अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -46
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -46 - पंकज अवधिया
अन्ध-विश्वास के खिलाफ जंग पर आधारित यह लेखमाला देश भर मे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ के माध्यम से छप रही है। मै खेती-किसानी पर नियमित लिखता हूँ इसलिये कोटा से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका कृषि अमृत मे भी इसका नियमित प्रकाशन हो रहा है। ग्रामीण भारत से आ रहे पत्र इस बात का आभास करा रहे है कि इस लेखमाला को मन लगाकर पढा जा रहा है। गुजरात के एक स्कूल से पत्र आया है कि वे हर सप्ताह छात्रो के बीच इस लेखमाला पर आधारित परिचर्चा करवा रहे है। पाठक के पत्रो मे शुभकामनाओ के साथ ढेरो प्रश्न आ रहे है। प्रश्न विस्तार से है। वे मुझसे लिखित उत्तर चाहते है ताकि अपने क्षेत्र मे इसे बतौर सबूत दिखाकर वे अन्ध-विश्वास के खिलाफ लडाई लड सके। उनके प्रश्नो के जवाब मै इंटरनेट पर प्रकाशित हो रही इस लेखमाला मे दे रहा हूँ। पत्र-पत्रिकाए एक-एक करके लेखो को प्रकाशित कर रही है। ऐसे मे नये लेख पाठको तक पहुँचने मे एक-दो साल लग जायेंगे। कल ही राजस्थान से एक विचित्र प्रश्न प्राप्त हुआ। यह किसी तांत्रिक के दावे पर आधारित है। पाठक इस पर मेरे विचार जानना चाहते है।
पत्र के अनुसार एक तांत्रिक शत्रुओ को परास्त करने का दावा कर रहा है। इसके लिये वह मोटी रकम वसूल कर कई प्रकार की विधियाँ बता रहा है। इनमे से एक विधि के अनुसार शत्रु का छिपकर पीछा करना है शनिवार को। जब शाम को वह पेशाब करे तो उसके जाने के बाद वहाँ पहुँचकर पेशाब से गीली मिट्टी को एकत्र कर लेना है। अब एक छछून्दर पकडकर इसके पेट को फाड लेना है। आँत निकालने के बाद उसमे एकत्र की गयी पेशाब युक्त मिट्टी को भरकर सिलाई कर देनी है। फिर मरे हुये छछून्दर को धतूरे के पौधे मे लटका देना है। यह पौधा श्मशान के पास उग रहा हो तो ज्यादा असर होगा। ऐसा करने से शत्रु का मूत्र रुक जायेगा और उसको बहुत तकलीफ होगी। यह तब तक जारी रहेगी जब तक उस छछून्दर के पेट से मिट्टी बाहर नही निकाल ली जाती। इस उपाय के पाँच हजार एक रुपये लिये जा रहे है।
यह तो एक नजर मे ही ठगी का मामला लगता है। यह उपाय आपको थोडा फेरबदल कर तंत्र से जुडे साहित्यो मे मिल जायेगा। पता नही कैसे आम लोग तांत्रिको की बात मानकर अपनी गाढी कमायी का पैसा बर्बाद कर देते है। ऐसा प्रतीत होता है कि तांत्रिक हाव-भाव बनाकर इस तरह के उपायो को बताते होंगे जिससे शत्रुता की आग मे जल रहा व्यक्ति प्रभावित हो जाता होगा। बहुत से तांत्रिको को पकडने जब नकली ग्राहक बनकर हम होटलो मे जाते थे तो कमरे के माहौल से सिहरन होने लगती थी। बाद मे बाहर खडे साथी अन्दर आ जाते थे और हम उनका भांडाफोड कर देते थे पर अकेला व्यक्ति ऐसे माहौल मे बिना प्रभावित हुये नही रह सकता। पढाई समाप्त करने के बाद ऐसे तांत्रिक उपायो की सत्यता जानने के लिये सहपाठियो के साथ मैने कई प्रयोग किये पर सब बेकार साबित हुये। इससे खुलकर इन उपायो का विरोध करने का साहस जागा। जब हम इस उपाय को आजमा रहे थे तब बेकसूर छछून्दर की जान लेना हम सब को बुरा लग रहा था। मैने पाठक को लिखा है कि आप उस तांत्रिक का खुलकर विरोध करे। आप पूरे विश्वास से उसके विरोध मे खडे होंगे तो दूसरे भी आपके साथ आयेंगे और तांत्रिक के पैर के नीचे से जमीन खिसकने मे देर नही लगेगी।
