साँप-बिच्छू, उन्हे दूर रखने वाली वनस्पतियाँ और हमारे बुजुर्ग
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-28
- पंकज अवधिया
साँप-बिच्छू, उन्हे दूर रखने वाली वनस्पतियाँ और हमारे बुजुर्ग
रात को जब हम वापस लौट रहे थे तब दूर सडक मे कुछ रोशनी दिखायी दी। पास आये तो तीन साये नजर आये। फिर उनके हाथ मे चीनी टार्च दिखायी दी। ड्रायवर ने कहा कि रात को जंगल मे रुकना ठीक नही है। वे तीन थे जबकि गाडी मे हम चार थे। गाडी जब पास आयी तो वे सडक के बीचो-बीच आ गये। हमे गाडी धीमी करनी ही पडी। वे हमे नही रोक रहे थे बल्कि सडक मे कुछ तलाश रहे थे। हमने गाडी रोकी तो वे सब अपने जूतो से किसी जीव को कुचल रहे थे। हमारी गाडी की रोशनी पडी तो हमे मरा हुआ बिच्छू दिखायी दिया। काले रंग का बडा बिच्छू। जिन्होने इसे मारा था वे मौज-मस्ती के लिये जंगल आये हुये थे। पास मे उनकी बाइक खडी थी। रात के नौ बजे उन्हे टार्च की रोशनी मे यह निरीह प्राणी दिखा तो उन्होने मारने मे जरा भी देर नही की।
बिच्छू को देखकर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक बोले कि यह कम जहरीला था। बिच्छू के बारे मे साफ और सरल नियम है। जितना बडा बिच्छू उतना कम जहर। “बताओ, कहाँ काटा है यह बिच्छू?” पारम्परिक चिकित्सक ने लडको से पूछा। लडके बोले कि हमे काटा नही है। पर किसी आते-जाते को काट सकता था इसलिये हमने इसे मार दिया। इस पर पारम्परिक चिकित्सक बिफर पडे और क्रोधित होकर बोले कि रात भर टार्च जलाकर जंगल की जमीन को देखते रहो। हजारो जहरीले जीव मिलेंगे। मारते रहना सबको। अरे, इसने कुछ बिगाडा नही था तो इसे मारा क्यो? वह अपने रास्ते जा रहा था। वैसे ही जंगल मे चलती सडक पार करने का जोखिम उठा रहा था। तुम लोग जाओ अपने ठिकाने। क्यो यहाँ बिच्छू के ठिकानो पर आकर उत्पात मचा रहे हो? पारम्परिक चिकित्सक की डाँट का असर दिखा और वे तीनो अपनी बाइक की ओर बढ गये।
इसमे कोई दो राय नही कि जितना धैर्य हमारी बुजुर्ग पीढी मे दिखता है उतना हमारी और नयी पीढी मे नही। मुझे याद आता है कि कुछ वर्षो पहले एक बडा नाग हमारे खेतो मे डेरा जमाये हुये था। जब भी मै खेत जाता तो पिताजी उसके बारे मे बताते थे। कहते थे कि वह तो आवाज सुनकर दूर निकल जाता है। कभी भी फन काढकर अपना रुतबा नही जताता है। दूर शहरो से आये हमारे रिश्तेदारो को जब खेत मे इसके बारे मे बताया जाता था तो वे झट से खेत से दूर होकर गाडी मे बैठ जाते थे। पिताजी हंटर जूते पहनते है और बडे मजे से खेतो मे घूमते है। हमारे खेत मे काम करने वाले श्रमिको मे एक नयी पीढी का युवा आया। जब उसे पता चला कि यहाँ नाग है तो उसने सबसे पहले उसे ढूँढा और फिर उसका काम तमाम कर दिया। जब पिताजी को यह पता चला तो वे खूब नाराज हुए। उन्होने उसे उसी पल बाहर का रास्ता दिखा दिया। वह युवा बाहर जाकर कहता रहा कि मैने तो सबकी जान बचायी। उल्टे मुझे ही नौकरी से निकाल दिया। वह अबोध था। साँप की असली महत्ता किसान जानते है। इसलिये वे कभी भी साँपो को बाहर का रास्ता नही दिखाते है।
