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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109 - पंकज अवधिया अहमदाबाद विमानतल से जैसे ही हमारे विमान ने उडान भरी बगल मे बैठे सज्जन बडे ही बैचैन दिखायी दिये। यह असामान्य बात नही थी क्योकि अक्सर उडान के समय बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते है। जैसे-जैसे विमान ऊपर जाने लगा वे खिडकी से झाँककर नीचे देखने लगे। नीचे देखते हुये कुछ बुदबुदाते और फिर बार-बार कान पकडकर क्षमा माँगते। कुछ समय बाद तो वे रोने लगे। मुझसे रहा नही गया। मैने कहा कि यदि डर लग रहा है तो नीचे न देखे। मुझसे बात करे। डर की कोई बात नही है। वे कुछ नही बोले बस रोते रहे। जब विमान सीधा हो गया तो एक सहयात्री जो कि उनकी ही उम्र के थे, ने उनसे इस सब का कारण पूछा। “क्या यह आपका पहला सफर है?” उनका पहला प्रश्न था। “नही, मै तो सप्ताह मे चार बार मुम्बई से आना-जाना करता हूँ।“ यह उत्तर चौकाने वाला था। “दरअसल नीचे शहर मे हमारा मन्दिर है। जब विमान से आसमान की ओर जाता हूँ तो मुझे अपराध-बोध होता है कि मै भगवान से ऊपर पहुँच गया हूँ। इसलिये मंत्र बुदबुदाते हुये और रोते हुये कुछ प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -103

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -103 - पंकज अवधिया “एकाध भूत-प्रेत दिखा दो, अर्जुन। इतनी दूर से आया हूँ और फिर तुम तो बैगा भी हो।“ यूँ ही मजाक मे मैने साथ चल रहे अर्जुन बैगा से कहा। आँखो मे लगा काला चश्मा बता रहा था कि अभी-अभी उसका आपरेशन हुआ है मोतियाबिन्द का। मजे से वह मेरे साथ पास के खेत जाने के लिये चल रहा था। “अब मैने भूत-प्रेत का काम छोड दिया है। हाँ, जडी-बूटी का काम करता हूँ। वैसे भी अब बिजली आ जाने से भूत-प्रेत दिखते नही है। दिखते भी है तो पकड मे नही आते है। इसलिये मैने यह काम छोड दिया है। बस अब अपनी खेती की देखभाल करता हूँ।“ इस भूतपूर्व भूत-प्रेत विशेषज्ञ से बात करना दिलचस्प लग रहा था। छत्तीसगढ की राजधानी से सटे एक गाँव मे अर्जुन बैगा जवानी मे अपनी तंत्र विद्या के लिये पूरे क्षेत्र मे जाना जाता था। बिगडे गाँवो को सुधारने का जिम्मा उसी का था। उसकी प्रसिद्धि मुझे उस तक खीच लायी थी। रायपुर के आस-पास के गाँवो मे जमीन के भाव आसमान छू रहे है। अर्जुन ने बताया कि उसके पास ढाई एकड है और एक एकड के लिये लोग प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -101

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -101 - पंकज अवधिया “क्या किसी विशेष बीमारी के मरीज बढ रहे है आजकल?” मै अक्सर अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान पारम्परिक चिकित्सको से यह प्रश्न पूछ लेता हूँ। कभी-कभी चौकाने वाले जवाब मिलते है। इन चौकाने वाले जवाबो को मै अपने डेटाबेस मे दर्ज कर लेता हूँ। साथ ही इसमे आधुनिक वैज्ञानिक शोधो को भी शामिल कर लेता हूँ। इस बार छत्तीसगढ मे मैदानी भागो के पारम्परिक चिकित्सको ने बताया कि बडे शहरो से यकृत (लीवर) की खराबी वाले बहुत से मरीज आ रहे है। ये मरीज सभी उम्र के है। जब हम उनसे खान-पान के बारे मे पूछते है तो सभी मरीजो के एक चीज समान होती है। बहुत से मरीजो ने हमे वह चीज लाकर भी दिखायी पर हम समझ नही पाये। आप ही बताइये, ये क्या चीज है? इसके बारे मे शहरो मे अन्ध-विश्वास है कि इसे पीने से सारे रोग मिट जाते है। किसी तरह की बीमारी नही होती। इसके लिये लोग पानी की तरह पैसे बहाते है और फिर लीवर की बीमारी के साथ हमारे पास आ जाते है। पारम्परिक चिकित्सको की बात सुनकर मैने वह चीज देखी तो चौक पडा।...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81 - पंकज अवधिया मध्य रात्रि अचानक अजीब सी आवाज से मेरी नीन्द खुल गयी। चारो ओर घुप्प अन्धेरा था। मै उठ बैठा। आवाज ऊपर से आ रही थी। सिर उठाया तो कुछ दिखा नही। कुछ देर बैठने के बाद मुझे याद आया कि यह मेरा घर नही था। मै तो घास-फूस से बनी एक झोपडी मे सो रहा था। यह बुधराम की झोपडी थी। कुछ दूरी पर वह सोया हुआ था। रात का सन्नाटा था। जंगली जानवरो को दूर रखने के लिये जलायी गयी आग ठंडी हो चुकी थी। झोपडी के बाहर गाडी थी जिसमे ड्रायवर सो रहा था। यह मेरी ही जिद थी झोपडी के अन्दर सोने की। नही तो ड्रायवर तो पास के शहर के किसी लाज मे ठहरने की जिद करके थक चुका था। बुधराम के लिये ऐसी जगह पर सोना रोज की बात थी। पर मेरे लिये यह अजीब अनुभव था। झोपडी गाँव के बाहर थी और आस-पास खेत थे। कुछ दूर पर जंगल था। जंगली जानवर अक्सर गाँव मे आ जाया करते थे पर डरने की कोई बात नही है, ऐसा कहकर बुधराम ने मुझे आश्वस्त करने की कोशिश की थी। जंगल के देवता पर उसे बहुत विश्वास था। वे अकारण की किसी को सजा नही देते, उसने य...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -79

