अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -113

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -113 - पंकज अवधिया
(नुकसानरहित बीडी और सिगरेट पर चर्चा)


“दिन भर सोने से अच्छा है कि तेन्दू पत्ते की तुडाई के लिये चले जाओ। इस बार तो पैसे भी अच्छे मिल रहे है।“मैने जंगली क्षेत्र के एक ग्रामीण मित्र से कहा। वह पारम्परिक चिकित्सक है। ज्यादा जमीन नही है और न ही साधन इसलिये दूसरे किसानो की तरह गर्मी की फसल नही ले पाता है। अब गर्मियो मे ज्यादा जडी-बूटियाँ भी नही मिलती। इसलिये सारा दिन घर मे पडे-पडे बीतता है। “तेन्दू पत्ता तोडने चला तो जाऊँ पर घुनघुट्टी से कौन बचायेगा? और फिर बिच्छी से?” मेरे ज्यादा पीछे पडने पर उसने खीझ कर कहा। आप यदि ग्रामीण जीवन से जुडे है तो आप घुनघुट्टी को अवश्य जानते होंगे। खाली बैठने पर यह आँखो के कीचड के लिये आस-पास मंडराती रहती है। इतनी देर तक कि आप तंग आ जाये। ये छोटी मक्खीनुमा जीव शहरो मे नही मिलता पर गाँवो मे अभी भी सताता है। हम क्या जंगल के राजा भी इससे त्रस्त रहते है। इसलिये दिन के समय वे अन्धेरी जगह मे चले जाते है। रात को जब घुनघुट्टी का राज खत्म हो जाता है तब ही राजा माँद से बाहर आते है। तेन्दु पत्ता तोडने वालो को इनसे बचना पडता है। बिच्छी बिच्छू नही है। यह एक तरह की इल्ली है जिसके शरीर के काँटे होते है। यह इल्ली तेन्दु की पत्तियो को खाती है। यह पत्ती की निचली सतह पर होती है। जब अचानक ही पत्तियो को तोडते समय इन पर हाथ पडता है तो बिच्छू के डंक की तरह अहसास होता है। मित्र को इन दोनो की चिंता थी। काफी बहस के बाद मैने उसे सुझाव दिया कि चलो एक पहर मै साथ चलता हूँ। इससे उसका हौसला बढेगा। मेरी कमाई भी उसके ही खाते मे जायेगी। वह तैयार हो गया।

शायद हम पहले तेन्दु पत्ता एकत्र करने वाले होंगे जो जंगल तक कार से पहुँचे। हमे कुछ और लोग मिल गये। तय हुआ कि गाना गाते हुये आगे बढेंगे। इससे समय भी कटेगा और भालू जैसे उलझने वाले जीव भी दूर रहेंगे। जिस बात की आशंका मित्र को थी वह सामने आने लगी। घुनघुट्टी से हम परेशान होने लगे और बिच्छी के दंश ने हमारे हौसले पस्त कर दिये। दूसरे लोग मजे से गा रहे थे और आगे बढ रहे थे। उन्हे अपनी समस्या बतायी तो कुछ ने हमसे गांजे का सहारा लेने को कहा। पर हम इसके लिये तैयार नही थे। वे कहने लगे कि गाँजे से काटने पर उल्टे झटका कीडे को लगता है। एक बुजुर्ग ने बढिया उपाय सुझाया।

उन्होने तेन्दु की जड हमे दी और फिर उसके रस को हाथ मे लगाने को कहा। रस के सूखने पर हमे फिर से पत्तियाँ तोडने को कहा। हमने ऐसा ही किया। हमे इल्ली के काँटे लगने बन्द हो गये। वे त्वचा मे घुस रहे थे पर दर्द का अहसास नही हो रहा था। वाकई यह तो कमाल हो गया। उन्होने हमे पलाश सहित बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ दिखायी जिनका उपयोग दंश से रक्षा कर सकता है। मैने इस लेखमाला मे पहले लिखा है कि भारतीय सेना की सहायता के उद्देश्य से मै एक शोध दस्तावेज तैयार कर रहा हूँ। इसमे छत्तीसगढ के जंगलो मे मौजूद तमाम तरह के खतरे यानि बिच्छी से लेकर जंगली भैसे और जहरीले साँपो तक की पहचान और उनसे निपटने के जमीनी उपाय का विस्तार से वर्णन है। मैने बुजुर्ग से मिली इस जानकारी को उनके हवाले से इस दस्तावेज मे शामिल कर लिया है।

