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Showing posts from April, 2009

स्वाइन फ्लू (Swine Flu) और भारतीय वनस्पतियाँ

स्वाइन फ्लू (Swine Flu) और भारतीय वनस्पतियाँ - पंकज अवधिया मेक्सिको से पूरी दुनिया मे फैल रहा स्वाइन फ्लू (Swine Flu) महामारी का रुप लेता जा रहा है। 150 से अधिक लोग मेक्सिको मे मारे जा चुके है। मेक्सिको के स्वास्थ्य मंत्री कह रहे है कि प्रभावितो की संख्या हजारो मे हो सकती है। अभी और बुरी खबरे सुनने आम जनता को तैयार रहना चाहिये। इस बीमारी का कोई इलाज नही है। विषाणु अर्थात वाइरस से होने वाली इस बीमारी के लिये कोई भी दवा कारगर नही है। वैज्ञानिक कहते है कि वैक्सीन ही एक मात्र विकल्प है पर इसके विकास मे कम से कम छै महिने लगेंगे। तो क्या तब तक लोगो को यूँ ही कीडे-मकोडो की तरह मरने के लिये छोड दिया जाये? क्या कोई और प्रयास नही किये जाने चाहिये? ऐसे प्रयास जो भले ही प्रयोग हो और यदि लाभ न करे तो नुकसान भी न करे। यदि यह नयी बीमारी है तो क्या पुराने उपाय काम नही करेंगे? क्यो न उन पुराने उपायो को अपनाया जाये जो कि इससे मिलती-जुलती बीमारियो मे आजमाये जा चुके है? भारतीय वनस्पतियो पर वर्षो से शोध करने के बाद मुझे लगता है कि जिस तरह के लक्षण रोगी मीडिया के माध्यम से बता रहे है उसमे बहुत सी वनस्प

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -112

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -112 (क्या बीटी बैगन के अलावा कोई विकल्प नही है?) - पंकज अवधिया “मैने तुलसी की बहुत सी पंक्तियाँ लगा दी है और अब गेन्दे की पंक्तियाँ लगाने जा रहा हूँ। पास के जंगल मे जाकर कुछ शाखाए ले आऊँगा कर्रा की और उन्हे खेत के चारो ओर लगा दूंगा। अब मेरा खेत सुरक्षित हो गया है। मजाल है जो एक भी कीडा नजर उठाके देखे इस खेत की ओर।“ मै कुछ दिनो पहले एक उत्साही किसान से उसके खेत पर ही बतिया रहा था। “ साहब, बाप-दादा के जमाने से हम लोग पुरानी खेती कर रहे है जिसे आप लोग आजकल जैविक खेती कहते है। हम सब्जियाँ उगाते है। हमारे आस-पास के किसान भी सब्जियाँ उगाते है पर उनमे से कोई भी जैविक खेती नही करता। सभी सरकारी लालच मे फँसे है इसलिये तरक्की नही कर पा रहे है। आप सुनना चाहे तो मै विस्तार से इनके बर्बाद होने की कहानी सुनाता हूँ।“ मैने हामी भरी तो उसने कहना जारी रखा। “मेरे खेत मे खरपतवार होते है पर मै उन्ही खरपतवारो को उखाडता हूँ जो फसल को सबसे ज्यादा नुकसान करते है। बहुत से खरप्तवार फसलो के लिये लाभदा

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111 (बीटी बैगन बनाम देशी बैगन : क्या कहते है पारम्परिक चिकित्सक) - पंकज अवधिया घर के पिछवाडे मे उग रहे बैगन के पौधो को दिखाते हुये पारम्परिक चिकित्सको ने फलो को गौर से देखने को कहा। फलो मे काँटे थे। वे बोले, “ये असली देशी बैगन है जिसका प्रयोग हम औषधीय मिश्रणो मे करते है। ये बाजार मे नही मिलता। आप इसे आम लोगो को दिखायेंगे तो वे असमंजस मे पड जायेंगे क्योकि उन्होने ऐसा बैगन देखा ही नही होगा। आप जब भोजन करेंगे तो इसके असली स्वाद का पता लगेगा।“ पारम्परिक चिकित्सक कहते जा रहे थे और मै सुनता जा रहा था। उन्होने बैगन के फल तोडे और घर के अन्दर दे दिये। उस दिन दोपहर के भोजन मे बैगन जिसे स्थानीय भाषा मे भाटा कहा जाता है, की सब्जी परोसी गयी। सचमुच स्वाद गजब का था। इतना गजब का कि सिर्फ उसे ही खाते रहने का मन हुआ। बैंगन भारतीय मूल की वनस्पति है। यह हमारा सौभाग्य है कि देशी बैगन अभी भी कुछ लोगो के पास है। अपना बीज बचाने की परम्परा के कारण ही किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास यह सुरक्ष

