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Showing posts from June, 2009

तेन्दुए, जंगली सुअर, भालू, लकडबघ्घे सभी मिलेंगे आपको राजधानी की सडको पर

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-30 - पंकज अवधिया तेन्दुए, जंगली सुअर, भालू, लकडबघ्घे सभी मिलेंगे आपको राजधानी की सडको पर गाँव के चरवाहे को हल्की सी झपकी आ गयी। वह गाँव से दूर मवेशियो को चरा रहा था। जब उसकी नीन्द खुली तो उसने मवेशियो के समूह के बीच कुछ काले-काले जीव देखे। उसने जोर से आवाज लगायी और उस ओर लाठी लहरायी तो वे काले जीव वहाँ से भागे। चरवाहे ने इन्हे बरहा अर्थात जंगली सूअर के रुप मे पहचाना। वह उल्टे पाँव वापस आ गया। यह घटना छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर से मात्र बीस-पच्चीस किलोमीटरकी दूरी की है। इस क्षेत्र मे धान के खेत है पर खेतो की मेड पर बबूल और अर्जुन के वृक्ष। जंगल का नामो-निशान नही है। क्षेत्र मे खारुन नदी बहती है जो मानसून न आने के कारण नाली की तरह पतली हो गयी है। बडी-छोटी सभी गाडियो की दिन-रात आवाजाही वाले ऐसे क्षेत्र मे बरहा कल से आ गये है। ये एक नही, दो नही बल्कि तीन झुंडो मे है और एक झुंड मे 15 से 17 बरहा है। मानसून की बाट जोहते किसानो ने धान की नर्सरी तैयार की है। छोटे-छोटे पौधे अंकुरित हो रहे है। बरहा के दल इन्ही नये पौधो को खोदकर खा रहे है। इतना ही नही वे खेतो मे लोट र

अपनो को खोने वाले बच्चो के मन मे किस रुप मे बसते है भालू दादा?

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-29 - पंकज अवधिया अपनो को खोने वाले बच्चो के मन मे किस रुप मे बसते है भालू दादा? मेरा बचपन ज्यादातर शहर मे बीता। बचपन मे भालू की जो छवि पराग, नन्दन जैसी बाल पत्रिकाओ ने बनायी वो भालू दादा या भालू मामा की थी। बाल कविताओ मे भालू इसी रुप मे मिलते थे। पुराने रिकार्डो के गीतो मे भी भालूओ को नाच दिखाकर मनोरंजन करने वाले जीव के रुप मे मन मे बसा लेता था। बचपन मे भालू सरकस मे साइकल चलाते हुये दिख जाता था। सरकस मे जब जानवरो की परेड होती थी तो भालू आकर्षण का केन्द्र होते थे। भालू को सरकस की मिनी ट्रेन मे बैठा देखकर मै कल्पना के अद्भुत संसार मे खो जाता था। भालू का यही रुप मेरे द्वारा रचित बाल कहानियो मे भी दिखा। कुछ बडा हुआ तो मदारी को भालू थामे देखा। वह बडी कुशलता से भालू को डुगडुगी बजाकर नचाया करता था। भालू को दादा और मामा की तरह आज भी पूरे देश मे बच्चो के सामने प्रस्तुत किया जाता है। पर सभी बच्चे इतने खुशकिस्मत नही होते कि वे भालू को दादा और मामा के रुप मे देख सके। जंगल यात्रा के दौरान जटियाटोरा गाँव के एक शिक्षक़ से यूँ ही चर्चा चल रही थी। उन्होने बताया कि वन्य जीवो

