अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -38
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -38 - पंकज अवधिया
हमारे देश मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ किसानो और आम जनो के लिये सिरदर्द बनी हुयी है जिन्हे सजावटी पौधे के रुप मे विदेशो से लाया गया। विदेशो से लाने से पहले इनके गुणो को तो देखा गया पर दोषो को अनदेखा कर दिया। परिणामस्वरुप बहुत सी वनस्पतियो को लोगो ने अपने बागीचे से उखाड फेका। कुछ वनस्पतियाँ बागीचे से भाग निकली। उन्होने अपने बीज हवा और पानी के माध्यम से दूर-दूर तक फैला दिये और इस तरह जगह-जगह पर उनका साम्राज्य कायम हो गया। कुछ ने किसानो के खेतो को घर बनाया तो कुछ ने जंगल मे डेरा डाल लिया। इन विदेशी वनस्पतियो के दुश्मन अर्थात इन्हे खाने वाले कीडे और रोग विदेश मे ही छूट गये। केवल इन्हे ही लाया गया। यहाँ इन कीटो और रोगो के न होने के कारण वे मजे से उग रहे है और दिन दूनी-रात चौगुनी की दर से अपना साम्राज्य बढा रहे है। जाने-अनजाने इनसे देश को हर साल अरबो रुपयो का नुकसान हो रहा है। लेंटाना का ही उदाहरण ले। सजावटी फूलो के कारण इसे पसन्द किया गया और विदेश से ले आया गया। पर इसकी पत्तियो की अजीब गन्ध और कंटीले तने के कारण लोगो ने इसे नापसन्द कर दिया। आज लेंटाना बेकार जमीन मे फैला हुआ है। जंगलो मे इनकी उपस्थिति आग के फैलने मे मदद करती है जिससे हर साल बहुत नुकसान उठाना पडता है। इसके जैविक नियंत्रण के लिये वैज्ञानिको ने एक मित्र कीट जंगलो मे छोडा। उम्मीद थी कि यह कीट लेंटाना के फैलाव पर अंकुश लगा सकेगा पर कुछ समय तक लेंटाना को खाने के बाद इसने सागौन की ओर रुख कर लिया। इस तरह सागौन को बहुत नुकसान होने लगा और इस कीट के प्रसार पर रोक लगानी पडी।
यदि आप विदेशो से भारत लाये गये उन सजावटी पौधो की सूची तैयार करे जो कि अब खरपतवार बनकर नाक मे दम किये हुये है तो सैकडो नाम आपकी सूची मे शामिल हो जायेंगे। अन्ध-विश्वास से जंग पर आधारित इस लेखमाला मे मै इस विषय पर चर्चा इसलिये कर रहा हूँ क्योकि ये विदेशी वनस्पतियाँ भारतीय समाज से जाने-अनजाने जुड गयी है। इनके साथ अन्ध-विश्वास जुड गया है और यह अन्ध-विश्वास इनके फैलाव मे मददगार साबित हो रहा है।
छत्तीसगढ-उडीसा सीमा पर गाडी की खिडकी से बाहर झाँकते हुये मैने अपने साथ चल रहे बैगाओ से खेतो और बेकार जमीन मे उग रहे पीले फूलो के बारे मे पूछा तो कुछ बताने से पहले उन्होने हाथ जोडकर उन पौधो को नमस्कार किया और फिर बोले कि इन्हे स्थानीय भाषा मे हम हिंगलाज कहते है। साहब, इसके पास आते ही अच्छो अच्छो का भूत उतर जाता है। जब किसी को भूत आता है तो बैगा इसी पौधे के पास प्रभावित को ले आते है और पीले फूलो को देखते ही भूत उतर जाता है।यह मेरे लिये नयी बात थी। मै इन पौधो को कैसिया एलाटा के नाम से जानता था। ये सजावटी पौधे है और कुछ दशक पहले ही इन्होने भारतीय बागीचो मे प्रवेश किया है। वहाँ से जब लोगो ने इन्हे बेघर किया तो इनका फैलाव होने लगा। बहुत से भागो मे इसे दादमारी भी कहा जाता है क्योकि इसकी पत्तियो के बाहरी प्रयोग से दाद की चिकित्सा की जाती है। यह बहुत उपयोगी पौधा साबित नही हुआ। लोगो ने इसे अनदेखा किया और इस तरह यह फैलता रहा। अब इसके भूत से जुड जाने की बात को सुनकर बडा ही आश्चर्य हुआ।
