भालू के साथ बकरियो सी मे-मे और पुजारी जी की बाते
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-7
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
भालू के साथ बकरियो सी मे-मे और पुजारी जी की बाते
“पर सोयेंगे कहाँ? यहाँ तो कोई झोपडी भी नही है। क्या हम सब भगवान के इस मन्दिर मे समा जायेंगे?” घने जंगल मे जब मन्दिर के पुजारी ने हमसे रात वही रुकने का अनुरोध किया तो मैने ये प्रश्न पूछे। उन्होने कहा कि भगवान के मन्दिर मे तो एक नाग रहता है। मै उसको नही छेडता। इसलिये वहाँ नही सोयेंगे। वहाँ पास ही कुसुम का पेड है। उससे कुछ दूरी पर खुले आसमान के नीचे सोयेंगे। देखियेगा, रात को ऐसी नीन्द आयेगी कि आप जीवन भर याद रखेंगे। ऐसा सुकून कितने भी पैसे बरबाद कर ले, नही मिलेगा। पुजारी जी की बात मे दम था पर घने जंगल मे खुले आसमान के नीचे बिना सुरक्षा के खाट पर सोने का दम न मुझमे था न ही मेरे ड्रायवर के पास। वह बोल पडा, “और रात को जंगली जानवर आ गये तो।“ पुजारी जी बोले कुछ दिन पहले एक तेन्दुआ आ गया था। मै तो गहरी नीन्द मे था। मेरा यह काला कुत्ता पास कर कूँ-कूँ करने लगा। मैने टार्च जलाकर इधर-उधर देखा तो कुछ ही दूर पर दो आँखे दिखी। वह तेन्दुआ ही था। उसके इरादे नेक नही थे। मैने झट से माचिस जलायी और पास की पडे पुआल के ढेर मे आग लगा दी। इस आग से वह चौका पर भागा नही। आजकल सडको मे इतनी गाडियाँ चलती है कि इन्हे रौशनी की आदत होती जा रही है। मैने कुछ आग उसकी ओर फेकी तब जाकर वह दूर हटा।
पुजारी जी के साथ घटी ये घटना रोंगटे खडे करने वाली थी। हम उनके फैन हो गये जब उन्होने बताया कि पिछली रातो से मै वैसे ही सो रहा हूँ। तेन्दुए से कोई डर नही है पर भालू आ गये तो मुश्किल हो जायेगी। पास के डोंगर मे भालू का गढ है। यूँ तो वे इस ओर नही आते पर स्वभाव से भालू जिज्ञासु होते है। मेले के दिनो मे श्रद्धालुओ के जाने के बाद कचरे के आस-पास मैने भालूओ को बहुत बार देखा है-पुजारी जी ने बताया। मैने पूछा कि भालू से बचने का कोई जमीनी ज्ञान दीजिये। वे बोले कि भालू के आने पर बकरी की मे-मे आवाज निकाले। वह इस अजीब आवाज से डर कर लौट जायेगा। हमे विश्वास नही हुआ। अब हर बात का कारण जाने बिना उस पर जल्दी से विश्वास जो नही होता है।
इस प्रयोग को आजमाने का मौका हमे लौटते वक्त मिल गया। हम मारुति आल्टो मे थे। जंगल के रास्ते से बाहर आ रहे थे। मारुति आल्टो यानि जमीन से करीब रहने वाले लोग। एक छोटा से भालू ने हमारा रास्ता काटा तो गाडी की सीट से वह विशालकाय दिखा। मैने हिम्मत करके खिडकी का शीशा नीचा किया और मे-मे की आवाज निकाली। ड्रायवर विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिये पूरी तरह मुस्तैद था। भालू हमारी ओर आता तो हम चम्पत हो जाते। मे-मे, मे-मे, काफी देर करने के बाद भालू ने सिर उठाकर हमे ऐसे देखा कि हम शरम से पानी-पानी हो गये। इंसान होकर बकरियो-सी मे-मे? उसकी नजरो मे अच्छे भाव नही थे। हमने वहाँ से आगे बढने मे ही भलाई समझी।
