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Showing posts from May, 2009

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -114

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव - 114 - पंकज अवधिया (हनुमान लंगूर और नि:संतान दम्पत्ति) एक छोटी सी झोपडी के सामने महिलाओ की लम्बी कतार लगी देख मैने गाडी रुकवाई और लोगो ने इस बारे मे पूछा। लोगो ने बताया कि नि:संतान महिलाए यहाँ बाबा के दर्शन करने के लिये कतार मे खडी है। मैने गाडी किनारे करवायी और वही खडा हो गया। इतने मे बाबा का एक एजेंट आया और गाडी के अन्दर झाँकते हुये बोला कि अकेले आये हो? आपका इलाज नही होगा। अपनी घरवाली को लेकर आओ। ड्रायवर ने इस धृष्टता पर कुछ कहना चाहा तो मैने उसे चुप करा दिया। मैने एजेंट को जवाब दिया कि मुझे सारी प्रक्रिया देख लेने दो फिर मै अपनी पत्नी को लेकर आ जाऊँगा। इस पर वह बोला कि पैसा जमा करा दो ताकि अगली बार कतार मे न लगना पडे। कतार मे न लगने के लिये 1000 रुपये और वैसे 100 रुपये। मैने कहा कि मै पैसे बाबा ही को दूंगा। पहले मुझे इलाज देखने तो दो। कुछ देर बाद हलचल बढी। बताया गया कि बाबा आ गये है। पास ही तुलसी चौरा था। वहाँ बैठकर एक अधेस मंत्र पढ रहा था। मंत्र स्पष्ट नही थे प

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी (मेरी कान्हा यात्रा- 11 ) - पंकज अवधिया इस बार कान्हा मे पर्यटको का जबरदस्त टोटा है। क्या यह मन्दी का असर है? विदेशी पर्यटक तो जैसे पैसे खर्च करना ही नही चाहते। कान्हा मे सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ दिखती है। रात को चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने बताया कि मन्दी से ज्यादा मुम्बई हमलो ने हमारी कमर तोड दी है। उसके बाद से पर्यटको का आना एकदम से कम हो गया है। पहले भारत को सुरक्षित देश माना जाता था पर अब जब जान पर ही बन आये तो भला कोई क्यो आना चाहेगा? देशी पर्यटक बजट देखकर चलते है। उनसे मोटी कमायी की ज्यादा उम्मीद नही की जा सकती-ऐसा लोगो ने बताया। उनका व्यवसाय विदेशी पर्यटको से चलता है। मुझे अपनी यात्रा के दौरान बहुत कम विदेशी सैलानी दिखे। उनसे चर्चा हुयी तो वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखे। वे भारत की मेहमाननवाजी से खुश दिखे पर येन-केन-प्रकारेण ऐसे या वैसे, किसी भी रुप मे अतिरिक्त पैसे झटक लेने के रिवाज से कुछ क्षुब्ध दिखे। अक्सर विदेशी पर्यटक इंटरनेट के इस युग मे अपनी भारत यात्रा के हर पहलू पर लेख लिखते है। इ

आप कान्हा आये और खातिरदारी का मौका ही नही दिया

आप कान्हा आये और खातिरदारी का मौका ही नही दिया (मेरी कान्हा यात्रा-10) - पंकज अवधिया “आपके लेखो ने तो हमारे विभाग मे हडकम्प मचा रखा है। अब और कितना लिखेंगे? आप कब आये और इतने दिन बिता कर चले गये हमे कानो कान खबर तक नही हुयी। आपने हमे खातिरदारी का मौका ही नही दिया। सूखे-सूखे चले गये। आपके लिखे को पढकर लगता है कि आप कान्हा मे पन्द्रह दिन तो अवश्य रुके होंगे। आपने न जाने कितनी सफारी की होगी पर रजिस्टर मे आप दिखे नही। क्या सब गोपनीय तरीके से किया? अगली बार आइयेगा तो सूचना देकर आइयेगा-----“ कान्हा यात्रा पर लिखी जा रही इस लेखमाला को पढकर जंगल विभाग के एक मित्र ने यह सन्देश भेजा। ब्लाग पर लिखे जा रहे इस हिन्दी लेखमाला को इस तरह से पढा जायेगा इसकी उम्मीद कम थी। 13 मई, 2009 को दोपहर तीन बजे पहुँचने के बाद मै दूसरे दिन अर्थात 14 मई को दो बजे वापस लौट पडा यानि मै चौबीस घंटो से भी कम समय तक कान्हा मे रुका। इस छोटी यात्रा मे मैने दो सफारी की। हजारो चित्र लिये। दो बार उसे भी देख लिया न चाहते हुये भी, जिसे देखने लोग मजमा लगाये रहते है यानि कि टाइगर। रात की नीन्द भी ली। दसो स्वास्थ्य समस्याओ से जूझ

