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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36 - पंकज अवधिया रात बारह तक फोन आना मेरे लिये आश्चर्य का विषय नही है पर कुछ सप्ताह पूर्व रात को दो बजे जंगली इलाको से दो फोन आये। पहला फोन उसी सर्प विशेषज्ञ का था जिसके विषय मे पहले मैने लिखा है। कैसे फोन किये गणेश? मैने पूछा। उसने बताया कि एक ग्रामीण महिला रात को जब शौच के लिये उठी तो उसे जहरीले साँप ने काट लिया। उसके घरवाले आनन-फानन मे उसके पास आये है। इलाज शुरु ही होने वाला है। यदि सम्भव हो तो आप आ जाये। सामने-सामने देख लीजियेगा कैसे जहर उतारते है हम लोग। मुझे उसकी बात पर हँसी भी आयी और गुस्सा भी। रात को दो बजे फोन किया था। मै अभी घर से निकलता तो घंटो लगते उस तक पहुँचने मे। पहले मैने गणेश को लोगो की सेवा करते देखा है। अब फिर बार-बार फोन की क्या जरुरत? गणेश अभी भी फोन पर था। उसने कहा कि यदि आप आ रहे है तो हम रुक भी सकते है। मैने कडे शब्दो मे कहा कि इलाज मे देरी मत करो। मै अभी नही आ सकता पर अगले हफ्ते जरुर आऊँगा। ऋषिपंचमी के दिन ली गयी तस्वीरो को फ्रेम मे लगवाकर परसो मै गणेश के पास पहुँचा। उसने तस्वीरे तो रख ली...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -23

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -23 - पंकज अवधिया कुछ वर्ष पहले मै सतना से अमरकंटक जा रहा था सडक मार्ग से। यह व्यवसायिक दौरा था और हमे अमरकंटक मे जडी-बूटियो की उपलब्धता की जानकारी एकत्र करनी थी। हम तीन लोग थे और ड्रायवर को मिलाकर चार। गाडी मारुति वैन थी। रास्ते मे जब हमारी व्यापारिक चर्चा खत्म हो गयी तो इधर-उधर की बाते होने लगी। अन्ध-विश्वास पर भी लम्बी बात हुयी। इस बीच हमारा ध्यान ड्रायवर की ओर गया जो हर मन्दिर के आगे हार्न बजाता था। उसे भी पट्टी पढाकर ऐसा करने से मना कर दिया गया। फिर भी मौका पाकर वह हार्न बजा ही लेता था। शाम का समय था हम जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक ड्रायवर ने गाडी रोक दी। उसके चेहरे मे डर था। वह सामने देख रहा था एकटक। हमने भी उस दिशा मे देखा तो रास्ते मे बीचो-बीच कुछ सामान पडा नजर आया। ड्रायवर ने साफ कह दिया कि किसी ने जादू का सामान फेका है अब मै इस रास्ते से नही जाऊँगा। तो फिर किधर से जाओगे? हमने पूछा तो बोला कि बगल वाले कच्चे रास्ते से चलेंगे। हमे रास्ता नही दिखा। वैसे ही यह मध्यप्रदेश की सडक थी। मुख्य मार्ग ही कच्चे रास...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21 - पंकज अवधिया अपना बागीचा दिखाते हुये मेरी एक परीचित महिला शान से विदेशो से ऊँचे दामो पर मंगाये पौधो को दिखा रही थी। तभी मेरी नजर एक ऐसे पौधे पर पडी जिसे उस घर मे बिल्कुल नही होना चाहिये जहाँ बच्चे और पालतू जानवर हो। महिला ने उस पौधे की ओर इशारा करते हुये बताया कि यह जैट्रोफा पाडएग्रिका है। यह बायोडीजल के लिये लगाये जा रहे जैट्रोफा का सुन्दर रिश्तेदार है। मैने उनसे कहा कि इसे आपके घर मे नही होना चाहिये विशेषकर लान के पास जहाँ सभी बैठते है। मेरी बात सुनकर वे बोली कि क्या आप वास्तु वाले है? वास्तु वालो ने भी हमे कई बार कहा कि इसे यहाँ से हटा दे। मैने खुलासा किया कि बहुत से विदेशी पौधे बच्चो और पालतू जानवरो के लिये नुकसानदायक होते है। इस पौधे से जो लेटेक्स निकलता है किसी भाग को तोडने से, वह यदि त्वचा मे लग जाये या आँख मे चला जाये तो समस्या हो सकती है। बडे बच्चो को तो समझाया जा सकता है पर छोटे बच्चो मे उत्सुकता कुछ ज्यादा ही होती है। वे पत्तियो को खा भी सकते है। उन्होने याद कर कहा कि एक बार मेरे छोटे ब...