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सावधान हो जाइए कि अब जापान का घातक रेडीयेशन आपकी दहलीज तक पहुंच रहा है

सावधान हो जाइए कि अब जापान का घातक रेडीयेशन आपकी दहलीज तक पहुंच रहा है -पंकज अवधिया जापान के फुकिशीमा संयंत्र से निकला रेडीयेशन (विकिरण) अब हजारों मील दूर कैलिफोर्निया तक पहुंच चुका है| रूस में इस रेडीयेशन से समुद्र में मछलियों के मरने की खबरें आ रही हैं| कैलिफोर्निया से हाल ही में रायपुर आये मित्र बताते हैं कि ऐसा बताया जा रहा है कि रेडीयेशन बहुत कम मात्रा में वहां पहुंचा है फिर भी हम नजर रखे हुए हैं| इस पर चर्चा कर रहे हैं और जितना सम्भव हो सके बारिश में भीगने से बच रहे हैं| इस बारिश से मुझे हाल ही में छत्तीसगढ़ में हुयी हल्की बारिश की याद आ गयी है| जब रेडीयेशन हजारों मील की दूरी तय कर सकता है तो जरुर यह हमारी दहलीज तक पहुंच चुका होगा और हमे बीमार करने की तैयारी कर रहा होगा| दुनिया भर के देश रेडीयेशन की मात्रा की पल पल में जांच कर रहे हैं| भारत में एक भी खबर ऐसी नही मिलती जिसमे हमारे तथाकथित जागरूक वैज्ञानिकों को ऐसा कुछ करते देखा गया हो| सारा देश या तो दिल्ली में चल रहे अंतहीन राजनीतिक ड्रामे में मशगूल है या फिर क्रिकेट के नश

कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर?

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कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर? - पंकज अवधिया पिछले दिनों सिरपुर मेले में जब मैंने कमर दर्द की शर्तिया दवा के रूप खुलेआम बिक रहे साल खपरी के शल्कों को देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा| साल खपरी यानि पेंगोलिन जिसे आम बोलचाल की भाषा में चीन्टीखोर भी कहा जाता है| छत्तीसगढ़ के वनों में एक ज़माने में ये बड़ी संख्या में थे पर लगातार शिकार होने से इनकी संख्या कम होती जा रही है| इससे जुडा अंध-विश्वास इसकी जान ले रहा है| प्रकृति ने इस जीव को जंगल में दीमकों की आबादी पर नियन्त्रण रखने के लिए बनाया है| इनकी कम संख्या अर्थात दीमकों का अधिक प्रकोप और अधिक दीमक माने जंगलों का सर्वनाश| वैज्ञानिक साहित्य बताते है कि एक पेंगोलिन अपने जीवन में जंगल में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में जो भूमिका निभाता है वह लाखों रूपये खर्च करके भी मनुष्य नही निभा सकता है| राज्य में शिकारी पिन्गोलिन की कीमत तीन से चार हजार रूपये लगाते हैं| शिकार के तुरंत बाद इसके मांस को खा लिया जाता है और शल्कों को बेच दिया जाता है| न केवल छत्तीसगढ़ बल्क

बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा

वर्ष २०११ की मेरी रोमांचक जंगल यात्राएं-१ - पंकज अवधिया बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा "आप यदि बंदरों द्वारा आधे खाए गए ये विशेष फल कहीं से ले आयें तो रोगी की मदद हो सकती है|" कई तरह के पुराने रोगों के कारण मृतप्राय रोगी की चिकित्सा कर रहे पारम्परिक चिकित्सक ने उसके परिजनों से यह बात कही| यह एक कठिन कार्य था| इसीलिये पारम्परिक चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए और परिजनों से ही फल की व्यवस्था करने को कहा| पिछले दिनों मैंने मैदानी भाग के जंगल में घूमने का मन बनाया और रास्ते में मिलने वाले पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने की भी योजना बनाई| सबसे पहले जिन पारम्परिक चिकित्सक से मुलाक़ात हुयी वहीं इस रोगी और उसके परिजनों से मुलाक़ात हो गयी| बिना विलम्ब मैंने कहा कि मैं जंगल जा रहा हूँ| आप शाम तक प्रतीक्षा करें| यदि मुझे ऐसे फल मिले तो मैं अवश्य एकत्र कर लूंगा| उस दिन की जंगल यात्रा का मुख्य उद्देश्य तेजी से खत्म हो रहे गिन्धोल वृक्षों की जंगल में उपस्थिति का पता लगाना था| पर अब उद्देश्य बदल गया था| हम आ