एक नया कल्पवृक्ष, नये जंगली कीट और बारिश मे मारुति आल्टो
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-2
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
एक नया कल्पवृक्ष, नये जंगली कीट और बारिश मे मारुति आल्टो
“यह कल्पवृक्ष है। इसके नीचे ही देवी जी विराजमान है।“घने जंगल मे एक प्राचीन मन्दिर की पूरे मन से सेवा कर रहे एक पुजारी जी ने कहा। मैने वृक्ष को ध्यान से देखा और पहचानने की कोशिश की। फिर पूछा कि इसे कल्पवृक्ष क्यो कह रहे है? क्या यह वाकई पुराणो मे वर्णित कल्पवृक्ष है? इस पर वे बोले कि मै बचपन से इस वृक्ष की महत्ता के बारे मे सुनता आ रहा हूँ। इसके नीचे बैठने से समस्त मनोकामनाए पूरी होती है या नही, यह मै नही कह सकता पर इसका कोई भी भाग ऐसा नही है जो पारम्परिक औषधीय मिश्रणो मे नही डलता हो। दूर-दूर से पारम्परिक चिकित्सक आते है और इसके नीचे औषधीय वनस्पति युक्त पात्रो को रात भर गाड देते है। फिर औषधीय गुणो से सम्पन्न पात्रो को लेकर चले जाते है रोगियो को देने के लिये। कई बार लम्बे सम्य तक पात्रो को गाडा जाता है। बहुत से रोगियो को इस पेड के नीचे बैठने की सलाह दी जाती है। पहली वर्षा के समय विशेष पात्रो मे इसके ऊपरी भागो से बहकर आता हुआ जल एकत्र कर लिया जाता। इस जल का प्रयोग वर्षभर किया जाता है। ऐसा वृक्ष तो दूर-दूर तक नही है। इसलिये हम इसे कल्पवृक्ष कहते है।“ मैने उनकी बाते ध्यान से सुनी पर उनका यह कहना कि यह वृक्ष दूर-दूर तक नही पाया जाता है, सही नही लगा। मैने आस-पास घूमकर वस्तुस्थिति का पता लगाने का निश्चय किया।
मैने कई घंटो तक भ्रमण किया पर सचमुच मुझे वैसा दूसरा वृक्ष नही दिखा। यह आश्चर्य का विषय था। वे जिस वृक्ष को कल्पवृक्ष कह रहे थे वास्तव मे वह पाकर का पुराना वृक्ष था। पाकर के फल चिडियो द्वारा पसन्द किये जाते है और उन्ही के द्वारा फैलाये जाते है। ऐसे मे पाकर के वृक्ष आस-पास न दिखे, ऐसा सोचा भी नही जा सकता था। मनुष्यो ने अपनी बस्ती मे पीपल और बरगद को तो खूब सम्मान दिया पर पाकर को कम लोगो ने ही पसन्द किया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पारम्परिक चिकित्सा मे यदि पीपल और बरगद के उपयोगो को मिलाकर एक सूची तैयार की जाये तो वह पाकर के पारम्परिक उपयोगो के सामने छोटी दिखायी पडेगी। आधुनिक विज्ञान ने भी इस वृक्ष के साथ यही किया। पीपल और बरगद पर जमकर शोध हुये पर पाकर को भुला दिया गया। पाकर मनुष्यो की बस्ती से दूर जंगलो मे उगते रहे। माँ प्रकृति ने पाकर को जंगली जीवो के लिये छोड दिया। पर अब पाकर अचानक कम होते जा रहे है। यह अचानक शब्द मेरे लिये है क्योकि इस विशेष वृक्ष पर मेरी नजर केवल इसके उपयोगो तक सीमित थी। इनकी संख्या पर मैने गौर नही किया था। पर जब गौर करना शुरु किया तो लगा कि बहुत देर हो चुकी है। पाकर जलाउ लकडी के लिये काटे जा रहे है। “लकडी माफिया” ने इसे देखते ही देखते दुर्लभ बना दिया।
