प्रेम लता का मोह पाश और जंगली सोता
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-6
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
प्रेम लता का मोह पाश और जंगली सोता
“वो देखिये, वो मोटे वृक्ष के नीचे, मोटी रस्सी जैसा, दिखा? अरे, मेरी अंगुली की दिशा मे देखिये, है ना? हाँ ,हाँ वही, चलो नीचे चलकर देखते है।“ कुछ स्थानीय लोग पहाड की चोटी पर चढकर नीचे घाटी की ओर इशारा कर रहे थे। उनका कहना था कि नीचे साजा के वृक्ष पर अजगर लिपटा हुआ है। पर वे पूरी तरह आश्वस्त नही थे। जिस स्थान की यह घटना वहाँ के लिये अजगर का ऐसे दिख जाना आम बात है। अभी की सारी हलचल तो मेरे लिये अजगर खोजना था ताकि मै तस्वीरे ले सकूँ। मै ठहरा जडी-बूटियो वाला। अजगर की तस्वीरे कम ही लेता हूँ। मैने लोगो से वनस्पतियाँ बताने को कहा पर वे तो अजगर खोजते रहे। आखिर तय हुआ कि घाटी मे उतरेंगे सीधी ढलान से। हम नीचे उतरने लगे। जैसे-जैसे हम उस वृक्ष के पास पहुँच रहे थे हमारी घडकने बढ रही थी। पर हमारे साथ कुछ शूरवीर थे। इनकी गाथा पहले सुने।
ये शूरवीर वे थे जो स्थानीय जंगलो मे अक्सर जाते रहते थे। एक बार पास की गहरी गुफा रात मे इन्हे अन्दर जाना था ताकि रात भर निशाचर पन्छियो का शिकार कर सके। गुफा के मुहाने पर एक मोटे अजगर ने डेरा जमाकर रखा था। आर-पार कुछ इस तरह पसरा था मानो किसी दूसरे को अन्दर नही जाने देना चाहता था। इन शूरवीरो ने बीच से अजगर को उठाया और गुफा के अन्दर घुस गये। रात भर अपने काम मे लगे रहे मशाल लेकर फिर जब सुबह वापस लौटे तो देखा कि अजगर रास्ता घेरकर बैठा है। अब तो निकल नही सकते थे। दिन भर वैसे ही फँसे रहे। उनके साथी जब उनकी तलाश मे निकले तब उन्हे वस्तुस्थिति का पता लगा। बहुत से लोगो ने मिलकर अजगर को सरकाया।
चलिये अब फिर उस ढलान पर चले जहाँ से हम उतर रहे थे। जैसे-जैसे हम पास आ रहे थे अजगर का रंग लाल-काला सा दिख रहा था। पास जाकर लोग चिल्लाये, “अरे ये अजगर नही है, कोई मोटी लता है।“ मैने इसकी पहचान प्रेम लता के रुप मे की। प्रेम लता यहाँ का स्थानीय नाम है। यह औषधीय वनस्पति है पर प्रेम से इसका औषधीय सम्बन्ध नही है। हाँ, हताश प्रेमी को क्षेत्र के तांत्रिक अवश्य यह सलाह देते है कि प्रेम लता के फूल शरीर मे मलकर खूब स्नान करे और फिर प्रेमिका के पास प्रणय निवेदन ले कर जाये। वे दावा करते है कि इससे लाभ होता है। इस दावे पर पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि प्रेमिका माने या न माने पर इस बहाने प्रेमी की त्वचा को लाभ तो हो ही जाता है। शरीर से बदबू जाती रहती है। प्रेमी अपने आप को तरोताजा मह्सूस करता है। हो सकता है इससे उसके प्रणय निवेदन के ढंग़ पर असर पडता हो। वैसे तांत्रिको के नियम बडे कठोर है। यदि इससे बात बन गयी तो प्रेमी को विवाह के बाद यहाँ आना पडता है और लता के सेवा करनी होती है। फिर बच्चा होने पर आना पडता है। इस तरह वह आजीवन इससे जुड जाता है। वैसे मुझे यह लता इस क्षेत्र मे बहुतायत मे दिखी। इसका अर्थ प्रेम की सुगन्ध इस भाग मे बिखरी है। इस बारे मे तांत्रिको का ज्ञान यही तक सीमित नही है, कोई जानना चाहे तो।
