अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -107
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -107 - पंकज अवधिया “आतंकवादी जैसे ही राजनेता के घर घुसे सुरक्षा कर्मी पीछे लग गये। आतंकवादी दीवार तो लाँघ गये पर वनस्पतियो की बाड के सामने आकर ठिठक गये। उनका सिर घूमने लगा और पलक झपकते ही वे बेसुध होकर गिर गये। पीछे आ रहे सुरक्षा कर्मी भी बाड तक पहुँचे पर उनके ऊपर कोई असर नही हुआ। उन्होने मजे से आतंकवादियो को पकडा और अपने काम मे लग गये।“ “मीलो तक बारुदी सुरंगे फैली थी। सेना आगे बढे भी तो कैसे? इन बारुदी सुरंगो को यदि खोजने और नष्ट करने मे सेना जुटे तो उसे कई दशक लग जायेंगे। उसके पास बहुत से वाहन तो है पर वह पूरी तरह से आश्वस्त नही है। सेना को मन-मसोसकर अपना अभियान रोकना पडता है। तभी किसी की सलाह आती है कि साहसी मनटोरा को बुला लिया जाये। आनन=फानन मे मनटोरा के गाँव हेलीकाप्टर भेजा जाता है। मनटोरा झट से आ जाती है। आखिर भारतीय रक्षको ने जो उसे याद किया था। अपने साथ वह पोटली मे भरकर कुछ बीज ले आती है। सेना के पास पहुँचते ही वह बीजो को एक घोल मे डुबोती है और बारुदी सुरंग वाले भाग...