एंटी-एजिंग गुणो वाली खपरा भाजी और भिम्भौरा की मिट्टी

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-11
- पंकज अवधिया
दस जून, 2009

एंटी-एजिंग गुणो वाली खपरा भाजी और भिम्भौरा की मिट्टी


“रोक लो, रोक लो। एक और भिम्भौरा। यही रुको मै अन्दर जाकर तस्वीर लेकर आता हूँ।“जब भी मै भिम्भौरा या दीमक की बाम्बी के पास ऐसे गाडी रुकवाता हूँ तो मेरे साथ चल रहे लोग खीझ उठते है। “कैसा वैज्ञानिक है? जब देखो तक भिम्भौरा की ही तस्वीरे लेता रहता है। अभी-अभी तो दस तस्वीरे ली थी। अब फिर गाडी रुकवा रहा है।“ ऐसी जाने क्या-क्या बाते उनके मन मे चलती रहती है। पर मेरा तस्वीरे लेना कम नही होता है। भिम्भौरा चाहे बडे हो या छोटे अपने आप मे काफी जानकारियाँ समेटे हुये होते है।

भिम्भौरा यदि छोटा हो तो गाडी मे बैठे-बैठे ही पता लग जाता है कि आस-पास रेतीली मिट्टी है। क्योकि रेत के महल बडे नही होते है। यदि भिम्भौरा बहुत ऊँचा होता है तो उस जगह बरसात मे चलने की हम सोच भी नही सकते है। कोशिश रहती है कि कैसे भी पानी गिरने से पहले उस स्थान से गाडी बाहर आ जाये। एक बार ऐसे स्थानो मे गाडी फँसी नही कि लेने के देने पड जाते है। जितना गाडी को बाहर निकालो उतनी और फँसती जाती है। भिम्भौरा को भूमिगत जल का सूचक भी माना जाता है। आधुनिक शोध इस बात की पुष्टि करते है कि जहाँ पुराना भिम्भौरा होता है वहाँ भूमिगत जल होता ही है। भिम्भौरा दीमक का घर होता है। जंगलो मे टूटे हुये भिम्भौरा अक्सर दिख जाते है। इससे हम इस बात का अनुमान लगा लेते है कि यहाँ भालूओ का आना-जाना है। भिम्भौरा की तोड-फोड भोजन की तलाश मे भालू करते है। आमतौर पर भिम्भौरा से लोग दूर ही रहते है। यह माना जाता है कि यहाँ विषैले साँप रहते है। यह बात गलत भी नही है। मुझे तस्वीरे लेता देखकर अक्सर स्थानीय लोग दूरी बनाये रखने की सलाह देते है।

शहरो मे जब दीमक का प्रकोप बढ जाता है तो विशेषज्ञ भिम्भौरा खोजते है। भिम्भौरा मे दीमक की रानी होती है जो बडी संख्या मे बच्चे देती रहती है। घरो के अन्दर आप दीमको पर जितना भी अंकुश लगा ले जब तक भिम्भौरा रहेगा और रानी जिन्दा रहेगी, समस्या का हल नही निकलेगा। पेस्ट कंट्रोल वाले दीमको को तो मारते है पर कभी भी रानी को नही मारते है। इससे साल दर साल उन्हे दीमक मारने का ठेका मिलता रहता है। शहरी इलाको मे दीमक के समूल नाश के लिये रानी को खत्म किया जाता है। इसके लिये बडे भिम्भौरा की तलाश की जाती है। फिर उसके सभी प्रवेश मार्गो को बन्द करके उसमे फास्फीन गैस छोडी जाती है। इससे हजारो की संख्या मे दीमक और उनकी रानी का नाश हो जाता है। भिम्भौरा के अन्दर रहने वाले साँप भी मर जाते है।