बुजुर्ग से विस्तार से चर्चा होने लगी। तेन्दु पत्ता तोडाई का काम जैसे हम भूल से गये। बुजुर्ग ने बताया कि मुझे यह काम पसन्द नही है। तेन्दु पत्ता से बीडी का निर्माण होता है। बीडी का प्रयोग मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग अक्सर करते है। बुजुर्ग ने कहा कि बीडी से हमे सुकून मिलता है और तेन्दु पत्ता तोडाई से पैसे पर जब हमारे परिवार का कोई बीडी के जहर के कारण कैंसर की जकड मे आता है तो पीढीयो की कमायी उसमे लग जाती है और फिर भी हम जान नही बचा पाते है। यदि हम इस बात को समझ जाये और तेन्दु पत्ता की तोडाई बन्द कर दे तो न बीडी बनेगी और न ही लोग अकाल मौत मरेंगे। मुझे उन बुजुर्ग की बात सही लगी पर इतने बडे व्यापार को रोक पाना सम्भव नही जान पडा। तेन्दु की पत्तियो के धुँए के जानलेवा प्रभाव के बारे मे तो प्राचीन भारतीय ग्रंथ चेताते आ रहे है। आम लोग आँखो के सामने अपने घर को बरबाद होते देख रहे है पर इसका मोह नही छूट रहा है। ऐसा नही है कि तेन्दु पत्ता के व्यापार पर विराम लगाने की ये क्रांतिकारी बात मै पहली बार सुन रहा था। मुझे याद है कि एक कैसर के मरीज के साथ मध्य भारत के एक बीडी निर्माता कुछ वर्षो पहले मेरे पास आये थे।

“हमारी माताजी कैंसर की अंतिम अवस्था मे है। सारे देशी-विदेशी चिकित्सक जवाब दे चुके है। आप ही कुछ सुझाये।“ उन्होने मुझसे अनुरोध किया। मैने कुछ पारम्परिक चिकित्सको के पते दिये। चर्चा के दौरान उन्होने बताया कि सालो तक हम बीडी के धन्धे से हजारो घर बर्बाद कर अपने घर मे रोशनी बढाते रहे। पर वो कहते है न कि ऊपर वाले की लाठी मे आवाज नही होती। वैसे ही हमारे घर मे कब कैंसर ने दस्तक दे दी, हमे पता ही नही चला। इसके बाद हमने फैसला कर लिया कि अब हम यह धन्धा नही करेंगे पर “इजी मनी” के दीवाने हमारे बेटे इस धन्धे को बन्द करने तैयार नही है। अब हमे लगता है कि हमारा जीवन इसी अभिशाप के साये मे चलेगा।

यूँ तो “बाय डिफाल्ट” सिगरेट और बीडी हर्बल ही है पर ये जानलेवा उत्पाद है। इसमे कोई दो राय नही है। देश के पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण के दौरान मैने बहुत सी ऐसी हर्बल सिगरेट के बारे मे पारम्परिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया जिसकी बानगी पूरी दुनिया मे नही मिलती। मिर्गी के रोगियो के लिये दसो किस्म की उपयोगी हर्बल सिगरेट है जो आज भी ग्रामीण अंचलो मे लोकप्रिय है। साँस की बीमारी से लेकर बवासिर और यहाँ तक कि साधारण सर्दी-जुकाम के लिये भी ऐसे देशी उत्पाद है। यह विडम्बना ही है कि इनमे से एक भी उत्पाद बाजार मे नही है। ग्रामीण कुटिर उद्योग की अपार सम्भावना लिये इस परियोजना के बारे मे किसी के पास सोचने तक का समय नही है।

