अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -91
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -91 - पंकज अवधिया “जरा मुँह खोलना। थोडा और। बस। अब कीडा लगा दाँत दिख रहा है। यही वाला है ना? ये निकला। अबे निकल कहाँ घुस रहा है? – ये निकल गया। एक नही दो-दो है। बाप रे बाप, तू तो बच गया नही तो ये बाकी दाँतो को भी खा जाते।“ सडक किनारे बैठे एक तथाकथित दंतविशेषज्ञ के ये बोल थे। उसका दावा था कि उसने औजार और दवा डालकर अभी-अभी दाँतो से दो जिन्दा कीडे निकाले है जो दाँतो को सडा रहे थे। मरीज था गाँव से शहर आया एक ग्रामीण जो महंगी डाक्टरी फीस से बचने के लिये नीम-हकीम के पास आ पहुँचा था। मै अपना कैमरा लिये इस पूरी प्रक्रिया की तस्वीरे ले रहा था। जब मैने नीम-हकीम के हाथ मे कीडा देखा तो हँसी छूट पडी। मैने उससे कहा कि इन्हे मेरे हाथ मे देना तो। उसने कहा कि ये खतरनाक है आपको काट खायेंगे। मै अभी इन्हे मार देता हूँ। यह कहकर उसने कीडो को एक डब्बे मे डाला और अगले मरीज से बात करने लगा। उसके दाँत मे भी कुछ शिकायत थी। नीम-हकीम कीडो को ही सारे मर्ज का कारण मानता था। मुझे नजर अन्दाज करते हुये उसने फिर ...