तांत्रिको को पकडने के सम्बन्ध मे एक रोचक बात याद आती है। जब शहर मे तांत्रिक आते थे तो शुरु मे तो कोई शिकायत नही करता था पर दस से पन्द्रह दिन बाद शिकायते आने लगती थी। लोग पहले विश्वास से तांत्रिको के पास जाते थे पर जब लाभ नही होता था और तांत्रिक के पास पैसे फँस जाते थे तो फिर संस्था से ठगी की शिकायत करने पहुँच जाते थे। संस्था को शिकायत का इंतजार होता था। शिकायत के आधार पर दस्ता शिकायतकर्ताओ को लेकर निकल पडता था। कैसे अन्दर जाना है, कितने लोग होते है, कैसे पैसे की वसूली की जाती है आदि-आदि जानकारियाँ शिकायतकर्ताओ से मिलती थी। सुनियोजित तरीके से हम तांत्रिको का भाण्डाफोड करके शिकायतकर्ताओ को सामने लाने की कोशिश करते तो पता चलता कि कार्यवाही के बीच मे ही पुलिस के लफडे से बचने के लिये वे अपनी फीस (शायद ज्यादा ही) निकालकर रफूचक्कर हो जाते थे। तांत्रिक भी आनन-फानन मे मनचाही रकम दे देते थे। ऐसी घटनाओ से सबक लेकर लिखित शिकायत लेने का प्रावधान किया गया। हमे यह भी सूचना मिली कि बहुत से शिकायतकर्ता बाद मे उन तांत्रिको के पास जाकर संस्था का भय दिखाकर वसूली करने लगते थे। बहुत से तांत्रिको ने संस्था को इस बाबत सूचना दी। जनसेवा मे ऐसे अनुभव होते ही रहते है क्योकि सभी लोग एक तरह के नही होते है।
तांत्रिक उपायो का भय कैसा होता है- इसका मुझे अनुभव है। मै इस घटना का जिक्र अक्सर करता रहता हूँ। एक बार हास्टल मे मेरा वाकमैन चोरी हो गया। होस्टल मे कुछ ही लोग थे बाकी छुट्टियो मे घर गये हुये थे। वाकमैन नया था। बहुत खोजा पर नही मिला। बाहरी व्यक्ति तो आया नही था। किसी सहपाठी ने ही चुराया था। एक मित्र ने कहा कि मेरे पहचान का एक तांत्रिक है। वह बता सकता है चोर कौन है। तांत्रिक के पास गये तो उसने कहा वह बता देगा कि कौन चोर है पर कुछ दक्षिणा देनी होगी। उसने कहा कि रविवार को वह विशेष अनुष्ठान करेगा और विशेष सामग्री का हवन करेगा। जैसे ही यह सामग्री जलेगी चोर की हालत खराब होने लगेगी। उसे खूनी दस्त होने लगेंगे। वह मर भी सकता है। तांत्रिक ने हमसे कहा कि यह बात हास्टल मे बता दो। हमने वैसे ही शब्दो मे सहपाठियो को यह बात बता दी। एक दिन बीता। शनिवार की शाम को हम फिर तांत्रिक के पास पहुँचे और पूछा कि क्या कल अनुष्ठान के समय आना है? उसने मना कर दिया। हम वापस लौटे तो कमरे के सामने वाकमैन रखा हुआ था। हम एक पल के लिये इस चमत्कार से अभिभूत हो गये। फिर हमने सोचा कि तांत्रिक को तो पता लग ही गया होगा कि वाकमैन मिल गया है। आखिर उसकी ही शक्ति से यह वापस आया था। हम उल्टे पैर उसके पास पहुँचे। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब तांत्रिक ने कहा कि चोर दूर भाग गया। अब वाकमैन मिलना मुश्किल है। कल के अनुष्ठान के लिये और पैसे लगेंगे। हमारी समझ मे सारी बात आ गयी। यह हास्टल मे बतायी गयी बात का असर था जिसके कारण चोर ने वाकमैन लौटाने मे भलाई समझी। हम यदि यह विश्लेषण नही कर पाते तो फिर तांत्रिक के चंगुल से छूटने मे जाने कितने साल लग जाते। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
इस लेखमाला को चित्रो से सुसज्जित करके और नयी जानकारियो के साथ इकोपोर्ट मे प्रकाशित करने की योजना है। इस विषय मे जानकारी जल्दी ही उपलब्ध होगी इसी ब्लाग पर।