मैने पहले लिखा है कि भूत उतारने मे जिन वनस्पतियो का प्रयोग किया जाता है वे ज्यादातर बहुत तीव्र गन्ध वाली होती है। जब यह गन्ध प्रभावित के दिमाग तक पहुँचती है तो वह तन्द्रावस्था से बाहर आ जाता है। चालू भाषा मे कहे तो यह दिमाग की बत्ती जला देता है। आपने सुना और देखा होगा कि मिर्गी के दौरे के समय मरीज को चमडे की चप्पल सुन्घायी जाती है। इसका उद्देश्य भी यही होता है। आपको एक मजेदार बात बताये। हमने कई बार ओझाओ को भूत उतारने के समय कंडो (छेना) को जलाकर धुँए को प्रभावित की नाक मे डालने का प्रयास करते देखा था। वे बार-बार प्रभावित का सिर पकडकर जलते कंडे के पास लाते है। जब ओझाओ से राज पूछा गया तो उन्होने कुछ कहने से इंकार कर दिया। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि यह धुँआ सल्फर (गन्धक) का होता है। यह बहुत ही तेज होता है। उन्माद की अवस्था मे प्रभावित की नाक से अन्दर कोमल भागो पर जब यह धुँआ पहुँचता है तो तरल से क्रिया करके तनु सल्फ्यूरिक एसिड बनाता है। इससे तीव्र जलन होती है और प्रभावित सामान्य हो जाता है। कई बार जान-बूझकर भूत आने का दिखावा कर रहे लोगो की हालत तो इस धुँए से खराब हो जाती है और वे रंगे हाथो पकड लिये जाते है। ओझा खुशी से चिल्लाते है कि उन्होने भूत को साध लिया है पर वास्तव मे कमाल गन्धक का होता है। बहुत से चतुर ओझा गन्धक की गन्ध छुपाने के लिये बच जैसी सुगन्धित वनस्पतियाँ इसमे मिला देते है। पर ऐसी सुगन्ध वाली विशेषता पीले फूलो वाले कैसिया मे नही है। इसीलिये भूत भगाने मे इसकी उपयोगिता की बात मुझे हजम नही हुयी। यह अजीब सी ही बात है कि बहुत से मामलो मे जिस पर भूत आने की बात कही जाती है उसे यह मालूम होता है कि किस वनस्पति से भूत उतर जाता है। ओझा के हाथ मे उन्हे देखते ही भूत हवा हो जाता है। पीले फूलो वाले कैसिया के विषय मे जानकारी उस समय तो नही मिली पर बाद मे जब मै एक बुजुर्ग ओझा से मिला तो उसने कहा कि यह प्राचीन समय से उपयोग मे आ रही वनस्पति नही है। इस पीढी के ओझाओ ने इसका प्रयोग खोजा है। उसे भी सही कारण का पता नही था फिर भी उसने कयास लगाया कि इसके पीले फूलो मे काले चीटे हमेशा रहते है। शायद वे ही काटकर भूत उतारते होंगे। भूत के उपचार मे उपयोग होने के कारण अब पीले कैसिया को कोई नही उखाडता है। लोग इससे दूरी बनाये रहते है। मै जब लोगो को इससे हो रहे नुकसान के विषय मे बताता हूँ तो भी वे इसे उखाडने के लिये तैयार नही होते है। कैसे यह स्थानीय वनस्पतियो से उगने के अवसर छीन रहा है, कैसे पानी की बर्बादी कर रहा है आदि-आदि खतरो पर आधारित मेरा व्याख्यान व्यर्थ साबित होता है। अब एक ही रास्ता है और वह यह है कि इस वनस्पति के सरल उपयोग विकसित किये जाये ताकि धीरे-धीरे ये खत्म हो जाये। मैने सरल उपयोग लिखा है। क्योकि वैज्ञानिको ने लेंटाना और जल कुम्भी जैसी विदेशी वनस्पतियो के ढेरो उपयोग सुझाये है पर जमीनी स्तर पर ये सफल नही है। जलकुम्भी से खाद बनायी गयी, इससे फर्नीचर बनाये गये, लेंटाना से मच्छर भगाने की दवा बनायी गयी, हर्बल चाय बनायी गयी पर नतीजा सिफर ही रहा। औषधीय और सगन्ध फसलो की व्यवसायिक खेती के सिलसिले मे मैने काफी वक्त बस्तर के किसानो के साथ बिताया। स्थानीय भाषा मे वे लेंटाना को बेमारी लाटा कहते है यानी बेमारी फैलाने वाली वनस्पति। वे इसे उखाडने के लिये हरदम तैयार रहते है। जब मैने इससे जैविक कीटनाशक बनाये और नयी फसलो पर सफलतापूर्वक प्रयोग किये तो वे बडे प्रसन्न हुये। उन्होने इसे कोदो, कुटकी जैसी पारम्परिक फसलो पर भी आजमाया। आज वे अपने चारो ओर इस विदेशी वनस्पति के फैलाव पर इसी तरीके से अंकुश लगाये हुये है।