इस जंगल यात्रा के दौरान एक पहाडी मन्दिर मे सुस्ताते हुये गाँव के बुजुर्गो की बाते सुनने का अवसर मिला। एक बुजुर्ग बता रहे थे कि रात को खाना खाते वक्त एक गेहुँआ साँप उनके सामने आ गया। बुजुर्ग ने धार्मिक आस्था के चलते उसे प्रणाम किया और उसे अनदेखा कर दिया। झोपडी मे लाइट तो थी नही। उनकी पत्नी को पीठ पर कुछ ठंडा सा अहसास हुआ तो उन्होने पीठ को हिला दिया। वह अहसास जाता रहा। पत्नी ने साँप को अन्दर आते नही देखा था। उन्होने अपने पति को यह बताया। बुजुर्ग ने ध्यान नही दिया। नीचे गिरने के बाद साँप फिर पीठ पर चढ गया। इस बार पत्नी ने और जोर से झटका दिया। अबकी बार साँप सामने की ओर गिरा। बुजुर्ग ने देख लिया। इससे पहले कि वे कुछ करते वह बाहर चला गया। वे लोग खाना खाते रहे। वह साँप फिर घूमकर आ गया। इस बार पीठे पर चढते हुये बुजुर्ग ने देख लिया। साँप के सिर को पकडा और बाहर खुले मे ले जाकर साँप को छोड दिया। कुछ मंत्र पढे और साँप को घुडकी देते हुये कहा कि अब आया तो छोडूंगा नही। फिर साँप नही आया। बुजुर्ग अपने साथियो को यह सब मजे से बता रहे थे। वे इस बात से अंजान थे कि हम यह सब सुन रहे थे। हमारी आँखे आश्चर्य से चौडी हो रही थी। पर उन सब के लिये यह रोजमर्रा के जीवन की बात लग रही थी। साँपो और दूसरे विषैले जीवो को उनकी पीढी ने बेवजह नही मारा इसलिये ये आज बडी संख्या मे हमारे आस-पास है और माँ प्रकृति द्वारा तय की गयी भूमिका निभा रहे है। हमारी पीढी वन्य प्राणियो पर बडी-बडी बाते तो कर लेती है पर इनके सामने पडने पर मारने मे जरा भी देर नही करती है। यह सब चलता रहा तो साँप जैसे जीव आने वाले कुछ वर्षो मे पूरी तरह समाप्त हो जायेंगे।
उन तीन लडको से मिलने के बाद हम आगे बढे तो ड्रायवर ने गाडी की गति धीमी कर दी। उसने बताया कि उसे सडक पर बहुत से छोटे जीव दिख रहे है। इस बार मानसून मे देरी के कारण उनमे अफरा-तफरी का माहौल है। अचानक ड्रायवर ने गाडी सडक के नीचे उतार ली। हम एक ओर झुक गये। उसने एक साँप को बचा लिया था पर सडक से नीचे उतरने के कारण पहिये के नीचे एक गिरगिट आ गया था। कुछ नही किया जा सकता था। हमने यह निश्चय किया कि अगली बार से रात होने से पहले ही लौट आया करेंगे ताकि हमारी गाडी से कम से कम नुकसान हो। आमतौर पर हम जंगल मे तब तक बढते रह्ते है जब तक कि अन्धेरा नही हो जाता। अन्धेरा होने के बाद वापसी की प्रक्रिया शुरु होती है। वापसी नान-स्टाप होती है।
पारम्परिक चिकित्सको के पास बहुत सी ऐसी जडी-बूटियाँ होती है जो साँपो और ऐसे ही विषैले जीवो को दूर रखती है। इन वनस्पतियो को पैर के निचले हिस्से मे बाँध लिया जाता है। हम अपने जूतो मे इसे रख लेते है। पर पारम्परिक चिकित्सक इनके प्रयोग के खिलाफ है। जंगल मे गन्ध महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। ऐसे मे एक नयी गन्ध लेकर जंगल मे प्रवेश करना जंगल के लिये ठीक नही है। आप तो जानते ही है कि वे नंगे पाँव चलते है। उनके चलने से जमीन मे जो कम्पन होती है उससे साँप जैसे जीव अपने आप किनारा कर लेते है। फिर बेवजह जडी-बूटियो का प्रयोग किया ही क्यो जाये? पारम्परिक चिकित्सको का यह तर्क सही जान पडता है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
