“हीरो” कहलवाने की बडी कीमत चुका रहे है कान्हा के फारेस्ट गार्ड
“हीरो” कहलवाने की बडी कीमत चुका रहे है कान्हा के फारेस्ट गार्ड
(मेरी कान्हा यात्रा-5)
- पंकज अवधिया
“जब हम दोनो कैम्प की ओर लौट रहे थे तब भालू ने आक्रमण कर दिया। मेरे पास लाठी थी। मैने लाठी से अपनी रक्षा करनी चाही तो भालू ने लाठी को पकड लिया। हम गुत्मगुत्था हो गये। मेरे साथी ने छाते से भालू को ठेलना चाहा तो छाता ही मुड गया। साथी ने कैम्प मे जाकर मदद लानी चाही। उसके जाने से मै अकेला हो गया। वह मादा भालू थी। उसके बच्चो की आवाज आ रही थी। उसने मुझे पटक दिया। पहले पैरो फिर पेट पर उसने आक्रमण कर घाव बना दिये। फिर पूरी खोपडी ही खोल दी। मै चुपचाप पडा रहा। मुझे वैसी ही हालत मे छोडकर भालू जंगल मे गुम हो गया।“ कुछ इन्ही शब्दो मे भालू के हमले से घायल हुये एक फारेस्ट गार्ड पर आधारित लघु फिल्म कान्हा मे दिखायी जाती है। इस हमले मे फारेस्ट गार्ड की जान तो बच गयी पर सिर के घाव के निशान दिल दहला देते है। इस फिल्म मे कुछ और फारेस्ट गार्डो की आप-बीती दिखायी गयी है। फिल्म मे आखिर मे कहा जाता है कि ये फारेस्ट गार्ड हमारे हीरो है और संरक्षण मे प्रथम पंक्ति के सिपाही है। इस फिल्म को देखकर मन रोमांचित हो जाता है।
कान्हा नेशनल पार्क मे जब सफारी के लिये जाते है तो फारेस्ट गार्ड के जीवन की असलियत दिखायी देती है। “अरे, यहाँ तो आदमी साइकिल मे खुले घूम रहे है, यहाँ भला टाइगर कैसे दिखेगा?” मेरे सहयात्री ने गाइड से प्रश्न पूछा। प्रश्न खत्म ही हुआ था कि हमे झाडियो मे टाइगर दिख गया है। हम सफारी मे प्रयोग की जाने वाली खुली जिप्सी मे बैठे थे। कुछ देर पहले जो व्यक्ति साइकिल पर उस टाइगर के सामने से गुजरा था वह व्यक्ति फारेस्ट गार्ड था। वह अपनी जान जोखिम मे डालकर वहाँ से गुजरा था। वह जंगल के अन्दर स्थित कैम्प से आ रहा था। यदि टाइगर या किसी दूसरे जंगली जानवर से उसकी मुलाकात हो जाती तो उसके पास सिवाय लाठी के कुछ नही था। सफारी के दौरान कई बार दूर से सरकारी गाडी को आते देखकर हमारे ड्रायवर ने गाडी रोकी। हर बार हमारे गाइड ने खडे होकर अदब से सेल्यूट मारा और फिर हमारी गाडी आगे बढी। मुझे बताया गया कि ये पार्क के अधिकारी है। वे बन्द जिप्सी मे चल रहे थे। पूरी तरह से जोखिम से बचकर। एक साधारण पर्यटक की तरह मेरे मन मे इस भेदभाव पर प्रश्न उठे। क्या एक अधिकारी और एक फारेस्ट गार्ड की जान अलग-अलग किस्म की है? क्यो फारेस्ट गार्ड को साइकिल मे बिना सुरक्षा के जंगल से गुजरना पडता है? कान्हा मे फारेस्ट गार्डो पर जंगली जानवरो के हमले अक्सर होते रहते है। इंटरनेट पर भी ऐसे दुखद समाचारो का अम्बार है। मैने पढा है कि हाथी का चारा काटने गये एक वनकर्मी को बाघ ने मार डाला। मैने जितने भी समाचार देखे उनमे किसी मे भी किसी अधिकारी के मरने या घायल होने की खबरे नही थी। तो क्या यह मान लिया जाये कि :”हीरो” कहलवाने की बहुत बडी कीमत चुका रहे है कान्हा के फारेस्ट गार्ड?
