अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -39

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -39 - पंकज अवधिया

साँपो से जुडी वनस्पतियो मे सदा ही से मेरी रुचि रही है। एक बार मुझे पता चला कि पास के गाँव मे कोई तांत्रिक ऐसी दवा बेच रहा है जिससे सर्प दंश की चिकित्सा हो सकती है। मै वहाँ पहुँचा तो मुझे लाल रंग का एक पाउडर दिया गया और बताया गया कि इसे दंश वाले स्थान पर लगा देने से तुरंत ही यह जहर खीच लेता है। उसका यह भी दावा था कि इस पावडर को घर के उन स्थानो मे भी रखा जा सकता है जहाँ से साँप के भीतर आने की सम्भावना हो। इस पावडर के प्रभाव से साँप दूर ही रहेगा। पावडर एक छोटे से डब्बे मे बन्द था और उसकी कीमत थी 251 रुपये। मैने डब्बा खोला तो तेज बदबू से मेरा सिर घूम गया। यह बदबू एंटीबायटिक दवाओ से मिलती-जुलती थी पर उनसे कुछ अलग भी थी। मेरा दिमाग इसे सही रुप से पहचान नही पाया। मैने डब्बा खरीद लिया। उसे लेकर जब सर्प विष चिकित्सा मे दक्ष पारम्परिक चिकित्सक के पास गया तो उसने पावडर को पहचान लिया। उसका मत था कि सर्प दंश वाले स्थान पर इसे लगाने से फायदे की जगह नुकसान हो सकता है पर हाँ, घर मे रखने से शायद साँप न आये। यह वनस्पति से तैयार चूर्ण नही था। यह था छछून्दर को मारकर और फिर सुखाकर बनाया गया पावडर। इसकी विशेष बदबू से आम भारतीय परिचित है क्योकि घरो मे यह बिन बुलाये मेहमान की तरह इसका आना-जाना लगा रहता है। आपने साँप- छछून्दर वाली कहावत पढी होगी। साँप इसे खाना पसन्द नही करते है। यदि लालच मे निगल भी ले तो आधे मे ही असमन्जस मे पड जाते है कि निगले या उगले। इसी को साँप- छछून्दर वाली स्थिति कहते है। आम तौर पर लोगो मे यही मान्यता है कि जहाँ यह प्राणी रहता है वहाँ सर्प आना पसन्द नही करते है। इसी मान्यता का लाभ उठाकर इसे मारकर सुखाकर बेचा जाता है पर यह सचमुच कितना प्रभावी है इसकी परीक्षा नही हुयी है।

अपना कम्प्यूटर लेने से पहले मै पास के साइबर कैफे जाया करता था जिसे आदिल खान नामक व्यक्ति चलाया करते थे। अक्सर काम करते वक्त पैरो के पास कुछ हलचल महसूस होती थी। मै समझ जाता था कि छछून्दर ही है। मुझे बडा डर लगता था क्योकि बचपन मे एक बार इसने मेरे बडे भाई के पैर मे काट लिया था। मैने बार-बार नाराजगी दिखायी पर आदिल इसे मारने के लिये तैयार नही होता था। मैने कैफे मे न आने की धमकी दी तो उसने बताया कि हम लोग इस प्राणी को लक्ष्मी का रुप मानते है। इसलिये आप भले ही चले जाये पर इनका आना-जाना बन्द नही होगा। आमतौर पर आधुनिक घरो मे इसे पसन्द नही किया जाता है। कारण सामान्य सा है। यह नालियो से होकर आती है इसलिये इसे बीमारी फैलाने वाला माना जाता है। यह सही भी है। भले ही इसके प्रशंसक इसे घर का सफाई कर्मचारी माने पर इसकी शक्ल और आवाज के कारण इसका स्वागत नही होता है।

देश मे विभिन्न भागो मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण के दौरान छछून्दर का नाम मैने बहुत से सन्दर्भो मे सुना। बाहरी और आँतरिक दोनो ही रुपो मे नाना प्रकार के रोगो की चिकित्सा मे इसका उपयोग होता रहा है। इससे बनाये गये तेल का वर्णन प्राचीन साहित्यो मे मिलता है। इसे कामोत्तेजक भी माना जाता है। पर आजकल इसका उपयोग कम ही होता है। पारम्परिक चिकित्सक इसका कारण जानते है। उनका कहना है कि इसकी बदबू एक प्रमुख कारण है। फिर इन रोगो के लिये बहुत सी वनस्पतियाँ उपलब्ध है इसलिये भी इसका उपयोग कम किया जाता है। छछून्दर आमतौर पर आसानी से दिख जाने वाला प्राणी है और इसके शत्रु भी अधिक नही है। विदेशो मे विशेषज्ञ छछून्दर प्रभावित घरो मे बिल्ली पालने की सलाह देते है। पर मुझे नही लगता कि बिल्ली इसे खाती होगी। हाँ, वह कुछ को मार जरुर सकती है। अपने अनुभवो से मैने उल्लू को बडा ही लाभकारी पाया है। वैज्ञानिक साहित्य भी ऐसा ही कहते है। उल्लू की उपस्थिति से इन पर प्राकृतिक नियंत्रण रहता है। पर आपने पहले के लेखो मे पढा ही है कि कैसे मानवीय गतिविधियो से उल्लू कम होते जा रहे है। छछून्दर का उत्पत्ति स्थान भारत को ही माना जाता है। चूँकि यह मानव आबादी के आस-पास निवास करने वाला प्राणी है इसलिये मानव ही ने इसे भारत से दुनिया भर मे फैलाने मे मदद की है। दुनिया के कुछ देशो मे पहले पहल इसे घर मे चूहो के नियंत्रण के लिये पाला गया पर जल्द ही उन्हे पता चल गया कि चूहे से अधिक खतरनाक बला ये छछून्दर है।

भले ही दुनिया भर के वैज्ञानिक साहित्यो ने इसे खतरनाक आक्रांता घोषित कर रखा है और इसे मारने की मुहिम छेडी हुयी है पर पारम्परिक चिकित्सक मानते है कि जब माँ प्रकृति ने इसे प्राकृतिक रुप से मानव आबादी के आस-पास ही रखा है तो जरुर कोई विशेष कारण होगा। इन कारणो को पता लगाने वाले शोधो को बढावा देना जरुरी है। मै उनकी इस बात से सहमत हूँ। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Udan Tashtari said…
हमें भी यही सिखाया गया है कि छछूंदर को नहीं मारना चाहिये, लक्ष्मी जी का वाहन है. :)

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