अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -47

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -47 - पंकज अवधिया


ढेरो आधुनिक यंत्रो के बावजूद आज का मौसम विभाग मौसम की सही भविष्य़वाणी नही कर पाता है और आम लोगो के मजाक का शिकार होता रहता है। मैने इस लेखमाला मे पहले लिखा है कि कैसे आज भी ग्रामीण भारत अपने पारम्परिक ज्ञान के आधार पर सटीक भविष्यवाणी करता है। इसी क्रम मे मुझे याद आता है कि बचपन मे गाँव के बडे-बुजुर्ग प्रवासी पक्षियो की हलचल को देखकर वर्षा की भविष्यवाणी किया करते थे। वे बाजो के चिल्लाने से भी वर्षा के होने और न होने का अनुमान लगाते थे। हमारे गाँव मे जंगली कबूतर बडी संख्या मे है। लोग इन्हे छेडते नही है और इनकी सुविधा के लिये काली मटकी लटका देते है ताकि वे इसमे अंडे दे सके। बचपन मे पहले दादाजी को और फिर पिताजी को ऐसी मटकी लटकाते मैने देखा है। बचपन मे यह भी सुना था कि जितने तरह के पक्षी गाँव मे रहेंगे उतना ही कम फसलो को नुकसान होगा। बाद मे यही बात कृषि की शिक्षा के दौरान देशी-विदेशी किताबो मे पढी। बचपन से लेकर अब तक देखते ही देखते पक्षियो की विविधता मे कमी दिखने लगी है। वे संख्या मे भी कम होने लगे है। जंगली वनस्पतियो पर आश्रित रहने वाले कीडो को खाने वाले पक्षी बचे है या वे पक्षी बचे है जो कीटनाशक का जहर अपने अन्दर रखे हुये कीडो को भोजन के रुप मे पचा पाने मे सक्षम है। जैसे-जैसे नये कीटनाशक आ रहे है वैसे-वैसे कीडो मे प्रतिरोधक क्षमता बढती जा रही है। इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पक्षियो पर पड रहा है।

देश के विभिन्न भागो मे किये गये वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मैने बाज की आवाज से वर्षा की भविष्य़वाणी के पारम्परिक ज्ञान के विषय मे बहुत से लोगो से सुना। यह हमारा सौभाग्य है कि आज भी हमारे बीच पारम्परिक मौसम वैज्ञानिको की एक पूरी पीढी मौजूद है पर यह विडम्बना ही है कि उनके ज्ञान की कोई कद्र नही है। मोटे तौर पर सुबह-सुबह बाज की आवाज सुनायी देने पर किसान बिना फिक्र के खेतो मे चले जाते है। यह आवाज बताती है कि पानी गिरने मे विलम्ब है। छत्तीसगढ के मैदानी भागो के बहुत से बुजुर्ग तो बाज की विशेष आवाज निकालकर बताते है कि ऐसी आवाज सुनायी देने पर वर्षा के साथ आसमानी बिजली का डर होता है। ऐसी आवाज से बाज शायद मानव जाति और माँ प्रकृति के दूसरे घटको को सूचित करना चाहता है कि खुले खेतो मे न जाये। पानी गिरने पर भीगे पेडो की शरण न ले। अन्यथा जान जा सकती है। छत्तीसगढ मे आसमानी बिजली से प्रतिवर्ष बहुत से लोगो की अकाल मृत्यु होती है। ज्यादातर मामलो मे खेतो मे काम करने के दौरान ही किसान बिजली की चपेट मे आ जाते है। पिछले हफ्ते ही जंगली इलाके के एक बुजुर्ग बता रहे थे कि इस बरसात मे उन्होने पक्षियो की आवाज के आधार पर गाँव वालो को चेताया था पर किसी ने उनकी नही सुनी। आसमानी बिजली का कहर बरपा उस दिन और खेत मे काम कर रही एक महिला इसकी चपेट मे आ गयी। मुझे याद आता है कि मैने इस तरह के पारम्परिक ज्ञान के विषय मे एक आधुनिक मौसम विशेषज्ञ से चर्चा की थी। पर उन्होने कहा कि यह सब फालतू बाते है। मेरा सुझाव था कि बुजुर्गो की मदद से आवाज की पहचान करके उन्हे रिकार्ड किया जाये फिर ऐसे सेंसर लगा दिये जाये जो ऐसी आवाजे सुनते ही विभाग को सूचित करे और इस आधार पर भविष्य़वाणी हो। पर इन धरती पुत्रो को नीचा दिखाये बिना हमारे वैज्ञानिक, वैज्ञानिक कैसे समझे जायेंगे। इसीलिये इस अमूल्य ज्ञान की कोई कद्र नही है।

