छत्तीसगढ मे तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढाये गये जीवनदाता वृक्ष : भाग-1
छत्तीसगढ मे तथाकथित विकास की बलिवेदी पर चढाये गये जीवनदाता वृक्ष : भाग-1
- पंकज अवधिया
सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड
तेज बरसात के बीच हम पाँच लोग जैसे-तैसे उस पेड तक पहुँचे। हमारे पास विदारीकन्द, तेलिया कन्द जैसे कई प्रकार के कन्दो का सूखा मिश्रण था। हमे जल्दी थी कि कब हम पेड तक पहुँचे और इन मिश्रणो को जड खोदकर दबा आये। हमे जंगल मे नही जाना था। यह पेड था हाइवे के किनारे। तूफानी रात मे जाना मजबूरी थी क्योकि वही शुभ दिन बताया गया था कन्दो को गाडने के लिये। दिन भर तो हम जंगलो की खाक छानते रहे कंदो की तलाश मे। वापस लौटते रात हो गयी। पेड के पास पहुँचकर हमारे साथ आये पारम्परिक चिकित्सको ने कुछ मंत्र पढे फिर कन्दो को दबाने का काम शुरु हो गया। एक घंटे बाद हा पूरी तरह से काम निपटा चुके थे। रात को आते-जाते लोग पता नही हमे क्या समझ रहे थे।
रायपुर से आरंग जाते वक्त यह पेड बायी ओर पर था। यह सिरसा (शिरीष) का पुराना पेड था और इसमे गस्ती नामक दूसरी वनस्पति ने जगह बना ली थी। गस्ती पीपल और बरगद के परिवार का है। इसके फल चिडियो द्वारा पसन्द किये जाते है। बीज चिडियो के मलद्वार से बिना पचे बीट के साथ निकल जाते है। ये बीज उचित परिस्थिति पाते ही फिर से उग जाते है। छत्तीसगढ मे आप गस्ती को बहुत से पेडो पर उगता पायेंगे। यह परजीवी नही होता है। आधुनिक विज्ञान भले ही इसे साधारण घटना के रुप मे देखे पर पारम्परिक चिकित्सक इस तरह सन्युक्त पेडो को माँ प्रकृति का वरदान मानते है। वे ऐसे दो पेडो का अध्य्यन कर आसानी से बता देते है कि एक ने दूसरे के औषधीय गुणो को प्रभावित किया है या नही। इस बात को और आसानी से समझने के लिये हम सिरसा और गस्ती का उदाहरण ले।
सिरसा और गस्ती दोनो ही के पौध भागो का प्रयोग बतौर औषधी होता रहा है। बहुत से मामलो मे सिरसा रोगी को उतना आराम नही पहुँचा पाता जितनी कि उससे उम्मीद होती है। ऐसे समय मे पारम्परिक चिकित्सक ऐसे सन्युक्त पेडो की तलाश करते है। वे बताते है कि जो काम सिरसा नही कर पा रहा है वही काम सिरसा के ऊपर आश्रित रहने वाला गस्ती कर सकता है। यह गहन ज्ञान है जो पारम्परिक चिकित्सको के पास पीढीयो के अनुभव से आया है।
पारम्परिक चिकित्सको के बीच आपसी संवाद कम ही होता है। वे अपने साथियो से या तो जंगलो मे मिल लेते है या हाट बाजार के दौरान। कुछ अपने ज्ञान के बारे मे कुछ नही बोलते है तो कुछ खुशी-खुशी ज्ञान बाँटते है इस उम्मीद मे कि इससे उन्हे दूसरो से नया ज्ञान मिलेगा। इसी आपसी चर्चा से सिरसा-गस्ती के सन्युक्त पेड की महिमा दूर-दूर तक फैल गयी थी। जिन्होने यह महिमा फैलायी थी उनका ही जिम्मा था कि वे इसे औषधीय गुणो से सम्पन्न करते रहे। मै अक्सर औषधीय वनस्पतियो को औषधीय गुणो से सम्पन्न करने के पारम्परिक ज्ञान के बारे मे लिखता रहता हूँ। यह अद्भुत ज्ञान है जिसकी मिसाल दुनिया मे नही मिलती है। इसे अंग्रेजी मे “ट्रेडीशनल एलिलोपैथिक नालेज” का वैज्ञानिक नाम मिला है। यदि आप इसे गूगल मे सर्च करेंगे तो आपको केवल छत्तीसगढ के परिणाम मिलेंगे हजारो शोध लेखो के हवाले से।
सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड को साल मे बारह से अधिक बार औषधीय गुणो से परिपूर्ण किया जाता रहा। यह मेरा सौभाग्य है कि मै हर बार इस अनुष्ठान मे शामिल रहा। ऊपर आपने कन्दो के मिश्रण के बारे मे पढा। यह मिश्रण सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड को औषधीय गुणो से परिपूर्ण बनाने के लिये गाडा गया था। दो महिने बाद रक्त सम्बन्धी रोगो की चिकित्सा के लिये पारम्परिक चिकित्सक इस सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड के पौध भाग एकत्रित करने वाले थे। उसी की तैयारी थी यह सब। उनका कहना था कि दो महिने मे ये कन्द सडकर अपने रसायनो से सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड को औषधीय गुणो से समृद्ध कर देंगे।
पारम्परिक चिकित्सक गुपचुप तरीके से यह काम करते रहे। उन्हे डर था कि इसका प्रचार होते ही धार्मिक माफियाओ का यहाँ कब्जा हो सकता है। धार्मिक माफियाओ का कब्जा तो नही हुआ पर जब यहाँ फोरलेन सडक का निर्माण हुआ तो एक झटके मे ही इसे काट दिया गया। दूसरे दिन इस दुखद खबर को पाकर जब हम लाश की तलाश मे निकले तो पता चला कि वह टुकडो मे बँटकर चूल्हो और आस-पास के ढाबो की भट्टियो मे जलकर खाक हो चुकी थी। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने बिना देरी राख एकत्र कर ली और किसी कीमती निशानी के रुप मे सहेज लिया। उनकी आँखो मे आँसू थे।
मैने इस पेड से जुडी सैकडो तस्वीरे खीची है। इसकी महिमा का बखान करते सैकडो पन्ने मेरे डेटाबेस मे है। पर अब सिरसा-गस्ती सन्युक्त पेड इतिहास बन चुका है। पारम्परिक चिकित्सक पीढीयो से सम्भाल कर रखे इस पेड के खो जाने से इतने दुखी है कि अब उन्होने रोगियो को लौटना शुरु कर दिया है। इस तरह के हजारो पेड छत्तीसगढ मे होंगे पर आरंग मार्ग पर स्थित इस पेड को विशेष दर्जा प्राप्त था। इसे खोने का गम अपनो के खोने के कम से अधिक ही रहा हम सब को। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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