यदि दो प्रेमी है और एक प्रेमिका, तिस पर दोनो प्रेमी प्रेम लता का प्रयोग कर प्रेमिका के पास एक ही समय मे पहुँचे तो? तांत्रिक कहते है कि ऐसा कम ही होता है। पर ऐसे मे बारामासी नाले के पास उग रही प्रेम लता का असर अधिक होता है। पारम्परिक चिकित्सक औषधीय नजरिये से जल स्त्रोतो के पास उग रही प्रेम लता को औषधीय गुणो से परिपूर्ण मानते है। जिस बडे वृक्ष से लिपटकर यह उगती है उसकी भूमिका भी अहम होती है। मैने प्रेम लता पर जमकर काम किया है। पर अफसोस अपने कुँवारेपन के लिये मै इसका उपयोग नही कर पाया हूँ। मैने इससे स्नान किया है पर प्रणय निवेदन के लिये नही जा पाया। भरी गर्मी मे जब ड्रायवर एसी चलाकर जंगल मे चलता है तो मै जिद करके खिडकी खुलवा देता हूँ। लू लगती है पर कोरिया और प्रेम लता के फूलो की मादक खुशबू सारी थकान को गायब कर देती है।
अजगर न मिलने से निराश लोग फिर से उसकी तलाश मे जुट गये। जंगल के जिस निर्जन स्थान की बात मै कर रहा हूँ वहाँ पास के गाँव के लोग दिन मे आ जाते है। पर शाम होते ही वापस लौट जाते है। जंगल घना है और दिन मे ही जंगली जानवर दिख जाते है। यहाँ भीषण गर्मी मे जल के स्त्रोत सूख गये है, ऐसा ऊपर से प्रतीत होता है। पर घने जंगल मे जाने से पता चलता है कि माँ प्रकृति ने सबके लिये व्यवस्था रख छोडी है। इस निर्जन स्थान मे शंकर जी का छोटा सा मन्दिर है। वहाँ एक पुजारी चौबीसो घंटे अकेले रहते है। एक मरियल सा काले रंग का कुत्ता है उनके पास जिसके गले मे घंटी बन्धी है। जंगली जानवरो के साथ रहते हुए वह भी जंगली सा हो गया है। जब हम वहाँ पहुँचे तो उसने हमे भी जंगली जानवर की तरह ट्रीट किया।
पुजारी जी हमे नीचे एक सोते के पास ले कर गये। जहाँ से आधे घंटे मे आधा बाल्टी पानी रिसता था। इसी पानी पर वे गर्मियो मे निर्भर रहते है। दिन भर इस सोते मे जंगली जानवरो का आना लगा रहता है। जब हम पानी भर रहे थे तब हमे साफ अहसास हो रहा था कि बहुत से व्याकुल जीव आस-पास की झाडियो मे हमारे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जो बडे जीव थे उन्हे सोते के पास लम्बे समय तक रुकना पडता था। जितना अधिक समय उतना अधिक खतरा। सचमुच रोमाँचक अनुभव था वह।
पुजारी ने भक्तगणो से यह सोता बचाकर रखा है। शिकारियो को इस स्थान के बारे मे पता लग गया तो तो वे इस स्थान को इतना रक्तरंजीत कर देंगे कि पीढीयो तक सोते से पानी की जगह रक्त रिसता रहेगा। सारी गोपनियता के बाद भी गाँव के कुछ लोगो ने इसका पता लगा लिया है। वे इसे “गंगा कुंड” का नाम दे रहे है। साल मे दो बार यहाँ मेला लगता है। यदि इस नये-नवेले “गंगा कुंड” ने मान्यता प्राप्त कर ली तो कुंड ही बच जायेगा पानी नही रहेगा। पता नही तब गर्मियो मे वन्य जीव क्या करेंगे? (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