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -110

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -110 (क्या आप बीटी बैगन के लिये प्रयोगशाला जीव बनने तैयार है?) - पंकज अवधिया जब चने की फसल मे इल्लियो का आक्रमण होता है तो बहुत से जानकार किसान खेतो मे घूम-घूम कर अपने आप मरी हुयी इल्लियो की खोज करते है। फिर इन इल्लियो को पानी मे मिलाकर घोल बनाते है और इस घोल को चने की प्रभावित फसल मे डाल देते है। कुछ ही समय मे चने की इल्लियाँ मरने लगती है और फसल इस कीट से मुक्त हो जाती है। यह चमत्कार नही है। इसका भी एक विज्ञान है। दरअसल किसान जिन मरी हुयी इल्लियो को एकत्र करते है उनकी स्वावभाविक मौत नही हुयी होती है। बैसीलस थरिजेनेसिस नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण हुयी होती है। जब मरी हुयी इल्लियो का घोल बनाया जाता है तो इन जीवाणुओ को फैलने का मौका मिल जाता है। इल्लियो का घोल जब चने की फसल पर डाला जाता है तो ये जीवाणु फैल जाते है और स्वस्थ्य इल्लियो को अपनी चपेट मे ले लेते है। इस तरह बिना रसायन के किसान चने की इल्लियो से निपट लेते है। जब वैज्ञानिको ने यह देखा तो उन्होने किसानो के दोस्त औ

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109 - पंकज अवधिया अहमदाबाद विमानतल से जैसे ही हमारे विमान ने उडान भरी बगल मे बैठे सज्जन बडे ही बैचैन दिखायी दिये। यह असामान्य बात नही थी क्योकि अक्सर उडान के समय बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते है। जैसे-जैसे विमान ऊपर जाने लगा वे खिडकी से झाँककर नीचे देखने लगे। नीचे देखते हुये कुछ बुदबुदाते और फिर बार-बार कान पकडकर क्षमा माँगते। कुछ समय बाद तो वे रोने लगे। मुझसे रहा नही गया। मैने कहा कि यदि डर लग रहा है तो नीचे न देखे। मुझसे बात करे। डर की कोई बात नही है। वे कुछ नही बोले बस रोते रहे। जब विमान सीधा हो गया तो एक सहयात्री जो कि उनकी ही उम्र के थे, ने उनसे इस सब का कारण पूछा। “क्या यह आपका पहला सफर है?” उनका पहला प्रश्न था। “नही, मै तो सप्ताह मे चार बार मुम्बई से आना-जाना करता हूँ।“ यह उत्तर चौकाने वाला था। “दरअसल नीचे शहर मे हमारा मन्दिर है। जब विमान से आसमान की ओर जाता हूँ तो मुझे अपराध-बोध होता है कि मै भगवान से ऊपर पहुँच गया हूँ। इसलिये मंत्र बुदबुदाते हुये और रोते हुये कुछ प

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -108

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -108 - पंकज अवधिया क्या पानी भी कभी किसी के लिये अभिशाप बन सकता है? इसका जवाब हाँ मे है। दुनिया मे ऐसे गिने चुने लोग होते है जिन्हे “एक्वाजेनिक अर्टिकेरिया” नामक बीमारी होती है। ये लोग पानी पी सकते है बिना किसी मुश्किल के पर जब पानी से नहाने की कोशिश करते है तो इनके शरीर मे शीत-पित्ती की तरह चकत्ते पड जाते है। 1964 मे सबसे पहली बार इस अजब बीमारी के बारे मे पता चला था। दिसम्बर, 2008 मे न्यू साइंटिस्ट नामक प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिका ने सात ऐसे रहस्यमय मामलो की पडताल की जिसमे विषय मे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ठोस जवाब नही है। “सेवन अनसाल्वड मेडीकल मिस्टरीज” के विषय मे आप इस कडी पर जाकर पढ सकते है । इस कडी मे आपको छत्तीसगढ के सम्बन्ध मे कुछ नही मिलेगा पर इस रहस्यमय मामले का सम्बन्ध छत्तीसगढ मे जुडता है। जैसा कि आप जानते है कि अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मै पारम्परिक चिकित्सको से मिलता रहता हूँ। उनसे अलग-अलग विषयो पर चर्चा होती रहती है पर बहुत से ऐसे अनसुलझे और

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -107

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -107 - पंकज अवधिया “आतंकवादी जैसे ही राजनेता के घर घुसे सुरक्षा कर्मी पीछे लग गये। आतंकवादी दीवार तो लाँघ गये पर वनस्पतियो की बाड के सामने आकर ठिठक गये। उनका सिर घूमने लगा और पलक झपकते ही वे बेसुध होकर गिर गये। पीछे आ रहे सुरक्षा कर्मी भी बाड तक पहुँचे पर उनके ऊपर कोई असर नही हुआ। उन्होने मजे से आतंकवादियो को पकडा और अपने काम मे लग गये।“ “मीलो तक बारुदी सुरंगे फैली थी। सेना आगे बढे भी तो कैसे? इन बारुदी सुरंगो को यदि खोजने और नष्ट करने मे सेना जुटे तो उसे कई दशक लग जायेंगे। उसके पास बहुत से वाहन तो है पर वह पूरी तरह से आश्वस्त नही है। सेना को मन-मसोसकर अपना अभियान रोकना पडता है। तभी किसी की सलाह आती है कि साहसी मनटोरा को बुला लिया जाये। आनन=फानन मे मनटोरा के गाँव हेलीकाप्टर भेजा जाता है। मनटोरा झट से आ जाती है। आखिर भारतीय रक्षको ने जो उसे याद किया था। अपने साथ वह पोटली मे भरकर कुछ बीज ले आती है। सेना के पास पहुँचते ही वह बीजो को एक घोल मे डुबोती है और बारुदी सुरंग वाले भाग