छत्तीसगढ मे तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढाये गये जीवनदाता वृक्ष : भाग-1

छत्तीसगढ मे तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढाये गये जीवनदाता वृक्ष : भाग-1 - पंकज अवधिया सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड तेज बरसात के बीच हम पाँच लोग जैसे-तैसे उस पेड तक पहुँचे। हमारे पास विदारीकन्द, तेलिया कन्द जैसे कई प्रकार के कन्दो का सूखा मिश्रण था। हमे जल्दी थी कि कब हम पेड तक पहुँचे और इन मिश्रणो को जड खोदकर दबा आये। हमे जंगल मे नही जाना था। यह पेड था हाइवे के किनारे। तूफानी रात मे जाना मजबूरी थी क्योकि वही शुभ दिन बताया गया था कन्दो को गाडने के लिये। दिन भर तो हम जंगलो की खाक छानते रहे कंदो की तलाश मे। वापस लौटते रात हो गयी। पेड के पास पहुँचकर हमारे साथ आये पारम्परिक चिकित्सको ने कुछ मंत्र पढे फिर कन्दो को दबाने का काम शुरु हो गया। एक घंटे बाद हा पूरी तरह से काम निपटा चुके थे। रात को आते-जाते लोग पता नही हमे क्या समझ रहे थे। रायपुर से आरंग जाते वक्त यह पेड बायी ओर पर था। यह सिरसा (शिरीष) का पुराना पेड था और इसमे गस्ती नामक दूसरी वनस्पति ने जगह बना ली थी। गस्ती पीपल और बरगद के परिवार का है। इसके फल चिडियो द्वारा पसन्द किये

प्राकृतिक जंगल मे कांक्रीट जंगल का बढता साम्राज्य

प्राकृतिक जंगल मे कांक्रीट जंगल का बढता साम्राज्य (मेरी कान्हा यात्रा-9) - पंकज अवधिया कान्हा नेशनल पार्क के लिये मैने रायपुर से चिल्फी घाटी होते हुये बिछिया का रास्ता चुना था। कान्हा के खटिया गेट तक पहुँचते-पहुँचते यह लगने लगा था कि हम गलत जगह आ गये है क्योकि यहाँ जंगल का नामोनिशान नही था। जिधर देखो उधर खेत नजर आते थे। जंगली पौधो के नाम पर पलाश ही बिखरे दिखायी देते थे। जैसे ही हम मोचा गाँव पहुँचे हमे जंगल नजर आने लगे। पर अफसोस ये असली जंगल न होकर कांक्रीट जंगल थे। कुकुरमुत्तो की तरह भाँति-भाँति के होटल और रिसोर्ट नजर आ रहे थे। पर्यटक कम थे पर उनके स्वागत के लिये लोगो मे होड लगी थी। मै लगभग सभी रिसोर्ट मे गया पर वे मुझे कांक्रीट जंगल के हिस्से नजर आये। रिसोर्ट के हट्स हो या कमरे, अन्दर जाने पर लगता है जैसे आप किसी आधुनिक शहर मे हो। जंगल का कोई अहसास ही नही होता है। एसी, फ्रिज, टब बाथ से लेकर तमामा शहरी सुविधाए है। टेबल टेनिस और स्वीमिंग पूल है। पर इन सब बेवजह की सुख-सुविधाओ को परोसने वाले रिसोर्ट मालिक यह नही समझ पाते है कि पर्यटक इन सब से बचने के लिये दूर जंगल मे सुकून के लिये आते है।

