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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -45

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -45 - पंकज अवधिया कुछ वर्षो पहले एक हर्बल कम्पनी मे बतौर सलाहकार सप्ताह मे एक बार जाना होता था। वहाँ एच.आर. नाम से एक मैनेजर थे। उनका पूरा नाम उस कम्पनी मे शायद ही कोई जानता हो। सभी उन्हे एच.आर. कहते थे। मै भी उन्हे इसी नाम से जानता था। एक बार मैने बातो ही बातो मे उनसे पूरा नाम पूछा तो वे टाल गये। उनके टालने के ढंग मे कुछ रहस्य था इसलिये मै समय-समय पर पूछता रहा। इस कम्पनी का काम खत्म होने के आखिरी दिन एच. आर. मुझे छोडने एयरपोर्ट आये। वही प्रश्न मेरे मन मे था। पता नही वो कैसे ताड गये और बोले, सर बडा ही अटपटा नाम है। गाँव से हूँ और वही से यह नाम मिला है। एच. आर. मतलब हगरु राम। इतना बोलने के बाद वे यह सोच कर बचाव की मुद्रा मे आ गये कि मै अब जमकर मजाक उडाऊँगा। पर मुझे हँसी नही आयी। हाँ, बचपन के बहुत से ऐसे मित्रो की याद आ गयी जिनके साथ गाँव मे मै खेला करता था। ये अटपटे नाम वाले सहपाठी थे। ये अटपटे नाम हम लोगो ने नही रखे थे बल्कि उनके आपने पालको ने रखे थे। ऐसे सहपाठियो को बचपन मे बहुत अपमान सहना होता था पर वे कुछ कर नह...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -39

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -39 - पंकज अवधिया साँपो से जुडी वनस्पतियो मे सदा ही से मेरी रुचि रही है। एक बार मुझे पता चला कि पास के गाँव मे कोई तांत्रिक ऐसी दवा बेच रहा है जिससे सर्प दंश की चिकित्सा हो सकती है। मै वहाँ पहुँचा तो मुझे लाल रंग का एक पाउडर दिया गया और बताया गया कि इसे दंश वाले स्थान पर लगा देने से तुरंत ही यह जहर खीच लेता है। उसका यह भी दावा था कि इस पावडर को घर के उन स्थानो मे भी रखा जा सकता है जहाँ से साँप के भीतर आने की सम्भावना हो। इस पावडर के प्रभाव से साँप दूर ही रहेगा। पावडर एक छोटे से डब्बे मे बन्द था और उसकी कीमत थी 251 रुपये। मैने डब्बा खोला तो तेज बदबू से मेरा सिर घूम गया। यह बदबू एंटीबायटिक दवाओ से मिलती-जुलती थी पर उनसे कुछ अलग भी थी। मेरा दिमाग इसे सही रुप से पहचान नही पाया। मैने डब्बा खरीद लिया। उसे लेकर जब सर्प विष चिकित्सा मे दक्ष पारम्परिक चिकित्सक के पास गया तो उसने पावडर को पहचान लिया। उसका मत था कि सर्प दंश वाले स्थान पर इसे लगाने से फायदे की जगह नुकसान हो सकता है पर हाँ, घर मे रखने से शायद साँप न आये। यह वन...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33 - पंकज अवधिया बचपन मे जब मै अपने सहपाठियो के साथ गाँव की सैर किया करता था तो रोचक बाते सुनने को मिलती थी। कोई भी नया जीव दिखते ही हम उसके पीछे लग जाते थे। पर उल्लू को देखते ही हम राह बदल लेते थे। हमे चेताया गया था कि यदि शाम को उल्लू को ढेला मारा और ढेला पानी मे गिर गया तो जैसे-जैसे वह घुलता जायेगा वैसे-वैसे मारने वाले की जान निकलती जायेगी। गाँव के बडे आँखे निकाल-निकाल कर यह बात बताते थे। मन ही मन बहुत डर लगता था। हमारी हिम्मत भी नही होती थी कि हम इस प्राणी के दर्शन करे। पिछले हफ्ते एक वन ग्राम मे शाम के समय पेड पर एक उल्लू दिख गया। मैने अपना कैमरा निकाला और जुट गया तस्वीरे लेने मे। यह सब देखकर एक बच्चा तेजी से मेरे पास आया और एक ही साँस मे उसी बात को दोहरा दिया। मेरे सामने बचपन की यादे तैर गयी। इसका मतलब यह बाते दूर-दूर तक प्रचलित है। पढे-लिखे लोग निश्चित ही इसे अन्ध-विश्वास कह सकते है। पर मुझे यह विश्वास उल्लू की प्राण रक्षा मे सहायक लगा। चलिये अन्ध-विश्वास ही सही पर यह एक निरीह प्राणी की जान बचा रहा है, य...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -32

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -32 - पंकज अवधिया अन्ध-विश्वास ने जिन पक्षियो का जीना मुहाल कर दिया है उनमे उल्लू का नाम सबसे ऊपर है। इसे रहस्यमय शक्तियो के स्त्रोत के रुप मे प्रचारित किया गया है। बेचारे के लिये अजीब सी दिखने वाली शक्ल और निशाचर होना अभिशाप बन गया है। पिछले दिनो हमारे एक वैज्ञानिक मित्र का सन्देश आया। वे उल्लूओ की तेजी से घटती संख्या पर शोध कर रहे थे। उन्होने अपने अध्ययन मे पाया है कि देश भर मे पिछले एक दशक मे उल्लूओ की संख्या मे तेजी से कमी आयी है। शहरी इलाको मे तो वैसे ही उल्लू कम दिखते है पर अब गाँवो मे भी ये कम दिखने लगे है। पिछले दिनो देश के मध्य भाग से समाचार आया कि एक विचित्र-सा पक्षी मिला है। लोग उसे गरुड मानकर पूजा कर रहे है। पैसे चढा रहे है। यह खबर सतना से प्रसारित हुयी। उसके बाद छत्तीसगढ के जाँजगीर से भी यह खबर आयी। अखबारो ने प्रथम पृष्ठ पर इसकी तस्वीर छापी। खबर मे बताया गया था कि इस विचित्र पक्षी के पास जाने से फुफकारने की आवाज आ रही है। चित्र देखते ही इसके बार्न आउल होने का अन्दाज विशेषज्ञो को हो गया। फुफकारने के का...