अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -43
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -43 - पंकज अवधिया एक बार हम शाम के वक्त घने जंगल मे रात को कैप लगाने के उद्देश्य से जगह खोज रहे थे। मै आगे चल रहा था। पारम्परिक चिकित्सक और सहायक पीछे। एक खुली जगह नजर आयी तो मैने वही कैम्प लगाने का निश्चय किया। पारम्परिक चिकित्सको ने निर्णय लेने से पहले कुछ रुकने को कहा। फिर आस-पास घूमने के बाद बोले कि यह जगह खतरो से भरी है। आगे बढना होगा। साथ चल रहे दिल्ली से आये एक मित्र ने असहमति जतायी। वे ट्रेकिंग पर अक्सर जाया करते थे। उन्हे लगा कि समतल और खुली जगह ही उपयुक्त है। हम रुककर बहस करने लगे। पारम्परिक चिकित्सको ने जगह के अनुपयुक्त होने की वजह बतायी। उन्होने काली मूसली नामक वनस्पति की ओर इशारा किया और बोले कि इसके कन्द भालूओ और जंगली सुअरो को बहुत पसन्द है। वे रात को इसे खाने अवश्य आते होंगे। ऐसे मे कैम्प लगाकर जबरदस्ती खतरा मोल लेना ठीक नही है। मित्र ने कहा कि हम आग जलायेंगे। देखते है फिर कौन पास आता है। पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि भालू बहुत ही जिज्ञासु और शरारती होते है। यदि उन्हे कैम्प दिख गया तो पास जरुर आयें...