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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -85

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -85 - पंकज अवधिया मुझे याद आता है, बचपन मे जब भी हमारी रेलगाडी किसी नदी के ऊपर से गुजरती थी तो कोई नदी को नमन कर मंत्रोप्चार शुरु कर देता था तो कोई नीचे सिक्के फेक देता था। बडी नदी नही बल्कि छोटी नदियो के प्रति भी लोगो का झुकाव देखा जा सकता था। बहुत बार नदी मे नहाते समय रेल्वे ब्रिज से रेलगाडी गुजरने पर हम लोग सिक्के या फूल माला फेके जाने की प्रतीक्षा करते थे। सभी दर्जे मे सफर करने वालो के मन मे नदियो के प्रति आस्था होती थी। एसी मे सफर करने वाले नदी के पास आते ही लपककर दरवाजे पर पहुँच जाते थे। कालेज टूर के दौरान दक्षिण मे भी मैने यह सब देखा। पर पता नही पिछले दस सालो मे ऐसा क्या हो गया कि लोगो की आस्था घट गयी। ऐसा नही है कि इन सालो मे नदी का महत्व कुछ घट गया है बल्कि जनसंख्या मे बढोतरी होने के कारण नदियो का महत्व और उनकी आवश्यकत्ता और बढ गयी है। कुछ महिनो पहले एक रेलयात्रा के दौरान मैने एसी के डिब्बे मे इस तरह की प्रतिक्रिया नही देखी तो पीछे के डिब्बो मे जाने का मन बनाया। वहाँ भी...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -65

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -65 - पंकज अवधिया “ अरे रुकिये, रुक जाइये, ये पानी नही जहर है। अब रुक भी जाइये।“ रायगढ के मुडागाँव के आस-पास एक बोरवेल मे हाथ धोने के लिये जैसे ही मै बढा साथ चल रहे स्थानीय व्यक्ति ने चेतावनी दी। जब हम मुडागाँव पहुँचे तो भयावह वास्तविकता का आभास हुआ। यहाँ बडी संख्या मे लोग पानी के शिकार मिले। किसी की पीठ अकड गयी थी तो किसी ने खाना-पीना छोड दिया था। उन्नीस-बीस साल के युवक बच्चे की तरह दिखते थे। पानी ने उनका शारीरिक विकास रोक दिया था। उनके पैर मुड गये थे। वे लकडी के सहारे के बिना एक कदम भी नही चल सकते थे। पूरे समय शरीर मे असहनीय दर्द होता रहता था। सारा कसूर पानी का था। इसमे फ्लोराइड की अधिक मात्रा थी। लम्बे समय से लोग प्रभावित थे। प्रशासन ने शुद्ध पानी के टैकर खडे करवा दिये थे पर जब हम पहुँचे तो वे सम्पन्न लोगो के इलाके मे थे। गाँव से कुछ दूर दूसरे टोले मे लोग बीमार होने के बावजूद जहरीला पानी पी रहे थे। वे दूर से टैकर का पानी नही ला सकते थे। जहरीले पानी वाले बोरवेलो पर लाल रंग के...