इस लेखामाला को नियमित रुप से पढ रहे गोवा के एक पाठक ने कल ई-मेल कर मुझसे पूछा कि एंटीगोनन नामक विदेशी वनस्पति को कैसे नष्ट करे? यह वनस्पति अपने फूलो के कारण पसन्द की जाती है। यह बेल के रुप मे फैलती है और एक बार आश्रय देने से निर्बाध गति से फैलती है। यदि इस गति पर अंकुश नही लगाया गया तो इसका एकछत्र राज्य हो जाता है। मैने सोचा शायद इसी कारण उस पाठक ने नष्ट करने का उपाय पूछा होगा पर उसका कारण चौका देने वाला था। उसने कहा कि इसकी उपस्थिति घर के बागीचे मे अच्छी नही मानी जाती है। यह परिवार वालो के बीच मानसिक अशांति पैदा कर देता है। गोवा क्षेत्र मे ऐसी मान्यता है। मैने उसे उपाय तो बता दिया पर काफी देर तक सोचता रहा कि आखिर क्यो इससे मानसिक अशांति की बात जुडी होगी? विश्व साहित्य खंगाला पर जवाब नही मिला। जिस देश से यह वनस्पति लायी गयी है वहाँ ऐसी मान्यता प्रचलन मे नही है। जब तक सही कारण नही मिल जाता तब तक मै यही मान रहा हूँ कि इसके फैलाव से बागीचे के दूसरे सुन्दर और कीमती पौधे नष्ट होने लगते होंगे इसलिये परिवार वाले उस सदस्य पर बरस पडते होंगे जिसने इसे लगाया है और अशांति हो जाती होगी। सही कारण की खोज जारी है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
हमारे देश मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ किसानो और आम जनो के लिये सिरदर्द बनी हुयी है जिन्हे सजावटी पौधे के रुप मे विदेशो से लाया गया। विदेशो से लाने से पहले इनके गुणो को तो देखा गया पर दोषो को अनदेखा कर दिया। परिणामस्वरुप बहुत सी वनस्पतियो को लोगो ने अपने बागीचे से उखाड फेका। कुछ वनस्पतियाँ बागीचे से भाग निकली। उन्होने अपने बीज हवा और पानी के माध्यम से दूर-दूर तक फैला दिये और इस तरह जगह-जगह पर उनका साम्राज्य कायम हो गया। कुछ ने किसानो के खेतो को घर बनाया तो कुछ ने जंगल मे डेरा डाल लिया। इन विदेशी वनस्पतियो के दुश्मन अर्थात इन्हे खाने वाले कीडे और रोग विदेश मे ही छूट गये। केवल इन्हे ही लाया गया। यहाँ इन कीटो और रोगो के न होने के कारण वे मजे से उग रहे है और दिन दूनी-रात चौगुनी की दर से अपना साम्राज्य बढा रहे है। जाने-अनजाने इनसे देश को हर साल अरबो रुपयो का नुकसान हो रहा है। लेंटाना का ही उदाहरण ले। सजावटी फूलो के कारण इसे पसन्द किया गया और विदेश से ले आया गया। पर इसकी पत्तियो की अजीब गन्ध और कंटीले तने के कारण लोगो ने इसे नापसन्द कर दिया। आज लेंटाना बेकार जमीन मे फैला हुआ है। जंगलो मे इनकी उपस्थिति आग के फैलने मे मदद करती है जिससे हर साल बहुत नुकसान उठाना पडता है। इसके जैविक नियंत्रण के लिये वैज्ञानिको ने एक मित्र कीट जंगलो मे छोडा। उम्मीद थी कि यह कीट लेंटाना के फैलाव पर अंकुश लगा सकेगा पर कुछ समय तक लेंटाना को खाने के बाद इसने सागौन की ओर रुख कर लिया। इस तरह सागौन को बहुत नुकसान होने लगा और इस कीट के प्रसार पर रोक लगानी पडी।