जैव-विविधता को धता बताते हुये यूकिलिप्टस को बढावा

जैव-विविधता को धता बताते हुये यूकिलिप्टस को बढावा (मेरी कान्हा यात्रा-8) - पंकज अवधिया “कान्हा और आस-पास के गाँव मे बडी मात्रा मे यूकिलिप्टस का रोपण किया जाना है। इसके लिये लगातार बैठके लेकर किसानो को प्रेरित किया जा रहा है कि वे इस विदेशी प्रजाति को बडे पैमाने पर लगाये।“ कान्हा पहुँचते ही मेरी मुलाकात श्री अमित से हुयी जो बफर जोन समिति के अध्यक्ष है। वे अपना एक मोटल चलाते है। उन्होने ने ही इस बैठक के बारे मे बताया। जैव-विविधता से पूर्ण कान्हा नेशनल पार्क के इतने करीब आस्ट्रेलियाई मूल के यूकिलिप्टस का रोपण समझ से परे है। आम जनता यूकिलिप्टस के बारे मे सब जानती है। देश जल संकट से गुजर रहा है और हमारे योजनाकार भूमिगत जल के शत्रु को बढावा दे रहे है। कान्हा की चिडियो को देखने दूर-दूर से लोग आते है। यूकिलिप्टस चिडियो के लिये अभिशाप है। इसकी पत्तियाँ जब जमीन मे गिरती है तो देर से सडती है। जमीन को सदा के लिये अम्लीय कर देती है। फिर यूकिलिप्टस से निकले एलिलोरसायन अपने आस-पास गिनी-चुनी वनस्पतियो को ही उगने देते है। यह जाने बगैर कि यूकिलिप्टस कान्हा की किन प्रजातियो को सीधे नुकसान पहुँचायेगा,

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -113

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -113 - पंकज अवधिया (नुकसानरहित बीडी और सिगरेट पर चर्चा) “दिन भर सोने से अच्छा है कि तेन्दू पत्ते की तुडाई के लिये चले जाओ। इस बार तो पैसे भी अच्छे मिल रहे है।“मैने जंगली क्षेत्र के एक ग्रामीण मित्र से कहा। वह पारम्परिक चिकित्सक है। ज्यादा जमीन नही है और न ही साधन इसलिये दूसरे किसानो की तरह गर्मी की फसल नही ले पाता है। अब गर्मियो मे ज्यादा जडी-बूटियाँ भी नही मिलती। इसलिये सारा दिन घर मे पडे-पडे बीतता है। “तेन्दू पत्ता तोडने चला तो जाऊँ पर घुनघुट्टी से कौन बचायेगा? और फिर बिच्छी से?” मेरे ज्यादा पीछे पडने पर उसने खीझ कर कहा। आप यदि ग्रामीण जीवन से जुडे है तो आप घुनघुट्टी को अवश्य जानते होंगे। खाली बैठने पर यह आँखो के कीचड के लिये आस-पास मंडराती रहती है। इतनी देर तक कि आप तंग आ जाये। ये छोटी मक्खीनुमा जीव शहरो मे नही मिलता पर गाँवो मे अभी भी सताता है। हम क्या जंगल के राजा भी इससे त्रस्त रहते है। इसलिये दिन के समय वे अन्धेरी जगह मे चले जाते है। रात को जब घुनघुट्टी का राज खत्म हो जाता है तब ही

पहली जरुरत: “जल धरोहरो” को बचाने और बढाने की

पहली जरुरत: “जल धरोहरो” को बचाने और बढाने की - पंकज अवधिया छत्तीसगढ अपने तालाबो के लिये पूरी दुनिया मे जाना जाता है। मुझे याद आता है कि कुछ वर्ष पहले राजधानी रायपुर के समीप स्थित आरंग नगर के पास रसनी के दो तालाबो से मैने बडी मात्रा मे जल एकत्र किया था और वहाँ से सैकडो किलोमीटर दूर पारम्परिक चिकित्सको के पास बतौर उपहार पहुँचाया था। रसनी के तालाब सडक के बायी और दायी ओर है। इन तालाबो के विषय मे बताया जाता है कि ये कभी नही सूखते। मैने हमेशा इनमे पानी देखा है। यहाँ के लोग भले ही इसे साधारण तालाब माने पर दूर-दूर के पारम्परिक चिकित्सक इसके जल को रोग विशेष मे उपयोगी मानते रहे है। वे रोगियो को न केवल इसमे स्नान करने को कहते है बल्कि जल के प्रयोग से दवाए भी बनाते है। और तो और, इस जल से नाना प्रकार की वनस्पतियो को सीचा जाता है ताकि वे औषधीय गुणो से परिपूर्ण हो जाये। पारम्परिक चिकित्सको के लिये ये गंगा जल से कम नही है। इन तालाबो के आस-पास उग रही वनस्पतियाँ विशेष औषधीय गुणो से परिपूर्ण मानी जाती है। मैने यहाँ मन्दिर के पास स्थित बेल और पुराने पीपल

