अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99 - पंकज अवधिया दलदली क्षेत्रो मे जब भी जडी-बूटियो के एकत्रण के लिये जाने की योजना बनती है तो हम एक दल के रुप मे जाना पसन्द करते है। ऐसा दल जिसमे कम से कम तीन मजबूत कद-काठी के लोग हो, कम से कम दो स्थानीय जानकार, और साथ मे एक सर्प विशेषज्ञ हो। “दलदल” शब्द सुनते ही सनसनी फैल जाती है पर जब सघन वनो मे दलदली इलाको मे घूमना होता है तो एक-एक कदम सम्भल कर उठाना होता है। यह डरावना अनुभव होता है पर हर बार यह जोखिम कुछ न कुछ उपहार दे जाता है दुर्लभ जडी-बूटियो के रुप मे। देश के अलग-अलग भागो के लिये अलग-अलग दल मैने तैयार किये है। दलदली इलाको के आस-पास के गाँवो को ही चुना जाता है और फिर वहाँ रात रुककर साथ चलने वालो को तैयार किया जाता है। मै छत्तीसगढ के दलदली क्षेत्रो मे अक्सर जाते रहता हूँ। यूँ तो पारम्परिक चिकित्सक ही दल के गठन मे मुख्य भूमिका निभाते है पर मुझे याद आता है कि एक गाँव मे एक बुजुर्ग व्यक्ति हर बार हमारे साथ चलने को आतुर दिखता। मुझसे वह बार-बार साथ ले चलने की बात करता। पर...