कान्हा की हवा बिगाडता एलर्जी वीड

कान्हा की हवा बिगाडता एलर्जी वीड

(मेरी कान्हा यात्रा-3)
- पंकज अवधिया


नाना प्रकार की एलर्जी के शिकार लोगो को आमतौर पर चिकित्सक हवा बदलने की सलाह देते है। देश भर के बहुत से चिकित्सक रोगियो को कान्हा नेशनल पार्क जैसे स्थानो मे जाने की सलाह देते है। इसमे कोई शक नही है कि यह पार्क मनवजनित प्रदूषणो से काफी हद तक मुक्त है। यहाँ आते ही शरीर स्फूर्ति से भर जाता है। नसो मे नयी ऊर्जा का संचार होने लगता पर यह भी नग्न सत्य है कि एलर्जी फैलाने वाली गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) यहाँ अपना साम्राज्य जमाये हुये है।

अपनी यात्रा के दौरान मै पन्द्रह से अधिक होटलो और रिसोर्ट मे गया और सभी जगह मैने बागीचे मे गाजर घास का प्रकोप देखा। भरी गर्मी मे यह हालात है तो पता नही साल के बाकी महिनो मे क्या होता होगा। आस-पास के गाँवो मे पूछताछ करने पर पता चला कि गाजर घास का प्रकोप पिछले कुछ समय से बढा है। पार्क के अन्दर सफारी के दौरान मैने साथ चल रहे गाइड से गाजर घास के बारे मे पूछा तो उसने कहा कि यह नाम वह पहली बार सुन रहा है। पार्क के अन्दर मुझे उसकी अधिक संख्या नही दिखायी दी। मै सडक के आस-पास की बात कर रहा हूँ। क्योकि गाडी से उतरकर मुआयना करने की अनुमति तो पर्यटको को है नही। रात मे चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने दावा किया कि गाजर घास पार्क के अन्दर भी फैली हुयी है।

अमेरिका से आयातित गेहूँ के साथ आयी गाजर घास आज पूरे देश मे साम्राज्य जमाये हुये है। यह जैव-विविधता के लिये अभिशाप है। कान्हा मे इसके प्रकोप को देखकर मन दुखा। पास ही जबलपुर है जहाँ राष्ट्रीय खरप्तवार अनुसन्धान संस्थान है। इस संस्थान ने अपने “लोगो” मे गाजर घास को लगा रखा है। गाजर घास प्रबन्धन के नाम पर देश मे अरबो रुपये फूँके जा चुके है पर जमीनी स्तर पर कुछ हासिल नही हुआ दिखता है। जबलपुर के इतने पास कान्हा और आस-पास के क्षेत्रो मे गाजर घास का प्रकोप दिया तले अन्धेरा वाली बात लगती है।

गाजर घास और गाडियो का सीधा सम्बन्ध है। श्रीलंका मे गाजर घास नही थी। वैज्ञानिक साहित्य बताते है कि भारत से आयी शांति सेना के वाहनो के साथ गाजर घास के बीज पहली बार पहुँचे और अब यह खरपतवार श्रीलंका के लिये अभिशाप बन चुका है। कान्हा मे पर्यटक वाहन गाजर घास के फैलाव मे अहम भूमिका निभा रहे है। आस्ट्रेलिया मे भी इसी तरह की समस्या देखी गयी है। उन्होने इसका समाधान निकाला। नेशनल पार्क मे घुसने से पहले गाडियो को अच्छी तरह से धो लिया जाता है ताकि गाडियो से चिपके गाजर घास के बीज और दूसरे शहरी खरप्तवार धुल जाये और पार्क के अन्दर न जा पाये। आस्ट्रेलिया मे यह उपाय कारगर रहा। कान्हा मे इसे दोहराया जा सकता है। यह खर्चीली प्रक्रिया नही है। इससे होने वाला लाभ दूरगामी और स्थायी है। इससे नये बीजो के प्रवेश पर अंकुश लगेगा। पार्क मे फैली गाजर घास को एक अभियान चलाकर खत्म करने की जरुरत है। मुझसे पहली बारिश होने के बाद कान्हा आने को कहा गया है ताकि मै गाजर घास का खौफनाक चेहरा देख सकूँ।

होटलो और रिसोर्ट मे फैली गाजर घास को तो आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। जिस स्थान पर मै ठहरा था वहाँ तो मैने यह शुभ काम स्वयम ही कर दिया पर होटल वाले को चेताया कि जमीन मे पडे बीजो से और पौधे निकल सकते है। इसलिये यह अभियान समूल नाश तक जारी रखना होगा। मन तो करता है कि गाजर घास की उपस्थिति के आधार मे होटलो की रेटिंग कर दूँ ताकि पर्यटक सही होटल का चुनाव कर सके। सबसे बुरी बात यह लगी कि ज्यादातर रिसोर्ट मालिक इसके बारे मे नही जानते है। उन्हे जगाना जरुरी है। कान्हा क्षेत्र मे बेकार जमीन मे गाजर घास का साम्राज्य है। बागीचे के लिये इन्ही बेकार जमीन से मिट्टी ले जायी जाती है। मिट्टी के साथ असंख्य बीज अन्दर चले जाते है और साल दर साल बागीचो मे फैलते रहते है।

गाजर घास कैसे वन्य जीवो और वनस्पतियो के लिये अभिशाप बन रहा है, इस पर कान्हा मे शोध नही हुये है। मैने कहा न कि टाइगर पर सारा ध्यान है। पर टाइगर से जुडे लोगो को मै चेताना चाहूंगा कि गाजर घास के अभिशाप से टाइगर भी अछूता नही रहेगा। गाजर घास का खात्मा माने असंख्य वन्य जीवो और वनस्पतियो की रक्षा। पार्क प्रबन्धन को अब जागना ही होगा। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)


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