अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70 - पंकज अवधिया

‘इसने मीठा खा लिया। देखियेगा साहब, अब ये कौवा संतो की तरह बोलेगा।“ तांत्रिक ने जैसे ही ऐसा कहा हमारे दल ने कैमरा तान लिया। दो वीडियो कैमरे थे दल के सदस्यो के पास। एक कैमरा मै रखे हुये था। पर कौवा कुछ बोले ही न। हमने आधे घंटे तक इंतजार किया फिर एक घंटे भी हुये। तांत्रिक ने फिर से उसे मीठा खिलाया पर नतीजा सिफर रहा। मीठा माने शक्कर और बबूल की गोन्द का मिश्रण। इसे मिलाने के बाद डबलरोटी के टुकडो मे इसे भिगोकर कौवे को खिलाया गया। तांत्रिक यह दावा कर रहा था कि इसे खाने के बाद कौवा प्रसन्न होकर कुछ आवाजे निकालेगा। यदि इस आवाज को ध्यान से सुना और समझा जाये तो इसमे जीवन का फलसफा मिलेगा। कौवा खाता रहा पर उसने आवाज नही निकाली। हमने पूरे नाटक का फिल्माँकन किया और अब जब भी व्याख्यान देने जाते है, सबसे पहले यही दिखाते है। न केवल बच्चो बल्कि बुजुर्गो की हँसी भी नही रुकती है। दल के सदस्यो ने इस एक लघु फिल्म का स्वरुप दे दिया है। इसमे तांत्रिक द्वारा किये गये दावे को पहले दिखाया जाता है फिर पूरी प्रक्रिया उसे करने को कहा जाता है। और जब प्रक्रिया असफल होती है तो तांत्रिक की बहानेबाजी भी दिखायी जाती है। चन्द मिनटो की ऐसी फिल्मो का गहरा असर पडता है और जो बात घंटो के व्याख्यान से नही हो पाती, वह ऐसी फिल्मो से हो जाती है।

पारम्परिक चिकित्सा मे बहुत सी वनस्पतियो को गर्भवती महिलाओ के शरीर के विभिन्न भागो मे बाँध दिया जाता है ताकि प्रसव मे आसानी हो। इस पर प्राचीन भारतीय ग्रंथो मे भी विस्तार से लिखा गया है। मैने इस पर विस्तार से पिछले लेखो मे लिखा है। एक बार उडीसा से किसी का पत्र आया कि वहाँ तांत्रिक यह दावा करता है कि बारहसींगे के सींग को यदि स्तन मे विशेष स्थान पर बाँध दिया जाये तो प्रसव सुगमतापूर्वक हो जाता है। पत्र मे कहा गया था कि आप गाँव आये ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। ऐसे पत्रो को पाकर मन प्रसन्न होता है पर सब जगह तो जाया नही जा सकता। पत्र का जवाब न मिलने पर वहाँ से एक फोन आया। मैने गाँव का पता पूछा तो पता चला कि यह उडीसा-छत्तीसगढ सीमा पर है। कहने को उडीसा है पर गाँव मे ज्यादातर छत्तीसगढिया है। बरसात का दिन था। हमने रसेला-पतोरा वाला रास्ता चुना। एक कैमरामैन हमारे साथ था। एक उसका सहयोगी। मै और मेरा ड्रायवर, कुल चार लोग। हम सुबह से निकले । पिछली रात भारी वर्षा के कारण नदी-नाले उफान पर थे। सूखा नदी पर उस समय पुल नही था। उफनती नदी मे लोग जान-जोखिम मे डालकर डोंगियो की सहायता से नदी पार कर रहे थे। मैने अनावश्यक जोखिम लेने से इंकार कर दिया। मेरे अलावा शेष तीनो नदी पारकर तांत्रिक के पास जाने को बेसब्र थे। काफी विचार-विमर्श के बाद यह तय हुआ कि मै गाडी के पास रुक जाऊँगा और शेष लोग फिल्माँकन करने जायेंगे। वे लोग चले गये। पाँच घंटो बाद लौटे तो उनके चेहरे पर खुशी थी। उन्होने बताया कि तांत्रिक का दावा सही था। उसने यह प्रयोग करके हमे दिखाया और हमने एक-एक पल की तस्वीर ली है। मैने फिल्म देखी तो मुझे विश्वास नही हुआ। हम लोग वापस आ गये। बाद मे पारम्परिक चिकित्सको से मैने इस पर चर्चा की तो कुछ ने इसका समर्थन किया जबकि कुछ ने कहा कि हमने सुना है पर करके नही देखा है।