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -79 - पंकज अवधिया पिछले दिनो दूर कस्बे से कुछ रिश्तेदारो का आना हुआ। उनकी गाडी सुबह-सुबह आयी। यह मेरे सोने जाने का समय था। उनसे मुलाकात नही हो पायी। उन दिनो मधुमेह की वैज्ञानिक रपट पर जोर-शोर से काम चल रहा था। कुछ घंटो की नीन्द के बाद मै फिर से कम्प्यूटर पर पिल पडा। वही ब्रश किया, फिर नाश्ता और भोजन भी वही आ गया। रिश्तेदार एक सप्ताह तक रुकने वाले थे। इसलिये सोचा कि उनसे कल मिल लूंगा। घर के बाकी सदस्य आवभगत मे लगे रहे। रपट का फेर ऐसा रहा कि मै 22 घंटे से अधिक इसी मे फँसा रह गया। अब रिश्तेदारो से रहा नही गया। मेरी मामी ने कमरे मे प्रवेश किया। उनके हाथ मे एक कपडा था। मैने उठकर अभिवादन किया तो उन्होने चुप रहने का इशारा किया। उन्होने कपडे को सात बार सिर पर घुमाया और फिर जैसे आयी थी वैसे ही चली गयी। मुझे यह सब अटपटा लगा। मैने काम समेटना ही उचित समझा। तभी बाहर किसी चीज के जलने की बास आयी। मै बाहर भागा तो देखा कि मामी उसी कपडे को जला रही थी। घर वालो की तरफ देखा तो उन्होने शांत रहने क...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78 - पंकज अवधिया “जिन लोगो की अनामिका, कनिष्ठा से बडी होती है वे लोग उनकी तुलना मे अधिक आक्रामक होते है और अधिक धनार्जन करते है जिनकी कनिष्ठा, अनामिका से बडी होती है।“ आप सोच रहे होंगे कि मै किसी देशी हस्त-रेखा विशेषज्ञ से सुनकर यह बता रहा हूँ। पर इस शोध निष्कर्ष तक पहुँचे है कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक। दुनिया भर मे इस शोध के विषय मे विस्तार से लिखा गया है। मुझे यह खबर मेरे हस्त-रेखा विशेषज्ञ मित्र से मिली जो गुस्से से भरकर कल मिलने आये। वे “अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” की यह लेखमाला बडे ध्यान से लगातार पढ रहे है। उनके मन मे ढेरो प्रश्न है पर मै उन्हे समय नही दे पा रहा हूँ। जब उन्होने बीबीसी की वेबसाइट पर यह समाचार पढा तो उनसे रहा नही गया और ढेरो अखबारी कतरनो के साथ आ धमके। उनका कहना था कि भारतीय ज्योतिष के आधार पर उन्होने कई बार अपने लेखो मे इस तथ्य को लिखा पर हर बार इसे अन्ध-विश्वास बताकर इसका माखौल उडाया गया। अब जब यही बात विदेशी वैज्ञानिक कह रहे है तो कोई विरोध न...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -77

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -77 - पंकज अवधिया “विनम्र निवेदन है कि मुझे मेरे गाँव के एक बुजुर्ग आदमी ने गाँव की एक बहुत पुरानी घटना के बारे मे बताया था। गाँव के एक परिवार मे मुखिया (मालिक) पुरुष खेत जोत रहा था। वहाँ उसने कौआ और कौव्वी (नर+मादा) को जोडा खाते (सम्भोग करते) हुये देख लिया था तो उसने सोने का कौवा और कौव्वी बनवाकर उसी स्थान पर रख दिया। उसके बाद उसकी पत्नी ने सोने के कौवा और कौव्वी को लालच मे आकर चुरा लिया। इससे उसका पूरा परिवार नष्ट हो गया। इसी तरह की घटना मेरे साथ भी सन 2007 मे हुयी कि मेरी पुत्री बीमार थी जो लखनऊ अस्पताल मे भर्ती थी। मै घर रुपया लेने आया तो प्रात: दस बजे कौवा-कौव्वी को वही सब करते देखा। पर मुझे यह निश्चित नही है कि वे नर और मादा ही थे। मै अस्पताल चला गया। मेरी पुत्री का इलाज चलता रहा। इस बीच मेरी पत्नी घर आयी तो एक पंडित ने विचार करके बताया कि आप चाहे तो बिटिया के बराबर रुपये लगा दे पर वह ठीक नही होगी। वही हुआ और पुत्री की मौत हो गयी। मेरी एक पुत्री थी और दो पुत्र है। जो कष्ट...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -73

