अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -103
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -103 - पंकज अवधिया
“एकाध भूत-प्रेत दिखा दो, अर्जुन। इतनी दूर से आया हूँ और फिर तुम तो बैगा भी हो।“ यूँ ही मजाक मे मैने साथ चल रहे अर्जुन बैगा से कहा। आँखो मे लगा काला चश्मा बता रहा था कि अभी-अभी उसका आपरेशन हुआ है मोतियाबिन्द का। मजे से वह मेरे साथ पास के खेत जाने के लिये चल रहा था। “अब मैने भूत-प्रेत का काम छोड दिया है। हाँ, जडी-बूटी का काम करता हूँ। वैसे भी अब बिजली आ जाने से भूत-प्रेत दिखते नही है। दिखते भी है तो पकड मे नही आते है। इसलिये मैने यह काम छोड दिया है। बस अब अपनी खेती की देखभाल करता हूँ।“ इस भूतपूर्व भूत-प्रेत विशेषज्ञ से बात करना दिलचस्प लग रहा था। छत्तीसगढ की राजधानी से सटे एक गाँव मे अर्जुन बैगा जवानी मे अपनी तंत्र विद्या के लिये पूरे क्षेत्र मे जाना जाता था। बिगडे गाँवो को सुधारने का जिम्मा उसी का था। उसकी प्रसिद्धि मुझे उस तक खीच लायी थी। रायपुर के आस-पास के गाँवो मे जमीन के भाव आसमान छू रहे है। अर्जुन ने बताया कि उसके पास ढाई एकड है और एक एकड के लिये लोग पच्चीस लाख देने को तैयार है। उसके अनुसार इतने पैसे मे तो कई जन्म मजे से गुजर जायेंगे। फिर क्यो भूत-प्रेत पर माथापच्ची की जाये? पुलिस का झंझट अलग। फिर राजधानी के पास होने पर कुछ भी ऊपर-नीचे होने पर सारे खबरची आ जाते है और पोल खुलने का डर रहता है। उसने आगे बताया कि बहुत से बैगा अपना पुश्तैनी काम छोडकर अब जमीन खरीदी-बिक्री के धन्धे मे लग गये है। पर आज भी बहुत से लोग है जो इस काम मे लगे है। पैसे भले कम हो पर सामाजिक रुतबा भी तो जरुरी है।
कुछ सप्ताह पूर्व पास के गाँव से खबर मिली कि धान के खेतो मे एक नये प्रकार के खरप्तवार का आक्रमण हो रहा है जिससे खेती चौपट हो रही है। मैने गाँव जाने का मन बनाया। काफी दूर चलने के बाद हम प्रभावित स्थान पर पहुँचे। मेरे साथ किसानो के अलावा अर्जुन बैगा भी था। चितावर नामक खरप्तवार कहर बरपा रहा था। खेतो के पास एक नाला था। नाले मे इस जलीय खरप्तवार का राज था। जब बरसात मे नाले का पानी खेतो मे भर जाता था तब ये खरपतवार बहकर खेतो मे आ जाते है और वही के होकर रह जाते है। एक बार खेत मे जमे तो फिर उन्हे खत्म करना टेढी खीर होता है। रावण के सिर की तरह एक स्थान से उखाडो तो दूसरे स्थान से उग जाते है। एक किसान के तो कई खेतो मे इसका प्रकोप था। इतना प्रकोप कि पिछले तीन सालो से धान की खेती नही हो पा रही थी। किसान सहायता के लिये विभागो और शोध-संस्थानो के चक्कर लगा रहे थे पर कोई उनकी मदद नही कर रहा था। राजधानी मे कृषि विभाग के आला आसर से लेकर मंत्री तक के स्तर के लोग होते है पर किसानो की सुनने वाला कोई नही था। अर्जुन बैगा ने बताया कि इस खरप्तावार मे रेरा नामक चिडिया अपना घर बनाती है जो धान की फसल को सीधे नुकसान पहुँचाती है। गर्मी मे बुलडोजर की सहायता ली गयी पर फिर भी गहरी जडो वाले इस खरपतवार का बाल भी बाँका नही हुआ। वैज्ञानिक भाषा मे इसे टाइफा कहा जाता है।
मेरे पास कई उपाय थे। इनमे से एक कृषि रसायन का प्रयोग था। इससे यह खरप्तवार मर तो जाता पर यह स्थायी समाधान नही था। बरसात मे नाला भरता और फिर यह खरपतवार आ जाता। नाले से खरपतवार को खत्म करना खर्चीला था। नाले से सफाई हो भी जाती तो नाले के ऊपरी भाग के गाँवो से इस खरप्तवार के बहकर पहुँचने का खतरा बना हुआ था। सरकारी जमीन से खरप्तावार को उखाडने कोई तैयार नही था। कमोबेश ऐसी ही स्थिति गाजर घास की है। जागरुक किसान और आम लोग अपने घरो के आस-पास की गाजर घास खत्म कर देते है पर सरकारी जमीन मे कोई इसकी सुध नही लेता। ये बेकार पडी जमीन सीड बैंक का काम करती रहती है और बीज लगातार रिहायशी इलाको मे पहुँचते रहते है। इस तरह लाख कोशिशो के बावजूद यह समस्या बनी हुयी है।
