अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -37
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -37 - पंकज अवधिया वानस्पतिक सर्वेक्षण के दौरान जब जंगलो मे जाना होता है तो पारम्परिक चिकित्सको के साथ स्थानीय लोगो को भी साथ मे रख लेता हूँ एक दल के रुप मे। इस बार ऐसे लोगो की तलाश मे जब हम गाँव पहुँचे तो लोग नही मिले। पता चला कि जडी-बूटियो के एकत्रण के लिये जंगल गये है। हम उनके बिना ही जंगल चल पडे। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने बताया कि इस बार सभी लोग भुईनीम नामक वनस्पति को उखाडने मे लगे है। धमतरी के व्यापारियो ने इस बार बडी मात्रा मे इसके एकत्रण का लक्ष्य रखा है। इसकी बढी हुयी माँग को देखते हुये उन्होने ऐसे स्थानो को भी चुना है जहाँ से पहले कभी इसे एकत्र नही किया गया। इस वनस्पति की देश-विदेश मे बहुत माँग है। देश के दूसरे भागो से भी इसकी आपूर्ति होती है। जिस साल एक भाग मे वर्षा कम होती है उस साल दूसरे भागो मे इसकी माँग बढ जाती है। छत्तीसगढ के व्यापारी दशको से इसका व्यापार कर रहे है। रास्ते मे हमे बहुत से लोग मिले जो बडी बेदर्दी से इसे उखाड रहे थे। मैने बेदर्दी शब्द इसलिये इस्तमाल किया क्योकि स्थानीय लोग बताते...