साँप-बिच्छू, उन्हे दूर रखने वाली वनस्पतियाँ और हमारे बुजुर्ग

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-28 - पंकज अवधिया साँप-बिच्छू, उन्हे दूर रखने वाली वनस्पतियाँ और हमारे बुजुर्ग रात को जब हम वापस लौट रहे थे तब दूर सडक मे कुछ रोशनी दिखायी दी। पास आये तो तीन साये नजर आये। फिर उनके हाथ मे चीनी टार्च दिखायी दी। ड्रायवर ने कहा कि रात को जंगल मे रुकना ठीक नही है। वे तीन थे जबकि गाडी मे हम चार थे। गाडी जब पास आयी तो वे सडक के बीचो-बीच आ गये। हमे गाडी धीमी करनी ही पडी। वे हमे नही रोक रहे थे बल्कि सडक मे कुछ तलाश रहे थे। हमने गाडी रोकी तो वे सब अपने जूतो से किसी जीव को कुचल रहे थे। हमारी गाडी की रोशनी पडी तो हमे मरा हुआ बिच्छू दिखायी दिया। काले रंग का बडा बिच्छू। जिन्होने इसे मारा था वे मौज-मस्ती के लिये जंगल आये हुये थे। पास मे उनकी बाइक खडी थी। रात के नौ बजे उन्हे टार्च की रोशनी मे यह निरीह प्राणी दिखा तो उन्होने मारने मे जरा भी देर नही की। बिच्छू को देखकर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सक बोले कि यह कम जहरीला था। बिच्छू के बारे मे साफ और सरल नियम है। जितना बडा बिच्छू उतना कम जहर। “बताओ, कहाँ काटा है यह बिच्छू?” पारम्परिक चिकित्सक ने लडको से पूछा। लडके बोले कि हमे क

कोआ के झरती, आमा के फरती और दुबले अमित के स्वस्थ्य होने का राज

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-27 - पंकज अवधिया कोआ के झरती, आमा के फरती और दुबले अमित के स्वस्थ्य होने का राज “कोआ के झरती, आमा के फरती।” जंगल से गुजरते वक्त हमारी गाडी मे पुराने छत्तीसगढी गीत बज रहे थे। उन्ही मे से एक मे ये पंक्तियाँ थी। मै तो गाने को गाने की तरह सुन रहा था। ध्यान बाहर की ओर था कि कुछ नयी वनस्पतियाँ मिल जाये। “ये गाना गडबड है। इसे फिर से सुनाओ।“पिछली सीट पर बैठे पारम्परिक चिकित्सक की आवाज से मेरा ध्यान टूटा। “कोआ के झरती, आमा के फरती। ये बिल्कुल गलत है।“ पारम्परिक चिकित्सक ने अपनी बात दोहरायी। कोआ महुआ के फल को कहा जाता है। आमा यानि देशी आम। गाने की इस पंक्ति का अर्थ था कि जब महुआ के फल यानि कोआ गिरते है तब आम के फल लगते है। पारम्परिक चिकित्सक के अनुरोध पर हमने रिवाइंड करके इसे सुना। गाने की पंक्ति यही थी। पर वास्तव मे ऐसा नही होता है। इसे होना चाहिये था “आमा के झरती, कोआ के फरती” यानि जब आम के फल गिरते है तब कोआ मे फल आते है। पारम्परिक चिकित्सक ने सही पकडा था। इस गीत के गीतकार राज्य के ख्यातिनाम गीतकार है। अभी तक शायद ही उन्हे किसी ने टोका हो। अपनी बात सही निकलने पर प

इंसानी काम-पिपासा बुझाता पथर्री टेटका और मनोकामनाए पूरी करता चीटीखोर

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-26 - पंकज अवधिया इंसानी काम-पिपासा बुझाता पथर्री टेटका और मनोकामनाए पूरी करता चीटीखोर “अरे, बचाओ, कोई तो बचाओ, गुफा मे छिपकली है। ये हमारी ओर ही आ रही है।“ एक सँकरी गुफा मे कुछ पल पहले ही पेट के बल घुसे कुछ लडको ने मदद के लिये पुकारा था। हम कुछ करते उससे पहले ही वे एक-एक करके गुफा के द्वार से वापस आ गये। ये पर्यटक थे। गुफा के पास मै पारम्परिक चिकित्सको के साथ वनस्पतियो की तस्वीरे ले रहा था। हम साल मे कई बार इस गुफा के पास आते है पर ठन्ड मे ही इसके अन्दर जाते है। स्थानीय लोगो की मान्यता है पेट के बल इस तंग गुफा मे सरकने से पेट की बहुत सी बीमारियो मे लाभ मिलता है। इसके लिये लोगो को खाली पेट आने को कहा जाता है। फिर गुफा से निकलने के बाद पास के झरने से भरपेट पानी पीने को कहा जाता है। गुफा तक पैदल आना और जाना होता। अब पर्यटक तो पूरे नियम-कायदो को मानते नही है। वे ऐसे ही गुफा मे घुस जाते है। कई बार लोग फँस भी जाते है। यह अच्छी बात है कि अब तक किसी की मौत गुफा मे फँसने से नही हुयी है। गर्मियो और बरसात मे इस गुफा के अन्दर जाना सही नही होता है। गुफा ठंडी होती है इसल