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -106

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -106 - पंकज अवधिया “जामुन से मधुमेह मे लाभ नही होता। चौक गये ना! पर ये सच है। यकीन न हो तो साथ मे भेज गये शोध पत्र देख लो। अब तो भारतीयो को जामुन का गुणगान करना बन्द कर देना चाहिये। बहुत बना लिया दुनिया को।“ वनस्पतियो पर चर्चा के लिये बने एक गूगल ग्रुप मे किसी विदेशी का यह सन्देश आया। उसने निजी तौर पर मुझे भी यह सन्देश भेजा। उसे मालूम था कि उसने बर्रे के छत्ते मे हाथ डाला है। इस सन्देश पर जमकर प्रतिक्रिया होने वाली थी। फिर भी उसने यह किया था। रोज मिलने वाले ढेरो सन्देशो के ढेर मे यह सन्देश दब गया और मै जवाब नही दे पाया। दूसरे दिन फिर यही सन्देश आ गया। मैने संलग्न शोध-पत्रो को देखा तो उसने चूहो पर किये गये कुछ शोधो के विषय मे जानकारी थी। जामुन की पत्तियो के काढे के प्रयोग को विस्तार से बताया गया था। निष्क़र्ष यह निकाला गया था कि जामुन मधुमेह के लिये उपयोगी नही है। मैने इस सन्देश पर कोई त्वरित प्रतिक्रिया नही दी। अब बाहर से फोन आने लगे। एक पहचान वाले वैज्ञानिक के जरिये वह

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -105

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -105 - पंकज अवधिया “ये होम्योपैथिक दवाए तो तीन साल पुरानी है। मुझे इसी साल पैक की गयी दवाए दो।“ रायपुर की एक दवा दुकान पर एक सज्जन दुकान वाले से कह रहे थे। “अरे, आपको पता नही, होम्योपैथिक दवाए जितनी पुरानी होती है, उतनी अच्छी होती है। आप तो किस्मत वाले है जो आपको इतनी पुरानी दवा आसानी से मिल रही है।“ दुकान वाले के कुतर्को को सुनकर मै अवाक सा खडा था। सज्जन ने दवा लेने से मना कर दिया। जैसे ही वापस लौटे दुकान वाला अपने असली रंग मे आ गया। “अरे, नाराज क्यो होते आप पुरानी दवा के लिये बीस रुपये कम दे दीजियेगा। चलिये, तीस कम कर दूँगा।“ सज्जन समझ गये थे कि जरुर कुछ गडबड है। वे वापस चले गये। साथ ही मै भी। रायपुर ही नही, देश मे बहुत से हिस्सो मे ऐसे किस्से आमतौर पर सुनने को मिल जाते है। मै बचपन से ही होम्योपैथी का प्रशंसक रहा हूँ। मुझे ज्ञानी-ध्यानी चिकित्सको के साथ काम करने का अवसर मिला है। पर हाल के वर्षो मे मैने होम्योपैथी की जो दुर्दशा देखी है उससे मेरी आँखो मे आँसू आ जाते है। आपको

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -104

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -104 - पंकज अवधिया कुछ महिनो पहले एक करीबी मित्र का फोन आया। उन्होने पूछा कि आजकल मधुमेह की रपट मे किस विषय पर लिख रहे हो? मैने कहा कि करेला और नीम पर। महिने-दो महिने बीते होंगे कि फिर उनका फोन आ गया। फिर वही प्रश्न पूछा गया। मैने कहा कि करेला और नीम पर। बेसब्र होकर उन्होने कुछ सप्ताह के इंतजार के बाद फिर फोन किया। और मेरे कहने से पहले ही कह दिया कि करेला और नीम से बात आगे बढी क्या? मैने विनम्रता से उत्तर दिया कि नही, करेला और नीम पर ही अटका हूँ। लगता है रपट की विशालता को देखते हुये पूरी जानकारी नही लिख पाऊँ। अब उनसे रहा नही गया। दनदनाते हुये घर आ पहुँचे। मैने उनका स्वागत किया और कहा कि अब दोपहर और शाम का भोजन करके ही जाइयेगा। फिर उन्हे रपट के कुछ अंश पढने को दिये। डीवीडी का ढेर भी उन्हे सौप दिया। वे समझ गये कि करेला और नीम पर सैकडो घंटे बहाये गये है। वे मन लगाकर पढते रहे और करेला और नीम से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान से अभिभूत हो गये। उन्होने सोचा भी नही था कि मधुमे