टाइफा प्रभावित किसानो के लिये मैने कलम को एक बार फिर से हथियार बनाया है। इस लेख की तरह बहुत से लेख लिख रहा हूँ ताकि समबन्धित विभाग नीन्द से जागे और किसानो की मदद करे। हाल ही मे पता चला कि मंत्री महोदय भी आस-पास के गाँव के है। अब इतना छोटा काम तो वे करने से रहे पर यदि वे अपने अधिकारियो से यह कह दे तो भी किसानो की बडी मदद हो जायेगी।
किसानो के साथ भ्रमण के दौरान अर्जुन बैगा से स्थानीय वनस्पतियो पर खुलकर बातचीत होती रही। ज्यादा खुलकर मै बातचीत करता दिखा,वह तो सारे राज अपने तक रखना चाहता था। हमने एक पीले फूलो वाली वनस्पति देखी। अर्जुन ने कहा कि यह किसी काम की नही है। मैने उस वनस्पति को उखाडा और फिर उसका रस निकालकर सिर पर मला। जल्दी ही अर्जुन को ठंडक का अहसास होने लगा। मैने कहा कि गर्म दिमाग वालो के लिये यह बहुत ही उपयोगी है। इतना सुनना था कि अर्जुन ने इसके बारे मे विस्तार से बताना आरम्भ किया। अभी तक जिसे वह बेकार कह रहा था अब उसी के गुण गा रहा था। उसने इसका स्थानीय नाम धूप-काला बताया। धूप-काला हिन्दी नाम लगता है। उसके अनुसार गर्मी के मौसम मे होने वाली समस्त बीमारियो को इस एक वनस्पति से ठीक किया जा सकता है। यह वनस्पति किसानो के खेतो मे बिखरी पडी थी। किसान इसके उपयोगो को नही जानते थे। उनके गाँव का अर्जुन सब जानकर भी चुप था। यह वनसप्ति जानवरो के लिये भी उपयोगी है।
कुछ दूर चलने पर हमे एक बुजुर्ग व्यक्ति मिला जो पीडा से त्रस्त था। वह एक नीम-हकीम के पास इंजैक्शन लगवाने जा रहा था दर्दशामक दवा का। इसके बदले उसे मोटी फीस देनी पडती थी। उसकी पीडा से व्यथित होकर मैने और अर्जुन ने निश्चय किया कि गाँव की वनस्पतियो से ही इन्हे इस दर्द से मुक्ति दिलवायी जाये। हम अलग-अलग दिशाओ मे चले गये और आधे घंटे के अन्दर खजाने सहित हाजिर हो गये। मूल रोग के अनुसार सुझायी गयी वनस्पतियो से उन बुजुर्ग को लाभ हुआ।
मै अक्सर यह कहता और लिखता रहता हूँ कि आधुनिक खेती के बाद भी हमारे खेतो मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ बची है जिनसे गाँव के आम रोगो का इलाज हो सकता है। वनस्पतियो के जानकार भी गाँव मे है। यदि उन्हे थोडा सा प्रोत्साहन दिया जाये तो स्वास्थ्य के विषय मे गाँव आत्म-निर्भर हो सकते है एक बार फिर, जैसे पहले थे। यह कटु सत्य है कि वनस्पतियो की सहायता से नि:शुल्क चिकित्सा करने वाले सरकार की आँखो मे खटकते है पर दर्द-शामक लिये घूमते झोला-छाप डाक्टर जो शहरी डाक्टरो के लिये एजेंट का काम करते है, खुले आम अपना काम कर रहे है। देशी वनस्पतियो और देशी चिकित्सा को सहेजने का यह अंतिम अवसर है। हमे निज स्वार्थो से उठकर इनके संरक्षण के लिये जी-जान से जुट जाना चाहिये। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
“एकाध भूत-प्रेत दिखा दो, अर्जुन। इतनी दूर से आया हूँ और फिर तुम तो बैगा भी हो।“ यूँ ही मजाक मे मैने साथ चल रहे अर्जुन बैगा से कहा। आँखो मे लगा काला चश्मा बता रहा था कि अभी-अभी उसका आपरेशन हुआ है मोतियाबिन्द का। मजे से वह मेरे साथ पास के खेत जाने के लिये चल रहा था। “अब मैने भूत-प्रेत का काम छोड दिया है। हाँ, जडी-बूटी का काम करता हूँ। वैसे भी अब बिजली आ जाने से भूत-प्रेत दिखते नही है। दिखते भी है तो पकड मे नही आते है। इसलिये मैने यह काम छोड दिया है। बस अब अपनी खेती की देखभाल करता हूँ।