समस्त दुखो को हरने वाली माला और जख्मी वृक्षो की मरहम-पट्टी

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-25 - पंकज अवधिया समस्त दुखो को हरने वाली माला और जख्मी वृक्षो की मरहम-पट्टी “अब हाथ मे एक हजार एक की दक्षिणा रखे और इस सारे दुख को हरने वाली माला को प्राप्त करे।“ इस जंगल यात्रा के दौरान मैने सडक के किनारे हाल ही मे बने एक डेरे पर अपनी गाडी रुकवायी। बाहर से ही यह साफ झलक रखा था कि यह किसी तांत्रिक का डेरा है। रंग-बिरंगे झंडे लगे थे। आस-पास के गाँवो से बडी संख्या मे लोग जमा थे। मेरे साथ स्थानीय पारम्परिक चिकित्सक थे इसलिये मुझे सीधे ही तांत्रिक से मिलने का अवसर मिल गया। मेरे अन्दर प्रवेश करते ही वो जोर से चिल्लाया कि तू बहुत दुखी है इसलिये मेरे दर पर आया। तेरे लिये यह माला और यह शिव पत्र उपयुक्त रहेगा। किसी वृक्ष के जडो से बनी ताजी माला मुझे दे दी गयी। मै जडो को पहचान नही पाया। फिर एक पत्ती मुझे दी गयी जिसमे महामृत्युंजय मंत्र लिखा हुआ था। इस ताजी पत्ती को घर के द्वार मे रखने की बात कही गयी और दावा किया गया कि इससे सारे दुख द्वार से ही उल्टे पैर वापस चले जायेंगे। पत्ती को देखकर मै झट से पहचान गया कि यह तो कुल्लु की ताजी पत्तियाँ है। कुछ दिनो पहले ही मैने कुल

चवन्नी दुकाल, कैंसर रोगियो के लिये औषधीय धान और देशी खेती

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने- 24 - पंकज अवधिया चवन्नी दुकाल, कैंसर रोगियो के लिये औषधीय धान और देशी खेती “ पहले यहाँ बहुत घना जंगल हुआ करता था। सभी तरह के जानवर थे। मुझे याद है कि तब सामने वाली गली से बाघ ने हमारे “ मोसी ” (मवेशी) को मार दिया था। सामने वाले घर के अन्दर घुसकर एक बच्चे को उठा लिया था। जब बच्चे का पिता पीछे दौडा तो बाघ ने बच्चे को चीर कर मार डाला। अब बाघ नही है पर तेन्दुए है। तेन्दुए हमे नुकसान नही पहुँचाते। कभी-कभार दिख जाते है। खेती मे बरहा (जंगली सूअर) का आक्रमण होता रहता है। हम रात भर जागकर खेत की रखवाली करते है। आदमी होने के अहसास से बरहा दूर रहते है। हम बजरबट्टू का भी सहारा लेते है। गाँव मे कुछ लोगो के पास भरमार बन्दूके है, लाइसेंसी। उसके प्रयोग से हम बरहा को भगाते है। इस बन्दूक के प्रयोग से उन्हे मारना मना है। जब फल पकते है तो गाँव मे भालू आ जाते है। पीपल के फल जिसे स्थानीय भाषा मे पिकरी कहा जाता है, भालूओ को बहुत पसन्द आते है। भालू शैतान प्राणी है। वह न केवल जिज्ञासु होता है बल्कि आपके पीछे-पीछे चला आता है। उसे मालूम है कि आदमी उसकी तु