साँप-बिच्छू, उन्हे दूर रखने वाली वनस्पतियाँ और हमारे बुजुर्ग
रात को जब हम वापस लौट रहे थे तब दूर सडक मे कुछ रोशनी दिखायी दी। पास आये तो तीन साये नजर आये। फिर उनके हाथ मे चीनी टार्च दिखायी दी। ड्रायवर ने कहा कि रात को जंगल मे रुकना ठीक नही है। वे तीन थे जबकि गाडी मे हम चार थे। गाडी जब पास आयी तो वे सडक के बीचो-बीच आ गये। हमे गाडी धीमी करनी ही पडी। वे हमे नही रोक रहे थे बल्कि सडक मे कुछ तलाश रहे थे। हमने गाडी रोकी तो वे सब अपने जूतो से किसी जीव को कुचल रहे थे। हमारी गाडी की रोशनी पडी तो हमे मरा हुआ बिच्छू दिखायी दिया। काले रंग का बडा बिच्छू। जिन्होने इसे मारा था वे मौज-मस्ती के लिये जंगल आये हुये थे। पास मे उनकी बाइक खडी थी। रात के नौ बजे उन्हे टार्च की रोशनी मे यह निरीह प्राणी दिखा तो उन्होने मारने मे जरा भी देर नही की।
बिच्छू को देखकर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक बोले कि यह कम जहरीला था। बिच्छू के बारे मे साफ और सरल नियम है। जितना बडा बिच्छू उतना कम जहर। “बताओ, कहाँ काटा है यह बिच्छू?” पारम्परिक चिकित्सक ने लडको से पूछा। लडके बोले कि हमे काटा नही है। पर किसी आते-जाते को काट सकता था इसलिये हमने इसे मार दिया। इस पर पारम्परिक चिकित्सक बिफर पडे और क्रोधित होकर बोले कि रात भर टार्च जलाकर जंगल की जमीन को देखते रहो। हजारो जहरीले जीव मिलेंगे। मारते रहना सबको। अरे, इसने कुछ बिगाडा नही था तो इसे मारा क्यो? वह अपने रास्ते जा रहा था। वैसे ही जंगल मे चलती सडक पार करने का जोखिम उठा रहा था। तुम लोग जाओ अपने ठिकाने। क्यो यहाँ बिच्छू के ठिकानो पर आकर उत्पात मचा रहे हो? पारम्परिक चिकित्सक की डाँट का असर दिखा और वे तीनो अपनी बाइक की ओर बढ गये।
इसमे कोई दो राय नही कि जितना धैर्य हमारी बुजुर्ग पीढी मे दिखता है उतना हमारी और नयी पीढी मे नही। मुझे याद आता है कि कुछ वर्षो पहले एक बडा नाग हमारे खेतो मे डेरा जमाये हुये था। जब भी मै खेत जाता तो पिताजी उसके बारे मे बताते थे। कहते थे कि वह तो आवाज सुनकर दूर निकल जाता है। कभी भी फन काढकर अपना रुतबा नही जताता है। दूर शहरो से आये हमारे रिश्तेदारो को जब खेत मे इसके बारे मे बताया जाता था तो वे झट से खेत से दूर होकर गाडी मे बैठ जाते थे। पिताजी हंटर जूते पहनते है और बडे मजे से खेतो मे घूमते है। हमारे खेत मे काम करने वाले श्रमिको मे एक नयी पीढी का युवा आया। जब उसे पता चला कि यहाँ नाग है तो उसने सबसे पहले उसे ढूँढा और फिर उसका काम तमाम कर दिया। जब पिताजी को यह पता चला तो वे खूब नाराज हुए। उन्होने उसे उसी पल बाहर का रास्ता दिखा दिया। वह युवा बाहर जाकर कहता रहा कि मैने तो सबकी जान बचायी। उल्टे मुझे ही नौकरी से निकाल दिया। वह अबोध था। साँप की असली महत्ता किसान जानते है। इसलिये वे कभी भी साँपो को बाहर का रास्ता नही दिखाते है।