भ्रमण से लौटकर मैने पुजारी जी को वृक्ष की सही पहचान बतायी। इसके ढेरो सरल उपयोग बताये और उनसे नयी बाते जानी। वे मुझे वृक्ष के उस हिस्से मे ले गये जहाँ एक विशेष प्रकार का कीट छालो को नुकसान पहुँचा रहा था। उन्होने बताया कि ये रात को सक्रिय होते है और दिन मे वृक्ष के आस-पास की मिट्टी मे घुसे रहते है। मैने कीट की तस्वीरे ली। पाकर के कीटो पर बहुत कम शोध हुये है। मैने पुजारी जी से राख और मिट्टी तेल माँगा और फिर उन्हे मिलाकर मिश्रण को उस स्थान की मिट्टी मे मिला दिया जहाँ कीट थे। इस मिश्रण से कीट वृक्ष से दूर हो जायेंगे। मिश्रण मे ज्यादा समय तक रहने से उनकी मौत भी हो सकती है। मैने पुजारी जी से इस प्रक्रिया को कुछ सप्ताह तक दोहराते रहने को कहा ताकि वृक्ष को इनसे पूरी मुक्ति मिल सके। फलदार वृक्षो की जैविक खेती कर रहे किसान अक्सर यह सरल उपाय अपनाते है। मैने मिश्रण को मिलाते समय कुछ कीट भी एकत्र कर लिये। इन्हे गाडी मे रखे बक्सो मे सुरक्षित रख लिया। पाकर की छाल भी रख ली। ताकि इसे खाकर वे बक्से मे जीवित रहे, मेरी प्रयोगशाला पहुँचने तक।
प्रयोगशाला मैने अपने घर मे बना रखी है। मेरा सहायक बडा ही परेशान रहता है। खास तौर पर जब मै जंगल से कीट लेकर आता हूँ। उन्हे खाने-पिलाने मे बडी समस्या होती है। अब जंगली वृक्ष तो शहरो मे नही होते और रोज लम्बी दूरी तय करके पत्तियाँ या दूसरे पौध भाग लाना सम्भव नही है। ऐसे मे सहायक को ही काफी भाग-दौड करनी पडती है। मैने जंगल के पास के गाँवो मे स्थानीय लोगो से घर मे प्रयोगशाला आरम्भ करंने को कहता हूँ तो वे तैयार नही होते। आम लोगो मे कीटो के प्रति कम रुचि है। घर के दूसरे सदस्य भी कीटो को नापसन्द करते है। यह समस्या मेरे घर पर भी है। जंगली कीट विशेषकर वृक्षो पर आश्रित बीटल्स बडे होते है और आम लोग उनसे दूर भागते है। मै पाकर से एकत्र किये गये कीटो का जीवन-चक्र देखना चाहता हूँ। इनसे मेरी एक ओर रुचि भी जुडी है।
जैसा कि आप जानते है मै औषधीय कीटो पर भी काम करता हूँ। मै यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि कही पाकर से एकत्र किये गये ये कीट पारम्परिक चिकित्सा मे प्रयोग तो नही होते है। इसके लिये मुझे कीटो के नमूने लेकर विशेषज्ञ पारम्परिक चिकित्सको के पास जाना होगा। यदि सौभाग्य से ये उपयोगी कीट निकल गये तो फिर विस्तार से इनका अध्य्यन करना होगा। “करना होगा” इसे बाध्यता न समझे। यह मेरी रुचि है। इस सब के लिये अपनी जेब से ही रुपया खर्च होना है पर इस दौरान जो ज्ञान मिलेगा वह अमूल्य होगा।
अक्सर मै किराये के वाहन से जंगल जाना पसन्द करता हूँ पर इस बार मैने निज वाहन से जाने का मन बनाया। मेरे पास मारुति आल्टो है। योजना थी कि पास के गाँव मे गाडी खडा करके पैदल ही जंगल के अन्दर जायेंगे पर हमने जोखिम उठाया तो गाडी सहित जंगल के अन्दर पहुँच गये। जंगल सूखा था। शाखाए गिरी हुयी थी जिनसे बचकर कम गति से गाडी चलानी होती थी। शाम को जब हम लौटने लगे तो बारिश होने लगी। जंगल की मिट्टी गाडी के चक्को को जकड लेने के लिये बेताब थी। अन्धड मे सूखी टहनियाँ सामने के शीशो पर पत्थर की तरह बरस रही थी। पर हम निकल आये। यह अच्छा भी हुआ और नही भी। नही इसलिये क्योकि यदि जंगल मे फँसते तो एक नया अनुभव मिलता। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
एक नया कल्पवृक्ष, नये जंगली कीट और बारिश मे मारुति आल्टो
“यह कल्पवृक्ष है। इसके नीचे ही देवी जी विराजमान है।