शराब पीये चाहे जितनी पर शरीर को कुछ भी नुकसान न हो

शराब पीये चाहे जितनी पर शरीर को कुछ भी नुकसान न हो (मेरी कान्हा यात्रा-7) - पंकज अवधिया “ हाथो मे यदि अपरस हो जाये तो इस पेड के पास जाये और सात बार इससे लिपटकर समधी भेंट करे। फिर हाथो को इसकी चिकनी छाल पर रगडे और कहे कि जैसे तुमहारी छाल चिकनी है वैसे ही हमारे हाथ हो जाये। इस प्रक्रिया के बाद पीछे मुडे और वैसे ही घर आ जाये।“ कान्हा के गाइड ने जब मुझे इंडियन घोस्ट ट्री दिखाया तो मैने झट से उसे छत्तीसगढ मे इसके प्रयोग से जुडी ये बात बतायी। कान्हा मे पर्यटको को यह पेड विशेष तौर पर दिखाया जाता है। कान्हा ही क्या कुछ सालो पहले मै पेंच टाइगर रिजर्व मे सरकारी मेहमान था, तब भी हर कोई इसी पेड पर नजर जमाये हुये था। इसे सामान्य बोलचाल की भाषा मे कुरलु कहा जाता है। पहले ये पेड बडी संख्या मे थे पर इसके औषधीय उपयोगो के कारण ये तेजी से कम होते जा रहे है। इसकी गोन्द बहुउपयोगी है। गोन्द एकत्र करते-करते लोग इसे दीमक से भी तेज गति से पूरी तरह से नष्ट कर देते है। नाना प्रकार के कैसर की चिकित्सा मे परम्परागत तरीके से प्रयोग किये जा रहे 35,000 से अधिक नुस्खो को रपट के रुप मे लिखते समय

ग़ुटखे के अभिशाप से अछूते नही है कान्हा के वन्य जीव

ग़ुटखे के अभिशाप से अछूते नही है कान्हा के वन्य जीव (मेरी कान्हा यात्रा-6) - पंकज अवधिया “कान्हा मे बन्दर आपको सडक पर कुछ चाटते दिख जायेंगे। सडक माने जंगल के अन्दर की सडक। पिछले कुछ सालो से उनकी यह विशेष गतिविधि बढती जा रही है। शायद दूसरे जानवर भी ऐसा करते हो।“ साथ चल रहे स्थानीय लोगो ने यह रहस्योघाटन किया। यह मेरे लिये नये किस्म की खबर थी। जब लोगो ने बन्दर की इस विशेष गतिविधि के कारण की जानकारी दी तो मेरे होश उड गये। मै कारण का खुलासा आगे करुंगा। पहले कान्हा मे पर्यटको द्वारा फैलायी जाने वाली गन्दगी के बारे मे चर्चा करते है। सफारी के दौरान जैसे ही मेरे सहयात्री ने बिस्किट खाकर रैपर फेकना चाहा, गाइड ने कडे शब्दो मे ऐसा करने से मना कर दिया। उसके कडे शब्द सुनकर मुझे खुशी हुयी कि चलो किसी को तो चिंता है पार्क की। कुछ आगे जाने पर हमे जंगली फल गिरे दिखायी दिये। मैने गाइड से फलो को उठाकर दिखाने की माँग की तो उसने साफ शब्दो मे मना कर दिया। उसने कहा कि जंगल को कुछ दे नही सकते तो कुछ ले जा भी नही सकते। मैने कहा कि तस्वीर लेने के बाद मै फलो को वापस रख दूंगा। फिर भी वह तैयार नही