इस जंगल यात्रा के दौरान एक पहाडी मन्दिर मे सुस्ताते हुये गाँव के बुजुर्गो की बाते सुनने का अवसर मिला। एक बुजुर्ग बता रहे थे कि रात को खाना खाते वक्त एक गेहुँआ साँप उनके सामने आ गया। बुजुर्ग ने धार्मिक आस्था के चलते उसे प्रणाम किया और उसे अनदेखा कर दिया। झोपडी मे लाइट तो थी नही। उनकी पत्नी को पीठ पर कुछ ठंडा सा अहसास हुआ तो उन्होने पीठ को हिला दिया। वह अहसास जाता रहा। पत्नी ने साँप को अन्दर आते नही देखा था। उन्होने अपने पति को यह बताया। बुजुर्ग ने ध्यान नही दिया। नीचे गिरने के बाद साँप फिर पीठ पर चढ गया। इस बार पत्नी ने और जोर से झटका दिया। अबकी बार साँप सामने की ओर गिरा। बुजुर्ग ने देख लिया। इससे पहले कि वे कुछ करते वह बाहर चला गया। वे लोग खाना खाते रहे। वह साँप फिर घूमकर आ गया। इस बार पीठे पर चढते हुये बुजुर्ग ने देख लिया। साँप के सिर को पकडा और बाहर खुले मे ले जाकर साँप को छोड दिया। कुछ मंत्र पढे और साँप को घुडकी देते हुये कहा कि अब आया तो छोडूंगा नही। फिर साँप नही आया। बुजुर्ग अपने साथियो को यह सब मजे से बता रहे थे। वे इस बात से अंजान थे कि हम यह सब सुन रहे थे। हमारी आँखे आश्चर्य से चौडी हो रही थी। पर उन सब के लिये यह रोजमर्रा के जीवन की बात लग रही थी। साँपो और दूसरे विषैले जीवो को उनकी पीढी ने बेवजह नही मारा इसलिये ये आज बडी संख्या मे हमारे आस-पास है और माँ प्रकृति द्वारा तय की गयी भूमिका निभा रहे है। हमारी पीढी वन्य प्राणियो पर बडी-बडी बाते तो कर लेती है पर इनके सामने पडने पर मारने मे जरा भी देर नही करती है। यह सब चलता रहा तो साँप जैसे जीव आने वाले कुछ वर्षो मे पूरी तरह समाप्त हो जायेंगे।
उन तीन लडको से मिलने के बाद हम आगे बढे तो ड्रायवर ने गाडी की गति धीमी कर दी। उसने बताया कि उसे सडक पर बहुत से छोटे जीव दिख रहे है। इस बार मानसून मे देरी के कारण उनमे अफरा-तफरी का माहौल है। अचानक ड्रायवर ने गाडी सडक के नीचे उतार ली। हम एक ओर झुक गये। उसने एक साँप को बचा लिया था पर सडक से नीचे उतरने के कारण पहिये के नीचे एक गिरगिट आ गया था। कुछ नही किया जा सकता था। हमने यह निश्चय किया कि अगली बार से रात होने से पहले ही लौट आया करेंगे ताकि हमारी गाडी से कम से कम नुकसान हो। आमतौर पर हम जंगल मे तब तक बढते रह्ते है जब तक कि अन्धेरा नही हो जाता। अन्धेरा होने के बाद वापसी की प्रक्रिया शुरु होती है। वापसी नान-स्टाप होती है।
पारम्परिक चिकित्सको के पास बहुत सी ऐसी जडी-बूटियाँ होती है जो साँपो और ऐसे ही विषैले जीवो को दूर रखती है। इन वनस्पतियो को पैर के निचले हिस्से मे बाँध लिया जाता है। हम अपने जूतो मे इसे रख लेते है। पर पारम्परिक चिकित्सक इनके प्रयोग के खिलाफ है। जंगल मे गन्ध महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। ऐसे मे एक नयी गन्ध लेकर जंगल मे प्रवेश करना जंगल के लिये ठीक नही है। आप तो जानते ही है कि वे नंगे पाँव चलते है। उनके चलने से जमीन मे जो कम्पन होती है उससे साँप जैसे जीव अपने आप किनारा कर लेते है। फिर बेवजह जडी-बूटियो का प्रयोग किया ही क्यो जाये? पारम्परिक चिकित्सको का यह तर्क सही जान पडता है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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