“घने जंगल मे एक प्राचीन मन्दिर की पूरे मन से सेवा कर रहे एक पुजारी जी ने कहा। मैने वृक्ष को ध्यान से देखा और पहचानने की कोशिश की। फिर पूछा कि इसे कल्पवृक्ष क्यो कह रहे है? क्या यह वाकई पुराणो मे वर्णित कल्पवृक्ष है? इस पर वे बोले कि मै बचपन से इस वृक्ष की महत्ता के बारे मे सुनता आ रहा हूँ। इसके नीचे बैठने से समस्त मनोकामनाए पूरी होती है या नही, यह मै नही कह सकता पर इसका कोई भी भाग ऐसा नही है जो पारम्परिक औषधीय मिश्रणो मे नही डलता हो। दूर-दूर से पारम्परिक चिकित्सक आते है और इसके नीचे औषधीय वनस्पति युक्त पात्रो को रात भर गाड देते है। फिर औषधीय गुणो से सम्पन्न पात्रो को लेकर चले जाते है रोगियो को देने के लिये। कई बार लम्बे सम्य तक पात्रो को गाडा जाता है। बहुत से रोगियो को इस पेड के नीचे बैठने की सलाह दी जाती है। पहली वर्षा के समय विशेष पात्रो मे इसके ऊपरी भागो से बहकर आता हुआ जल एकत्र कर लिया जाता। इस जल का प्रयोग वर्षभर किया जाता है। ऐसा वृक्ष तो दूर-दूर तक नही है। इसलिये हम इसे कल्पवृक्ष कहते है।“ मैने उनकी बाते ध्यान से सुनी पर उनका यह कहना कि यह वृक्ष दूर-दूर तक नही पाया जाता है, सही नही लगा। मैने आस-पास घूमकर वस्तुस्थिति का पता लगाने का निश्चय किया।
मैने कई घंटो तक भ्रमण किया पर सचमुच मुझे वैसा दूसरा वृक्ष नही दिखा। यह आश्चर्य का विषय था। वे जिस वृक्ष को कल्पवृक्ष कह रहे थे वास्तव मे वह पाकर का पुराना वृक्ष था। पाकर के फल चिडियो द्वारा पसन्द किये जाते है और उन्ही के द्वारा फैलाये जाते है। ऐसे मे पाकर के वृक्ष आस-पास न दिखे, ऐसा सोचा भी नही जा सकता था। मनुष्यो ने अपनी बस्ती मे पीपल और बरगद को तो खूब सम्मान दिया पर पाकर को कम लोगो ने ही पसन्द किया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पारम्परिक चिकित्सा मे यदि पीपल और बरगद के उपयोगो को मिलाकर एक सूची तैयार की जाये तो वह पाकर के पारम्परिक उपयोगो के सामने छोटी दिखायी पडेगी। आधुनिक विज्ञान ने भी इस वृक्ष के साथ यही किया। पीपल और बरगद पर जमकर शोध हुये पर पाकर को भुला दिया गया। पाकर मनुष्यो की बस्ती से दूर जंगलो मे उगते रहे। माँ प्रकृति ने पाकर को जंगली जीवो के लिये छोड दिया। पर अब पाकर अचानक कम होते जा रहे है। यह अचानक शब्द मेरे लिये है क्योकि इस विशेष वृक्ष पर मेरी नजर केवल इसके उपयोगो तक सीमित थी। इनकी संख्या पर मैने गौर नही किया था। पर जब गौर करना शुरु किया तो लगा कि बहुत देर हो चुकी है। पाकर जलाउ लकडी के लिये काटे जा रहे है। “लकडी माफिया” ने इसे देखते ही देखते दुर्लभ बना दिया।
भ्रमण से लौटकर मैने पुजारी जी को वृक्ष की सही पहचान बतायी। इसके ढेरो सरल उपयोग बताये और उनसे नयी बाते जानी। वे मुझे वृक्ष के उस हिस्से मे ले गये जहाँ एक विशेष प्रकार का कीट छालो को नुकसान पहुँचा रहा था। उन्होने बताया कि ये रात को सक्रिय होते है और दिन मे वृक्ष के आस-पास की मिट्टी मे घुसे रहते है। मैने कीट की तस्वीरे ली। पाकर के कीटो पर बहुत कम शोध हुये है। मैने पुजारी जी से राख और मिट्टी तेल माँगा और फिर उन्हे मिलाकर मिश्रण को उस स्थान की मिट्टी मे मिला दिया जहाँ कीट थे। इस मिश्रण से कीट वृक्ष से दूर हो जायेंगे। मिश्रण मे ज्यादा समय तक रहने से उनकी मौत भी हो सकती है। मैने पुजारी जी से इस प्रक्रिया को कुछ सप्ताह तक दोहराते रहने को कहा ताकि वृक्ष को इनसे पूरी मुक्ति मिल सके। फलदार वृक्षो की जैविक खेती कर रहे किसान अक्सर यह सरल उपाय अपनाते है। मैने मिश्रण को मिलाते समय कुछ कीट भी एकत्र कर लिये। इन्हे गाडी मे रखे बक्सो मे सुरक्षित रख लिया। पाकर की छाल भी रख ली। ताकि इसे खाकर वे बक्से मे जीवित रहे, मेरी प्रयोगशाला पहुँचने तक।
