंगुली की दिशा मे देखा तो बहुत से बन्दर दिखायी दिये। आम लोगो की यह धारणा है कि आसमानी बिजली से बन्दर बचे रहते है। वे वृक्ष बदलते रहते है। कुंज भी उनका अनुसरण कर रहा था। “और साहब, हम लोगो को मान्यता कब मिलेगी? दादा कहते थे कि डाक्टर साहब से सम्पर्क मे रहना तो वे एक दिन जरुर पारम्परिक चिकित्सा को मान्यता दिलायेंगे।“ कुंज ने मेरे पुराने जख्म को कुरेद दिया। जब से मैने पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण शुरु किया है उससे पहले से ही मै पारम्परिक चिकित्सको को कानूनी मान्यता दिलाने की शपथ लिये हुये हूँ। कानूनी मान्यता की आस मे न जाने कितने साथी बिछुड गये पर अभी भी मान्यता दूर की कौडी नजर आती है। हमारे देशवासी इस पारम्परिक ज्ञान का मूल्य नही जानते है। वे विश्वास को अन्ध-विश्वास कहते है। विदेशी इस ज्ञान के पीछे दीवाने है पर पारम्परिक चिकित्सक के पक्ष मे कोई भी खडा नही होना चाहता है।
कुंज से मुलाकात ने मुझे तरोताजा कर दिया। सुबह जब मै अपनी गाडी से शहर के अन्दर ही था तब एक बडा हादसा होते-होते बचा। मै गाडी चला रहा था। ड्रायवर बगल की सीट मे बैठा था। शहर के अन्दर भीडभाड वाले इलाके मे जैसे ही मैने एक आटो को ओवरटेक करना चाहा भडाक से आवाज आयी है और मेरी खिडकी से सटकर एक दस चक्के का ट्रक निकला। इतना सट के कि शीशे के परखच्चे उड गये। मैने गाडी अन्दर की ओर कर ली और ट्रक की चपेट मे आने से बच गया। सब कुछ पलक झपकते ही हो गया। हमारे देखते ही देखते डगमगाता हुआ ट्रक नजरो से ओझल हो गया। हम बच तो गये पर गाडी का दरवाजा अटक गया। खरोच के निशान आ गये। ड्रायवर बाहर निकला पर ट्रक का नम्बर नोट नही कर पाया। मैने गाडी किनारे की। गाडी की बाडी पर असर था। गाडी सलामत थी। मैने बिना घर मे फोन किये सफर जारी रखने का मन बनाया। बार-बार मन मे लोगो की चेतावनी ध्यान मे आ रही थी। “आप वैज्ञानिक हो, दस तरह की बाते मन मे चलती रहती है, आप तो ड्रायविंग नही किया करो।“ और जाने क्या-क्या। ड्रायवर ने गाडी चलाने का अनुरोध किया तो मैने मना कर दिया। हम आगे बढे।
कुछ दूर चलने पर देखा कि एक जगह पर भीड लगी है। उस ट्रक ने एक जीप को ठोकर मारी थी। कुछ दूर पर दो और गाडियो से टकराने के बाद वह गायब हो गया था। जीप वाले को अस्पताल ले जाया जा रहा था। हम सौभाग्यशाली रहे। रात को जब लौटे तो वही ट्रक एक पुलिस थाने मे खडा दिखा। वह पकडा गया था। लोगो ने उसकी पिटाई की थी और उस पर मामला दर्ज किया जा चुका था। उसे अपने किये की सजा मिल गयी थी। रेत की ट्रको पर खेप पूरी करने का दबाव रहता है। जितनी अधिक खेप, उतने अधिक पैसे। इसी लालच मे वे शहरी लोगो की जान के दुश्मन बन जाते है।
कुंज के प्रश्न का जवाब मेरे पास नही था। मैने वही घिसा पिटा जवाब देकर उसे संतुष्ट करने का प्रयास किया। उससे विदा लेकर हम आगे बढे। हमे एक और पारम्परिक चिकित्सक से मिलना था। मै उनसे दस-बारह साल बाद मिलने जा रहा था। एक वनग्राम मे पहुँचने के बाद हमे वहाँ की फिजा बदली-बदली लगी। पारम्परिक चिकित्सक के घर के आस-पास नये घर बन गये थे। गाँव का नक्शा बदल गया था। बरामदे मे घुसते ही उनकी हार लगी तस्वीर देखकर मन बैठ गया। उनका लडका पूजा कर रहा था। मै बरामदे मे बैठकर उसकी प्रतीक्षा करने लगा फिर पैदल ही गाँव की गलियो मे निकल गया। लोगो से चर्चा हुयी। उन्होने बताया कि पारम्परिक चिकित्सक के गुजरने के बाद से अब रोगी कम आते है। लडके ने पिताजी से ज्यादा कुछ सीखा नही।
इस बीच खबर आयी कि लडके की पूजा समाप्त हो गयी है। मै घर आ गया। लडके ने पहचान लिया और फिर मेरे मुंडाये हुये सिर को देखकर बोला कि ये कैसे? कैंसर हो गया है क्या? मैने मुस्कुराकर कहा कि नही भाई, बालो को विशेष उपचार के लिये साफ किया है। उससे बात चल निकली। मुझे यह जानकर बडा ही दुख हुआ कि लडके ने जंगल जाना छोड दिया है। अब वह दुकान से दवाए खरीदकर रोगियो को देता है। क्रोसीन और एनासीन से उसकी आलमारी भरी पडी थी। मैने जंगल से लायी साधारण जडी-बूटी उसे दिखायी तो उसने हाथ जोड लिये। वह नही पहचान पाया। वह अपने को पारम्परिक चिकित्सक कहता है पर उसकी चिकित्सा मे परम्परा का नामोनिशान नही है। उसके पिता शायद उसे करीब से जानते थे। यही कारण है कि वे पारम्परिक चिकित्सा के सारे राज अपने साथ ले गये। उन्होने रक्त सम्बन्धी रोगो का गूढ ज्ञान मुझे दिया था जो अब दस्तावेज के रुप मे मेरे पास उपलब्ध है। मैने लडके को ये दस्तावेज देने चाहे तो उसने लेने से इंकार कर दिया। यह सब कुछ बडा ही दुखदायी था।
वापस लौटते समय ड्रायवर गाडी चलाता रहा और मै जंगल मे पारम्परिक चिकित्सको के साथ बिताये दिनो की याद मे खोया रहा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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