“ इस भूतपूर्व भूत-प्रेत विशेषज्ञ से बात करना दिलचस्प लग रहा था। छत्तीसगढ की राजधानी से सटे एक गाँव मे अर्जुन बैगा जवानी मे अपनी तंत्र विद्या के लिये पूरे क्षेत्र मे जाना जाता था। बिगडे गाँवो को सुधारने का जिम्मा उसी का था। उसकी प्रसिद्धि मुझे उस तक खीच लायी थी। रायपुर के आस-पास के गाँवो मे जमीन के भाव आसमान छू रहे है। अर्जुन ने बताया कि उसके पास ढाई एकड है और एक एकड के लिये लोग पच्चीस लाख देने को तैयार है। उसके अनुसार इतने पैसे मे तो कई जन्म मजे से गुजर जायेंगे। फिर क्यो भूत-प्रेत पर माथापच्ची की जाये? पुलिस का झंझट अलग। फिर राजधानी के पास होने पर कुछ भी ऊपर-नीचे होने पर सारे खबरची आ जाते है और पोल खुलने का डर रहता है। उसने आगे बताया कि बहुत से बैगा अपना पुश्तैनी काम छोडकर अब जमीन खरीदी-बिक्री के धन्धे मे लग गये है। पर आज भी बहुत से लोग है जो इस काम मे लगे है। पैसे भले कम हो पर सामाजिक रुतबा भी तो जरुरी है।
कुछ सप्ताह पूर्व पास के गाँव से खबर मिली कि धान के खेतो मे एक नये प्रकार के खरप्तवार का आक्रमण हो रहा है जिससे खेती चौपट हो रही है। मैने गाँव जाने का मन बनाया। काफी दूर चलने के बाद हम प्रभावित स्थान पर पहुँचे। मेरे साथ किसानो के अलावा अर्जुन बैगा भी था। चितावर नामक खरप्तवार कहर बरपा रहा था। खेतो के पास एक नाला था। नाले मे इस जलीय खरप्तवार का राज था। जब बरसात मे नाले का पानी खेतो मे भर जाता था तब ये खरपतवार बहकर खेतो मे आ जाते है और वही के होकर रह जाते है। एक बार खेत मे जमे तो फिर उन्हे खत्म करना टेढी खीर होता है। रावण के सिर की तरह एक स्थान से उखाडो तो दूसरे स्थान से उग जाते है। एक किसान के तो कई खेतो मे इसका प्रकोप था। इतना प्रकोप कि पिछले तीन सालो से धान की खेती नही हो पा रही थी। किसान सहायता के लिये विभागो और शोध-संस्थानो के चक्कर लगा रहे थे पर कोई उनकी मदद नही कर रहा था। राजधानी मे कृषि विभाग के आला आसर से लेकर मंत्री तक के स्तर के लोग होते है पर किसानो की सुनने वाला कोई नही था। अर्जुन बैगा ने बताया कि इस खरप्तावार मे रेरा नामक चिडिया अपना घर बनाती है जो धान की फसल को सीधे नुकसान पहुँचाती है। गर्मी मे बुलडोजर की सहायता ली गयी पर फिर भी गहरी जडो वाले इस खरपतवार का बाल भी बाँका नही हुआ। वैज्ञानिक भाषा मे इसे टाइफा कहा जाता है।
मेरे पास कई उपाय थे। इनमे से एक कृषि रसायन का प्रयोग था। इससे यह खरप्तवार मर तो जाता पर यह स्थायी समाधान नही था। बरसात मे नाला भरता और फिर यह खरपतवार आ जाता। नाले से खरपतवार को खत्म करना खर्चीला था। नाले से सफाई हो भी जाती तो नाले के ऊपरी भाग के गाँवो से इस खरप्तवार के बहकर पहुँचने का खतरा बना हुआ था। सरकारी जमीन से खरप्तावार को उखाडने कोई तैयार नही था। कमोबेश ऐसी ही स्थिति गाजर घास की है। जागरुक किसान और आम लोग अपने घरो के आस-पास की गाजर घास खत्म कर देते है पर सरकारी जमीन मे कोई इसकी सुध नही लेता। ये बेकार पडी जमीन सीड बैंक का काम करती रहती है और बीज लगातार रिहायशी इलाको मे पहुँचते रहते है। इस तरह लाख कोशिशो के बावजूद यह समस्या बनी हुयी है।
टाइफा प्रभावित किसानो के लिये मैने कलम को एक बार फिर से हथियार बनाया है। इस लेख की तरह बहुत से लेख लिख रहा हूँ ताकि समबन्धित विभाग नीन्द से जागे और किसानो की मदद करे। हाल ही मे पता चला कि मंत्री महोदय भी आस-पास के गाँव के है। अब इतना छोटा काम तो वे करने से रहे पर यदि वे अपने अधिकारियो से यह कह दे तो भी किसानो की बडी मदद हो जायेगी।