अन्ध-विश्वास के खिलाफ जंग पर आधारित यह लेखमाला देश भर मे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ के माध्यम से छप रही है। मै खेती-किसानी पर नियमित लिखता हूँ इसलिये कोटा से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका कृषि अमृत मे भी इसका नियमित प्रकाशन हो रहा है। ग्रामीण भारत से आ रहे पत्र इस बात का आभास करा रहे है कि इस लेखमाला को मन लगाकर पढा जा रहा है। गुजरात के एक स्कूल से पत्र आया है कि वे हर सप्ताह छात्रो के बीच इस लेखमाला पर आधारित परिचर्चा करवा रहे है। पाठक के पत्रो मे शुभकामनाओ के साथ ढेरो प्रश्न आ रहे है। प्रश्न विस्तार से है। वे मुझसे लिखित उत्तर चाहते है ताकि अपने क्षेत्र मे इसे बतौर सबूत दिखाकर वे अन्ध-विश्वास के खिलाफ लडाई लड सके। उनके प्रश्नो के जवाब मै इंटरनेट पर प्रकाशित हो रही इस लेखमाला मे दे रहा हूँ। पत्र-पत्रिकाए एक-एक करके लेखो को प्रकाशित कर रही है। ऐसे मे नये लेख पाठको तक पहुँचने मे एक-दो साल लग जायेंगे। कल ही राजस्थान से एक विचित्र प्रश्न प्राप्त हुआ। यह किसी तांत्रिक के दावे पर आधारित है। पाठक इस पर मेरे विचार जानना चाहते है।
पत्र के अनुसार एक तांत्रिक शत्रुओ को परास्त करने का दावा कर रहा है। इसके लिये वह मोटी रकम वसूल कर कई प्रकार की विधियाँ बता रहा है। इनमे से एक विधि के अनुसार शत्रु का छिपकर पीछा करना है शनिवार को। जब शाम को वह पेशाब करे तो उसके जाने के बाद वहाँ पहुँचकर पेशाब से गीली मिट्टी को एकत्र कर लेना है। अब एक छछून्दर पकडकर इसके पेट को फाड लेना है। आँत निकालने के बाद उसमे एकत्र की गयी पेशाब युक्त मिट्टी को भरकर सिलाई कर देनी है। फिर मरे हुये छछून्दर को धतूरे के पौधे मे लटका देना है। यह पौधा श्मशान के पास उग रहा हो तो ज्यादा असर होगा। ऐसा करने से शत्रु का मूत्र रुक जायेगा और उसको बहुत तकलीफ होगी। यह तब तक जारी रहेगी जब तक उस छछून्दर के पेट से मिट्टी बाहर नही निकाल ली जाती। इस उपाय के पाँच हजार एक रुपये लिये जा रहे है।
यह तो एक नजर मे ही ठगी का मामला लगता है। यह उपाय आपको थोडा फेरबदल कर तंत्र से जुडे साहित्यो मे मिल जायेगा। पता नही कैसे आम लोग तांत्रिको की बात मानकर अपनी गाढी कमायी का पैसा बर्बाद कर देते है। ऐसा प्रतीत होता है कि तांत्रिक हाव-भाव बनाकर इस तरह के उपायो को बताते होंगे जिससे शत्रुता की आग मे जल रहा व्यक्ति प्रभावित हो जाता होगा। बहुत से तांत्रिको को पकडने जब नकली ग्राहक बनकर हम होटलो मे जाते थे तो कमरे के माहौल से सिहरन होने लगती थी। बाद मे बाहर खडे साथी अन्दर आ जाते थे और हम उनका भांडाफोड कर देते थे पर अकेला व्यक्ति ऐसे माहौल मे बिना प्रभावित हुये नही रह सकता। पढाई समाप्त करने के बाद ऐसे तांत्रिक उपायो की सत्यता जानने के लिये सहपाठियो के साथ मैने कई प्रयोग किये पर सब बेकार साबित हुये। इससे खुलकर इन उपायो का विरोध करने का साहस जागा। जब हम इस उपाय को आजमा रहे थे तब बेकसूर छछून्दर की जान लेना हम सब को बुरा लग रहा था। मैने पाठक को लिखा है कि आप उस तांत्रिक का खुलकर विरोध करे। आप पूरे विश्वास से उसके विरोध मे खडे होंगे तो दूसरे भी आपके साथ आयेंगे और तांत्रिक के पैर के नीचे से जमीन खिसकने मे देर नही लगेगी।