हुंर्रा का तांडव, घायल ग्रामीण और सिमटते जंगल

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मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-23 - पंकज अवधिया हुंर्रा का तांडव, घायल ग्रामीण और सिमटते जंगल सुबह के नौ बजे थे। विश्म्भर ध्रुव अपने घर के आँगन मे बैठे हुये थे। घर का दरवाजा खुला हुआ था। बच्चे बाहर खेलने गये हुये थे। उनका काला कुत्ता उनके पास बैठा हुआ था। तभी अचानक तूफान की गति से कोई जीव दरवाजे से अन्दर घुसा और फिर विश्म्भर पर झपट पडा। शरीर का जो भी हिस्सा सामने दिखायी पडा उसमे उसने दाँत गडा दिये। विश्म्भर दर्द से व्याकुल हो उठा। उन्होने उस पर काबू करने का असफल प्रयास किया और आँगन के एक कोने पर दबोचना चाहा। उस जीव ने अपनी पकड ढीली की और फिर जैसे आया था वैसे ही दरवाजे से ओझल हो गया। खून से लथपथ विश्म्भर को कुछ पलो के लिये कुछ समझ नही आया। उनके पास खडा उनका काला कुत्ता मारे डर वैसे ही खडा रहा। विश्म्भर की चीख सुनकर घर वाले बाहर आये। घायल भागो को देखने के बाद उनके घर वालो को लगा कि यह किसी पागल कुत्ते की हरकत है। विश्म्भर ने चिल्लाकर कहा कि हुंर्रा ने आक्रमण किया है। हुंर्रा यानि लकडबघ्घा। विश्म्भर के घर मे आने से पहले उसने पास के एक गाँव मे कई लोगो को ऐसी चोटे पहुँचायी थी। विश्म्भर के घर

तेन्दुआ, सनसनीखेज खबरो के चक्कर मे अखबार और गहराता संकट

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-22 - पंकज अवधिया तेन्दुआ, सनसनीखेज खबरो के चक्कर मे अखबार और गहराता संकट श्री विश्वास रात की पाली समाप्त कर वैगन रिपेयर शाप से लौट रहे थे। रेल्वे क्रासिंग के आस उन्हे कोई बडा सा जंगली जानवर उछलकर झाडियो के अन्दर जाते दिखा। उन्हे लगा कि ये तेन्दुआ है। बस यह बात जंगल मे आग की तरह फैल गयी। दूसरे दिन राजधानी के अखबारो मे यह खबर छप गयी। मनुष्यो और जंगली जानवरो की समस्याओ के लिये लम्बी दूरी तक सफर जब-तब मै करता रहता हूँ। इस बार जिस स्थान पर तेन्दुए के दिखने की बात हो रही थी वह घर से महज आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर है। फिर मै वहाँ कैसे न जाता? कल सुबह ही मै उस स्थान की ओर रवाना हो गया। उस स्थान पर पहुँचने पर मैने पाया कि वहाँ इस घटना के बारे मे कम लोग जानते है। अखबारो मे कहा गया था कि लोग दहशत मे है। पर वहाँ तो मजे से बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। जिन झाडीनुमा जंगलो मे तेन्दुए को देखने की बात की जा रही थी वहाँ पर भैसे मजे से चर रही थी। मैने रुककर इस बारे मे पूछना चाहा तो चरवाहो ने कहा कि पिछले साल ऐसी घटनाए हुयी थी पर हाल की घटना के बारे मे ऐसी कोई खबर नही है। मुझे बडा

रुको, मत मारो, मुझे तेन्दुए से बात तो कर लेने दो

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-21 - पंकज अवधिया रुको, मत मारो, मुझे तेन्दुए से बात तो कर लेने दो “सिट, टेक फुड, सिट-सिट, गुड ब्वाय, ओह नो, यू ब्लडी बास्ट*-----।“ जंगल के एक अधिकारी शहर के बाहरी हिस्से से पकडे गये एक तेन्दुए को यह सब कह रहे थे। तेन्दुआ एक छोटे से पिंजरे मे बन्द था। पिंजरा इतना छोटा था कि वह ठीक से घूम भी नही सकता था। खडा होता तो सिर लोहे की जाली से टकरा जाता। उसे खाना दिया जा रहा था पर वह कैसे भी बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। उसके चारो ओर लोगो का हुजूम लगा हुआ था। वे चिल्ला रहे थे। ऐसी आवाजे निकाल रहे थे जिससे तेन्दुआ आवेश मे आकर जोर से आवाज निकाले। इससे भीड का मनोरंजन होता। अधिकारी थोडा हटते तो लोग कंकड भी पिंजरे के अन्दर फेकते। अधिकारी की अंग्रेजी मे बडबड सुनकर बाजू मे खडे एक अदने से कर्मचारी ने कहा कि साहब, इससे छत्तीसगढी मे बोलिय्रे। यह अंग्रेजी नही समझेगा। इस पर अधिकारी ने घूर कर उस कर्मचारी को देखा और फिर कहा कि साहब, तुम हो कि मै? तेन्दुआ क्या आदमियो का भाषा समझता है? बात आयी-गयी हो गयी। साहब शान से क्लब मे यह किस्सा सुनाते और उन