मै इस लेखमाला मे लगातार लिखता रहा हूँ कि केवल समस्या गिनाना मेरा उद्देश्य नही है। मै समाधान भी सुझाता चलूंगा। कान्हा मे शोध के नाम पर देश-विदेश के ढेरो अनुसन्धानकर्ता अरबो बहा चुके है और नित नयी जटिल शब्दावलियो के विकास मे लगे है पर जमीनी स्तर पर आम फारेस्ट गार्डो को हो रही समस्या के लिये सोचने का समय किसी के पास नही है। मुझे साइकिल सवार फारेस्ट गार्ड को देखते ही एटीवी (आल टेरेन व्हीकल) की याद आ गयी। सभी तरह की भू परिस्थितियो मे चलने वाली चार चक्को की मोटरसाइकिलनुमा एटीवी को आपने विदेशी फिल्मो मे देखा होगा। अफगानिस्तान मे अमेरिकी सेना इसका प्रयोग बखूबी कर रही है। मैने डिस्कवरी चैनल पर बर्फीले भेडियो पर शोध कर रहे एक शोधकर्ता के पास यह गाडी देखी थी। उसने इसमे परिवर्तन करके ऊपर पिंजरानुमा जाली लगवा ली थी। इससे वह भेडियो के बीच घूमते हुये सुरक्षित रह पाता था। इस एटीवी का भारतीय संस्करण कान्हा के फारेस्ट गार्डो को उपलब्ध करवाया जा सकता है। यदि इसकी उपयोगिता और बढानी हो तो कान्हा क्षेत्र मे प्रचुरता से उगने वाले करंज और महुआ के बीजो से प्राप्त तेल से इस एटीवी को चला कर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है। इस एटीवी से फारेस्ट गार्डो की कार्य क्षमता बढ जायेगी। चौबीसो घंटे उनके सिर पर मंडराता खतरा कम होगा। वे रात बेरात गश्त मे जाकर शिकारियो को सफलतापूर्वक पकड सकेंगे।
मुझे याद आता है कि कृषि की शिक्षा के दौरान हमारे एक प्रोफेसर खेत भ्रमण के समय कडा रुख अपनाते हुये हमे पेंट मोडकर खेत के अन्दर घुसकर काम करने के लिये मजबूर कर देते थे। उस समय यह अजीब लगता था पर उनके इस रवैये ने बहुतो को जमीनी हकीकत से परिचित करा दिया। कान्हा के सन्दर्भ मे मै इसे इसलिये याद कर रहा हूँ क्योकि इसके माध्यम से मै पार्क के अधिकारियो से कुछ कहना चाहता हूँ। बन्द गाडियो मे चलने की बजाय वे भी एटीवी मे चले और उन्ही परिस्थितियो से गुजरे जिन परिस्थितियो से उनके मातहत गुजरते है। तभी वे मिल-जुल सही मायने मे काम कर पायेंगे।
बीच जंगल मे सफारी के दौरान एक कैम्प मे हम रुके। अन्दर बहुत हलचल मची हुयी थी। पता चला कि एक धामन साँप अन्दर घुस आया है। अब इसे मारना नही था इसलिये फारेस्ट गार्ड बाहर निकालने की जुगत मे थे। काफी मशक्क्त के बाद वह बाहर निकला। फारेस्ट गार्ड ने बताया कि ये दो दिनो मे पाँचवी बार घुसा है। वह बहुत घबराया हुआ था। नया रंगरुट लगता था। शायद नयी भर्ती थी। जंगल से वास्ता नही पडा था। टीवी के बिना नीन्द नही आती थी। अब यहाँ तो टीवी था नही। ऊपर से जंगली जानवरो की समय-असमय हाजरी लगती रहती है। उसने पता नही मुझे क्या समझा और कहा कि साहब, यदि आप कोशिश करे तो मै इस कालापानी से निकल सकता हूँ। बाद मे लोगो ने दबी जुबान से बताया गया कि नयी भर्ती मे स्थानीय लोगो की उपेक्षा की गयी है। स्थानीय लोग जंगल और उसके जीवो को अच्छे से जानते है इसलिये उनके हाथो मे जंगल अधिक सुरक्षित रहता है। मुझे इस बारे मे ज्यादा नही मालूम पर अनुभव से यह कह सकता हूँ कि इन सब मामलो मे स्थानीय लोगो को प्राथमिकता कभी भी घाटे का सौदा नही होती।