पुजारी जी के साथ हम रात गुजारने के लिये इसलिये तैयार न हो सके क्योकि हमे लगा कि अन्धेरा होने के बाद हम करेंगे क्या? नाइट विजन वाले कैमरे होते तो कुछ बात बनती। तीन लोग की बजाय कुछ ज्यादा लोग होते और रात को अलाव जलाकर शिकारो और भूतो के किस्से होते और इस बीच किसी को लघु-शंका के लिये कुछ दूर जाना पडता, ऐसी रोमाँचक रात गुजारने का आनन्द ही कुछ और है। पुजारी जी के बारे मे गाँव मे कुछ लोगो ने कहा कि वह पाखंडी है। पर सबने यह माना कि समाज से दूर अकेले सालो से यह शख्स जंगल मे पडा हुआ है। बरसात मे कई हफ्तो तक उनसे सम्पर्क कटा होता है। ऐसे मे भी वे साधना मे लीन रहते है। शराब और गाँजे से दूर है। ऐसा जीवन जीने के लिये बहुत ही कठिन प्रण चाहिये। उनका मजाक उडाना सहज है पर उनके साथ विपरीत परिस्थितियो मे एक दिन भी रहना मुश्किल है। मैने उनसे अगली यात्रा के दौरान शहर से कुछ लाने की बात कही तो बडे ही संकोच से बोले कि हो सके तो सत्तू ले आना। असली वाला सत्तू जिसमे जौ हो। अब यहाँ तो गाँवो मे यह नही मिलता। पुजारी जी सही कह रहे थे। जौ छत्तीसगढ की लोकप्रिय फसल नही है। इसलिये जौ वाला सत्तू यहाँ गाँवो मे नही मिलता।
अपनी हर यात्रा के दौरान मै आस-पास उग रही वनस्पतियो के विषय मे पुजारी जी को कुछ बता देता हूँ। वे जडी-बूटियो मे अधिक रुचि नही लेते। अपने लिये तो वे इनका प्रयोग करते है पर उन्हे लगता है कि यदि चिकित्सा आरम्भ की जाये तो लोगो की आमद बढ जायेगी और जंगल खतरे मे पड जायेगा। उनका पक्ष विचारणीय लगा। उन्होने एक कमजोर बालक के बारे मे बताया जिसकी उम्र नौ वर्ष की थी पर शरीर का विकास नही हो रहा था। डाक्टर जवाब दे चुके थे। डाक्टर तो यह भी कह रहे थे कि तीन साल से अधिक वह बचेगा नही। उसके माता-पिता पुजारी जी के पास बडी उम्मीद लेकर आये थे। पर उनके पास इसकी जानकारी नही थी। मैने अपने ज्ञान से उन्हे कुछ सरल उपाय सुझाये है। लगता तो है कि बहुत देर हो चुकी है पर फिर भी प्रयास करने मे कोई बुराई नही है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
चार जून, 2009
भालू के साथ बकरियो सी मे-मे और पुजारी जी की बाते
“पर सोयेंगे कहाँ? यहाँ तो कोई झोपडी भी नही है। क्या हम सब भगवान के इस मन्दिर मे समा जायेंगे?” घने जंगल मे जब मन्दिर के पुजारी ने हमसे रात वही रुकने का अनुरोध किया तो मैने ये प्रश्न पूछे। उन्होने कहा कि भगवान के मन्दिर मे तो एक नाग रहता है। मै उसको नही छेडता। इसलिये वहाँ नही सोयेंगे। वहाँ पास ही कुसुम का पेड है। उससे कुछ दूरी पर खुले आसमान के नीचे सोयेंगे। देखियेगा, रात को ऐसी नीन्द आयेगी कि आप जीवन भर याद रखेंगे। ऐसा सुकून कितने भी पैसे बरबाद कर ले, नही मिलेगा। पुजारी जी की बात मे दम था पर घने जंगल मे खुले आसमान के नीचे बिना सुरक्षा के खाट पर सोने का दम न मुझमे था न ही मेरे ड्रायवर के पास। वह बोल पडा, “और रात को जंगली जानवर आ गये तो।“ पुजारी जी बोले कुछ दिन पहले एक तेन्दुआ आ गया था। मै तो गहरी नीन्द मे था। मेरा यह काला कुत्ता पास कर कूँ-कूँ करने लगा। मैने टार्च जलाकर इधर-उधर देखा तो कुछ ही दूर पर दो आँखे दिखी। वह तेन्दुआ ही था। उसके इरादे नेक नही थे। मैने झट से माचिस जलायी और पास की पडे पुआल के ढेर मे आग लगा दी। इस आग से वह चौका पर भागा नही। आजकल सडको मे इतनी गाडियाँ चलती है कि इन्हे रौशनी की आदत होती जा रही है। मैने कुछ आग उसकी ओर फेकी तब जाकर वह दूर हटा।
पुजारी जी के साथ घटी ये घटना रोंगटे खडे करने वाली थी। हम उनके फैन हो गये जब उन्होने बताया कि पिछली रातो से मै वैसे ही सो रहा हूँ। तेन्दुए से कोई डर नही है पर भालू आ गये तो मुश्किल हो जायेगी। पास के डोंगर मे भालू का गढ है। यूँ तो वे इस ओर नही आते पर स्वभाव से भालू जिज्ञासु होते है। मेले के दिनो मे श्रद्धालुओ के जाने के बाद कचरे के आस-पास मैने भालूओ को बहुत बार देखा है-पुजारी जी ने बताया। मैने पूछा कि भालू से बचने का कोई जमीनी ज्ञान दीजिये। वे बोले कि भालू के आने पर बकरी की मे-मे आवाज निकाले। वह इस अजीब आवाज से डर कर लौट जायेगा। हमे विश्वास नही हुआ। अब हर बात का कारण जाने बिना उस पर जल्दी से विश्वास जो नही होता है।