किसानो के साथ भ्रमण के दौरान अर्जुन बैगा से स्थानीय वनस्पतियो पर खुलकर बातचीत होती रही। ज्यादा खुलकर मै बातचीत करता दिखा,वह तो सारे राज अपने तक रखना चाहता था। हमने एक पीले फूलो वाली वनस्पति देखी। अर्जुन ने कहा कि यह किसी काम की नही है। मैने उस वनस्पति को उखाडा और फिर उसका रस निकालकर सिर पर मला। जल्दी ही अर्जुन को ठंडक का अहसास होने लगा। मैने कहा कि गर्म दिमाग वालो के लिये यह बहुत ही उपयोगी है। इतना सुनना था कि अर्जुन ने इसके बारे मे विस्तार से बताना आरम्भ किया। अभी तक जिसे वह बेकार कह रहा था अब उसी के गुण गा रहा था। उसने इसका स्थानीय नाम धूप-काला बताया। धूप-काला हिन्दी नाम लगता है। उसके अनुसार गर्मी के मौसम मे होने वाली समस्त बीमारियो को इस एक वनस्पति से ठीक किया जा सकता है। यह वनस्पति किसानो के खेतो मे बिखरी पडी थी। किसान इसके उपयोगो को नही जानते थे। उनके गाँव का अर्जुन सब जानकर भी चुप था। यह वनसप्ति जानवरो के लिये भी उपयोगी है।
कुछ दूर चलने पर हमे एक बुजुर्ग व्यक्ति मिला जो पीडा से त्रस्त था। वह एक नीम-हकीम के पास इंजैक्शन लगवाने जा रहा था दर्दशामक दवा का। इसके बदले उसे मोटी फीस देनी पडती थी। उसकी पीडा से व्यथित होकर मैने और अर्जुन ने निश्चय किया कि गाँव की वनस्पतियो से ही इन्हे इस दर्द से मुक्ति दिलवायी जाये। हम अलग-अलग दिशाओ मे चले गये और आधे घंटे के अन्दर खजाने सहित हाजिर हो गये। मूल रोग के अनुसार सुझायी गयी वनस्पतियो से उन बुजुर्ग को लाभ हुआ।
मै अक्सर यह कहता और लिखता रहता हूँ कि आधुनिक खेती के बाद भी हमारे खेतो मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ बची है जिनसे गाँव के आम रोगो का इलाज हो सकता है। वनस्पतियो के जानकार भी गाँव मे है। यदि उन्हे थोडा सा प्रोत्साहन दिया जाये तो स्वास्थ्य के विषय मे गाँव आत्म-निर्भर हो सकते है एक बार फिर, जैसे पहले थे। यह कटु सत्य है कि वनस्पतियो की सहायता से नि:शुल्क चिकित्सा करने वाले सरकार की आँखो मे खटकते है पर दर्द-शामक लिये घूमते झोला-छाप डाक्टर जो शहरी डाक्टरो के लिये एजेंट का काम करते है, खुले आम अपना काम कर रहे है। देशी वनस्पतियो और देशी चिकित्सा को सहेजने का यह अंतिम अवसर है। हमे निज स्वार्थो से उठकर इनके संरक्षण के लिये जी-जान से जुट जाना चाहिये। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Cyperus distans as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Safed Santo Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus exaltatus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Salaran Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus haspan as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Samesro Toxicity (Research Documents on Toxicity of Herbal
Remedies),
Cyperus iria as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Sanesro Toxicity (Research Documents on Toxicity of Herbal
Remedies),
Cyperus laevigatus as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Saripat Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus michelianus as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Sarijano Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus nutans VAHL. Var. eleusinoides as Allelopathic
ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations
(Indigenous Traditional Medicines) used for Santo Toxicity (Research
Documents on Toxicity of Herbal Remedies),
Cyperus pangorei as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Santari Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus pilosus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Sapari Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Cyperus rotundus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Sareli Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Comments