मोंगरी मछली, टाइफा, जलकुम्भी और डूमर

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-20 - पंकज अवधिया दस जून, 2009 मोंगरी मछली, टाइफा, जलकुम्भी और डूमर इन दिनो राजधानी मे जलीय खरप्तवारो से अटे तालाबो की सफाई की मुहिम चल रही है। मेरे एक मित्र को ऐसे ही एक तालाब की सफाई का ठेका मिला है। उस तालाब मे केवल जलकुम्भी की ही समस्या नही है। नाना प्रकार के जलीय खरप्तवारो ने ऐसा तांडव मचाया है कि पूरा तालाब एक समतल हरे-भरे मैदान की तरह दिखता है। तालाब के एक हिस्से मे ही पानी दिखता है। इसी स्थान पर आस-पास के लोग नहाते है। यहाँ बडी मात्रा मे कपडे भी धोये जाते है धोबियो के द्वारा। शहर के योजनाकारो ने ढाई लाख रुपये दिये है इस तालाब को बीस दिनो के अन्दर साफ करने के लिये। इस तालाब के किनारे पीपल के कुछ पुराने पेड है। मैने मित्र को सलाह दी है कि यहाँ ऐसे वृक्ष लगाये जो कि जल को शुद्ध रख सके। शहरी योजनाकारो का दबाव है कि गुलमोहर लगाया जाये। निश्चित ही गुलमोहर गर्मियो मे फूलो से लदकर बढिया दिखायी देता है पर यह उथली जडो वाला होता है। जरा-सा भी तूफान सहन नही कर पाता है। आजकल बरसात मे जो अन्धड चलती है उससे हर बार गुलमोहर के वृक

लौकी, कोल्ही-केकडी और दूसरी वनस्पतियो से बने औषधीय तेल

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-19 - पंकज अवधिया दस जून, 2009 लौकी, कोल्ही-केकडी और दूसरी वनस्पतियो से बने औषधीय तेल जंगल मे साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको के साथ जब नाना प्रकार के औषधीय तेलो की चर्चा हुयी तो उनमे से कुछ ने रोजमर्रा उपयोग होने वाली सब्जियो से तैयार औषधीय तेल के विषय मे रोचक जानकरियाँ दी। सब्जियो से औषधीय तेल बनाने की बात मेरे लिये नयी नही थी। अपने शोध आलेखो मे मैने लौकी से औषधीय तेल निर्माण पर काफी कुछ लिखा है। यह तेल देश के दूसरे भागो मे भी प्रचलित है पर अलग-अलग रुपो मे। छत्तीसगढ मे इस तेल का प्रयोग बच्चो के लिये किया जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लौकी से राज्य मे 1500 से अधिक प्रकार के तेल बनाये जाते है। ये तेल हाथ-पैर मे होने वाली जलन से लेकर जोडो की मालिश के लिये प्रयोग किये जाते है। लौकी का प्रयोग अकेले भी होता है और अस्सी से अधिक औषधीय वनस्पतियो के साथ भी। देश के दूसरे हिस्सो मे इस तेल के निर्माण मे आधार तेल के रुप मे नारियल के तेल का उपयोग होता है जबकि हमारे यहाँ सरसो और काली तिल के तेलो का प्रयोग होता है। इस जंगल यात्रा