यदि आप विदेशो से भारत लाये गये उन सजावटी पौधो की सूची तैयार करे जो कि अब खरपतवार बनकर नाक मे दम किये हुये है तो सैकडो नाम आपकी सूची मे शामिल हो जायेंगे। अन्ध-विश्वास से जंग पर आधारित इस लेखमाला मे मै इस विषय पर चर्चा इसलिये कर रहा हूँ क्योकि ये विदेशी वनस्पतियाँ भारतीय समाज से जाने-अनजाने जुड गयी है। इनके साथ अन्ध-विश्वास जुड गया है और यह अन्ध-विश्वास इनके फैलाव मे मददगार साबित हो रहा है।
छत्तीसगढ-उडीसा सीमा पर गाडी की खिडकी से बाहर झाँकते हुये मैने अपने साथ चल रहे बैगाओ से खेतो और बेकार जमीन मे उग रहे पीले फूलो के बारे मे पूछा तो कुछ बताने से पहले उन्होने हाथ जोडकर उन पौधो को नमस्कार किया और फिर बोले कि इन्हे स्थानीय भाषा मे हम हिंगलाज कहते है। साहब, इसके पास आते ही अच्छो अच्छो का भूत उतर जाता है। जब किसी को भूत आता है तो बैगा इसी पौधे के पास प्रभावित को ले आते है और पीले फूलो को देखते ही भूत उतर जाता है।यह मेरे लिये नयी बात थी। मै इन पौधो को कैसिया एलाटा के नाम से जानता था। ये सजावटी पौधे है और कुछ दशक पहले ही इन्होने भारतीय बागीचो मे प्रवेश किया है। वहाँ से जब लोगो ने इन्हे बेघर किया तो इनका फैलाव होने लगा। बहुत से भागो मे इसे दादमारी भी कहा जाता है क्योकि इसकी पत्तियो के बाहरी प्रयोग से दाद की चिकित्सा की जाती है। यह बहुत उपयोगी पौधा साबित नही हुआ। लोगो ने इसे अनदेखा किया और इस तरह यह फैलता रहा। अब इसके भूत से जुड जाने की बात को सुनकर बडा ही आश्चर्य हुआ।
मैने पहले लिखा है कि भूत उतारने मे जिन वनस्पतियो का प्रयोग किया जाता है वे ज्यादातर बहुत तीव्र गन्ध वाली होती है। जब यह गन्ध प्रभावित के दिमाग तक पहुँचती है तो वह तन्द्रावस्था से बाहर आ जाता है। चालू भाषा मे कहे तो यह दिमाग की बत्ती जला देता है। आपने सुना और देखा होगा कि मिर्गी के दौरे के समय मरीज को चमडे की चप्पल सुन्घायी जाती है। इसका उद्देश्य भी यही होता है। आपको एक मजेदार बात बताये। हमने कई बार ओझाओ को भूत उतारने के समय कंडो (छेना) को जलाकर धुँए को प्रभावित की नाक मे डालने का प्रयास करते देखा था। वे बार-बार प्रभावित का सिर पकडकर जलते कंडे के पास लाते है। जब ओझाओ से राज पूछा गया तो उन्होने कुछ कहने से इंकार कर दिया। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि यह धुँआ सल्फर (गन्धक) का होता है। यह बहुत ही तेज होता है। उन्माद की अवस्था मे प्रभावित की नाक से अन्दर कोमल भागो पर जब यह धुँआ पहुँचता है तो तरल से क्रिया करके तनु सल्फ्यूरिक एसिड बनाता है। इससे तीव्र जलन होती है और प्रभावित सामान्य हो जाता है। कई बार जान-बूझकर भूत आने का दिखावा कर रहे लोगो की हालत तो इस धुँए से खराब हो जाती है और वे रंगे हाथो पकड लिये जाते है। ओझा खुशी से चिल्लाते है कि उन्होने भूत को साध लिया है पर वास्तव मे कमाल गन्धक का होता है। बहुत से चतुर ओझा गन्धक की गन्ध छुपाने के लिये बच जैसी सुगन्धित वनस्पतियाँ इसमे मिला देते है। पर ऐसी सुगन्ध वाली विशेषता पीले फूलो वाले कैसिया मे नही है। इसीलिये भूत भगाने मे इसकी उपयोगिता की बात मुझे हजम नही हुयी। यह अजीब सी ही बात है कि बहुत से मामलो मे जिस पर भूत आने की बात कही जाती है उसे यह