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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35 - पंकज अवधिया सत्यानाशी ऐसा नाम है जो सब कुछ कह देता है। अब भला यदि सत्यानाशी किसी पौधे का नाम हो तो कौन इसे अपने घर मे लगायेगा? वैसे यह देखने मे आता है कि वनस्पतियो के मूल नाम विशेषकर अंग्रेजी नाम अच्छे होते है पर स्थानीय नाम उनके असली गुणो (दुर्गुण कहे तो ज्यादा ठीक होगा) के बारे मे बता देते है। सत्यानाशी का ही उदाहरण ले। इसका अंग्रेजी नाम मेक्सिकन पाँपी है। ऐसे ही मार्निंग ग्लोरी के अंग्रेजी नाम से पहचाना जाने वाला पौधा अपने दुर्गुणो के कारण बेशरम या बेहया के स्थानीय नाम से जाना जाता है। सुबबूल की भी यही कहानी है। यह अपने तेजी से फैलने और फिर स्थापित होकर समस्या पैदा करने के अवगुण के कारण कुबबूल के रुप मे जाना जाता था। वैज्ञानिको को पता नही कैसे यह जँच गया। उन्होने इसका नाम बदलकर सुबबूल रख दिया और किसानो के लिये इसे उपयोगी बताते हुये वे इसका प्रचार-प्रसार करने मे जुट गये। कुछ किसान उनके चक्कर मे आ गये। जब उन्होने इसे लगाया तो जल्दी ही वे समझ गये कि इसका नाम कुबबूल क्यो रखा गया था। अब लोग फिर से इसे कुबबूल क...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34 - पंकज अवधिया देश के विभिन्न भागो मे भ्रमण के दौरान मैने एक अजीब सी बात महसूस की है कि एक ही वनस्पति जहाँ एक स्थान पर पूजी जाती है वही वनस्पति दूसरे स्थान पर हानिप्रद मानी जाती है। पूजने और तिरस्कार करने, दोनो ही के विशेष कारण है। भटकटैया का ही उदाहरण ले। इसे कंटकारी भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सोलेनम जैंथोकारपम है। यह कंटीला पौधा बेकार जमीन मे उगता है। मध्यप्रदेश के कुछ भागो मे इसे घर के बागीचे मे देखते ही उसी समय उखाडने की परम्परा है। वैसे बागीचे मे इसकी उपस्थिति खरपतवार की तरह ही होती है। आमतौर पर जिस पौधे को हम बागीचे मे नही लगाते और जो अपने आप उग जाता है उसे खरपतवार मानकर उखाड दिया जाता है। ऐसा पूरे देश मे होता है। इसमे काँटे भी होते है और इस कारण बागीचे मे खरपतवार की तरह इसकी उपस्थिति बच्चो और पालतू जानवरो के लिये मुश्किल पैदा कर सकती है। शायद इसलिये इसे उखाड दिया जाता हो-मैने सोचा। पर विस्तार से जानकारी लेने पर पता चला कि इसे तंत्र-मंत्र से जुडा पौधा माना जाता है। घर मे इसकी उपस्थिति अशांति और क्...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -2

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -2 -पंकज अवधिया अपने अभियानो मे सबसे अधिक आकर्षण हरेली अमावस्या की रात होने वाले अभियान का होता है जब एक काफिले के रुप हम लोग उन स्थानो का भ्रमण करते है जहाँ इस विशेष रात को आम लोग जाने से डरते है। भ्रमण का मुख्य उद्देश्य यह जताना होता है कि बुरी आत्मा जैसी कोई चीज नही होती। छत्तीसगढ मे यह मान्यता है कि इस रात टोनही अपनी साधना के लिये बाहर निकलती है। इसलिये रात को आम लोग घरो के अन्दर ही रहते है। टोनही का अर्थ सामान्य शब्दो मे ऐसी महिला से है जो जादू-टोना करती है। आपने छत्तीसगढ मे टोनही प्रताडना के मामले सुने और पढे होंगे। प्रतिवर्ष बहुत से ऐसे मामले प्रकाश मे आते है जिनमे किसी महिला को टोनही का नाम देकर उसे प्रताडित किया जाता है। प्रताडना की पराकाष्ठा यहाँ तक होती है कि महिलाओ को निर्वस्त्र तक कर दिया जाता है और फिर गाँव मे घुमाया जाता है। आजादी के इतने साल बाद भी यह सब जारी है। दूरस्थ अंचलो मे ही नही बल्कि आधुनिक महानगरो के आस-पास भी। आम तौर पर इस मान्यता की गहरी जडे है समाज मे और यही कारण है कि इसक...