मैने इस जंगल यात्रा मे बहुत से ऊँचे भिम्भौरा देखे। मैने उनकी तस्वीरे तो ली ही साथ ही उनकी मिट्टी भी एकत्र कर ली। पारम्परिक चिकित्सा मे भिम्भौरा की मिट्टी का विशेष महत्व है। इसका प्रयोग बाहरी और आँतरिक तौर पर औषधि के रुप मे होता है। भले ही सारे भिम्भौरा एक जैसे दिखे पर पारम्परिक चिकित्सक भिम्भौरो को सौ से अधिक प्रकारो मे बाँटते है। साधारण जुकाम से लेकर कैंसर जैसे जटिल रोग की चिकित्सा मे नाना प्रकार के भिम्भौरा से एकत्र की गयी मिट्टी के प्रयोग से रोगियो की जान बचायी जाती है। मैने अभी तक देश भर मे नाना प्रकार के भिम्भौरा की दस हजार से अधिक तस्वीरे खीची है। सबकी अपनी कहानी है। विशेष वनस्पतियो के पास बने ऊँचे भिम्भौरा से मिट्टी एकत्र करके पारम्परिक चिकित्सक उसे उन पारम्परिक मिश्रणो मे मिलाते है जो कि जटिल होते है। जटिल यानि जिनमे दो सौ से ज्यादा वनस्पतियो का प्रयोग किया जाता है। ऐसे मिश्रण भिम्भौरा की मिट्टी के बिना अधूरे माने जाते है। मुझे याद आता है कि उत्तरी छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सको ने कुछ वर्षो पहले इस तरह के भिम्भौरा का जिक्र करते हुये कहा था कि जब भी अवसर मिले मै उनके लिये यह विशेष मिट्टी लेकर आऊँ। उन्होने एक मंत्र भी दिया था। भिम्भौरा के सामने खडे होकर पहले इसे पढना था फिर हाथ जोडकर भिम्भौरा को प्रणाम करना था। उसके बाद ही लकडी से मिट्टी खोदना था।

मैने बतायी गयी विधि अपनायी। मुझे मंत्र दोहराता देखकर तिहारु ने मजाक मे कहा कि आप भी बैगाई जानते है क्या साहब? मंत्र पर मेरा विश्वास कुछ कम है पर यदि मै सही विधि नही अपनाऊँगा तो पारम्परिक चिकित्सक मुझसे यह उपहार स्वीकार नही करेंगे। मैने मिट्टी एकत्र की और उसे लाल कपडे मे रख लिया। अब जल्दी ही मै उत्तरी छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सको से मिलने की कोशिश करुंगा।

तिहारु ने भिम्भौरा मे मेरी रुचि देखकर बताया कि इन पर बहुत सी वनस्पतियाँ उगती है। इस ऊँचे भिम्भौरा से एकत्र की गयी खपरा भाजी का प्रयोग इस क्षेत्र के पारम्परिक चिकित्सक रोगियो की जीवनी शक्ति बढाने के लिये करते है। खपरा भाजी से मुझे बस्तर के पारम्परिक चिकित्सको की याद आ गयी। प्रसव के बाद कम जीवनी शक्ति वाली महिला को वे इसी खपरा भाजी को खाने की सलाह देते है। साथ मे हल्दी युक्त औषधीय चावल भी दिया जाता है। भिम्भौरा से एकत्र की गयी मिट्टी मे वनस्पतियाँ मिलाकर सरसो तेल के साथ लेप बनाया जाता है। फिर इस लेप को महिला के तलवो पर खूब देर तक मला जाता है। खपरा भाजी से मुझे उत्तरी छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सक भी याद आते है जो इस भाजी के साथ दूसरी वनस्पतियो को पानी मे उबालकर भाप को ज्वर के कारण पीडा सह रहे रोगी की ओर छोडते है। फिर ज्वर उतर जाने के बाद भिम्भौरा की मिट्टी को मल-मल कर स्नान करने की सलाह देते है। तिहारु की बातो से तो सारा का सारा “खपरा-पुराण” याद आ गया।

अपनी एंटी-एजिंग प्रापर्टी के कारण खपरा भाजी पर देश-विदेश मे बहुत अनुसन्धान हुये है पर ज्यादातर शोधकर्ताओ ने व्यापारियो से खपरा भाजी खरीदी और प्रयोग किये। यदि वे स्वयम जंगल मे जाते और पारम्परिक विधियो के अनुसार इसे एकत्र करते तो वे सही मायने मे इसके दिव्य औषधीय गुणो को जान पाते। (क्रमश:)

भिम्भौरा

ग्रामीण जिसने भिम्भौरा की मिट्टी एकत्र करने मे मदद की

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Bhuwan said…
बेहद उम्दा और ज्ञानवर्धक आलेख... आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ. इससे पहले आर्निका वाली पोस्ट भी बढ़िया थी. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
शुभकामनायें.
- भुवन वेणु
लूज़ शंटिंग
Gyan Darpan said…
बेहद उम्दा और ज्ञानवर्धक
अच्छी जानकारी है ये खपरा भाजी भिन्भोरा मिटटी का क्या कोई अन्य नाम भी है क्या?

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