भालू के हमले से घायल हुये फिल्म वाले फारेस्ट गार्ड से मेरी मुलाकात नही हो पायी। बेरियर पर मुझे बताया गया कि वे दो दिन की छुट्टी पर है। मेरे वापस आने के बाद न जाने अब तक कितने और फारेस्ट गार्ड अनावश्यक खतरा मोल ले चुके होंगे? मेरा यह लेख उनकी आवाज है। मुझे विश्वास है कि आपका सहयोग इसे नक्कारखाने मे तूती की आवाज नही बनने देगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
(मेरी कान्हा यात्रा-5)
- पंकज अवधिया
“जब हम दोनो कैम्प की ओर लौट रहे थे तब भालू ने आक्रमण कर दिया। मेरे पास लाठी थी। मैने लाठी से अपनी रक्षा करनी चाही तो भालू ने लाठी को पकड लिया। हम गुत्मगुत्था हो गये। मेरे साथी ने छाते से भालू को ठेलना चाहा तो छाता ही मुड गया। साथी ने कैम्प मे जाकर मदद लानी चाही। उसके जाने से मै अकेला हो गया। वह मादा भालू थी। उसके बच्चो की आवाज आ रही थी। उसने मुझे पटक दिया। पहले पैरो फिर पेट पर उसने आक्रमण कर घाव बना दिये। फिर पूरी खोपडी ही खोल दी। मै चुपचाप पडा रहा। मुझे वैसी ही हालत मे छोडकर भालू जंगल मे गुम हो गया।“ कुछ इन्ही शब्दो मे भालू के हमले से घायल हुये एक फारेस्ट गार्ड पर आधारित लघु फिल्म कान्हा मे दिखायी जाती है। इस हमले मे फारेस्ट गार्ड की जान तो बच गयी पर सिर के घाव के निशान दिल दहला देते है। इस फिल्म मे कुछ और फारेस्ट गार्डो की आप-बीती दिखायी गयी है। फिल्म मे आखिर मे कहा जाता है कि ये फारेस्ट गार्ड हमारे हीरो है और संरक्षण मे प्रथम पंक्ति के सिपाही है। इस फिल्म को देखकर मन रोमांचित हो जाता है।
कान्हा नेशनल पार्क मे जब सफारी के लिये जाते है तो फारेस्ट गार्ड के जीवन की असलियत दिखायी देती है। “अरे, यहाँ तो आदमी साइकिल मे खुले घूम रहे है, यहाँ भला टाइगर कैसे दिखेगा?” मेरे सहयात्री ने गाइड से प्रश्न पूछा। प्रश्न खत्म ही हुआ था कि हमे झाडियो मे टाइगर दिख गया है। हम सफारी मे प्रयोग की जाने वाली खुली जिप्सी मे बैठे थे। कुछ देर पहले जो व्यक्ति साइकिल पर उस टाइगर के सामने से गुजरा था वह व्यक्ति फारेस्ट गार्ड था। वह अपनी जान जोखिम मे डालकर वहाँ से गुजरा था। वह जंगल के अन्दर स्थित कैम्प से आ रहा था। यदि टाइगर या किसी दूसरे जंगली जानवर से उसकी मुलाकात हो जाती तो उसके पास सिवाय लाठी के कुछ नही था। सफारी के दौरान कई बार दूर से सरकारी गाडी को आते देखकर हमारे ड्रायवर ने गाडी रोकी। हर बार हमारे गाइड ने खडे होकर अदब से सेल्यूट मारा और फिर हमारी गाडी आगे बढी। मुझे बताया गया कि ये पार्क के अधिकारी है। वे बन्द जिप्सी मे चल रहे थे। पूरी तरह से जोखिम से बचकर। एक साधारण पर्यटक की तरह मेरे मन मे इस भेदभाव पर प्रश्न उठे। क्या एक अधिकारी और एक फारेस्ट गार्ड की जान अलग-अलग किस्म की है? क्यो फारेस्ट गार्ड को साइकिल मे बिना सुरक्षा के जंगल से गुजरना पडता है? कान्हा मे फारेस्ट गार्डो पर जंगली जानवरो के हमले अक्सर होते रहते है। इंटरनेट पर भी ऐसे दुखद समाचारो का अम्बार है। मैने पढा है कि हाथी का चारा काटने गये एक वनकर्मी को बाघ ने मार डाला। मैने जितने भी समाचार देखे उनमे किसी मे भी किसी अधिकारी के मरने या घायल होने की खबरे नही थी। तो क्या यह मान लिया जाये कि :”हीरो” कहलवाने की बहुत बडी कीमत चुका रहे है कान्हा के फारेस्ट गार्ड?