रात को बाज की आवाज यदि सुनायी दे तो इसे वर्षा का सूचक माना जाता है। तंत्र से सम्बन्धित साहित्यो मे पक्षियो को अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ मे बाँट दिया गया। इसका कारण नही बताया गया। जंगली कबूतर का ही उदाहरण ले। ज्यादातर साहित्य घर मे या इसके आस-पास रहने को अशुभ कहते है। वे दावा करते है कि इससे घर उजड जाता है। पर इसके पीछे निहित कारण नही बताते है। हमारे गाँव की तरह ही बहुत से गाँव मे पीढीयो से ये रह रहे है पर किसी को उजडते लोगो ने नही देखा। बहुत से साहित्य तो इसके घर मे आने ही को बुरा मानते है। इन बातो मे कोई दम नही है। माँ प्रकृति ने सभी पक्षी विशेष प्रयोजन से बनाये है। प्रत्येक की इस धरती पर विशेष भूमिका है। यह तो मनुष्य़ की अज्ञानता है कि उसने इन्हे शुभ-अशुभ से जोडकर अपने पैरो मे कुल्हाडी मार ली है।

मेरे भतीजे ने एक दिन पूछा कि बगुला एक पैर पर क्यो खडा होता है? मेरे पास जवाब नही था। मैने प्रश्न टाल दिया और अपने ग्रंथो मे उत्तर की तलाश करने लगा। फिर इंटरनेट को भी खंगाला। शाम को फिर भतीजे से सामना हो गया। मैने हार मान ली तो उसने कहा कि बगुला एक पैर पर इसलिये खडा होता है क्योकि यदि वह दूसरा पैर उठायेगा तो गिर जायेगा। ये लीजिये, कहाँ मै वैज्ञानिक कारणो की तलाश मे भटकता रहा। बगुला बचपन ही से मेरा प्रिय पक्षी रहा है। घर के सामने गंगा इमली (विलायती इमली) का एक बडा पेड था जिसमे इन पक्षियो का डेरा था। शाम को इन्हे देखने मे ही काफी समय बीतता था। बाद मे दूरबीन लेकर इसके पीछे काफी दूरी तय की। यह जानने कि यह किस कीडे को अधिक खाता है? इसे किसानो का मित्र पक्षी कहा जाता है। शोध का उद्देश्य यह पता लगाना था कि कही यह किसानो के लिये उपयोगी कीडो को तो नही खाता है। पर लगातार नजर जमाये रखने से यह स्पष्ट हो गया कि यह हानिकारक कीडो को अधिक खाता है। बगुला को हमारे क्षेत्र के कोकडा कहा जाता है। इसके एक पैर पर खडे होने को गहन लगन के उदाहरण के रुप मे प्रस्तुत किया जाता है। मै अपने शोध से इसे हीरो के रुप मे देखता हूँ। पर बच्चो की कहानियो से लेकर बहुत से साहित्यो मे इसे कुपात्र के रुप मे प्रस्तुत किया गया है। इससे अन्ध-विश्वास भी जुडे हुये है। इसे एक पैर मे खडा देखना कोई दुर्लभ घटना नही है। बहुत से तांत्रिक साहित्य यह दावा करते है कि यदि एक पैर पर खडा बगुला दिख जाये तो अपार धन की प्राप्ति होती है। काश यह सही होता। कम से कम भारतीय किसानो की हालत आज जैसी नही होती। वे तो दिन मे कई बार बगुले को इस मुद्रा मे देखते है। तांत्रिक यह भी दावा करते है कि यदि बगुला आपको बार-बार देखता है तो इसका मतलब आपका भाग्योदय होने वाला है। और यदि वह आपको देखकर भागता है तो आपका सर्वनाश हो सकता है। किसी भी पक्षी के पास आप जायेंगे तो आपको वह बार-बार देखेगा कि पता नही यह आदमी क्या कर बैठे। हो सकता है जरा सी आहट से उड भी जाये। इस साधारण सी प्रक्रिया को भाग्योदय और सर्वनाश से जोडना उचित नही लगता है। मैने ग्रामीण अंचलो मे तांत्रिको को इस तरह की बातो से लोगो को भ्रमित करते देखा है।

इस लेखमाला मे आगे के लेखो मे भारतीय पक्षियो से जुडे विश्वास और अन्ध-विश्वासो पर चर्चा करेंगे। अब बगुले से जुडी एक याद से इस लेख को समाप्त करता हूँ। गर्मियो मे आँगन मे रात को सोते समय यदि बगुले ऊपर आसमान से गुजरते थे तो हम बच्चे जोर से चिल्लाते थे ‘ कोकडा, कोकडा दूध दे, कोकडा, कोकडा दूध दे।‘ हमारे नाखूनो मे खान-पान की कमी से जो सफेद निशान पड जाते थे वे ऐसे ही चिल्लाने से पडते है-ऐसा हमे बताया गया था। सुबह हम सब अपने नाखून मे निशान देख कर चर्चा करते थे कि बगुला ने दूध दिया कि नही। बचपन की बाते है ही निराली। पर आज बगुले पर चर्चा हुई तो अचानक ही यह सब याद आ गया। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

इस लेखमाला को चित्रो से सुसज्जित करके और नयी जानकारियो के साथ इकोपोर्ट मे प्रकाशित करने की योजना है। इस विषय मे जानकारी जल्दी ही उपलब्ध होगी इसी ब्लाग पर।

Comments

Udan Tashtari said…
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
Gyan Darpan said…
जानकारी बहुत अच्छी है | दीपावली की शुभकामनाये |

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