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कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर?

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कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर? - पंकज अवधिया पिछले दिनों सिरपुर मेले में जब मैंने कमर दर्द की शर्तिया दवा के रूप खुलेआम बिक रहे साल खपरी के शल्कों को देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा| साल खपरी यानि पेंगोलिन जिसे आम बोलचाल की भाषा में चीन्टीखोर भी कहा जाता है| छत्तीसगढ़ के वनों में एक ज़माने में ये बड़ी संख्या में थे पर लगातार शिकार होने से इनकी संख्या कम होती जा रही है| इससे जुडा अंध-विश्वास इसकी जान ले रहा है| प्रकृति ने इस जीव को जंगल में दीमकों की आबादी पर नियन्त्रण रखने के लिए बनाया है| इनकी कम संख्या अर्थात दीमकों का अधिक प्रकोप और अधिक दीमक माने जंगलों का सर्वनाश| वैज्ञानिक साहित्य बताते है कि एक पेंगोलिन अपने जीवन में जंगल में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में जो भूमिका निभाता है वह लाखों रूपये खर्च करके भी मनुष्य नही निभा सकता है| राज्य में शिकारी पिन्गोलिन की कीमत तीन से चार हजार रूपये लगाते हैं| शिकार के तुरंत बाद इसके मांस को खा लिया जाता है और शल्कों को बेच दिया जाता है| न केवल छत्तीसगढ़ बल्क...

पुलिस करवाये शिकार और पुलिस ही पाये पुरुस्कार

पुलिस करवाये शिकार और पुलिस ही पाये पुरुस्कार (मेरी कान्हा यात्रा-16) - पंकज अवधिया कान्हा नेशनल पार्क के बालाघाट वाले क्षेत्र मे बाघ और तेन्दुओ के शिकार से सम्बन्धित एक सनसनीखेज खुलासा हाल ही मे मेल टुडे ने किया था। खुलासे के अनुसार पुलिस इस गोरखधन्धे मे शामिल थी। पुलिस स्थानीय व्यक्ति को पाँच हजार रुपये देकर पार्क के अन्दर छोटे जानवरो को मारकर उसके शरीर पर जहर छिडककर रखने के लिये कहती थी। जब इस जहर युक्त प्राणी को खाने के बाद बाघ या तेन्दुए मर जाते थे तो स्थानीय व्यक्तियो द्वारा ही खाल निकाल ली जाती थी। इस खाल की “जब्ती” बनाकर पुलिस वाले इसे वन विभाग के सामने प्रस्तुत कर देते थे। वन विभाग़ खाल जब्त करने वालो को पच्चीस हजार रुपयो का इनाम देता है। इस तरह पुलिस वाले प्रति शिकार बीस हजार रुपये कमा लेते थे। मुझे यकीन है कि आपने यह खबर नही पढी होगी। जिस खबर से दिल्ली मे बैठे योजनाकारो को हिल जाना चाहिये, वह हाशिये मे रह गयी। बात आयी-गयी हो गयी और कौन जाने यह खेल अब भी जारी हो? मैने अपनी कान्हा यात्रा के दौरान इस खबर पर लोगो की राय जाननी चाही तो मिश्रित प्रतिक्रियाए मिली। इक्के-दु...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -86

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -86 - पंकज अवधिया बस्तर के ग्राम मधोता के नन्हे चरवाहे ने जब एक जंगली जानवर को अपने पशुओ के आस-पास घूमते देखा तो उसने उसे जंगली कुत्ता समझ पत्थर मारकर भगाने की कोशिश की। इससे जंगली जानवर क्रोधित हो गया और उसने बिना देर उस पर आक्रमण कर घायल कर दिया। यह जंगली कुत्ता नही बल्कि तेन्दुआ था। इसके बाद जो भी दिखा उस पर इसने आक्रमण किया और चार ग्रामीण घायल हो गये। यह खबर आग की तरह फैली और कुछ ही देर लाठियो से लैस ग्रामीणो ने तेन्दुए को घेर लिया और उसे पीट-पीट कर मारा डाला। खून का बदला खून। इतना ही नही तेन्दुए के मरने के बाद इसके अंगो को लूटने की होड मँच गयी। किसी ने बीर नख की तलाश मे इसका पेट चीर डाला तो किसी ने दांत और नाखून निकाल लिये। जब तक वन-अधिकारी पहुँचे तब तक इसका एक-एक रोम ग्रामीणो ने निकालकर अपने पास सुरक्षित रख लिया था- यह दिल दहला देने वाला समाचार आज ही मै दैनिक नवभारत मे पड रहा था। ऐसी खबरे छत्तीसगढ मे नयी नही है। हम लगातार तेन्दुओ के मारे जाने की खबरे पढते रहते है। कभी कोई ...