कुछ वर्षो पहले हर्बल सिगरेट को व्यवसायिक तौर पर आम जनता के सामने लाने के लिये कुछ स्थापित निर्माताओ ने मुझसे सम्पर्क किया था। मैने अपनी कल्पनाशक्ति और अनुभव के हिसाब से ढेरो उत्पाद बनाये पर इस जद्दोजहद मे एक बात सामने आयी जिसने प्रयोग की दिशा ही बदल दी। जिसे बीडी या सिगरेट का नशा लग गया था वह बिना तम्बाकू वाली हर्बल सिगरेट मे मन नही रमा पाता था। और जो इन्हे नही पीता था उसे हर्बल सिगरेट मे भी मजा नही आता था। यह कडवी पर सीधी बात थी। हमे ऐसी हर्बल सिगरेट बनानी थी जिसे पीते वक्त लोगो को लगे कि वे मूल सिगरेट पी रहे है पर इससे उन्हे नुकसान न हो बल्कि हो सके तो लाभ हो।

तेन्दु या तम्बाकू से नुकसान होता है ऐसा प्राचीन ग्रंथो मे लिखा है पर इसकी “काट” के बारे मे कुछ नही लिखा गया है। जंगल मे हर अच्छी-बुरी चीज की “काट” मौजूद है। मैने इस “काट” पर हजारो पन्ने रंगे है। एक वनस्पति दूसरी वनस्पति की “काट” का काम करती है पर बहुत बार एक ही वनस्पति मे ही “काट” रहती है। जैसे जड की “काट” पत्तियो मे होती है। तो क्या ऐसी सिगरेट बनायी जा सकती है जो हमारी कल्पना मे है। सौभाग्य से इसका जवाब हाँ मे है। पर अभी ये प्रयोग दिशा पाने के बाद आरम्भिक चरणो मे है।

चलिये अब उन बुजुर्ग के पास वापस लौटे जिन्होने बिच्छी का तोड बताया था। हम जंगल मे बैठकर बतिया रहे थे। मैने आदर्श सिगरेट की कल्पना उनके सामने रखी तो वे हैरत मे पड गये कि क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? यदि ऐसा हो सकता है तो न तेन्दु पत्ता की तोडाई रोकनी होगी और न ही लोगो का बीडी पीना छुडाना होगा। बीडी का कारोबार भी फैलेगा और घर भी बरबाद नही होंगे। मैने अपने कुछ नुस्खे उन्हे देने का मन बना लिया। आखिर उन्होने मुझ अजनबी पर विश्वास करके ज्ञान बाँटा था। मैने एक बीडी ली और उसे खोला। पास से पाँच प्रकार की छालो को एकत्र किया और फिर उन्हे बीडी के अन्दर रख दिया। “छाल अभी कच्ची है इसलिये हो सकता है कि जलने मे कुछ दिक्कत हो।“ मैने कहा। उन्होने बीडी पी और कह पडे कि यह तो वैसी ही बीडी है जैसी हम रोज पीते है। इसका मतलब छालो की उपस्थिति से मूल रुप नही बिगडा था। पर ये छाले अंजाने रुप से तेन्दु की विषाक्तता को कम कर रही थी। उन्होने मुझे धन्यवाद दिया और हम लौट पडे।

मेरे ड्रायवर को जब यह सब पता चला तो वह बिफर पडा और बोला कि अनपढ गँवारो को तो आप झट से सब बता देते हो पर मुझ जैसे पढे-लिखो को कुछ भी नही बताते। मै मन ही मन उस पर हँसा। वह जिन्हे अनपढ-गँवार कह रहा था उनके पास ज्ञान का जो खजाना है वो जन्मो के किताबी अध्ययन के बाद भी हम नही पा सकते। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Udan Tashtari said…
कितनी जानकारी का खजाना है इन लोगों के पास जो अनुभव से आया है.

क्या बिछ्छी की काटे का दर्द भले न हो पर विषात्कता का असर तो होता होगा?

यदि बीड़ी उत्पादक उन्हें गल्वज और चश्में उपलब्ध करायें तो काम कुछ आसान हो पायेगा?
पंकज जी यह जंग हमे मिल जुल कर लडनी है मैने भी इसके लिये एक ब्लोग शुरु किया है.."ना जादू ना टोना" कृपया देखें
वह जिन्हे अनपढ-गँवार कह रहा था उनके पास ज्ञान का जो खजाना है वो जन्मो के किताबी अध्ययन के बाद भी हम नही पा सकते!
भी बहुत जगहों पर महसूस किया है।

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