मै इस लेखमाला मे लगातार लिखता रहा हूँ कि केवल समस्या गिनाना मेरा उद्देश्य नही है। मै समाधान भी सुझाता चलूंगा। कान्हा मे शोध के नाम पर देश-विदेश के ढेरो अनुसन्धानकर्ता अरबो बहा चुके है और नित नयी जटिल शब्दावलियो के विकास मे लगे है पर जमीनी स्तर पर आम फारेस्ट गार्डो को हो रही समस्या के लिये सोचने का समय किसी के पास नही है। मुझे साइकिल सवार फारेस्ट गार्ड को देखते ही एटीवी (आल टेरेन व्हीकल) की याद आ गयी। सभी तरह की भू परिस्थितियो मे चलने वाली चार चक्को की मोटरसाइकिलनुमा एटीवी को आपने विदेशी फिल्मो मे देखा होगा। अफगानिस्तान मे अमेरिकी सेना इसका प्रयोग बखूबी कर रही है। मैने डिस्कवरी चैनल पर बर्फीले भेडियो पर शोध कर रहे एक शोधकर्ता के पास यह गाडी देखी थी। उसने इसमे परिवर्तन करके ऊपर पिंजरानुमा जाली लगवा ली थी। इससे वह भेडियो के बीच घूमते हुये सुरक्षित रह पाता था। इस एटीवी का भारतीय संस्करण कान्हा के फारेस्ट गार्डो को उपलब्ध करवाया जा सकता है। यदि इसकी उपयोगिता और बढानी हो तो कान्हा क्षेत्र मे प्रचुरता से उगने वाले करंज और महुआ के बीजो से प्राप्त तेल से इस एटीवी को चला कर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है। इस एटीवी से फारेस्ट गार्डो की कार्य क्षमता बढ जायेगी। चौबीसो घंटे उनके सिर पर मंडराता खतरा कम होगा। वे रात बेरात गश्त मे जाकर शिकारियो को सफलतापूर्वक पकड सकेंगे।
मुझे याद आता है कि कृषि की शिक्षा के दौरान हमारे एक प्रोफेसर खेत भ्रमण के समय कडा रुख अपनाते हुये हमे पेंट मोडकर खेत के अन्दर घुसकर काम करने के लिये मजबूर कर देते थे। उस समय यह अजीब लगता था पर उनके इस रवैये ने बहुतो को जमीनी हकीकत से परिचित करा दिया। कान्हा के सन्दर्भ मे मै इसे इसलिये याद कर रहा हूँ क्योकि इसके माध्यम से मै पार्क के अधिकारियो से कुछ कहना चाहता हूँ। बन्द गाडियो मे चलने की बजाय वे भी एटीवी मे चले और उन्ही परिस्थितियो से गुजरे जिन परिस्थितियो से उनके मातहत गुजरते है। तभी वे मिल-जुल सही मायने मे काम कर पायेंगे।
बीच जंगल मे सफारी के दौरान एक कैम्प मे हम रुके। अन्दर बहुत हलचल मची हुयी थी। पता चला कि एक धामन साँप अन्दर घुस आया है। अब इसे मारना नही था इसलिये फारेस्ट गार्ड बाहर निकालने की जुगत मे थे। काफी मशक्क्त के बाद वह बाहर निकला। फारेस्ट गार्ड ने बताया कि ये दो दिनो मे पाँचवी बार घुसा है। वह बहुत घबराया हुआ था। नया रंगरुट लगता था। शायद नयी भर्ती थी। जंगल से वास्ता नही पडा था। टीवी के बिना नीन्द नही आती थी। अब यहाँ तो टीवी था नही। ऊपर से जंगली जानवरो की समय-असमय हाजरी लगती रहती है। उसने पता नही मुझे क्या समझा और कहा कि साहब, यदि आप कोशिश करे तो मै इस कालापानी से निकल सकता हूँ। बाद मे लोगो ने दबी जुबान से बताया गया कि नयी भर्ती मे स्थानीय लोगो की उपेक्षा की गयी है। स्थानीय लोग जंगल और उसके जीवो को अच्छे से जानते है इसलिये उनके हाथो मे जंगल अधिक सुरक्षित रहता है। मुझे इस बारे मे ज्यादा नही मालूम पर अनुभव से यह कह सकता हूँ कि इन सब मामलो मे स्थानीय लोगो को प्राथमिकता कभी भी घाटे का सौदा नही होती।
भालू के हमले से घायल हुये फिल्म वाले फारेस्ट गार्ड से मेरी मुलाकात नही हो पायी। बेरियर पर मुझे बताया गया कि वे दो दिन की छुट्टी पर है। मेरे वापस आने के बाद न जाने अब तक कितने और फारेस्ट गार्ड अनावश्यक खतरा मोल ले चुके होंगे? मेरा यह लेख उनकी आवाज है। मुझे विश्वास है कि आपका सहयोग इसे नक्कारखाने मे तूती की आवाज नही बनने देगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Cissus pedata as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Kankeran Toxicity,
Cissus quadrangularis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kankero Toxicity,
Cissus repanda as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Kantalo Toxicity,
Cissus repens as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Kanti Toxicity,
Cissus setosa as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Kantio bel Toxicity,
Cissus vitiginea as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Kantio-chandelo Toxicity,
Citharexylum subserratum as Allelopathic ingredient to
enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous
Traditional Medicines) used for Kapal-phori Toxicity,
Citrullus colocynthis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Karad Toxicity,
Citrullus lanatus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Karak Toxicity,
Citrus aurantifolia as
Allelopathic ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal
Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Karela Toxicity,
Comments