इस प्रयोग को आजमाने का मौका हमे लौटते वक्त मिल गया। हम मारुति आल्टो मे थे। जंगल के रास्ते से बाहर आ रहे थे। मारुति आल्टो यानि जमीन से करीब रहने वाले लोग। एक छोटा से भालू ने हमारा रास्ता काटा तो गाडी की सीट से वह विशालकाय दिखा। मैने हिम्मत करके खिडकी का शीशा नीचा किया और मे-मे की आवाज निकाली। ड्रायवर विपरीत परिस्थिति से निपटने के लिये पूरी तरह मुस्तैद था। भालू हमारी ओर आता तो हम चम्पत हो जाते। मे-मे, मे-मे, काफी देर करने के बाद भालू ने सिर उठाकर हमे ऐसे देखा कि हम शरम से पानी-पानी हो गये। इंसान होकर बकरियो-सी मे-मे? उसकी नजरो मे अच्छे भाव नही थे। हमने वहाँ से आगे बढने मे ही भलाई समझी।
पुजारी जी के साथ हम रात गुजारने के लिये इसलिये तैयार न हो सके क्योकि हमे लगा कि अन्धेरा होने के बाद हम करेंगे क्या? नाइट विजन वाले कैमरे होते तो कुछ बात बनती। तीन लोग की बजाय कुछ ज्यादा लोग होते और रात को अलाव जलाकर शिकारो और भूतो के किस्से होते और इस बीच किसी को लघु-शंका के लिये कुछ दूर जाना पडता, ऐसी रोमाँचक रात गुजारने का आनन्द ही कुछ और है। पुजारी जी के बारे मे गाँव मे कुछ लोगो ने कहा कि वह पाखंडी है। पर सबने यह माना कि समाज से दूर अकेले सालो से यह शख्स जंगल मे पडा हुआ है। बरसात मे कई हफ्तो तक उनसे सम्पर्क कटा होता है। ऐसे मे भी वे साधना मे लीन रहते है। शराब और गाँजे से दूर है। ऐसा जीवन जीने के लिये बहुत ही कठिन प्रण चाहिये। उनका मजाक उडाना सहज है पर उनके साथ विपरीत परिस्थितियो मे एक दिन भी रहना मुश्किल है। मैने उनसे अगली यात्रा के दौरान शहर से कुछ लाने की बात कही तो बडे ही संकोच से बोले कि हो सके तो सत्तू ले आना। असली वाला सत्तू जिसमे जौ हो। अब यहाँ तो गाँवो मे यह नही मिलता। पुजारी जी सही कह रहे थे। जौ छत्तीसगढ की लोकप्रिय फसल नही है। इसलिये जौ वाला सत्तू यहाँ गाँवो मे नही मिलता।
अपनी हर यात्रा के दौरान मै आस-पास उग रही वनस्पतियो के विषय मे पुजारी जी को कुछ बता देता हूँ। वे जडी-बूटियो मे अधिक रुचि नही लेते। अपने लिये तो वे इनका प्रयोग करते है पर उन्हे लगता है कि यदि चिकित्सा आरम्भ की जाये तो लोगो की आमद बढ जायेगी और जंगल खतरे मे पड जायेगा। उनका पक्ष विचारणीय लगा। उन्होने एक कमजोर बालक के बारे मे बताया जिसकी उम्र नौ वर्ष की थी पर शरीर का विकास नही हो रहा था। डाक्टर जवाब दे चुके थे। डाक्टर तो यह भी कह रहे थे कि तीन साल से अधिक वह बचेगा नही। उसके माता-पिता पुजारी जी के पास बडी उम्मीद लेकर आये थे। पर उनके पास इसकी जानकारी नही थी। मैने अपने ज्ञान से उन्हे कुछ सरल उपाय सुझाये है। लगता तो है कि बहुत देर हो चुकी है पर फिर भी प्रयास करने मे कोई बुराई नही है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Comments
आपके जंगल के किस्से बड़े ही रोमांचकारी होते हैं.
छत्तीसगढ़ के ही अनिल पुसदकर जी तो हमें छत्तीसगढ़ घुमाने का वादा कर रहे हैं. कभी आयेंगे तो आपसे भी मिल लेंगे, इसलिए आप अपना कोई फोन नंबर दे दीजिये.
एडवांस में धन्यवाद.
आपके जंगल के किस्से बड़े ही रोमांचकारी होते हैं.
छत्तीसगढ़ के ही अनिल पुसदकर जी तो हमें छत्तीसगढ़ घुमाने का वादा कर रहे हैं. कभी आयेंगे तो आपसे भी मिल लेंगे, इसलिए आप अपना कोई फोन नंबर दे दीजिये.
एडवांस में धन्यवाद.