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20 - पंकज अवधिया जंगलो से गुजरते हुये मै साथ बैठे ग्रामीणो से बातचीत कर रहा था। मुझे बताया गया कि इस बार माता का प्रकोप बहुत होगा पूरे क्षेत्र मे। माता मतलब चिकन पाक्स। कैसे पता? मैने पूछा। गाँव के एक बुजुर्ग का कहना है। बिना विलम्ब मैने ड्रायवर से गाडी उस दिशा मे मोडने को कहा जहाँ इस बुजुर्ग का गाँव था। उबड-खाबड सडक पार कर हम गाँव पहुँचे। बुजुर्ग का घर गाँव के आखिर मे था। उन्होने मेरी बात सुनी और कहा कि उन्हे वनस्पतियो के आकार और रंग मे आये परिवर्तन से यह पता चल जाता है कि किस तरह की बीमारी क्षेत्र मे इस बार फैलने वाली है। ऐसी बात सुनकर आप अपने किताबी ज्ञान के आधार पर बिना किसी देरी के हँस पडेंगे और माखौल उडाने लगेंगे। पर लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण करते हुये मैने अपने अनुभव से यह सीखा है कि इस कार्य के लिये असीम धैर्य की जरुरत है। आपको सभी तरह की बाते सुननी पडती है। चाहे वह विज्ञान सम्मत हो या न हो। विज्ञान मतलब आज का विज्ञान या कहे अभी तक का विज्ञान। विज्ञान मे तो नित नयी बातो का...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19 - पंकज अवधिया कुछ वर्षो पहले हमारे घर पर झाडू-पोछा का काम करने वाली महिला ने बताया कि उसके पास एक चमत्कारिक रोटी आयी है। ऐसी रोटी जिसे रखने से मनचाही मुराद पूरी हो सकती है। रोटी को सहेज कर रखना है और कुछ नियमो का पालन करना है। यदि सच्चे मन से सेवा की गयी तो रोटी डबल हो जायेगी। उसे यह भी कहा गया कि दूसरी रोटी को किसी और श्रद्धालु को दे देना जिससे तुम्हे लगाव हो। परिवार के सदस्यो से होते हुये यह बात मुझ तक पहुँची। मैने विस्तार से जानकारी माँगी। मुझे बताया गया कि रोटी रखने वाले को सात दिन तक उपवास करना होगा। सन्यम बरतना होगा। रोटी के ऊपर चाय पत्ती और शक्कर चढानी होगी नियमित तौर से। मैने अन्ध-विश्वास दूर करने वाली संस्था से सम्पर्क किया और उनके साथ ऐसी रोटी देखने चल पडा। रास्ते मे इसके विषय मे और भी बहुत सी चमत्कारिक बाते सुनने को मिली। जब हमने रोटी को देखा तो उसमे रोटी जैसे कोई गुण नही दिखे, आकार को छोड कर। यह तो चिपचिपी द्रव मे डूबी रोटी जैसी कोई चीज थी जिससे खट्टी गन्ध आ रही थी। हम तो सिकी हुयी रोटी की कल...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -18

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -18 - पंकज अवधिया छत्तीसगढ मे बरसात के दिनो मे अपने आप उगने वाली वनस्पति चरोटा को सभी जानते है। इसका वैज्ञानिक नाम कैसिया टोरा है। यह बेकार जमीन, मेडो और कभी-कभी खेतो मे भी उग जाती है। इस वनस्पति की नयी पत्तियो जिसे आम बोलचाल की भाषा मे बालक पत्ती कहा जाता है, से साग बनायी जाती है और बडे चाव से खायी जाती है। इस तरह से बरसात मे अपने आप उगने वाली दसो वनस्पतियो का प्रयोग भाजी के रुप मे होता है। इनमे बाम्बी, मुस्कैनी, मछरिया, बर्रा आदि प्रमुख है। राज्य के पारम्परिक चिकित्सक बताते है कि इन वनस्पतियो का प्रयोग स्वाद तक सीमित नही है। इनके प्रयोग से साल भर लोग रोगो से बचे रहते है। विशेष रोगो की चिकित्सा मे इसकी विशेष भूमिका है। जैसे चरोटा का प्रयोग शरीर की सफाई करता है और जोडो के दर्द के लिये यह रामबाण है। मछरिया भाजी के प्रयोग से महिलाए साल भर रोगो से बची रहती है। अब धीरे-धीरे इन भाजियो का प्रयोग समाप्त होता जा रहा है। यह कहा जाता है कि फुलपैंट पहनने वाले लोग मुफ्त की भाजी नही खाते है। वे बाजार से कीमती भाजी खरीदते ...