मालूम होता है कि किस वनस्पति से भूत उतर जाता है। ओझा के हाथ मे उन्हे देखते ही भूत हवा हो जाता है। पीले फूलो वाले कैसिया के विषय मे जानकारी उस समय तो नही मिली पर बाद मे जब मै एक बुजुर्ग ओझा से मिला तो उसने कहा कि यह प्राचीन समय से उपयोग मे आ रही वनस्पति नही है। इस पीढी के ओझाओ ने इसका प्रयोग खोजा है। उसे भी सही कारण का पता नही था फिर भी उसने कयास लगाया कि इसके पीले फूलो मे काले चीटे हमेशा रहते है। शायद वे ही काटकर भूत उतारते होंगे। भूत के उपचार मे उपयोग होने के कारण अब पीले कैसिया को कोई नही उखाडता है। लोग इससे दूरी बनाये रहते है। मै जब लोगो को इससे हो रहे नुकसान के विषय मे बताता हूँ तो भी वे इसे उखाडने के लिये तैयार नही होते है। कैसे यह स्थानीय वनस्पतियो से उगने के अवसर छीन रहा है, कैसे पानी की बर्बादी कर रहा है आदि-आदि खतरो पर आधारित मेरा व्याख्यान व्यर्थ साबित होता है। अब एक ही रास्ता है और वह यह है कि इस वनस्पति के सरल उपयोग विकसित किये जाये ताकि धीरे-धीरे ये खत्म हो जाये। मैने सरल उपयोग लिखा है। क्योकि वैज्ञानिको ने लेंटाना और जल कुम्भी जैसी विदेशी वनस्पतियो के ढेरो उपयोग सुझाये है पर जमीनी स्तर पर ये सफल नही है। जलकुम्भी से खाद बनायी गयी, इससे फर्नीचर बनाये गये, लेंटाना से मच्छर भगाने की दवा बनायी गयी, हर्बल चाय बनायी गयी पर नतीजा सिफर ही रहा। औषधीय और सगन्ध फसलो की व्यवसायिक खेती के सिलसिले मे मैने काफी वक्त बस्तर के किसानो के साथ बिताया। स्थानीय भाषा मे वे लेंटाना को बेमारी लाटा कहते है यानी बेमारी फैलाने वाली वनस्पति। वे इसे उखाडने के लिये हरदम तैयार रहते है। जब मैने इससे जैविक कीटनाशक बनाये और नयी फसलो पर सफलतापूर्वक प्रयोग किये तो वे बडे प्रसन्न हुये। उन्होने इसे कोदो, कुटकी जैसी पारम्परिक फसलो पर भी आजमाया। आज वे अपने चारो ओर इस विदेशी वनस्पति के फैलाव पर इसी तरीके से अंकुश लगाये हुये है।
इस लेखामाला को नियमित रुप से पढ रहे गोवा के एक पाठक ने कल ई-मेल कर मुझसे पूछा कि एंटीगोनन नामक विदेशी वनस्पति को कैसे नष्ट करे? यह वनस्पति अपने फूलो के कारण पसन्द की जाती है। यह बेल के रुप मे फैलती है और एक बार आश्रय देने से निर्बाध गति से फैलती है। यदि इस गति पर अंकुश नही लगाया गया तो इसका एकछत्र राज्य हो जाता है। मैने सोचा शायद इसी कारण उस पाठक ने नष्ट करने का उपाय पूछा होगा पर उसका कारण चौका देने वाला था। उसने कहा कि इसकी उपस्थिति घर के बागीचे मे अच्छी नही मानी जाती है। यह परिवार वालो के बीच मानसिक अशांति पैदा कर देता है। गोवा क्षेत्र मे ऐसी मान्यता है। मैने उसे उपाय तो बता दिया पर काफी देर तक सोचता रहा कि आखिर क्यो इससे मानसिक अशांति की बात जुडी होगी? विश्व साहित्य खंगाला पर जवाब नही मिला। जिस देश से यह वनस्पति लायी गयी है वहाँ ऐसी मान्यता प्रचलन मे नही है। जब तक सही कारण नही मिल जाता तब तक मै यही मान रहा हूँ कि इसके फैलाव से बागीचे के दूसरे सुन्दर और कीमती पौधे नष्ट होने लगते होंगे इसलिये परिवार वाले उस सदस्य पर बरस पडते होंगे जिसने इसे लगाया है और अशांति हो जाती होगी। सही कारण की खोज जारी है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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