प्रेम लता का मोह पाश और जंगली सोता
“वो देखिये, वो मोटे वृक्ष के नीचे, मोटी रस्सी जैसा, दिखा? अरे, मेरी अंगुली की दिशा मे देखिये, है ना? हाँ ,हाँ वही, चलो नीचे चलकर देखते है।“ कुछ स्थानीय लोग पहाड की चोटी पर चढकर नीचे घाटी की ओर इशारा कर रहे थे। उनका कहना था कि नीचे साजा के वृक्ष पर अजगर लिपटा हुआ है। पर वे पूरी तरह आश्वस्त नही थे। जिस स्थान की यह घटना वहाँ के लिये अजगर का ऐसे दिख जाना आम बात है। अभी की सारी हलचल तो मेरे लिये अजगर खोजना था ताकि मै तस्वीरे ले सकूँ। मै ठहरा जडी-बूटियो वाला। अजगर की तस्वीरे कम ही लेता हूँ। मैने लोगो से वनस्पतियाँ बताने को कहा पर वे तो अजगर खोजते रहे। आखिर तय हुआ कि घाटी मे उतरेंगे सीधी ढलान से। हम नीचे उतरने लगे। जैसे-जैसे हम उस वृक्ष के पास पहुँच रहे थे हमारी घडकने बढ रही थी। पर हमारे साथ कुछ शूरवीर थे। इनकी गाथा पहले सुने।
ये शूरवीर वे थे जो स्थानीय जंगलो मे अक्सर जाते रहते थे। एक बार पास की गहरी गुफा रात मे इन्हे अन्दर जाना था ताकि रात भर निशाचर पन्छियो का शिकार कर सके। गुफा के मुहाने पर एक मोटे अजगर ने डेरा जमाकर रखा था। आर-पार कुछ इस तरह पसरा था मानो किसी दूसरे को अन्दर नही जाने देना चाहता था। इन शूरवीरो ने बीच से अजगर को उठाया और गुफा के अन्दर घुस गये। रात भर अपने काम मे लगे रहे मशाल लेकर फिर जब सुबह वापस लौटे तो देखा कि अजगर रास्ता घेरकर बैठा है। अब तो निकल नही सकते थे। दिन भर वैसे ही फँसे रहे। उनके साथी जब उनकी तलाश मे निकले तब उन्हे वस्तुस्थिति का पता लगा। बहुत से लोगो ने मिलकर अजगर को सरकाया।
चलिये अब फिर उस ढलान पर चले जहाँ से हम उतर रहे थे। जैसे-जैसे हम पास आ रहे थे अजगर का रंग लाल-काला सा दिख रहा था। पास जाकर लोग चिल्लाये, “अरे ये अजगर नही है, कोई मोटी लता है।“ मैने इसकी पहचान प्रेम लता के रुप मे की। प्रेम लता यहाँ का स्थानीय नाम है। यह औषधीय वनस्पति है पर प्रेम से इसका औषधीय सम्बन्ध नही है। हाँ, हताश प्रेमी को क्षेत्र के तांत्रिक अवश्य यह सलाह देते है कि प्रेम लता के फूल शरीर मे मलकर खूब स्नान करे और फिर प्रेमिका के पास प्रणय निवेदन ले कर जाये। वे दावा करते है कि इससे लाभ होता है। इस दावे पर पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि प्रेमिका माने या न माने पर इस बहाने प्रेमी की त्वचा को लाभ तो हो ही जाता है। शरीर से बदबू जाती रहती है। प्रेमी अपने आप को तरोताजा मह्सूस करता है। हो सकता है इससे उसके प्रणय निवेदन के ढंग़ पर असर पडता हो। वैसे तांत्रिको के नियम बडे कठोर है। यदि इससे बात बन गयी तो प्रेमी को विवाह के बाद यहाँ आना पडता है और लता के सेवा करनी होती है। फिर बच्चा होने पर आना पडता है। इस तरह वह आजीवन इससे जुड जाता है। वैसे मुझे यह लता इस क्षेत्र मे बहुतायत मे दिखी। इसका अर्थ प्रेम की सुगन्ध इस भाग मे बिखरी है। इस बारे मे तांत्रिको का ज्ञान यही तक सीमित नही है, कोई जानना चाहे तो।
