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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99 - पंकज अवधिया दलदली क्षेत्रो मे जब भी जडी-बूटियो के एकत्रण के लिये जाने की योजना बनती है तो हम एक दल के रुप मे जाना पसन्द करते है। ऐसा दल जिसमे कम से कम तीन मजबूत कद-काठी के लोग हो, कम से कम दो स्थानीय जानकार, और साथ मे एक सर्प विशेषज्ञ हो। “दलदल” शब्द सुनते ही सनसनी फैल जाती है पर जब सघन वनो मे दलदली इलाको मे घूमना होता है तो एक-एक कदम सम्भल कर उठाना होता है। यह डरावना अनुभव होता है पर हर बार यह जोखिम कुछ न कुछ उपहार दे जाता है दुर्लभ जडी-बूटियो के रुप मे। देश के अलग-अलग भागो के लिये अलग-अलग दल मैने तैयार किये है। दलदली इलाको के आस-पास के गाँवो को ही चुना जाता है और फिर वहाँ रात रुककर साथ चलने वालो को तैयार किया जाता है। मै छत्तीसगढ के दलदली क्षेत्रो मे अक्सर जाते रहता हूँ। यूँ तो पारम्परिक चिकित्सक ही दल के गठन मे मुख्य भूमिका निभाते है पर मुझे याद आता है कि एक गाँव मे एक बुजुर्ग व्यक्ति हर बार हमारे साथ चलने को आतुर दिखता। मुझसे वह बार-बार साथ ले चलने की बात करता। पर...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -94

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -94 - पंकज अवधिया आस्ट्रेलिया मे हाल ही लगी जंगली आग की खबर ने मुझे परेशान कर दिया। मेरे बहुत से वैज्ञानिक मित्र वहाँ पर है। समाचार पत्रो के अनुसार 200 से अधिक लोग इस आग के शिकार हो चुके है। अभी भी कई जगहो पर आग फैली हुयी है। मैने अपने एक मित्र राड को सन्देश भेजा और हाल-चाल जानना चाहा। मैने सन्देश मे लिखा कि मै आस्ट्रेलिया की वनस्पतियो के बारे मे ज्यादा नही जानता पर यदि प्रभावित क्षेत्र मे जाना हो तो गौर से देखना कि माँसल पौधो पर आग का क्या असर हुआ है? मुझे लगता है कि जिन क्षेत्रो मे माँसल (succulent) वनस्पतियाँ रही होगी वहाँ आग से नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ होगा। राड का जवाब आ गया। उन्होने बताया कि वे पश्चिमी आस्ट्रेलिया मे है, आग से 3500 किमी दूर। भले ही आग ने उन्हे प्रभावित नही किया हो पर यह पूरे आस्ट्रेलिया के लिये एक सबक है। माँसल वनस्पतियो और आग की विभीषिका उनके शब्दो मे पढे “As for succulents, Australia has very few native succulents, certainly no native Cactaceae. Most of ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36 - पंकज अवधिया रात बारह तक फोन आना मेरे लिये आश्चर्य का विषय नही है पर कुछ सप्ताह पूर्व रात को दो बजे जंगली इलाको से दो फोन आये। पहला फोन उसी सर्प विशेषज्ञ का था जिसके विषय मे पहले मैने लिखा है। कैसे फोन किये गणेश? मैने पूछा। उसने बताया कि एक ग्रामीण महिला रात को जब शौच के लिये उठी तो उसे जहरीले साँप ने काट लिया। उसके घरवाले आनन-फानन मे उसके पास आये है। इलाज शुरु ही होने वाला है। यदि सम्भव हो तो आप आ जाये। सामने-सामने देख लीजियेगा कैसे जहर उतारते है हम लोग। मुझे उसकी बात पर हँसी भी आयी और गुस्सा भी। रात को दो बजे फोन किया था। मै अभी घर से निकलता तो घंटो लगते उस तक पहुँचने मे। पहले मैने गणेश को लोगो की सेवा करते देखा है। अब फिर बार-बार फोन की क्या जरुरत? गणेश अभी भी फोन पर था। उसने कहा कि यदि आप आ रहे है तो हम रुक भी सकते है। मैने कडे शब्दो मे कहा कि इलाज मे देरी मत करो। मै अभी नही आ सकता पर अगले हफ्ते जरुर आऊँगा। ऋषिपंचमी के दिन ली गयी तस्वीरो को फ्रेम मे लगवाकर परसो मै गणेश के पास पहुँचा। उसने तस्वीरे तो रख ली...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -23

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -23 - पंकज अवधिया कुछ वर्ष पहले मै सतना से अमरकंटक जा रहा था सडक मार्ग से। यह व्यवसायिक दौरा था और हमे अमरकंटक मे जडी-बूटियो की उपलब्धता की जानकारी एकत्र करनी थी। हम तीन लोग थे और ड्रायवर को मिलाकर चार। गाडी मारुति वैन थी। रास्ते मे जब हमारी व्यापारिक चर्चा खत्म हो गयी तो इधर-उधर की बाते होने लगी। अन्ध-विश्वास पर भी लम्बी बात हुयी। इस बीच हमारा ध्यान ड्रायवर की ओर गया जो हर मन्दिर के आगे हार्न बजाता था। उसे भी पट्टी पढाकर ऐसा करने से मना कर दिया गया। फिर भी मौका पाकर वह हार्न बजा ही लेता था। शाम का समय था हम जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक ड्रायवर ने गाडी रोक दी। उसके चेहरे मे डर था। वह सामने देख रहा था एकटक। हमने भी उस दिशा मे देखा तो रास्ते मे बीचो-बीच कुछ सामान पडा नजर आया। ड्रायवर ने साफ कह दिया कि किसी ने जादू का सामान फेका है अब मै इस रास्ते से नही जाऊँगा। तो फिर किधर से जाओगे? हमने पूछा तो बोला कि बगल वाले कच्चे रास्ते से चलेंगे। हमे रास्ता नही दिखा। वैसे ही यह मध्यप्रदेश की सडक थी। मुख्य मार्ग ही कच्चे रास...