प्रयोगशाला मैने अपने घर मे बना रखी है। मेरा सहायक बडा ही परेशान रहता है। खास तौर पर जब मै जंगल से कीट लेकर आता हूँ। उन्हे खाने-पिलाने मे बडी समस्या होती है। अब जंगली वृक्ष तो शहरो मे नही होते और रोज लम्बी दूरी तय करके पत्तियाँ या दूसरे पौध भाग लाना सम्भव नही है। ऐसे मे सहायक को ही काफी भाग-दौड करनी पडती है। मैने जंगल के पास के गाँवो मे स्थानीय लोगो से घर मे प्रयोगशाला आरम्भ करंने को कहता हूँ तो वे तैयार नही होते। आम लोगो मे कीटो के प्रति कम रुचि है। घर के दूसरे सदस्य भी कीटो को नापसन्द करते है। यह समस्या मेरे घर पर भी है। जंगली कीट विशेषकर वृक्षो पर आश्रित बीटल्स बडे होते है और आम लोग उनसे दूर भागते है। मै पाकर से एकत्र किये गये कीटो का जीवन-चक्र देखना चाहता हूँ। इनसे मेरी एक ओर रुचि भी जुडी है।
जैसा कि आप जानते है मै औषधीय कीटो पर भी काम करता हूँ। मै यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि कही पाकर से एकत्र किये गये ये कीट पारम्परिक चिकित्सा मे प्रयोग तो नही होते है। इसके लिये मुझे कीटो के नमूने लेकर विशेषज्ञ पारम्परिक चिकित्सको के पास जाना होगा। यदि सौभाग्य से ये उपयोगी कीट निकल गये तो फिर विस्तार से इनका अध्य्यन करना होगा। “करना होगा” इसे बाध्यता न समझे। यह मेरी रुचि है। इस सब के लिये अपनी जेब से ही रुपया खर्च होना है पर इस दौरान जो ज्ञान मिलेगा वह अमूल्य होगा।
अक्सर मै किराये के वाहन से जंगल जाना पसन्द करता हूँ पर इस बार मैने निज वाहन से जाने का मन बनाया। मेरे पास मारुति आल्टो है। योजना थी कि पास के गाँव मे गाडी खडा करके पैदल ही जंगल के अन्दर जायेंगे पर हमने जोखिम उठाया तो गाडी सहित जंगल के अन्दर पहुँच गये। जंगल सूखा था। शाखाए गिरी हुयी थी जिनसे बचकर कम गति से गाडी चलानी होती थी। शाम को जब हम लौटने लगे तो बारिश होने लगी। जंगल की मिट्टी गाडी के चक्को को जकड लेने के लिये बेताब थी। अन्धड मे सूखी टहनियाँ सामने के शीशो पर पत्थर की तरह बरस रही थी। पर हम निकल आये। यह अच्छा भी हुआ और नही भी। नही इसलिये क्योकि यदि जंगल मे फँसते तो एक नया अनुभव मिलता। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Calophyllum inophyllum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (A tendency to apoplectic congestion),
Calotropis gigantea as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Stools and urine pass involuntary),
Calycopteris floribunda as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Loud, snoring respiration),
Camellia sinensis as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Suggillation),
Cananga odorata as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Muscular weakness),
Canangium odoratum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (The patient feels sore and bruised all
over),
Canarium strictum as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Suffers from chills and creeps which go down
the back),
Canavalia gladiata as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (The eye-lids are heavy),
Canavalia virosa as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Typhoid Fever (Trembling of tongue when attempting to
protrude it),
Canna indica as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Typhoid Fever (Tongue catches on the teeth many times),
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badhaai............
घुघूती बासूती