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -73 - पंकज अवधिया “शनि का दोष है। ग्रह शांति करानी पडेगी और इतने धान से क्या होगा? कुछ और दो। कोदो ही दे दो। ओये बुढिया यदि पति से पहले मरकर पुण्य कमाना है तो आँगन मे रखी बडियाँ दे दो। चाय तो पिला दो। यदि हम नाराज हो जाये तो सर्वनाश हो जायेगा।“ स्थानीय भाषा मे दो लोगो को इस तरह बोलते देखकर मै दंग रह गया। मैने अभी ही एक बूढे किसान के झोपडे मे प्रवेश किया था। किसान लेटा हुआ था और ये लोग उसे यह सब सुना रहे थे। बिसाहू की हालत अच्छी नही है यह तो मुझे पता था पर इतनी बिगड जायेगी यह नही सोचा था। बुढापे के कारण गठिया की समस्या हो गयी थी। पहले वह अपने बेटो के साथ खेती किया करता था। बेटो को रात मे घर भेजकर अकेले ही जंगली जानवरो से फसल की रक्षा करने मचान पर पहरा देता रहता। बडा ही जीवट वाला इंसान है वह। पर जैसे ही गठिया की समस्या ने उसे घेरा बेटो ने साथ छोड दिया। कुछ महिनो पहले जब मै उसके पास गया तो छोटा बेटा साथ मे था। पर अब वह, उसकी माँ और पत्नी ही उस झोपडे मे थे। बिसाहू बिस्तर से उठ नही प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -72

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -72 - पंकज अवधिया “काका, मैने आज बवंडर मे बूढी दादी का चेहरा देखा। काका, मुझे बहुत डर लग रहा है। दादी अब नही बचेगी।“ कुछ ऐसे ही शब्द थे बाल-पत्रिका मे छपे एक लेख मे। इस लेख मे दावा किया गया था कि यह सत्य घटना पर आधारित है। इसमे एक ऐसे बालक का वर्णन किया गया था जिसे छोटे-छोटे बवंडरो मे परिचित चेहरे दिखा करते थे। जिसका चेहरा दिखता था वह दूसरे ही दिन परलोक सिधार जाता था। बडा ही लम्बा लेख था और उसमे उत्तर भारत के कुछ स्थानो के नाम भी लिखे थे जिससे जान पडे कि यह सत्य घटना है। बचपन मे पढा यह लेख मन मे गहरे बैठा है। मुझे आज भी यह सोचकर अजीब लगता है कि उस समय बालपत्रिका मे इसे क्यो प्रकाशित किया गया था। घर मे पराग और नन्दन के अलावा दूसरी पत्रिका नही आती थी। यह लेख मैने स्कूल की लाइब्रेरी मे पढा था। आज भी जब मै ऐसे बवंडरो को देखता हूँ तो सहसा इस लेख का ध्यान आ जाता है। स्कूल के बाद मै अपनी यात्राओ के दौरान जब भी मौका पडता लोगो से इन बवंडरो से जुडे विश्वास के बारे मे पूछ लेता। जितनी मुँह,...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70 - पंकज अवधिया ‘इसने मीठा खा लिया। देखियेगा साहब, अब ये कौवा संतो की तरह बोलेगा।“ तांत्रिक ने जैसे ही ऐसा कहा हमारे दल ने कैमरा तान लिया। दो वीडियो कैमरे थे दल के सदस्यो के पास। एक कैमरा मै रखे हुये था। पर कौवा कुछ बोले ही न। हमने आधे घंटे तक इंतजार किया फिर एक घंटे भी हुये। तांत्रिक ने फिर से उसे मीठा खिलाया पर नतीजा सिफर रहा। मीठा माने शक्कर और बबूल की गोन्द का मिश्रण। इसे मिलाने के बाद डबलरोटी के टुकडो मे इसे भिगोकर कौवे को खिलाया गया। तांत्रिक यह दावा कर रहा था कि इसे खाने के बाद कौवा प्रसन्न होकर कुछ आवाजे निकालेगा। यदि इस आवाज को ध्यान से सुना और समझा जाये तो इसमे जीवन का फलसफा मिलेगा। कौवा खाता रहा पर उसने आवाज नही निकाली। हमने पूरे नाटक का फिल्माँकन किया और अब जब भी व्याख्यान देने जाते है, सबसे पहले यही दिखाते है। न केवल बच्चो बल्कि बुजुर्गो की हँसी भी नही रुकती है। दल के सदस्यो ने इस एक लघु फिल्म का स्वरुप दे दिया है। इसमे तांत्रिक द्वारा किये गये दावे को पहले दिखाया...