तांत्रिको को पकडने के सम्बन्ध मे एक रोचक बात याद आती है। जब शहर मे तांत्रिक आते थे तो शुरु मे तो कोई शिकायत नही करता था पर दस से पन्द्रह दिन बाद शिकायते आने लगती थी। लोग पहले विश्वास से तांत्रिको के पास जाते थे पर जब लाभ नही होता था और तांत्रिक के पास पैसे फँस जाते थे तो फिर संस्था से ठगी की शिकायत करने पहुँच जाते थे। संस्था को शिकायत का इंतजार होता था। शिकायत के आधार पर दस्ता शिकायतकर्ताओ को लेकर निकल पडता था। कैसे अन्दर जाना है, कितने लोग होते है, कैसे पैसे की वसूली की जाती है आदि-आदि जानकारियाँ शिकायतकर्ताओ से मिलती थी। सुनियोजित तरीके से हम तांत्रिको का भाण्डाफोड करके शिकायतकर्ताओ को सामने लाने की कोशिश करते तो पता चलता कि कार्यवाही के बीच मे ही पुलिस के लफडे से बचने के लिये वे अपनी फीस (शायद ज्यादा ही) निकालकर रफूचक्कर हो जाते थे। तांत्रिक भी आनन-फानन मे मनचाही रकम दे देते थे। ऐसी घटनाओ से सबक लेकर लिखित शिकायत लेने का प्रावधान किया गया। हमे यह भी सूचना मिली कि बहुत से शिकायतकर्ता बाद मे उन तांत्रिको के पास जाकर संस्था का भय दिखाकर वसूली करने लगते थे। बहुत से तांत्रिको ने संस्था को इस बाबत सूचना दी। जनसेवा मे ऐसे अनुभव होते ही रहते है क्योकि सभी लोग एक तरह के नही होते है।
तांत्रिक उपायो का भय कैसा होता है- इसका मुझे अनुभव है। मै इस घटना का जिक्र अक्सर करता रहता हूँ। एक बार हास्टल मे मेरा वाकमैन चोरी हो गया। होस्टल मे कुछ ही लोग थे बाकी छुट्टियो मे घर गये हुये थे। वाकमैन नया था। बहुत खोजा पर नही मिला। बाहरी व्यक्ति तो आया नही था। किसी सहपाठी ने ही चुराया था। एक मित्र ने कहा कि मेरे पहचान का एक तांत्रिक है। वह बता सकता है चोर कौन है। तांत्रिक के पास गये तो उसने कहा वह बता देगा कि कौन चोर है पर कुछ दक्षिणा देनी होगी। उसने कहा कि रविवार को वह विशेष अनुष्ठान करेगा और विशेष सामग्री का हवन करेगा। जैसे ही यह सामग्री जलेगी चोर की हालत खराब होने लगेगी। उसे खूनी दस्त होने लगेंगे। वह मर भी सकता है। तांत्रिक ने हमसे कहा कि यह बात हास्टल मे बता दो। हमने वैसे ही शब्दो मे सहपाठियो को यह बात बता दी। एक दिन बीता। शनिवार की शाम को हम फिर तांत्रिक के पास पहुँचे और पूछा कि क्या कल अनुष्ठान के समय आना है? उसने मना कर दिया। हम वापस लौटे तो कमरे के सामने वाकमैन रखा हुआ था। हम एक पल के लिये इस चमत्कार से अभिभूत हो गये। फिर हमने सोचा कि तांत्रिक को तो पता लग ही गया होगा कि वाकमैन मिल गया है। आखिर उसकी ही शक्ति से यह वापस आया था। हम उल्टे पैर उसके पास पहुँचे। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब तांत्रिक ने कहा कि चोर दूर भाग गया। अब वाकमैन मिलना मुश्किल है। कल के अनुष्ठान के लिये और पैसे लगेंगे। हमारी समझ मे सारी बात आ गयी। यह हास्टल मे बतायी गयी बात का असर था जिसके कारण चोर ने वाकमैन लौटाने मे भलाई समझी। हम यदि यह विश्लेषण नही कर पाते तो फिर तांत्रिक के चंगुल से छूटने मे जाने कितने साल लग जाते। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
इस लेखमाला को चित्रो से सुसज्जित करके और नयी जानकारियो के साथ इकोपोर्ट मे प्रकाशित करने की योजना है। इस विषय मे जानकारी जल्दी ही उपलब्ध होगी इसी ब्लाग पर।
Comments