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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -89

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -89 - पंकज अवधिया “हमारा सोना हमे वापस कर दो। कहाँ गया हमारा सोना?” कुछ लोग तांत्रिक के आगे गिडगिडा रहे थे। तांत्रिक उनकी बातो पर जरा भी ध्यान नही दे रहा था।वे लोग वापस गये और कुछ और लोगो को लेकर आ गये। अब तांत्रिक को जवाब देना ही पडा। उसने कहा कि तुमने ही गाँव का बिगाड किया है। तुम्हारे कारण ही गाँव मे अजीबोगरीब घटनाए हो रही है। कही अपने आप आग लग रही है तो कही आसमान से पत्थर बरस रहे है। मैने तुम्हारा सोना कीडो मे बदल दिया है। यकीन न हो तो श्मशान चले जाओ और वहाँ उग रहे बेशरम के पौधो को ध्यान से देखो। वहाँ तुम्हे सोने के कीडे दिख जायेंगे। तांत्रिक की बात सुनकर लोग श्मशान की ओर भागे। बेशरम के पौधो को ध्यान से देखा तो सचमुच सुनहरे कीडे नजर आये। कीडे सुनहरे थे पर उनसे सोना वापस नही मिल सकता था। वे बडे निराश हुये। तांत्रिक की जादुई शक्ति का डर ऐसा था कि वे कुछ बोल भी नही पाये। कही उन्हे भी कीडा न बना दिया जाये। तांत्रिक ने तो पूजा के लिये सोना मँगाया था। उन्हे कीडो मे बदल देगा, ये तो...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -88

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -88 - पंकज अवधिया “इसका फूल जानवर यदि खा ले तो वे मर जाते है।“ बेशरम के पौधो के बारे मे ऐसी बाते मै अक्सर सुना करता था। कृषि की शिक्षा के दौरान मुझे लगा कि अपने ज्ञान से सबसे पहले अपने गाँव का ही भला किया जाये। इसलिये पिताजी की अनुमति मिलते ही घर की बैठक मे नि:शुल्क कृषि परामर्श केन्द्र खोल लिया। रोज तो यहाँ बैठा नही जा सकता था। कालेज जो जाना होता था। इसलिये रविवार का दिन चुन लिया था। अपने विश्वविद्यालय से मिले जानकारी पत्रको को केन्द्र मे सजा दिया था ताकि किसान वहाँ आकर आराम से पढ सके। कालेज मे इस केन्द्र के बारे मे जानकारी मिलने पर गुरुजन बहुत प्रसन्न हुये। हर बार एक विशेषज्ञ इस केन्द्र मे अपनी सेवाए देने आने लगे। वे जानते थे कि सब कुछ निज व्यय से चल रहा है इसलिये वे अपने खर्च पर आ जाते थे और शाम तक रुकते थे। उस समय मेरी रुचि खरपतवारो मे थी। मै सभी खरप्तवारो के उपयोग खोजा करता था। बेशरम पर मेरी विशेष नजर थी क्योकि पूरी पढाई के दौरान इसके विरुद्ध हमारे कान भरे गये थे। अब जब किस...