कान्हा मे राजीव गाँधी की यात्रा , सोन कुत्ते और जंगली तुअर

कान्हा मे राजीव गाँधी की यात्रा , सोन कुत्ते और जंगली तुअर

(मेरी कान्हा यात्रा-15)
- पंकज अवधिया


“जनप्रिय नेता माननीय राजीव गाँधी जब कान्हा आये थे तो उन्होने सोन कुत्ता देखने मे रुचि दिखायी। सोन कुत्तो को आसानी से देख पाना सम्भव नही है इसलिये एक “पाडा” बन्धवाया गया और तब जाकर सोन कुत्तो के दर्शन हो सके। पहले देशी-विदेशी मेहमानो के लिये पाडा और हाँका की व्यवस्था थी पर अब इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। भले इन दोनो का चलन बन्द हो गया हो पर अभी भी भले आम पर्यटको को बाघ न दिखे पर खास लोग को यह दिखा ही दिया जाता है।“ देर रात की चर्चा मे मुझे कान्हा के बारे मे दिलचस्प किस्से सुनायी पड रहे थे। मैने इन किस्सो पर दूसरे लेखको के विचार जानने के लिये इंटरनेट को खंगाल डाला पर कान्हा के बारे मे इतनी दिलचस्प जानकारी कही नही मिली।

कान्हा पर लिखी जा रही इस लेखमाला को कोई पढे या न पढे पर एनडीटीवी के माननीय रवीश जी अवश्य पढ रहे है। 3 जून, 2009 को दैनिक हिन्दुस्तान मे हिन्दी ब्लागो पर छपने वाले साप्ताहिक स्तंभ मे उन्होने “मेरी कान्हा यात्रा” के बारे मे लिखा। इस उत्साहवर्धन के लिये मै उनका आभारी हूँ। हिन्दी ब्लाग जगत की पहुँच वैश्वविक है। अमेरिका से आ रहे ढेरो सन्देश मुझ पर इस बात का जोर डाल रहे है कि इस लेखमाला को मै अंग्रेजी मे भी लिखूँ ताकि दुनिया भर के वन्य प्राणी प्रेमी विशेषकर नेशनल पार्क मे निरंतर सुधार करने वाले विशेषज्ञ इससे लाभांवित हो सके। इस पर विचार जारी है, पर चलिये अब कान्हा की ओर लौटते है।

अक्सर कान्हा मे सफारी के दौरान बाघ की तलाश मे भटकते सैलानी हिरणो को देखकर खीझने लगते है।“ वही हिरण, फिर वही हिरण, अरे, टाइगर-वाइगर दिखाओ जिसके लिये हम आये है इतनी दूर से।“ ऐसे वाक्य गाइडो को दिन मे कई बार सुनने पडते है। पर मुझे रुक-रुक कर हिरणो के झुंड की ढेरो तस्वीरे खीचता देखकर उन्होने कहा कि अभी तो बहुत छोटे झुंड है। पहले इससे कई गुना ज्यादा हिरण कान्हा की शान थे। मैने पूछा कि क्या ये अवैध शिकार के कारण कम हो गये? गाइड ने जवाब दिया कि इसके बहुत से कारण है। देर रात की चर्चा मे मुझे बताया गया कि पहले जंगली जानवरो के लिये महुआ और नमक फेकने की परम्परा थी। इससे उनकी संख्या मे बहुत तेजी से बढोतरी होती थी पर अब इस पर प्रतिबन्ध है। चर्चा करने वाले लोगो का कहना था कि भले ही कुछ समय के लिये पर इसे फिर से शुरु करना चाहिये। मै इस विषय से अंजान था इसलिये खामोश ही रहा।

“वो देखिये साहब, ये जंगली तुअर है। वही तुअर जिसकी दाल हम खाते है।“ कान्हा के भीतर एक कैम्प के पास मुझे जंगली राहर (या अरहर) के पौधे दिखाते हुये गाइड ने कहा। जंगल मे जंगली तुअर कहाँ से आयी होगी-यह प्रश्न मन मे आता है। पर दूसरे ही पल यह याद आ जाता है कि पार्क के अन्दर पहले इंसान रहते थे। पार्क बनने के बाद गाँवो को बाहर बसाया गया। झोपडियाँ उजड गयी पर खेत वैसे ही रहे। खेतो मे जंगली वनस्पतियो विशेषकर घासो ने कब्जा जमा लिया। किसान जिन पारम्परिक फसलो की खेती करते थे उनके कुछ बीज भी वही रह गये। ये बीज पौधो के रुप मे अभी भी अपना अस्तित्व बचाये हुये है। मुझे याद आता है कि कुछ वर्षो पहले हैदराबार मे बायोडीजल पर आयोजित एक सम्मेलन मे कान्हा क्षेत्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता से मुलाकात हुयी थी। उन्होने बताया था कि पारम्परिक फसलो के शुद्ध बीज आपको चाहिये तो कान्हा नेशनल पार्क के अन्दर से ही मिल पायेंगे। बाहर तो पारम्परिक फसलो का स्थान नयी फसले ले चुकी है। अन्दर अभी भी सब कुछ वैसे ही बचा हुआ है।

कान्हा यात्रा की इस लेखमाला पर पाठको की रुचि मुझे प्रेरित कर रही है कि मै इस छोटी यात्रा के हर पहलू पर लिखता जाऊँ। साथ ही एक बार फिर वहाँ जाकर कुछ और जानकारियाँ ले आऊँ।

कान्हा मे घास के मैदान

ऐसे होती थी खेती कान्हा के अन्दर

खेती वाले समय मे ऐसे थे जंगल कान्हा के

खटिया गेट पर लगे सूचना फलक

एक और सूचना फलक



(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित



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Capparis zeylanica as Allelopathic ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Typhoid Fever (He springs up from sleep affright),
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Careya arborea as Allelopathic ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Typhoid Fever (Nausea and vomiting due to intestinal causes),

Comments

बहुत सुंदर लिखा, कुदरत कूछ ना कुछ बचा कर ही रखती है, इंसान तो सब कुछ खोने पर तुला है
धन्यवाद
विचारपूर्ण आलेख। अच्छा पोस्ट।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
कान्हा के बारे में बहुत अच्छी लेख माला है यह। कान्हा मैं भी गया हूं, इसलिए जानता हूं कि वह कितनी सुंदर जगह है।

यदि कुछ और फोटो दे सकें तो पाठकों के लिए इस सुंदर जगह की कल्पना करना और भी आसान हो जाए।

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