इस यात्रा के कई महिनो बाद औषधीय धान के विषय मे जानकारी एकत्र करने जब मै उसी क्षेत्र मे पहुँचा तो तांत्रिक की याद आयी। उसके गाँव का रुख किया। हमारे पास भेजरी धान था जो अब मुश्किल से मिलता है। देवी उपासना मे ज्वारा के लिये इसी धान क उपयोग पीढीयो से होता रहा है। पर अब जब इसकी खेती नही होती है और किसान नयी जातियो को बोते है, तो देवी उपासको के लिये धर्मसंकट की घडी आ गयी है। विकल्प के तौर पर नयी जातियो का उपयोग गाँव वाले कर लेते है पर तांत्रिक और दूसरे उपासक भेजरी की तलाश मे होते है। मैने उपहार के तौर पर यह धान तांत्रिक को दिया। वह प्रसन्न हो गया। झट से अन्दर गया और उतनी ही मात्रा मे दूसरा धान हमे दे दिया। उसने बताया कि यह भर्री धान है और अनुष्ठानो मे वो इसका प्रयोग करता है। गाँव मे इसे कोई नही बोता। बस वही इस बीज को बचाये हुये है। बाद मे जब मैने अपने डेटाबेस मे इस धान के विषय मे जानकारी खोजी तो इसका असली नाम पता चला। यह भी पता चला कि उत्तर छत्तीसगढ के बहुत से पारम्परिक चिकित्सक कैसर के रोगियो को यही धान खाने को देते है। उन पारम्परिक चिकित्सको को धान की कमी हो रही थी। मैने मन ही मन सोच लिया कि तांत्रिक से मिला उपहार मै अकेले नही रखूंगा। उत्तर के पारम्परिक चिकित्सको को भी दूंगा ताकि महत्वपूर्ण पारम्परिक चिकित्सा जारी रह सके। बहरहाल, बारहसींगे के सींग की चर्चा आरम्भ हुयी। तांत्रिक ने याद किया और बताया कि कुछ लोगो ने आकर फिल्माँकन किया था। उसके अनुसार उसने गाँव के एक पारम्परिक चिकित्सक से यह विधा सीखी थी। इसका तंत्र से लेना-देना नही है। उसने यह भी बताया कि तीस प्रकार की वनस्पतियाँ भी यह काम कर सकती है। जरुरी नही कि बारहसींगे का सींग ही काम मे लाया जाये। अब फिल्माँकन के लिये मैने इसका प्रयोग करके दिखा दिया। तांत्रिक से ऐसे जवाब की आशा नही थी। मैने अपना कैमरा निकाला और पूरी बात रिकार्ड की। यह मेरे लिये एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हो गया। मै इसे व्याख्यान के दौरान दिखाता हूँ और लोगो से कहता हूँ कि यदि सस्ते विकल्पो का प्रयोग किया जाये तो वन्य प्राणियो की रक्षा हो सकती है। सुदूर गाँव का तांत्रिक यदि यह बात कहता है तो शहर के लोगो को तो जाग जाना ही चाहिये और ऐसी तंत्र की वस्तुओ का प्रयोग बन्द कर देना चाहिये जिनसे बेकसूर वन्य जीवो का जीवन छिन जाता है। उन्हे दूसरे देशो के आदिवासियो का उदाहरण भी देता हूँ जिन्होने हाथी दाँत की जगह जंगली फलो के सफेद बीजो का प्रयोग करके आभूषण बनाने का बीडा उठाया है। देखने मे पारखी भी गच्चा खा जाते है कि ये हाथी दाँत का काम नही बल्कि जंगली फलो के बीजो का काम है। इन्हे ‘बायो-ज्वेल’ का नाम मिला है। अपने देश मे भी ऐसी पहल की आवश्यकत्ता है।

पहले मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान की वैज्ञानिक रपट और फिर औषधीय धान की रपट मे मै इतना उलझ गया हूँ कि अपने एक छोटे से स्वप्न को मूर्त रुप प्रदान नही कर पा रहा हूँ। यह स्वप्न है एक छोटी-सी आन-लाइन डिजीटल लाइब्रेरी बनाने का जिसमे अन्ध-विश्वास पर मेरी फिल्मो, लेखो और व्याख्यानो को दुनिया मे कही भी देखा, पढा और सुना जा सके। मान लीजिये किसी तांत्रिक ने दावा किया कि उल्लू की खोपडी से पैसे पल मे दुगुने हो जाते है तो लोग सीधे इस डिजीटल लाइबेरी मे आये और इस पर सही दिशा देने वाली फिल्मो और साहित्यो के माध्यम से तुरंत जान जाये कि दाल मे कुछ काला है। वे और लोगो को भी जागरुक करे और इस तरह ठगो के पैर उखड जाये। छोटी फिल्मे बनाना तो आजकल साधारण सी बात हो गयी है। हम लोगो से आग्रह कर सकते है इस डिजीटल लाइबेरी के लिये अपना योगदान दे। हर दावे को सिरे से खारिज करने की बजाय हम वैज्ञानिक विश्लेषण और तथ्यो के साथ प्रस्तुत होंगे। यदि दावा सही निकलेगा तो इस ज्ञान को देश की धरोहर के रुप मे पारम्परिक ज्ञान कोष मे उसी के नाम से दर्ज कर लेंगे। देखिये, कब यह स्वप्न साकार होता है। (क्रमश:)


(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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