ह्रदय रोगी, औषधीय धान और दुर्लभ ज्ञान

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-18 - पंकज अवधिया दस जून, 2009 ह्रदय रोगी, औषधीय धान और दुर्लभ ज्ञान जंगल मे कुछ दूर चलने पर साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने मजाक मे कहा कि क्या आपको अस्सी साल के जवान से मिलना है? मैने हामी भरी तो उन्होने एक गाँव का रुख किया। दोपहर का समय था। गाँव सुनसान था। हम आधा गाँव घूम आये पर कोई नही दिखा। उन बुजुर्ग के घर मे पूछताछ की गयी तो पता चला कि जंगल गये है। हम उसी दिशा मे निकल पडे। जल्दी ही हमे वो मिल गये। परिचय हुआ। बातचीत का दौर चल पडा। उम्र के इस पडाव मे भी उनके बाल काले थे। दाँत सलामत थे। लकडी का बोझा उठाकर चल लेते थे। उस बोझे को मैने उठाने की कोशिश की तो वह टस से मस नही हुआ। बडी मुश्किल से दो लोग उठा पाये। यह जडी-बूटी का असर दिखता था। पर उन्होने दो टूक कह दिया कि मै भात और साग खाता है। जडी-बूटी के बारे मे जानता हूँ पर स्वयम कम ही सेवन करता हूँ। उन्हे तेलिया कंद की तलाश थी इसलिये हमसे विदा लेकर वे कुछ देर के लिये पास की पहाडी पर चले गये। उनके जाने के बाद पारम्परिक चिकित्सक खुसुर-फुसुर करने लगे। फिर मेरे पास आकर एक स्वर म

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-17 - पंकज अवधिया दस जून, 2009 स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी” घने जंगल मे एक वृक्ष की ओर इशारा करते हुये साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि आम महिलाओ को अपने कष्टो से मुक्ति के लिये इस वृक्ष की देखरेख शुरु कर देनी चाहिये। देख-रेख यानि सुबह से शाम तक इसकी सेवा। जितना हो सके उतना समय इसके साये मे गुजारना चाहिये। पारम्परिक चिकित्सक की बात सुनकर मैने कैमरा निकाल लिया और विभिन्न कोणो से उस वृक्ष की तस्वीर लेने लगा। यह मेरा जाना-पहचाना वृक्ष था। मैने इसके पारम्परिक उपयोगो का दस्तावेजीकरण किया है पर जैसा कि आप जानते है, हर वानस्पतिक सर्वेक्षण से नयी जानकारियाँ मिलती है। मै तस्वीरे लेता रहा और पारम्परिक चिकित्सक अपनी बात कहते रहे। साधारण महिलाओ को तो इस वृक्ष के साये मे रहना चाहिये। पहले जंगलो मे बहुत से ऐसे स्थान होते थे जहाँ ये वृक्ष समूह मे उगा करते थे। तब पारम्परिक चिकित्सक महिलाओ के परिवारजनो से कहते थे कि यदि सम्भव हो तो उस वृक्ष समूह के साये मे मिट्टी की अस्थायी झोपडी बना ले और वही रहकर औषधीयो का सेवन करे। उनका

लाल पानी वाला ग्लास और महिनो से ज्वर से जूझता रोगी

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-16 - पंकज अवधिया बारह जून, 2009 लाल पानी वाला ग्लास और महिनो से ज्वर से जूझता रोगी कुछ दूर चलने के बाद हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ भुईनीम के बहुत से छोटे-छोटे पौधे उग रहे थे। पारम्परिक चिकित्सक ने रोगी से कहा कि मैने घेरा बना दिया है। आप उन पौधो पर मूत्र विसर्जन कर दे। रोगी ने ऐसा ही किया। इसके बार उसे लकडी के ग्लास मे पानी पीने को दिया गया। पानी का रंग लकडी के कारण लाल हो चुका था। पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि आप सब बरगद के इस पुराने वृक्ष के साये मे बैठे और जब रोगी को अगली बार मूत्र विसर्जन की इच्छा हो तो भुईनीम के दूसरे घेरे पर करे। इसबीच मै अपने दूसरे रोगियो को देख लेता हूँ। अलग-अलग तरह के लकडी के ग्लास मे पानी पीने के बाद पाँच घेरो मे मूत्र विसर्जन करना होगा। उसके कुछ समय बाद मै रोग का कारण बता पाऊँगा। रोगी और उसके परिजन पूरी तत्परता से यह कार्य करने लगे। इस जंगल यात्रा मे निकलने के कुछ दिनो पहले ही से एक पारिवारिक मित्र मुझसे लगातार सम्पर्क कर रहे थे। उनकी पत्नी पिछले तीन महिनो से परेशान थी। दिन भर हल्का ज्वर रहता थ