यदि दो प्रेमी है और एक प्रेमिका, तिस पर दोनो प्रेमी प्रेम लता का प्रयोग कर प्रेमिका के पास एक ही समय मे पहुँचे तो? तांत्रिक कहते है कि ऐसा कम ही होता है। पर ऐसे मे बारामासी नाले के पास उग रही प्रेम लता का असर अधिक होता है। पारम्परिक चिकित्सक औषधीय नजरिये से जल स्त्रोतो के पास उग रही प्रेम लता को औषधीय गुणो से परिपूर्ण मानते है। जिस बडे वृक्ष से लिपटकर यह उगती है उसकी भूमिका भी अहम होती है। मैने प्रेम लता पर जमकर काम किया है। पर अफसोस अपने कुँवारेपन के लिये मै इसका उपयोग नही कर पाया हूँ। मैने इससे स्नान किया है पर प्रणय निवेदन के लिये नही जा पाया। भरी गर्मी मे जब ड्रायवर एसी चलाकर जंगल मे चलता है तो मै जिद करके खिडकी खुलवा देता हूँ। लू लगती है पर कोरिया और प्रेम लता के फूलो की मादक खुशबू सारी थकान को गायब कर देती है।
अजगर न मिलने से निराश लोग फिर से उसकी तलाश मे जुट गये। जंगल के जिस निर्जन स्थान की बात मै कर रहा हूँ वहाँ पास के गाँव के लोग दिन मे आ जाते है। पर शाम होते ही वापस लौट जाते है। जंगल घना है और दिन मे ही जंगली जानवर दिख जाते है। यहाँ भीषण गर्मी मे जल के स्त्रोत सूख गये है, ऐसा ऊपर से प्रतीत होता है। पर घने जंगल मे जाने से पता चलता है कि माँ प्रकृति ने सबके लिये व्यवस्था रख छोडी है। इस निर्जन स्थान मे शंकर जी का छोटा सा मन्दिर है। वहाँ एक पुजारी चौबीसो घंटे अकेले रहते है। एक मरियल सा काले रंग का कुत्ता है उनके पास जिसके गले मे घंटी बन्धी है। जंगली जानवरो के साथ रहते हुए वह भी जंगली सा हो गया है। जब हम वहाँ पहुँचे तो उसने हमे भी जंगली जानवर की तरह ट्रीट किया।
पुजारी जी हमे नीचे एक सोते के पास ले कर गये। जहाँ से आधे घंटे मे आधा बाल्टी पानी रिसता था। इसी पानी पर वे गर्मियो मे निर्भर रहते है। दिन भर इस सोते मे जंगली जानवरो का आना लगा रहता है। जब हम पानी भर रहे थे तब हमे साफ अहसास हो रहा था कि बहुत से व्याकुल जीव आस-पास की झाडियो मे हमारे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जो बडे जीव थे उन्हे सोते के पास लम्बे समय तक रुकना पडता था। जितना अधिक समय उतना अधिक खतरा। सचमुच रोमाँचक अनुभव था वह।
पुजारी ने भक्तगणो से यह सोता बचाकर रखा है। शिकारियो को इस स्थान के बारे मे पता लग गया तो तो वे इस स्थान को इतना रक्तरंजीत कर देंगे कि पीढीयो तक सोते से पानी की जगह रक्त रिसता रहेगा। सारी गोपनियता के बाद भी गाँव के कुछ लोगो ने इसका पता लगा लिया है। वे इसे “गंगा कुंड” का नाम दे रहे है। साल मे दो बार यहाँ मेला लगता है। यदि इस नये-नवेले “गंगा कुंड” ने मान्यता प्राप्त कर ली तो कुंड ही बच जायेगा पानी नही रहेगा। पता नही तब गर्मियो मे वन्य जीव क्या करेंगे? (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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maan ko chhu gai
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }